महामारी के दौरान कई लोगों ने आनंद प्राप्त करने के लिए अपने घर के पास मौजूद नदी, तालाब इत्यादि की मछलियों को अपने कांटे में फंसाना या पकड़ना शुरू किया। कोरोना महामारी के इस कठिन समय में इस गतिविधि ने जहां लोगों को खुशी प्रदान की, वहीं विभिन्न राज्यों में रहने वाले लोगों के लिए भोजन का भी बंदोबस्त किया। एक छड़ की सहायता से पानी में मछली को पकड़ना, कई लोगों का मनपसंद शौक बनता जा रहा है। मछली को पकड़ने की वह गतिविधि जो केवल आनंद या मनोरंजन के लिए की जाती है, रीक्रिएशनल फिशिंग (Recreational Fishing) या खेल के लिए की जाने वाली फिशिंग कहलाती है। वैश्विक स्तर पर 5% की वार्षिक वृद्धि दर के साथ यह पर्यटन उद्योग में सबसे तेजी से बढ़ने वाली गतिविधि है। इसमें मछली को पकड़ने के लिए कई तरीकों या तकनीकों का उपयोग किया जाता है, जिनमें समूह में अपने हाथों से मछली पकड़ना, भाले से भेदना, जाल बिछाना, हुक, धागे और छड़ (एंगलिंग - Angling) के संयोजन से मछली पकड़ना आदि शामिल हैं। मनोरंजन हेतु मछली को पकड़ने के लिए प्रायः एंगलिंग तकनीक उपयोग में लायी जाती है। मछली पकड़ने के एक और तरीके के अंतर्गत तेजी से चलने वाली नौकाओं या मोटरबोट का उपयोग किया जाता है, जिसे बिग गेम (Big Game) फिशिंग कहा जाता है। इस तकनीक के द्वारा पानी में रहने वाली विभिन्न विशाल प्रजातियों जैसे ट्यूना (Tuna), शार्क (Sharks) और मर्लिन (Marlin) को पकड़ा जा सकता है। मछली पकड़ने की एक अन्य तकनीक बो-फिशिंग (Bow-Fishing) है, जिसमें मछली पकड़ने के लिए एक धनुष का उपयोग किया जाता है। मछली पकड़ने की तकनीकों का प्रभावी उपयोग इस बात पर निर्भर करता है, कि आपको मछली की आदतों, निवास स्थान, व्यवहार, प्रवासन आदि का कितना ज्ञान है।
मनोरंजन के रूप में मछली पकड़ने की शुरूआत कब हुई थी, इसका कोई सटीक प्रमाण अभी तक उपलब्ध नहीं हो पाया है।लेकिन ऐसा माना जाता है, कि इसकी शुरूआत के प्रमाण 9वीं शताब्दी ईसा पूर्व के हैं, जो कि जापान (Japan) से प्राप्त हुए थे। यूरोप (Europe) के एक लेखक क्लॉडियस ऐलियानस (Claudius Aelianus) ने अपने कार्य “ऑन द नेचर ऑफ एनिमल्स” (On the Nature of Animals) में फ्लाई फिशिंग (Fly fishing) का जिक्र किया है, जो कि 175-235 ईस्वी का है। हालांकि, कई लोगों का यह भी मानना है, कि जापान में शुरूआती समय में इसका इस्तेमाल मनोरंजन के बजाय भोजन की व्यवस्था करने के लिए किया गया था। इसके अलावा यह भी माना जाता है, कि फ्लाई फिशिंग की शुरूआत इंग्लैंड (England) में1066 में हुई होगी। हालांकि, सटीक तौर पर यह ज्ञात नहीं हो पाया है, कि मनोरंजन के लिए फिशिंग की शुरूआत कब हुई, लेकिन यह स्पष्ट है, कि किताब द कॉम्प्लिकेट एंगलर (Compleat Angler) के प्रकाशन के साथ लोग इसे पूरी तरह से जानने और अपनाने लगे थे। इस किताब को सन् 1653 में इजाक वाल्टन (Izaak Walton) द्वारा लिखा गया था।वर्तमान समय में पूरे विश्व में एंगलिंग एक लोकप्रिय गतिविधि बन गया है।एंगलिंग के तहत पकड़ी जाने वाली मछलियों में विशाल ट्रेवली (Trevally), बाराकुडा (Barracuda), बारामुंडी (Barramundi) और मैंग्रोव जैक (Mangrove Jack) शामिल हैं।भारत में इस गतिविधि को उन विदेशी लोगों द्वारा लाया गया था, जो खुद मछली पकड़ने के शौकीन थे।भारत की तटरेखा बहुत लंबी है तथा यहां बड़ी संख्या में नदी, नाले, झीलें, जलाशय आदि मौजूद हैं, जो कि रीक्रिएशनल फिशिंग के लिए अनेकों अवसर प्रदान करते हैं।पिछले छह वर्षों में भारत में एंगलिंग 100% बढ़ गयी है।
भारत में मछली पकड़ना पूरे वर्ष भर संभव है, लेकिन रीक्रिएशनल फिशिंग के लिए सबसे अच्छा समय अक्टूबर से नवंबर और मध्य फरवरी से मध्य मई तक है, जब नदियों और नालों में सभी प्रकार की मछलियां उपलब्ध होती हैं। हिमालय की नदियों में फिशिंग के लिए सबसे अच्छा समय अक्टूबर से नवंबर और अप्रैल से जून का है, जबकि दक्षिण भारत में फिशिंग के लिए सबसे अच्छा समय अप्रैल से सितंबर तक है। भारत की कुछ प्रमुख नदियाँ और उनकी सहायक नदियाँ जहाँ मनोरंजन के लिए की जाने वाली फिशिंग सामान्य है, उनमें महानदी, यमुना, कावेरी, गंगा, ब्रह्मपुत्र, सतलज और हिमालय की छोटी नदियाँ शामिल हैं। इन नदियों में मछलियों की एक विस्तृत विविधता पायी जाती है, जिनमें महसीर (Mahseer), ट्राउट (Trout),कार्प्स (Carps) आदि शामिल हैं।पूर्वोत्तर राज्यों में बहुत सारे प्राकृतिक और समृद्ध जल निकाय होने के कारण वे एंगलिंग के लिए बेहतर अवसर उपलब्ध कराते हैं,लेकिन वहां मछली पकड़ने के अवैध तरीके आज भी उपयोग किए जाते हैं। अपनी सुंदर नदियों के साथ अरुणाचल प्रदेश में एंगलिंग के लिए विशाल क्षमता है, तथा वहां की स्थानीय सरकार खेल को लाभदायक तरीके से प्रबंधित और संचालित करने के लिए निजी संस्थाओं के साथ सहयोग करके स्थानीय संसाधनों का प्रशिक्षण दे रही है।सुनहरी महसीर,उत्तराखंड में, कई शिविरों के लिए आकर्षण है।इन शिविरों की स्थापना मछली के आधिकारिक लाइसेंस और परमिट लेने के बाद की जाती है। इसी प्रकार से हिमाचल प्रदेश अपनी ट्राउट मछली के लिए प्रसिद्ध है। कर्नाटक और केरल में भी मछली पकड़ने के समृद्ध क्षेत्र हैं, लेकिन अब अनेकों को बंद कर दिया गया है। कोच्चि में जिन मछलियों को पकड़ा जाता है, उनमें रेड स्नैपर (Red snapper), थ्रेडफिन सैल्मन (Threadfin salmon), बारामुंडी, ग्रूपर (Grouper), फ्लैट हेड (Flat head) और शीप हेड (Sheep head) शामिल हैं।मछलियों के संरक्षण के लिए पशु अधिकार समूह सक्रिय रूप से अभियान चला रहे हैं। इस अभियान के अंतर्गत मछलियों को पकड़ने और वापस पुनः उसी जल निकाय में छोड़ने के लिए प्रेरित किया जाता है।कोरोना महामारी के दौरान मछलियों को पकड़ने की गतिविधि में काफी वृद्धि हुई है, क्योंकि लोगों ने इस दौरान बाह्य गतिविधियों के महत्व को समझा है। इस गतिविधि की विशेषता यह है, कि यह धैर्य धारण करना सिखाती है। इस प्रकार, यह एक तरह से ‘योग’ की भांति काम कर रही है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3e50VMO
https://bit.ly/3u8j3ex
https://bit.ly/3aS288r
चित्र सन्दर्भ :-
1. मछली पकड़ते बुजुर्ग का एक चित्रण (Unsplash)
2. मछली पकड़ते युवकों का एक चित्रण (pexels)
3. हाथ में मछली पकडे व्यक्ति का एक चित्रण (Youtube)
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