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युद्ध किसी भी विवाद का सार्थक हल नहीं हो सकता! और यह बाद भारत भली-भांति
जानता है। हालांकि भारत हमेशा से ही विश्व शांति का समर्थन करता आया है, किंतु इसका
यह अर्थ कदापि नहीं है की हम किसी भी अन्य देश को भारत की शांतिप्रिय विचारधारा का
लाभ उठाने की आज़ादी देते हैं। बल्कि भारत अपनी सुरक्षा करने में इतना सक्षम है की बड़े
से बड़ा देश भी यहाँ अशांति फ़ैलाने से पूर्व सौ बार विचार करेगा। इस संदर्भ में भारत के
विभिन्न रक्षा सौदे देश के नागरिकों और सेना को बेहद मजबूत आधार प्रदान करते हैं।
भारत वर्ष 2016-20 के बीच हस्तांतरित हथियारों (transferred arms) के दूसरे सबसे बड़े
आयातक के रूप में उभरा, यह वैश्विक हथियारों के आयात का 9.5% हिस्सा कवर करता
था। हालांकि इसके बावजूद भी, 2011-2015 के बीच इसके आयात में 33 फीसदी की
गिरावट आई है। SIPRI रिपोर्ट के अनुसार इस गिरावट के लिए देश की जटिल खरीद
प्रक्रियाओं और रूसी हथियारों पर इसकी निर्भरता को कम करने के प्रयासों को जिम्मेदार
ठहराया है। हालांकि भारत अभी भी उपमहाद्वीप के सबसे बड़े हथियार आपूर्तिकर्ता के रूप
में कायम है।
विश्व के शीर्ष 5 हथियार आयातक:
यहां पर दिलचस्प बात यह है कि अमेरिका से भारत में रक्षा हस्तांतरण में भी 46% की
गिरावट देखी गई है, जिसका मूल कारण यह है की भारत रक्षा प्रणालियों के लिए अन्य देशों
पर अपनी निर्भरता को यथासंभव कम करना चाहता है। हालांकि इस क्षेत्र में अभी भी बहुत
कुछ किया जाना बाकी है।
रूस, फ्रांस और इज़राइल, भारत को अपने रक्षा निर्यात के सबसे बड़े आयातक (importer)
के रूप में देखते हैं। इसलिए, भारत को हथियारों के संदर्भ में आत्मनिर्भर बनने के ऐसे तरीके
खोजने चाहिए, जो उसके साथी देशों के साथ संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव न डालें। उदाहरण
स्वरूप जेट इंजन, मिसाइल, झुंड ड्रोन (swarm drones), और अन्य एआई-संचालित
क्षमताओं (AI-powered capabilities) जैसे संयुक्त रूप से विकसित और स्वदेशी निर्माण
प्रौद्योगिकियों के लिए अन्य देशों को संलग्न किया जा सकता है।
आज भारत की अमेरिका, फ्रांस और जर्मनी के साथ निर्यात में वृद्धि हो रही है, जबकि रूस
और चीन से निर्यात में तुलनात्मक रूप से गिरावट आई।
विश्व के शीर्ष 5 हथियार निर्यातक:
रूसी हथियारों के निर्यात में गिरावट लगभग पूरी तरह से मास्को से भारत के रक्षा आयात में
53% की गिरावट को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। भारत की रक्षा प्रतिष्ठान (India's
defense establishment) ने रक्षा निर्माण में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए कई
उपाय किए हैं। SIPRI की रिपोर्ट से पता चलता है कि इन प्रयासों ने रंग दिखाना शुरू कर
दिया है। हाल ही में, भारत ने स्वदेशी रूप से उत्पादित रक्षा प्रणालियों की खरीद के लिए,
वित्त वर्ष 2021-2022 के लिए पूंजी परिव्यय (capital outlay) का लगभग 63%, ₹
70,221 करोड़ आरक्षित किया है। और इसमें टैंक और विमान जैसे सिस्टम शामिल हो
सकते हैं।
देश में ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल (BrahMos supersonic cruise missile),
अर्जुन एमके-1ए टैंक, तेजस लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एलसीए) एमके-1ए (Tejas Light
Combat Aircraft (LCA) Mk-1A), एस्ट्रा परे-विजुअल-रेंज मिसाइल और पिनाका सिस्टम
(Astra Beyond-Visual-Range Missile and Pinaka System) जैसी प्रणालियों के
निर्यात पर भी काम किया जा रहा है।
हालांकि, भारत में अभी भी रूसी हथियारों की मांग बनी हुई है। इसका पता भारत और रूस
द्वारा हस्ताक्षरित दो सौदों से चलता है, जो संयोग से SIPRI की रिपोर्ट में शामिल नहीं थे,
क्योंकि इन प्रणालियों की डिलीवरी अभी तक नहीं हुई है। जिसमें 5.43 बिलियन अमेरिकी
डॉलर की एस-400 ट्रायम्फ वायु रक्षा प्रणालियों (Triumph air defense systems) का
अधिग्रहण है। अक्टूबर 2018 में हस्ताक्षरित, यह डिलीवरी इस साल के अंत तक शुरू होने
की उम्मीद है। दूसरा है एक अकुला-श्रेणी की परमाणु-संचालित हमला पनडुब्बी (Akula-
class nuclear-powered attack submarine) को पट्टे (leasing) पर देना , जिसे
2025 तक वितरित किया जाना है। मार्च 2019 में हस्ताक्षरित, यह सौदा 3 बिलियन
अमेरिकी डॉलर का है। यही यही कारण है की भारत को अपने रक्षा आयात को नियंत्रण में
रखने के लिए, घरेलू क्षमता निर्माण, नवाचार और संयुक्त सहयोग में निवेश करना चाहिए।
अक्टूबर में आई कांग्रेसनल रिसर्च सर्विस (Congressional Research Service) की एक
रिपोर्ट में पाया गया कि, 2016 से 2020 तक, रूस के कुल हथियारों के निर्यात का 23%
हिस्सा भारत ने लिया, जबकि 49% भारतीय आयात रूस ने प्रदान किया। स्टॉकहोम
इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (Stockholm International Peace Research
Institute) के सौजन्य से उस समय अवधि के दौरान भारत में कुछ प्रमुख रूसी हथियारों
की बिक्री और डिलीवरी निम्नवत दी गई है:
हथियारों के निर्माण के सन्दर्भ में, उत्तरप्रदेश तेजी से प्रमुख केंद्र के रूप में उभर रहा है, और
देश को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। हाल ही में, केंद्र
सरकार ने अमेठी के कोरवा में एक इकाई में 5 लाख से अधिक असॉल्ट राइफलों (assault
rifles) के निर्माण के लिए एक परियोजना को मंजूरी दी। "एके-203 असॉल्ट राइफलें, 300
मीटर की प्रभावी रेंज के साथ, हल्के वजन, मजबूत और सिद्ध तकनीक के साथ आधुनिक
राइफलों का उपयोग करने में आसान हैं, जो परिचालन चुनौतियों का पर्याप्त रूप से सामना
करके सैनिकों की युद्ध क्षमता को बढ़ाएगी। दो कंपनियां, एनकोर रिसर्च लैब एलएलपी
और एलन एंड अल्वन प्राइवेट लिमिटेड (Encore Research Lab LLP and Allen &
Alvan Pvt Ltd), अलीगढ़ में परिष्कृत ड्रोन (sophisticated drone) बनाने के लिए संयंत्र
स्थापित करने के लिए क्रमशः 550 करोड़ रुपये और 30.75 करोड़ रुपये का निवेश कर रही
हैं।
ये मानव रहित हवाई वाहन (UAV) न केवल भारतीय सुरक्षा बलों के लिए बहुत मददगार
होंगे, बल्कि आपदा प्रबंधन और सुरक्षा और कृषि को बढ़ाने के लिए भी इस्तेमाल किए जा
सकते हैं। उत्तर प्रदेश एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (UPEIDA) के अनुसार, 29
कंपनियों ने अलीगढ़ के पास, लखनऊ के आसपास 11, कानपुर में आठ और झांसी में छह
कारखाने स्थापित करने के लिए राज्य सरकार को अपने प्रस्ताव सौंपे हैं। इन कंपनियों से
प्राप्त अनुरोधों के आधार पर, यूपीईडा ने अब तक अलीगढ़ नोड में 19 प्रतिष्ठित कंपनियों
को 55.4 हेक्टेयर भूमि आवंटित की है। ये कंपनियां मिलकर रक्षा उपकरणों के निर्माण पर
1,245.75 करोड़ रुपये का निवेश करेंगी। जो की रक्षा क्षेत्र में भारत की आत्मनिर्भरता की
ओर एक अहम् कदम साबित हो सकता है।
संदर्भ
https://bit.ly/3HWwdkH
https://bit.ly/3MEDdGr
https://bit.ly/3sW1YWS
चित्र संदर्भ
1. आकाश मिसाइल को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
2. सतह से हवा में वार करने वाली आकाश मिसाइल प्रणाली का चांदीपुर रेंज से सफल परीक्षण, को दर्शाता चित्रण (wikipedia)
3. भारत में कुछ प्रमुख रूसी हथियारों की बिक्री और डिलीवरी को दर्शाता चित्रण (Picryl)
4. ड्रोन मिसाइल मिलिट्री को दर्शाता चित्रण (Pixabay)
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