Post Viewership from Post Date to 20-Mar-2021
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
2364 140 0 0 2504

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

घातक हथियारों का अच्छा विकल्प साबित हो सकते हैं, गैर घातक हथियार

जौनपुर

 15-03-2021 10:13 AM
हथियार व खिलौने
ऐसे हथियार जो कम घातक होते हैं, प्रायः गैर घातक हथियार कहलाते हैं। गैर-घातक हथियारों के विस्तार का इतिहास एक सदी से भी अधिक पुराना है। बंदूक से दागे या छोड़ी जाने वाली सामग्रियों (Ammunition) के उपयोग का पहला विचार 1800 के अंत में उभरा, जब विद्रोह नियंत्रण के उद्देश्य से ब्रिटिश (British) सेना ने सागौन की लकड़ी से बनी गोलियों का उपयोग करना शुरू किया। बाद में उन्हें रबर और प्लास्टिक की गोलियों में बदल दिया गया। यह गोलियां अत्यधिक घातक हथियारों की तुलना में अधिक घातक नहीं थीं, तथा शरीर के अंदर पूर्ण रूप से चुभने या घुसने की बजाय बाह्य रूप से कम आघात करती थीं। तब से इस प्रौद्योगिकी में निरंतर विकास होता चला आ रहा है, तथा आज भी सुरक्षा से सम्बंधित चुनौतियों का सामना करने के लिए इनका विस्तार किया जा रहा है। चूंकि संघर्ष परिस्थितियां निरंतर बदल रही हैं तथा घातक हथियार वास्तव में बहुत ही भयावह हैं, इसलिए हथियारों के लिए अधिक विकल्पों की आवश्यकता है। प्रसिद्ध गणितज्ञ एडवर्ड लोरेंज (Edward Lorenz) के अराजकता सिद्धांत (Chaos theory) के बटरफ़्लाई प्रभाव (Butterfly Effect) की दृष्टि से वर्तमान परिदृश्य और भी भयावह हो जाता है। लोरेंज के इस सिद्धांत के अनुसार, एक क्षेत्र में अस्थिरता दूसरे क्षेत्रों पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है, क्यों कि, वैश्वीकरण के कारण प्रत्येक क्षेत्र एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है, तथा किसी भी स्थान पर हुई कोई घटना दुनिया के अन्य क्षेत्रों को भी प्रभावित कर सकती है। इसके अलावा, नई और परिष्कृत प्रौद्योगिकियों के उद्भव ने अधिक जटिलता को जन्म दिया है। भारत में गैर घातक हथियारों का विकल्प भीड़ या दंगों के नियंत्रण में अत्यंत प्रभावी हो सकता है। गैर-घातक हथियारों को विशेष रूप से लोगों को अक्षम करने के लिए डिजाइन (Design) किया गया है, जिससे इमारतों और पर्यावरण की अत्यधिक क्षति को कम किया जा सकता है। इनका प्रभाव अस्थायी और प्रतिवर्ती हो सकता है, इसलिए आसानी से सुलझ जाने वाले मामलों या ऐसी स्थिति जिसमें किसी की जान को कोई नुकसान न पहुंचे, के लिए गैर-घातक हथियार उपयोगी हैं। भारत में पुलिस के लिए भीड़ को नियंत्रित करना बहुत जटिल होता है। ऐसे परिदृश्य में सुरक्षा बलों को हथियारों के साथ और हथियारों के बिना भीड़ से निपटना पड़ता है। चूंकि अब विरोध केवल शांतिपूर्ण नहीं रह गये हैं, इसलिए पुलिस द्वारा घातक हथियारों के बजाय गैर-घातक हथियारों का उपयोग अधिक प्रभावी होगा। भारत को त्यौहारों का देश कहा जाता है, और यहां लगभग हर त्यौहार पर बड़े समूह में लोग एकत्रित होते हैं। ऐसे में यदि दंगों या अव्यवस्था की स्थिति उत्पन्न होती है तो, उसे नियंत्रित करने के लिए भी गैर-घातक हथियार उपयोग किये जा सकते हैं, ताकि किसी को भी अत्यधिक क्षति न पहुंचे।
वर्तमान समय में बंदूक जैसे घातक हथियारों का प्रचलन अत्यधिक बढ़ गया है। पूरी दुनिया में बंदूकों का उपयोग किसी की हत्या करने या आत्महत्या के लिए किया जा रहा है। 2016 में हुए एक सर्वेक्षण के अनुसार, पूरी दुनिया में बंदूकों द्वारा होने वाली मौतों की संख्या ब्राजील (Brazil - 43200) में सबसे अधिक थी। इसके बाद संयुक्त राष्ट्र अमेरिका (37200) का स्थान है। इस सूची में भारत तीसरे स्थान (26500) पर था। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau) के अनुसार, 2010 और 2014 के बीच बंदूक से संबंधित मौतों की संख्या 3,063 से बढ़कर 3,655 हुई। 2014 में वैध बंदूकों से मारे जाने वाले लोगों की संख्या जहां केवल 14 प्रतिशत थी, वहीं बाकी लोग अवैध बंदूकों से मारे गए थे। इस संख्या को रोकने के लिए गैर-घातक हथियारों का विकल्प आवश्यक है, ताकि घातक हथियारों तक लोगों की पहुंच को कम किया जा सके।
टेजर (Taser) गैर घातक हथियार का ही एक रूप है, तथा वर्तमान समय में इसका उपयोग कुछ परिस्थितियों में घातक हथियार के विकल्प के तौर पर किया जा सकता है। हालांकि, पुलिस के पास टेजर जैसे गैर-घातक हथियार मौजूद हैं, लेकिन इनका उपयोग हर समय नहीं किया जा सकता। इसका प्रमुख कारण यह है कि, उन्हें किसी खतरनाक या घातक स्थिति के लिए बन्दूक का उपयोग करने का प्रशिक्षण दिया जाता है। टेजर ऐसी परिस्थितियों के लिए नहीं बने हैं, जहां सुरक्षा बल की जान को खतरा हो। पुलिस विभाग अपने अधिकारियों को टेजर का उपयोग करने का आदेश केवल तब ही देते हैं, जब उनकी या आस-पास मौजूद लोगों की जान को अपराधी से कोई खतरा न हो। यदि अपराधी के पास घातक हथियार या बन्दूक मौजूद है, तो उस स्थिति में सुरक्षा बल को भी बचाव के लिए घातक हथियार का उपयोग करना होगा। दूसरी बात यह है कि, टेजर हमेशा गैर-घातक नहीं होते, अर्थात इन पर पूर्ण रूप से भरोसा नहीं किया जा सकता। यह एक निश्चित दूरी तक ही प्रभावी हैं, यदि अपराधी पुलिस के बहुत निकट है, तब इसका इस्तेमाल अपराधी की जान ले सकता है।
अक्सर कई ऐसे मामले भी सामने आते हैं, जहां बन्दूक का उपयोग करने की कोई आवश्यकता नहीं होती, लेकिन फिर भी पुलिस द्वारा अपराधी पर गोली चलाई जाती है। उदाहरण के लिए यदि कोई अपराधी पुलिस से छिप कर भाग रहा है, तो उस स्थिति में भी उसे मार दिया जाता है। अपराधी पुलिस या अन्य लोगों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता, लेकिन फिर भी वह मारा जाता है। ऐसी समस्याओं को देखते हुए ही विभिन्न देशों में टेजर के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है। पुलिस के पास घातक या बन्दूक जैसे हथियारों के साथ टेजर जैसे गैर घातक हथियारों का होना आवश्यक है ताकि, वह निशस्त्र, अर्धशस्त्र या मानसिक रूप से ग्रसित अपराधी को बिना किसी क्षति के आसानी से नियंत्रित कर सकें। टेजर के उपयोग से जहां व्यक्ति केवल निष्क्रिय होगा, वहीं दंगों में अपना जीवन दांव पर लगाने वाले निर्दोष नागरिकों को भी कोई नुकसान नहीं झेलना पड़ेगा तथा कानूनी रूप से भी इसका इस्तेमाल लाभदायक होगा।

संदर्भ:
https://bit.ly/38y0Td7
https://nbcnews.to/3evIFNp
https://bit.ly/3rGwfG1
https://bit.ly/2OKS6hd
https://bit.ly/3bKCIdP

चित्र संदर्भ:
मुख्य तस्वीर गैर-घातक हथियार को दिखाती है। (फ़्लिकर)
दूसरी तस्वीर गैर-घातक हथियार प्रशिक्षण को दिखाती है। (फ़्लिकर)
तीसरी तस्वीर गैर-घातक हथियार को दिखाती है। (पिक्सी)
आखिरी तस्वीर में टेजर गन को दिखाया गया है। (फ़्लिकर)


***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • नटूफ़ियन संस्कृति: मानव इतिहास के शुरुआती खानाबदोश
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:24 AM


  • मुनस्यारी: पहली बर्फ़बारी और बर्फ़ीले पहाड़ देखने के लिए सबसे बेहतर जगह
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:24 AM


  • क्या आप जानते हैं, लाल किले में दीवान-ए-आम और दीवान-ए-ख़ास के प्रतीकों का मतलब ?
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:17 AM


  • भारत की ऊर्जा राजधानी – सोनभद्र, आर्थिक व सांस्कृतिक तौर पर है परिपूर्ण
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:25 AM


  • आइए, अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस पर देखें, मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी के चलचित्र
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:25 AM


  • आइए जानें, कौन से जंगली जानवर, रखते हैं अपने बच्चों का सबसे ज़्यादा ख्याल
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:12 AM


  • आइए जानें, गुरु ग्रंथ साहिब में वर्णित रागों के माध्यम से, इस ग्रंथ की संरचना के बारे में
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:19 AM


  • भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली में, क्या है आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और चिकित्सा पर्यटन का भविष्य
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:15 AM


  • क्या ऊन का वेस्ट बेकार है या इसमें छिपा है कुछ खास ?
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:17 AM


  • डिस्क अस्थिरता सिद्धांत करता है, बृहस्पति जैसे विशाल ग्रहों के निर्माण का खुलासा
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:25 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id