हमारे अमीर उद दौला पुस्तकालय के अद्वितीय आकर्षण दुर्लभ पांडुलिपियां व् लखनऊ से छपी पहली पुस्तकें

नगरीकरण- शहर व शक्ति
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हमारे अमीर उद दौला पुस्तकालय के अद्वितीय आकर्षण दुर्लभ पांडुलिपियां व् लखनऊ से छपी पहली पुस्तकें

दुर्लभ, ज्ञानवर्धक और रोचक पुस्तकों से भरे हुए पुस्तकालय किसी भी क्षेत्र अथवा शहर के लिए किसी खजाने से कम नहीं होते। हम बड़े गर्व के साथ कह सकते हैं की, “नवाबों का शहर” के नाम से विख्यात हमारे लखनऊ शहर में भी पुस्तकालयों के रूप में दुर्लभ और बहुमूल्य खजाने मौजूद हैं। लखनऊ के पुस्तकालय कला, इतिहास और संस्कृति प्रेमियों के लिए किसी मंदिर से कम नहीं हैं! जिनमे से एक बेहद लोकप्रिय “अमीर-उद-दौला” पब्लिक लाइब्रेरी ("Amir-ud-Daula" Public Library) का सविस्तार वर्णन आगे किया गया है।
पुस्तक प्रेमियों के लिए लखनऊ की अमीर-उद-दौला पब्लिक लाइब्रेरी की यात्रा जीते जी स्वर्ग की यात्रा से कम नहीं है! अमीर-उद-दौला पब्लिक लाइब्रेरी लखनऊ शहर की सबसे प्राचीन पुस्तकालयों में से एक मानी जाती है। दुर्लभ पुस्तकों से सम्पन्न इस पुस्तकालय के वर्तमान भवन का उद्घाटन सर्वप्रथम 6 मार्च, 1926 में तत्कालीन गवर्नर हारकोर्ट बटलर (Harcourt Butler) द्वारा किया गया। लखनऊ का यह पुस्तकालय जिज्ञासु पाठकों को एक ही छत के नीचे प्राचीन बौद्ध, इस्लामी और हिंदू साहित्य प्रदान करता है।
इस पुस्तकालय के समृद्ध संग्रह में डिजिटल रूप में संरक्षित कई दुर्लभ पांडुलिपियां (rare manuscripts) भी शामिल हैं। जिनमें से अधिकांश वास्तविक पांडुलिपियाँ ताम्रपत्र या खजूर के पत्तों पर हस्तलिखित हैं। इनमे से लगभग 1500 पांडुलिपियों को पाठकों हेतु सुलभ बनाने के लिए डिजिटल रूप से संरक्षित (digitally protected) किया गया है।
यहां पर संरक्षित अधिकांश पांडुलिपियां संस्कृत, फारसी, अरबी, तिब्बती, पाली और बर्मी भाषाओं में लिखी गई हैं। यहाँ खजूर के पत्तों पर लिखा बौद्ध साहित्य भी पुस्तकालय के लिए एक खजाने के समान है। यहां के पुस्तकालय में 1873 से पहले की कपड़ा डिजाइनिंग का संग्रह (Cloth Designing Collection) भी मौजूद है। यहाँ उपलब्ध कुछ दुर्लभ प्राचीन पांडुलिपियां लगभग 1247 की भी हैं। अमीर-उद-दौला पब्लिक लाइब्रेरी, जो वर्तमान में संभागीय आयुक्त (Divisional Commissioner) के संरक्षण में है, को 1882 में प्रांतीय संग्रहालय (Provincial Museum) में खोला गया था। बाद में इसे 1882 में औपचारिक रूप से छात्रों के लिए खोल दिया गया, और फिर वर्ष 1901 में लाल बारादरी की पहली मंजिल पर स्थानांतरित कर दिया गया। इसके बाद 1910 में पुस्तकालय को छोटा छतर मंजिल पहुंचाया गया। लेकिन इसके वर्तमान स्वरूप को 1926 में महमूदाबाद के राजा अमीर हसन खान द्वारा दी गई वित्तीय सहायता से बनाया गया था।
गुजरते समय के साथ वर्तमान के डिजिटल युग में भी पुस्तकालय में छात्रों, शोधार्थियों (researchers), वरिष्ठ नागरिकों और अन्य पुस्तक प्रेमी नागरिकों का आना जाना लगा रहता है। पुस्तकालय में 266 उधारकर्ता सदस्यों (borrower members) के अलावा 5334 लोगों की आजीवन सदस्यता है। आजीवन सदस्यता के लिए शुल्क केवल 300 रुपये है, और उधारकर्ता सदस्यता के लिए यह राशि 250 रुपये सालाना है। आज इसकी सदस्यता लगातार बढ़ रही है और अधिक से अधिक लोग इस अद्वितीय पुस्तकालय और यहाँ की दुर्लभ पुस्तकों में रुचि दिखा रहे हैं। यदि आप की इस पुस्तकालय के अद्वितीय आकर्षण को अनुभव करना चाहते हैं और आप शांत स्थानों में संरक्षित प्राचीन दुनिया का वास्तविक अनुभव करना चाहते हैं, तो लखनऊ का यह पुस्तकालय निश्चित तौर पर आपके लिए ही है! माना जाता है कि इस पुस्तकालय का नाम मोहम्मद आमिर हसन खान के नाम पर रखा गया था, जिन्होंने अमीर-उद-दौला की उपाधि भी धारण की थी। यह पुस्तकालय अवध के तालुकदारों द्वारा संयुक्त प्रांत की सरकार को उपहार में दिया गया था, और 1947 में, उनके संघ ने एक पार्क के निर्माण के लिए पुस्तकालय के सामने कुछ भूमि हस्तांतरित भी की।
यहाँ 5 से अधिक भाषाओं में लिखी गई 2 लाख से अधिक सबसे दुर्लभ पुस्तकों का संग्रह है। इन पुरातन पांडुलिपियों को गुमनामी (ख़राब या नष्ट) होने से बचाने के लिए, 2019 में स्थानीय प्रशासन द्वारा एक डिजिटल संग्रह का निर्माण शुरू किया गया था। इस पुस्तकालय के सभी स्टाफ सदस्य मिलनसार और मददगार हैं। यहाँ समाचार पत्रों के लिए एक वाचनालय (reading room) और प्रतियोगी विद्वानों/पुस्तकालय सदस्यों के लिए एक अलग अध्ययन कक्ष (study room) भी है। साथ ही इस पुस्तकालय में एक अलग बाल खंड (Kids Section) भी है, जिसमें अंग्रेजी, हिंदी और उर्दू में किताबें मौजूद हैं।
अमीर-उद-दौला पब्लिक लाइब्रेरी में 5 से अधिक भाषाओं में लिखी गई 2 लाख से अधिक सबसे दुर्लभ पुस्तकों का संग्रह करना कोई मामूली बात नहीं है। पूरी दुनियां में ऐसे गिने चुने ही पुस्तकालय हैं, जहां इतनी दुर्लभ पुस्तकें अथवा पांडुलिपियां मौजूद हैं। एक आदर्श उदाहरण के तौर पर मिस्र में अलेक्जेंड्रिया (Alexandria) का महान पुस्तकालय भी हैं, जो प्राचीन दुनिया के सबसे बड़े और सबसे महत्वपूर्ण पुस्तकालयों में से एक था। यह पुस्तकालय माउसियन (mousian) नामक एक बड़े शोध संस्थान का हिस्सा था, जो कला की नौ देवियों, मूसा (Musa) को समर्पित था। अलेक्जेंड्रिया में एक सार्वभौमिक पुस्तकालय का विचार, अलेक्जेंड्रिया में रहने वाले एक निर्वासित एथेनियन राजनेता, फेलरम के डेमेट्रियस (Demetrius of Phalerum, an exiled Athenian statesman) द्वारा प्रस्तावित किया गया। लेकिन पुस्तकालय संभवतः उनके बेटे टॉलेमी द्वितीय फिलाडेल्फ़स (Ptolemy II Philadelphus) द्वारा स्थापित किया गया। पुस्तकालय हेतु ग्रंथ की खरीद के लिए टॉलेमिक राजाओं (Ptolemaic kings) की आक्रामक और अच्छी तरह से वित्त पोषित नीतियों के कारण पुस्तकालय ने शीघ्र ही कई पेपिरस स्क्रॉल (papyrus scroll) हासिल कर लिए। अलेक्जेंड्रिया को कई मायनों में इसके ग्रेट लाइब्रेरी संग्रह (Great Library Collection) के कारण ज्ञान और सीखने की राजधानी के रूप में माना जाने लगा। तीसरी और दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व के दौरान कई महत्वपूर्ण और प्रभावशाली विद्वानों ने इस पुस्तकालय में काम किया, जिसके कुछ उदाहरण निम्नवत दिए गए हैं।
1. इफिसुस के ज़ेनोडोटस (Xenodotus of Ephesus), ने होमरिक कविताओं के ग्रंथों के मानकीकरण की दिशा में काम किया।
2. कैलीमाचस, ने पिनाक्स को लिखा (Callimachus, wrote the Pinax), जिसे कभी-कभी दुनिया का पहला पुस्तकालय कैटलॉग माना जाता है।
3. रोड्स के अपोलोनियस (Apollonius of Rhodes), ने महाकाव्य कविता अर्गोनॉटिका की रचना की।
4. साइरेन के एराटोस्थनीज (Eratosthenes of Cyrene), ने सटीकता के कुछ सौ किलोमीटर के भीतर पृथ्वी की परिधि की गणना की।
5. बीजान्टियम के अरिस्टोफेन्स (Aristophanes of Byzantium), ने ग्रीक विशेषक की प्रणाली का आविष्कार किया और जो काव्य ग्रंथों को पंक्तियों में विभाजित करने वाले पहले व्यक्ति थे।
6. समोथ्रेस के अरिस्टार्चस (Aristarchus of Samothrace), ने होमेरिक कविताओं (Homeric poems) के निश्चित ग्रंथों के साथ-साथ उन पर व्यापक टिप्पणियों का निर्माण किया।
अलेक्जेंड्रिया के समान एक अच्छे और दुर्लभ पुस्तकालय का निर्माण और उसका संचालन करना चुनौती भरा काम हो सकता है लेकिन लखनऊ के मुंशी नवल किशोर जैसे दूरदर्शी प्रकाशन इसे चुनौती के बजाय रोमांचक बना देते हैं। लखनऊ में मुंशी नवल किशोर के प्रकाशन ने अपने प्रसिद्ध उर्दू अखबार ‘अवध अख़बार’ के साथ-साथ उर्दू, फारसी और अरबी भाषा में हजारों संस्करण छापे। 1874 में उनकी व्यावसायिक सूची में उर्दू, फारसी, अरबी और संस्कृत की करीब 1066 पुस्तकें थी। लखनऊ का नवल किशोर प्रेस 19 वीं सदी के सबसे सफल प्रकाशकों में से माना जाता है।

संदर्भ
https://bit.ly/3LJFSOO
https://bit.ly/3GWEogs
https://bit.ly/3LIqnGN
https://bit.ly/3v67xn5
https://bit.ly/3GXfCwB

चित्र संदर्भ   
1. अमीर-उद-दौला पुस्तकालय को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. 1926 में तत्कालीन गवर्नर हारकोर्ट बटलर (Harcourt Butler) को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. अमीर-उद-दौला पुस्तकालय के भीतर भारत के नक़्शे को दर्शाता चित्रण (youtube)
4. अमीर-उद-दौला पुस्तकालय के भीतर रखी पुस्तकों को दर्शाता चित्रण (youtube)
5. मिस्र में अलेक्जेंड्रिया (Alexandria) के महान पुस्तकालय को दर्शाता चित्रण (youtube)

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