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अवध के पूर्व राज्यपाल एलामा ताफज़ुल हुसैन के पारंपरिक भारतीय विज्ञान पर लेख व् पुस्तकें

लखनऊ

 29-11-2021 09:06 AM
मध्यकाल 1450 ईस्वी से 1780 ईस्वी तक

आइज़क न्यूटन (Isaac Newton) की वर्ष 1687 पुस्तक, फिलोसोफिया नेचुरालिस प्रिंसिपिया मैथमैटिका (Philosophiae Naturalis Principia Mathematica) पश्चिमी गणित में एक महत्वपूर्ण योगदान था।इसी ग्रन्थ में न्यूटन के गति के नियम, सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण का नियम और केप्लर (Kepler) के ग्रहीय गति के नियमों की उत्पत्ति दी गयी थी। इस कार्य में, न्यूटन ने सार्वत्रिक गुरुत्व और गति के तीन नियमों का वर्णन किया जिसने अगली तीन शताब्दियों के लिए भौतिक ब्रह्मांड के वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया। न्यूटन ने दर्शाया कि पृथ्वी पर वस्तुओं की गति और आकाशीय पिंडों की गति का नियंत्रण प्राकृतिक नियमों के समान समुच्चय के द्वारा होता है, इसे दर्शाने के लिए उन्होंने ग्रहीय गति के केपलर के नियमों तथा अपने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत के बीच निरंतरता स्थापित की, इस प्रकार से उन्होंने सूर्य केन्द्रीयता और वैज्ञानिक क्रांति के आधुनिकीकरण के बारे में पिछले संदेह को दूर किया।
वहीं 1795 ईसवी में एक बार किसी स्थान में एक अफवाह भारत के माध्यम से फैली थी कि अवध के राज्यपाल (जो गणित और खगोल विज्ञान के भारतीय और अरब ज्ञान की बड़ी समझ रखने वाले व्यक्ति थे)द्वारा न्यूटन के प्रिंसिपिया का अरबी भाषा में अनुवाद किया और इस प्रकार इसे भारत में पेश किया गया। हालांकि ऐसी कोई पुस्तक 220 वर्षों बाद तक भी सामने नहीं लाई गई, लेकिन अवध (Awadh) के राज्यपाल ‘एलामा ताफज़ुल हुसैन (AllamaTafazzul Husain(1727 - 1800))’ द्वारा लिखी गई 3 किताबें, पश्चिमी कार्य के अनुवाद के बजाय पारंपरिक भारतीय की निरंतरता के रूप में अपने ज्ञान को पहचानने के लिए लिखी गई, यह अब सभी लोगों के लिए उपलब्ध हैं।
एलामा ताफज़ुल हुसैन खान को लोकप्रिय रूप से 'खान-ए-एलामा' के नाम से जाना जाता था। 'एलामा' का शीर्षक 'दरबार-ए-शाही' द्वारा केवल उस समय के अत्यधिक असाधारण विद्वानों को ही प्रदान किया गया था। यह इस तथ्य से स्पष्ट है कि केवल तीन विद्वान इस शीर्षक को कमा सके थे अर्थात् अबू-अल-फज़ल (Abu-al-Fazl), असदुल्ला शाहजाहानी (Asadullah Shahjahani) और ताफज़ुल हुसैन खान (Tafazzul Hussain Khan)। ताफज़ुल हुसैन खान कश्मीरी वंश के थे, उनके दादा एक उच्चपद में श्रेणीबद्ध मुगल अधिकारी थे।इनका जन्म सियालकोट में हुआ था और उनके पिता लगभग चौदह वर्ष के दौरान दिल्ली चले गए। दिल्ली में, उन्होंने 'निजामी विधि' द्वारा तर्कसंगत विज्ञान का अध्ययन किया। जब वे अपने परिवार सहित लखनऊ चले गए,तब नवाब शुजा-उद-दौला के शासनकाल के दौरान, उन्हें फरंगी महल में अध्ययन करने और मुल्ला हसन के साथ काम करने का अवसर मिला।उनके द्वारा मुल्ला हसन से काफी विस्मयकारी सवाल पूछे जाने पर फरंगी महाली ने अंतः उन्हें कक्षा से निकाल दिया।तब ताफज़ुल हुसैन ने स्वयं अध्ययन करना शुरू कर दिया और अरबी में एविसेना (Avicenna) के कठिन दार्शनिक कार्यों में महारत हासिल करी। वहीं बाद में उन्हें शूजा-उद-दौला, अवध के नवाब वज़ीर द्वारा अपने दूसरे बेटे सदाट अली खान के शिक्षक के रूप में नियुक्त किया गया।उन्होंने लैटिन (Latin), यूरोप(Europe) में शास्त्रीय शिक्षा की भाषा का अध्ययन भी शुरू किया।उन्होंने बाद में अपने नाटकों की सूची में ग्रीक (Greek) को भी शामिल कर दिया था। ताफज़ुल खान आधुनिक और प्राचीन साहित्य दोनों में रुची रखते थे, लेकिन उन्हें सबसे अधिक पसंदीदा गणित और खगोल विज्ञान लगता था। तर्कसंगत विज्ञान में उनके कार्य के अलावा उन्होंने हडिस (Hadis - पवित्र पैगंबर की परंपरा), न्यायशास्त्र (इस्लामी दर्शन और विज्ञान) से संबंधित कार्यों पर कई लेख का योगदान दिया; ये अध्ययन इतने असंख्य और विविध थे कि शायद ही कुछ अन्य विद्वानों द्वारा कभी इनका अध्ययन करने के प्रयास किए गए थे।अंग्रेजी, उर्दू, अरबी और फारसी सहित विभिन्न भाषाओं में लिखी गई विभिन्न पुस्तकों में ताफज़ुल के ज्ञान और प्रज्ञता के उदाहरणों को पाया जा सकता है।उन्हें अक्सर नरम बोलने वाले, हल्के मज़ेदार व्यक्ति के रूप में वर्णित किया गया है। ताफज़ुल का घर एक भव्य महल से कम नहीं था। यह कटरा अबुतरब खान में स्थित था। घर के समीप एक सुंदर बरादरी थी। अघा मेहदी द्वारा स्पष्ट रूप से अपनी पुस्तक तारेके-ए-अवध (Tareekh- e-Awadh) में वर्णित किया गया है कि, एलामा की बरादरी की सुंदरता लखनऊ के itaqt-e-taoos की भांति है।आजादी के बाद, बरादरी के खंडहर सरकार द्वारा तोड़ दिए गए थे और इसे एक सार्वजनिक पार्क (नाउ रतन पार्क) में परिवर्तित कर दिया गया था।

संदर्भ :-
https://bit.ly/2ZvL0mo
https://bit.ly/3reQsWg
https://bit.ly/3FIToym
https://bit.ly/32sZJ2s

चित्र संदर्भ   
1. एलामा ताफज़ुल हुसैन के साथ जेम्स दीनविड्डी (James Dinwiddie) को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. जेम्स दीनविड्डी (James Dinwiddie) ने अपनी डायरी में लिखा है: "नबोब और तफज्जुल हुसैन के बीच बहुत झंझट" जिसको दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)



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