श्री गणेश की उत्पत्ति की गाथा एवं उनसे जुड़े पुरातात्विक साक्ष्य, कुछ हैं लखनऊ संघ्रालय में

विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)
01-01-2022 01:25 PM
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श्री गणेश की उत्पत्ति की गाथा एवं उनसे जुड़े पुरातात्विक साक्ष्य, कुछ हैं लखनऊ संघ्रालय में

त्रिलोकेश गुणातीत गुणक्षोम नमो नमः।
त्रैलोक्यपालन विभो विश्वव्यापिन् नमो नमः॥
नववर्ष के प्रथम दिवस का प्रारंभ गणों के स्वामी "भगवान गणेश" की स्तुति करने से बेहतर भला क्या होगा! हिंदू धर्म में श्री गणेश के महत्त्व और स्थान का अंदाज़ा केवल इसी बात लगाया जा सकता है की, इन्हे "प्रारंभ का देवता" माना जाता है। अर्थात कोई भी धार्मिक एवं शुभ काम करने से पूर्व भगवान गणेश की पूजा करना अनिवार्य है और इनकी पूजा से प्रारंभ किया गया प्रत्येक कार्य निश्चित तौर पर सफल सिद्ध होता है। गजानन का स्वरुप अद्वितीय है, इनकी महिमा अलौकिक है, एवं उतनी ही रहस्यमी और उल्लेखनीय है श्री गणेश की उत्पत्ति की गाथा। श्री गणेश की सभी प्रतिमाओं एवं धार्मिक चित्रणों में उन्हें गजानन अर्थात हाथी के शीश (सिर) के साथ चित्रित किया जाता है। यही कारण है कि सैकड़ों देवताओं की भीड़ में भी उन्हें पहचानना बेहद आसान है। अवनीश (पूरे विश्व के प्रभु) को प्रारंभ के स्वामी और बाधाओं को दूर करने वाले ईश्वर, कला और विज्ञान के संरक्षक, एवं बुद्धि और ज्ञान के देवता के रूप में पूजा जाता है। श्री गणेश जी से जुड़ी हुई किवदंतियाँ मुख्य रूप से तीन प्रमुख घटनाओं से जुडी होती हैं।
1. गणेश जी का जन्म और पितृत्व।
2. हाथी का सिर।
3. एकल दांत।
श्री गणेश के जन्म के बारे में वर्णन लगभग 600 ईस्वी के पुराणों में मिलता है। उन्हें सबसे लोकप्रिय रूप से माता पार्वती एवं भगवान शिव के पुत्र के रूप में जाना जाता है। पौराणिक मिथक उनके जन्म के कई अलग- अलग संस्करणों को दर्शाते है, जिनके अनुसार शिव और पार्वती द्वारा खोजे गए एक रहस्यमयी तरीके से गणेश जी की उत्पत्ति हुई। उनके इस परिवार में भगवान शिव और माता पार्वती के साथ ही उनके भाई कार्तिकेय भी शामिल हैं। हालांकि उत्तर भारत में, स्कंद (कार्तिकेय) को आमतौर पर बड़ा भाई कहा जाता है, जबकि दक्षिण में, भगवान गणेश का जन्म पहले माना जाता है। श्री गणेश जी के जीवन काल से जुड़ी हुई अनेक धार्मिक किवदंतिया बेहद रोचक एवं शैक्षिक (शिक्षा लेने योग्य) हैं।
1.श्री गणेश और कार्तिकेय प्रतियोगिता।
एक बार श्री गणेश और उनके भाई कार्तिकेय के बीच समस्त संसार का चक्कर लगाने की प्रतियोगिता हुई। जिसके फलस्वरूप उन्हें ज्ञान और बुद्धिमानी का फल दिया जाना था, अतः गणेश के भाई कार्तिकेय तुरंत ही अपनी सवारी मोर पर बैठकर धरती का चक्कर लगाने के लिए चले गए। जबकि गणेश ने दुनिया का चक्कर लगाने के बजाय अपने माता-पिता (शिव और पार्वती) की परिक्रमा की। जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने ऐसा क्यों किया, तो उन्होंने उत्तर दिया कि उनके माता-पिता ने ही तीनों लोकों का गठन किया है और इस प्रकार वे दोनों ही गणेश के लिए संपूर्ण संसार हैं। उनके इस प्रेरणादायक उत्तर ने न केवल उन्हें प्रतियोगिता का विजय बनाया बल्कि उन्हें ज्ञान और बुद्धि का स्वामी भी बना दिया।
2. गणेश का हाथी सिर।
श्री गणेश के "हाथी के सिर" स्वरूप से जुड़ी हुई सबसे प्रसिद्ध कहानी शिव पुराण से ली गई है। जिसके अनुसार एक बार देवी पार्वती ने स्नान की तैयारी शुरू की। चूंकि वह अपने स्नान के दौरान किसी भी प्रकार का विघ्न अथवा बाधा नहीं चाहती थी और उस समय शिव की सवारी नंदी दरवाजे की रखवाली करने के लिए कैलाश में उपस्थित नहीं थे, इसलिए माता पार्वती ने अपने शरीर से हल्दी का लेप (स्नान के लिए) लिया और एक बालक का स्वरूप निर्मित किया और उसमें प्राण फूंक दिए। इस लड़के को माता पार्वती ने दरवाजे की रखवाली करने और स्नान समाप्त होने तक किसी को भी अंदर नहीं आने देने का निर्देश दिया था। किन्तु जब भगवान शिव ने ध्यान से बाहर आने के बाद, माता पार्वती को देखना चाहा, तो इस बालक ने इन्हे भी रोक दिया। शिव ने अंदर प्रवेश करने हेतु बालक को समझाने की कोशिश की किंतु बालक नहीं माना। बालक के इस असामान्य व्यवहार से क्रोधित होकर शिव ने बालक के सिर को अपने त्रिशूल के प्रहार से धड से अलग कर दिया और वही पर उसकी मृत्यु हो गई। जब माता पार्वती को यह पता चला, तो वह इतनी क्रोधित और अपमानित हुईं कि उन्होंने पूरी सृष्टि को नष्ट करने का फैसला कर दिया। उनके आह्वान पर, उन्होंने अपने सभी क्रूर बहु-सशस्त्र रूपों का आह्वान कर दिया उनके शरीर से योगिनियाँ उठीं, जो समस्त संसार को नष्ट करने को आतुर थी। उन्हें शांति केवल उस बालक के पुनः जीवित होने पर मंजूर थी। अतः हैरान और परेशान भगवान शिव, माता पार्वती की सभी शर्तों से सहमत हो गए। उन्होंने अपने शिव-दूतों को आदेश के साथ बाहर भेजा कि "वह उस पहले प्राणी के सिर को कैलाश में लेकर आए, जो उत्तर की ओर सिर करके लेटा हुआ हो।" शिव-भक्त जल्द ही एक मजबूत और शक्तिशाली हाथी गजसुर के मस्तक लेकर लौट आए, जिसे भगवान ब्रह्मा ने बालक के शरीर पर रखा और उनमें नया जीवन फूंकते हुए, उन्हें "गजानन" घोषित किया गया तथा उन्हें देवताओं और सभी गणों (प्राणियों के वर्ग) का प्रमुख होने का वरदान दे दिया। प्राचीन पुराणों के बावजूद श्री गणेश की उत्पत्ति और ऐतिहासिक पूजन अभी भी एक रहस्य बना हुआ है। हालांकि इतिहासकारों के बीच यह बहस, है कि छठी शताब्दी के बाद ही गणेश एक देवता के रूप में पूजनीय हो गए। प्रारंभ में, उनके दो हाथ थे और एक देवता के रूप में स्थापित होने के बाद ही उन्हें चार हाथ मिले, उनके सिर के चारों ओर प्रभामंडल और 'विघ्नहर्ता' की उपाधि भी थी। चीन के कुंग-सिन (kung-sin) प्रांत में एक बुद्ध मंदिर में पुरालेख साक्ष्य के साथ सबसे प्राचीन गणेश पाए गए थे। वहाँ पर '531 ई.' शिलालेख के साथ गणेश की एक मूर्ति मिली थी, यानी यह 531 ईस्वी में बनी एक मूर्ति थी। इस मूर्ति की खोज के बाद से, यह माना जाता था कि यह पुरालेख साक्ष्य के साथ गणेश की सबसे पुरानी मूर्ति है, जो अभी भी चीन में है। लेकिन भारत के मुंबई में रहने वाले डॉक्टर प्रकाश कोठारी जी का ध्यान एक बैल की प्राचीन टेराकोटा सील (पकी हुई लाल मिट्टी) की ओर गया। बैल के नीचे ब्राह्मी लिपि में एक शिलालेख था। ब्राह्मी लिपि के अस्तित्व ने संकेत दिया कि यह निश्चित रूप से एक प्राचीन कलाकृति थी। वे इसे खरीद कर घर ले आये और जब इसे गौर से देखा और पलटा, तो दूसरी तरफ भगवान गणेश की एक आकृति देखकर वे चकित रह गए। लेकिन, आश्चर्य की बात यह थी कि छवि के दो हाथ और एक प्रभामंडल था! मूर्ति पर भगवान गणेश की उपस्थिति ने उनकी उत्सुकता बढ़ा दी। विशेषज्ञों की मदद से इस कलाकृति की सही उम्र का पता लगाया। डॉक्टर कोठारी को यह प्रतिमा चोर बाज़ार में मिली। यह योगमुद्रा में बैठे गणेश की लघु प्रतिमा थी। टेराकोटा की इस लाल प्रतिमा के बाएँ हाथ में मोदक है और दायाँ हाथ अभय मुद्रा में उठा हुआ है। विशेषज्ञों ने मूल्यांकन किया कि यह विशेष प्प्रतिमा चौथी या पाँचवीं शताब्दी ई. सीधे शब्दों में कहें, कलाकृति चीन में मौजूद भगवान गणेश की मूर्ति से लगभग 150 से 200 साल पुरानी थी! गणेश की इस छवि ने हाथी के सिर वाले भगवान के एक अन्य पहलू से भी पर्दा उठाया है। श्री गणेशजी की जो मूर्ति उनके पास है, उसके केवल दो हाथ हैं, लेकिन उसके सिर के चारों ओर एक प्रभामंडल भी है। यह इस विश्वास को मजबूत करता है कि जब गणेश के सिर्फ दो हाथ थे, तब भी उनकी दिव्यता पर कोई सवाल नहीं था और वे हमेशा एक 'विघ्नहर्ता' थे। मध्य प्रदेश के विदिशा में उदयगिरी में भी एक पहाड़ी पर गुफा में पुरातत्वविदों को 5 वीं शताब्दी सीई, गुप्त युग की मूर्ति मिली, जिसके बारे में उनका मानना ​​​​है कि यह हाथी देवता, गणेश का सबसे पुराना दिनांक योग्य प्रतिनिधित्व हो सकता है। अब, हम गर्व से कह सकते हैं कि दुनिया के सबसे पुराने गणेश चीन में नहीं, भारत में हैं!
सर्वप्रथम दिए गए श्लोक का हिन्दी भावार्थ: हे त्रैलोक्य के स्वामी! हे गुणातीत! हे गुणक्षोभक! आपको बार-बार नमस्कार है। हे त्रिभुवनपालक! हे विश्वव्यापिन् विभो! आपको बार-बार नमस्कार है।

संदर्भ
https://bit.ly/3Hotgd0
https://bit.ly/3JuoE6Q
https://bit.ly/3HsC2q6
https://bit.ly/31dGz0p

चित्र संदर्भ   
1.भितरगांव के पुरातत्व स्थल से प्राप्त 5 वीं शताब्दी की टेराकोटा श्री गणेश की मूर्ति जिसमें गणेश और कार्तिकेय को लड्डू के कटोरे के लिए खेलते हुए दिखाया गया है। यह मूर्ति लखनऊ संग्रहालय में रखी गई है, जिसको दर्शाता एक चित्रण (reddit)
2.गणेश प्रतिमा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3.शिव परिवार कुटुंब को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
4.ओरछा भगवान गणेश के भित्ति चित्र को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
5. डॉक्टर कोठारी को यह प्रतिमा चोर बाज़ार में मिली। यह योगमुद्रा में बैठे गणेश की लघु प्रतिमा थी, जिसको को दर्शाता एक चित्रण (youtube)

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