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भगवान श्री गणेश जी को ज्ञान‚ समृद्धि तथा शुभता का प्रतीक माना जाता है। गणेश जी की
प्रतिमा को चार या आठ भुजाओं के साथ‚ विभिन्न प्रतीकात्मक वस्तुओं को पकड़े हुए तथा
अन्य कई मुद्राओं और रूपों में हाथ से तराशा जाता है। इन्हें एकदंत‚ कपिला‚ धूम्रकेतु‚ सुमुख
तथा गजानन इत्यादि नामों से भी जाना जाता है तथा भगवान गणेश को बाधाओं को दूर करने
वाले तथा मार्गदर्शन के रूप में इनकी पूजा की जाती है।
माना जाता है कि महाभारत महाकाव्य की रचना के दौरान जब भगवान गणेश जी की कलम
बार बार टूट रही थी तो इन्होंने अपना बायां दांत तोड़कर इससे इसकी रचना की थी । उनके
इस बलिदान को‚ शक्ति का प्रतीक माना जाता है तथा यह दर्शाता है कि हमने जिस कार्य को
शुरू किया है उस कार्य को पूर्ण करने तक रुकना नहीं चाहिए। गणेश को समर्पित एक प्रसिद्ध
श्लोक है:
वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ:।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।
अर्थात् “हे हाथी के जैसे विशालकाय गणेश‚ जिनका तेज सूर्य की सहस्त्र किरणों के समान है‚ मैं
आपकी पूजा करता हूं। मेरे कार्यों में आने वाले सभी विघ्नों को दूर करें तथा मेरे कार्यों को
सिद्धि की ओर ले जाएं।”
गणेश जी का रूप अत्याधिक आकर्षक और मंत्रमुग्ध करने वाला है। हाथी के सिर वाला प्यारा
सा इनका गोल शरीर‚ प्राचीनकाल से ही लाखों लोगों के मन में भक्ति और प्रेम को प्रेरित करता
आ रहा है। गणेश के विचित्र रूप के पीछे विशेष प्रतीकात्मकता छुपी हुई है। इनका विशाल पेट
ब्रह्मांड का प्रतीक है। गणेश का हाथी का सिर ज्ञान‚ समझ और विवेकपूर्ण बुद्धि का प्रतीक है‚
जो जीवन में पूर्णता प्राप्त करने के लिए अनिवार्य है।
किसी भी कार्य को प्रारंभ करने से पहले
गणेश की पूजा की जाती है। गणेश बाधाओं को दूर करते हैं और हमें जीवन में आगे बढ़ने का
मार्ग दिखाते हैं। इनका चौड़ा मुंह दुनिया में जीवन का आनंद लेने की प्राकृतिक मानवीय इच्छा
को दर्शाता है। गणेश के बड़े कान यह दर्शाते हैं कि एक पूर्ण व्यक्ति वह है जिसके पास दूसरों
को सुनने और विचारों को आत्मसात करने की महान क्षमता होती है। उनके दो दांत मानव
व्यक्तित्व के दो पहलुओं‚ ज्ञान और भावना को दर्शाते हैं। दायां दांत ज्ञान का प्रतीक है और
बायां दांत भावना का प्रतीक है। माथे पर महादेव के त्रिशूल का चिन्ह‚ समय‚ अर्थात् अतीत‚
वर्तमान और भविष्य और समय पर भगवान गणेश की महारत का प्रतीक है। भगवान गणेश की
चार भुजाएँ तथा उन भुजाओं में पकड़ी हुई वस्तुएं भी मनुष्य जीवन के कई आंतरिक गुणों को
प्रदर्शित करती हैं जैसे सच्चाई‚ भक्ति‚ सुरक्षा‚ मन‚ बुद्धि‚ अहंकार‚ तथा विवेक इत्यादि।
भगवान गणेश को सामान्यतः लाल और पीले रंग के कपड़ों में चित्रित किया जाता है। पीला रंग
पवित्रता‚ शांति‚ और सच्चाई का प्रतीक होता है तथा लाल वैश्विक गतिविधियों का प्रतीक है।
इस प्रकार एक व्यक्ति को दुनिया में सभी कर्तव्यों का पालन पवित्रता‚ शांति और सच्चाई के
साथ करना चाहिए। गणेश की सवारी चूहे को अहंकार का प्रतीक माना जाता है तथा भटकता
हुआ चूहा डगमगाते मानव मन का प्रतीक है। जैसे गणेश चूहे को नियंत्रण में रखते हैं‚ हमें भी
अपने मन को नियंत्रित रखना चाहिए।
प्राचीन काल से ही गणेश चतुर्थी पर जुलुस निकालने की पंरपरा चलती आ रही है। गणेश
चतुर्थी‚ ब्रह्मांड को नियंत्रण में रखने वाले‚ भगवान गणेश जी का महोत्सव है। गणेश चतुर्थी के
इस महोत्सव पर पूरे भारत में भव्य कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। लखनऊ में भी इस
महोत्सव को पूरे धूम-धाम से मनाया जाता है। लखनऊ के मकबूलगंज में स्थित महाराष्ट्र
समाज भवन में 1921 से महाराष्ट्र समाज दवारा विशाल कार्यक्रमों को आयोजित किया जा रहा
है। पिछले वर्ष आलमबाग में श्री गणपति उत्सव मंडल‚ आलमबाग की तरफ से हर्ष प्लाजा-
माधव कॉम्प्लेक्स (Harsh Plaza-Madhav Complex) में मनाया गया जिसमें गणपति
शिवलिंग पर विराजे थे। सीतापुर रोड पर पीली कोठी मौसम बाग में शहर की सबसे बड़ी
गणपति मूर्ति को स्थापित किया गया था। 18 फुट की यह मूर्ति आर्ट्स कॉलेज (Arts college)
के पूर्व छात्रों ने परिसर में ही तैयार की थी। प्राकट्य समिति (Manifesto Committee) द्वारा
झूलेलाल घाटपर‚ गणेश‚ मनौतियों के राजा सिद्धिविनायक रामेश्वरम की थीम पर बनने वाले
पंडाल में विराजे थे। यहां 8 फुट ऊंची मूर्ति की स्थापना की गई थी। जिसका निर्माण श्रवण
प्रजापति ने किया था। अलीगंज के सेक्टर बी में स्थित गुलाब वाटिका अपार्टमेंट में‚ आलमबाग
के तिलकेश्वर महादेव मंदिर में तथा गणेशगंज के आर्य समाज मंदिर में भी गणपति महोत्सव
पूरी आस्था और उत्साह से मनाया जाता है। लेकिन इस वर्ष उत्तर प्रदेश सरकार ने कड़ा
फैसला लेते हुए गाइडलाइन जारी की है‚ जिसके अनुसार इस साल गणेश चतुर्थी के मौके पर
सार्वजनिक जगहों पर कोई पंडाल नहीं सजाया जाएगा। कोविड-19 महामारी के चलते‚ जनता की
सुरक्षा हेतु सरकार द्वारा यह फैसले लिया गया था।
भारत में जल प्रदूषण चिंता का विषय है। इसके पीछे प्राथमिक कारणों में से एक मूर्ति विसर्जन
भी है। मूर्तियाँ प्लास्टर ऑफ पेरिस (Plaster of Paris)‚ मिट्टी‚ कपड़े‚ लोहे की छड़ तथा बांस
आदि से बनी होती हैं तथा पेंट से सजाई जाती हैं‚ जिनमें पारा (Mercury)‚ क्रोमियम
(Chromium) और सीसा (Lead) जैसी भारी धातुएँ एवं रासायनिक तत्व होते हैं‚ ये सभी
संभावित कार्सिनोजेन्स (Carcinogens) हैं।
इनसे पानी की गुणवत्ता में बहुत प्रभाव पड़ता है और
मूर्ति विसर्जन के कारण होने वाला भारी धातु प्रदूषण मनुष्य तथा जानवरों के पारिस्थितिकी तंत्र
(Ecosystem) को नुकसान पहुंचाते हैं क्योंकि यह जलीय जीवन का विनाश कर देता है और
पानी के प्राकृतिक बहाव को रोक देता है। मूर्ति विसर्जन के कारण होने वाले जल प्रदूषण का
प्रभाव सम्पूर्ण देश के विभिन्न हिस्सों में देखा गया है‚ लेकिन बुधबलंगा नदी‚ गंगा नदी‚
हुसैनसागर झील‚ कोलार नदी‚ सरयू नदी‚ छत्री झील‚ तापी नदी तथा यमुना नदी में इसका
सबसे अधिक प्रभाव देखने को मिलता है। पिछले कुछ सालों में केंद्र और राज्य प्रदूषण नियंत्रण
बोर्ड (सीपीसीबी) (CPCB) ने इस समस्या से बड़े पैमाने पर निपटने के लिए कई तरीके निकाले
हैं। उनके द्वारा निर्धारित किए गए दिशानिर्देशों का पालन मूर्ति विसर्जन‚ दुर्गा पूजा‚ तथा काली
पूजा जैसी सामुदायिक पूजाओं में किया जाने से काफि हद तक जल प्रदूषण से बचा जा सकता
है। कई राज्यों में‚ (सीपीसीबी)द्वारा मूर्ति विसर्जन जैसे उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कृत्रिम तालाबों
का निर्माण किया गया है और विसर्जन के बाद 24 घंटे के भीतर मूर्तियों और अन्य मलबे के
अवशेषों को हटाकर जलाशयों को साफ करने की व्यवस्था की गई है। इन तालाबों से प्राप्त
कचरे को‚ पुनरावृत्ति के लिए‚ स्थानीय नगर-पालिकाओं के ठोस कचरा डंपिंग स्थलों (Dumping
sites) पर ले जाया जाता है। पर्यावरण कार्यकर्ताओं और गैर सरकारी संगठनों ने भी इस मामले
में आवाज उठाई थी जिसके फलस्वरूप 2015 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने गंगा और यमुना
नदियों में मूर्तियों के विसर्जन पर प्रतिबंध लगा दिया था।
संदर्भ:-
https://bit.ly/38PFqMJ
https://bit.ly/3DO0xNL
https://bit.ly/38M8YL9
https://bit.ly/2X1NDLp
चित्र संदर्भ
1. गणेश चतुर्थी के लिए मूर्तियां तैयार करते कलाकार का एक चित्रण (i.inews)
2. गणेश चर्तुथी की रौनक को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. गणेश चर्तुथी के जुलूस को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. मूर्ति विसर्जन के बाद जल में खंडित श्री गणेश मूर्ति का एक चित्रण (youtube)
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