कराटे के उस्ताद ब्रूस ली पर भारतीय वेदांत के शिक्षक जिद्दू कृष्णमुर्ति के व्याख्यान का प्रभाव

य़ातायात और व्यायाम व व्यायामशाला
13-12-2021 10:10 AM
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कराटे के उस्ताद ब्रूस ली पर भारतीय वेदांत के शिक्षक जिद्दू कृष्णमुर्ति के व्याख्यान का प्रभाव

लखनऊ में पिछले सप्ताह भारत की सबसे बड़ी कराटे प्रतियोगिता की मेजबानी की गई। अल्टीमेट कराटे लीग (Ultimate Karate League), जिसे पहले मुंबई में आयोजित किए जाने का फैसला किया गया था, को लखनऊ में स्थानांतरित कर दिया गया और इसे 3 दिसंबर से 12 दिसंबर तक बाबू बनारसी दास बैडमिंटन अकादमी में आयोजित किया गया। प्रत्येक टीम में छह खिलाड़ी, पांच पुरुष और एक महिला होती है। एक तुल्यकारक की स्थिति में, महिला व्यक्तिगत मैच अंतिम परिणाम का फैसला करता है।इस वर्ष की टीमों में यूपी रेबेलस (UP Rebels), दिल्ली ब्रेवेहार्ट्स (Delhi Bravehearts), मुंबई निंजा (Mumbai Ninjas), पंजाबी फाइटर (Punjabi Fighters), बेंगलुरु किंग (Bengaluru Kings) और पुणे समुराई (Pune Samurai) हैं। वहीं सदियों पुराने कराटे के खेल को आखिरकार इस वर्ष के टोक्यो ओलंपिक (Tokyo Olympics) खेलों में भी शामिल किया गया।
आधुनिक कराटे की उत्पत्ति का श्रेय 1400 वर्षों पहले पश्चिमी भारत में जेन (Zen) बौद्ध धर्म के संस्थापक बोधिधर्मा/दारुमा को दिया जाता है। कहा जाता है कि दारुमा द्वारा बौद्ध धर्म को चीन (China) में पेश किया गया, जिसमें आध्यात्मिक और शारीरिक शिक्षण विधियों को शामिल किया गया है, शिक्षण विधियां इतनी कठिन होती थी कि उनके कई शिष्य थकावट के कारण गिर जाते थे। उन्हें अधिक ताकत और सहनशीलता देने के लिए, उन्होंने एक और प्रगतिशील प्रशिक्षण प्रणाली विकसित की, जिसे उन्होंने एक पुस्तक, एक्किन- क्यों (Ekkin-Kyo) में दर्ज किया, यह कराटे पर आधारित पहली पुस्तक मानी जाती है। दारुमा के कठिन शारीरिक प्रशिक्षण से भरे दार्शनिक सिद्धांतों को वर्ष 500 ईस्वी में शाओलिन मंदिर (Shaolin Temple) में पढ़ाया गया था। उत्तरी चीन से शाओलिन (शोरिन) कुंग-फू (Kung Fu) को बहुत शानदार, तेज़ और गतिशील संचार की विशेषता के लिए जाना जाता था तथा दक्षिणी चीन के शोकी विद्यालय को अधिक शक्तिशाली और शांत तकनीकों के लिए जाना जाता था। इन दो प्रकार की शैलियों को ओकिनावा (Okinawa) में अपनाया गया, और ओकिनावा की स्वयं की मूल लड़ाई विधि पर इनका काफी प्रभाव पड़ा, जिसे ओकिनावा-टे (Okinawa-te – यानि ओकिनावान हाथ) या सरलता से टे कहा जाता है।वहीं काफी लंबे समय से हथियारों पर एक प्रतिबंध भी द्वीप पर निर्बाध लड़ाई तकनीकों के विकास के लिए आंशिक रूप से उत्तरदायी है। संक्षेप में, ओकिनावा में कराटे दो लड़ाई तकनीकों के संश्लेषण से विकसित हुआ।सबसे पहला ओकिनावा के निवासियों द्वारा उपयोग किए जाने वाले बहुत ही सरल लेकिन बहुत प्रभावी तकनीक, उनकी इस तकनीक का उपयोग वास्तविक युद्ध में कई शताब्दियों तक किया गया था। वहीं दूसरी, अधिक विस्तृत और संसेचित दार्शनिक शिक्षाओं वाली चीन की प्राचीन संस्कृति से उत्पन्न हुई तकनीक है। ये दो तकनीक की उत्पत्ति कराटे के दोहरे चरित्र की व्याख्या करती हैं - बेहद हिंसक और कुशल लेकिन साथ ही एक अहिंसक अवधारण के तत्त्वविज्ञान के साथ सख्त और दृढ़ अनुशासन। जापान में पहली बार कराटे-डू (Karate-do) को 1916 में शिक्षक गिचिन फुनाकोशी (Gichin Funakoshi) द्वारा पेश किए गया था।फुनाकोशी ने संपूर्ण अनुशासन के रूप में ओकिनावान शैलियोंका एक संश्लेषण सिखाया, उनकी इस विधि को शॉटोकन (शाब्दिक रूप से शॉटो –“फुनाकोशी का उपनाम” और कन – “पाइन वेस (Pine wace) के घर/विद्यालय” के रूप में जाना जाने लगा। हमारे मन शरीर निर्माण के अनुशासन में हमारी मदद करने वाले आधुनिक कराटे को लोकप्रिय बनाने में हांगकांग (Hongkong) के ब्रूस ली (Bruce Lee) का एक अहम योगदान है। आपको यह जान कर हैरानी होगी कि ब्रूस ली की दार्शनिक शिक्षा, वेदांत के भारतीय शिक्षक जिद्दू कृष्णमुर्ति (जिद्दू कृष्णमुर्ति एक लेखक, दार्शनिक और वक्ता थे जिन्होंने मानव रचनात्मकता, भय, रिश्तों, आत्म-ज्ञान और स्वतंत्रता सहित सार्वभौमिक विषयों की जांच की। कृष्णमुर्ति एक गुरु, संत या नेता के रूप में पहचाने जाएं के बजाए एक श्रोता के रूप में सीधे श्रोताओं से वार्ता करते थे।)से आई है।
1. स्वतंत्रता : 1929 में, जिद्दू कृष्णमुर्ति ने “दी ऑर्डर ऑफ स्टार इन दी ईस्ट(The Order of the Star in the East)” को भंग करने का फैसला किया, जिसमें वे नीदरलैंड (Netherland) में ओमन शहर में 3,000 सदस्यों के मार्ग दर्शक थे।कृष्णमूर्ति का विलयन भाषण उनके सबसे प्रसिद्ध संदेशों में से एक है और आज कई लोगों को प्रभावित करता है।भाषण का मुख्य अंशयह है:“मैं कहता हूँ कि सत्य एक मार्गहीन भूमि है , और आप इसे किसी भी मार्ग से, किसी धर्म द्वारा , किसी भी संप्रदाय से प्राप्त नहीं कर सकते।…”लेकिन वाक्यांश में "सत्य एक मार्गहीन भूमि है" का क्या अर्थ है, और ब्रूस ली के साथ इसका संबंध क्या है? दरसल इस वाक्य को एक शब्द में समझाया जा सकता है: स्वतंत्रता। मनुष्य को किसी समूह, नेताओं या गुरुओं से संबद्ध हुए बिना स्वयं अनुभूति करने का तरीका खोजना चाहिए। ब्रूस ली ने मार्शल आर्ट्स (Martial art)में कृष्णमूर्ति के दर्शन को लागू किया। अपनी पुस्तक “दी ताओ ऑफ जीत कुनै डो” (The Tao of Jeet Kune Do)” में, ली द्वारा इस भाषण को निम्नलिखित रूप से लिखा गया:“सत्य का कोई रास्ता नहीं है। सत्य जीवित है, इसलिए, परिवर्तनशील है। इसमें विराम की कोई जगह नहीं है, इसका कोई रूप नहीं है, कोई संगठित संस्था नहीं है और कोई दर्शन नहीं है। लेकिन जब आप इसे देखेंगे, तो आप समझेंगे कि यह हमारी भांति जीवित चीज भी है।…”ली को एहसास हुआ कि एक लड़ाकू जो लड़ाई की केवल एक शैली तक सीमित नहीं है, सभी शैलियों को गठबंधित कर सकता है। ब्रूस ली के लिए, युद्ध स्थिर होने के बजाए क्रियाशील और अस्थिर था, जैसे कृष्णमूर्ति के लिए सच्चाई और जीवन था।
2. स्वाधीनता: एक टेलीविजन (Television) चैनल (Channel) के लिए एक साक्षात्कार में, जिद्दू कृष्णमूर्ति ने कहा:“स्वयं के लिए एक प्रकाश बनो। मनोवैज्ञानिक, एक प्राध्यापक, यीशु, बुद्ध, एक अच्छे दिल का प्रकाश नहीं। आपको इस अंधेरी दुनिया में स्वयं का प्रकाश खुद बनना है।”इस संदेश ने ब्रूस ली को आकर्षित किया, इसे हम एक शब्द में भी समझ सकते हैं: स्वाधीनता। विश्वास और आत्म-सम्मान वो सिद्धांत होने चाहिए जो हमारे कार्यों का मार्गदर्शन करें।"निर्भरता एक ऐसी स्थिति है जो एक कठिन परिस्थिति से निपटने पर हमारे भ्रम से उत्पन्न होती है। जब हम इस भ्रम की स्थिति में होते हैं, तो हम चाहते हैं कि कोई हमें इससे बाहर ले जाए। तो, हम हमेशा ऐसी स्थिति से बाहर निकलने या बचने के लिए चिंतित रहते हैं,"–कृष्णमूर्ति।इस प्रक्रिया के दौरान हम निर्भरता बनाते हैं, जो हमारा अधिकार बन जाता है।इस शिक्षण ने ब्रूस ली को भी प्रभावित किया:“हम में से अधिकांश के अंदर स्वयं को दूसरों के हाथों में उपकरणों के रूप में देखने की एक शक्तिशाली लालसा होती है और इस प्रकार, हम स्वयं के संदिग्ध झुकाव और आवेगों द्वारा प्रेरित कार्यों की ज़िम्मेदारी से खुद को मुक्त कर देते हैं।इस अन्यत्रता को दोनों शक्तिशाली और कमजोर समझ लेते हैं, लेकिन अनुपालन के आधार पर अपने द्वेष को छुपते हैं।”ब्रूस ली।
3. ईमानदारी : 1971 में पियर बर्टन शो (Pierre Burton Show) के साथ एक साक्षात्कार में, ब्रूस ली कहते हैं:“मेरे लिए, मार्शल आर्ट्स खुद को पूरी तरह से और ईमानदारी से व्यक्त करने के बारे में हैं।और यह बहुत मुश्किल है।…”वहीं कृष्णमूर्ति कहते हैं कि “अपने आप के साथ ईमानदार होने के लिए आत्म-ज्ञान की आवश्यकता होती है, और वह आत्म-ज्ञान एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा आप किसी अन्य व्यक्ति के संबंध में खुद को जानते हैं।…” यदि 1970 में ब्रूस ली की कमर में चोट नहीं लगी होती तो उन्हें कृष्णमूर्ति के दर्शनशास्र का अध्ययन करने का समय नहीं मिला होता, और जीत कुनै डो आज कुछ अलग ही तरह से लिखी गई होती।

संदर्भ :-
https://bit.ly/3EMLx2z
https://bit.ly/3rRclLD
https://bit.ly/3GvkzwY
https://bit.ly/3EJvsL9
https://bit.ly/3lVKMNf
https://bit.ly/339syBk
https://bit.ly/31MiNZB
https://bit.ly/3DNIENI

चित्र संदर्भ   
1. जिद्दू कृष्णमूर्ति एवं ब्रूस ली को दर्शाता एक चित्रण (medium)
2. ब्रूस ली को दर्शाता एक चित्रण (Sportscasting)
3. जापान में पहली बार कराटे-डू (Karate-do) को 1916 में शिक्षक गिचिन फुनाकोशी (Gichin Funakoshi) द्वारा पेश किए गया, जिनको दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. शाओलिन मंदिर (Shaolin Temple) को दर्शाता एक चित्रण (istock)

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