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द ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (The Great Indian bustard),जिसे वैज्ञानिक तौर पर अर्डियोटिस
नाइग्रिसप्स (Ardeotis nigriceps) के नाम से भी जाना जाता है, बस्टर्ड परिवार का एक बड़ा
पक्षी है, जो कि दुनिया के सबसे भारी उड़ने वाले पक्षियों में से एक है। एक ही प्रजाति के
कुछ छोटे पक्षी कभी-कभी जौनपुर में भी देखे जा सकते हैं। अतीत में, संयुक्त अरब अमीरात
(United Arab Emirates) के शाही परिवार के 11 सदस्य कथित तौर पर हुबारा बस्टर्ड
(Houbara bustard) का शिकार करने के लिए शिकार गियर (Gear) और शिकारी पक्षियों के
साथ पाकिस्तान (Pakistan) पहुंचे। एशियाई (Asian) हुबारा बस्टर्ड, जिसे मैकक्वीन बस्टर्ड
(MacQueen’s bustard) या क्लैमाइडोटिस मैक्वेनी (Chlamydotis macqueenii) के रूप में भी
जाना जाता है, एक संकटग्रस्त प्रजाति है और इसका शिकार पाकिस्तान में प्रतिबंधित
है।लेकिन प्रतिबंधन अरब (Arab) राजघरानों के लिए एक अपवाद बन गया है, क्यों कि उन्हें
एक विशेष परमिट के माध्यम से शिकार करने की अनुमति दी गई है। एशियाई हुबारा बस्टर्ड
मध्य एशिया (Asia) का मूल निवासी पक्षी है जो सर्दियों के महीनों के दौरान पाकिस्तान
सहित भारतीय उपमहाद्वीप में प्रवास करता है। यह कई बस्टर्ड प्रजातियों में से एक है और
ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के समान है, जो भारत का मूल निवासी है।
स्कॉटलैंड (Scotland) और यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom) में सामान्य रूप से खेल के
रूप में पक्षियों के शिकार का एक लंबा और समृद्ध इतिहास है तथा आधुनिक खेल शूटिंग
(Shooting) जो पहले विशेष रूप से शाही मन बहलाव की प्रक्रिया मानी जाती थी,एक बहु
मिलियन पाउंड उद्योग में विकसित हो गई है। यह जीवन के सभी क्षेत्रों के लिए व्यापक रूप
से उपलब्ध है और कई आवासों और वन्यजीवों के लिए कई लाभ भी लाती है।17 वीं शताब्दी
के अंत तक, पक्षियों का पारंपरिक रूप से शिकार किया जाता था। अर्थात वे जमीन पर बैठे
होते थे,और उन्हें गोली मार दी जाती थी। इसके अलावा जाल में फंसाकर भी उनका शिकार
किया जाता था। 18वीं शताब्दी की शुरुआत में शॉटगन (Shotgun) तकनीक में सुधार के साथ,
पक्षियों का उड़ान के समय ही गोली मारकर शिकार करना शुरू हो गया।इस खेल को फ्रांसीसी
'टिर औ वॉल' ('Tir au vol')से 'शूटिंग फ्लाइंग' (Shooting flying)के रूप में जाना जाने लगा, जो
अभिजात वर्ग और जमींदारों के बीच अधिक व्यापक हो गई। 19वीं शताब्दी के मध्य में
डबल बैरल (Double barrelled) वाली ब्रीच लोडिंग गन (Breech loading gun) की शुरुआत के
साथ,प्रेरित या ड्रिवन शूटिंग (Driven shooting) की कला उभरी, जिसमें पक्षियों की ओर काफी
बेतरतीब ढंग से चलने के बजाय, अधिक औपचारिक रूप से एक निश्चित स्थिति पर खड़ी
बंदूकों का उपयोग शिकार के लिए किया जाने लगा।19 वीं शताब्दी के अंत में प्रेरित शूटिंग
इतनी लोकप्रिय हो गई कि शूटिंग स्कूल दिखाई देने लगे तथा शिकार के लिए सर्वोत्तम
तरीकों और तकनीकों पर अलग-अलग सलाह दी जाने लगी।यह स्थिति द्वितीय विश्व युद्ध
के बाद 1960 और 1970 के दशक के बाद तक जारी रही।आधुनिक खेल शूटिंग युग वास्तव
में 1980 के दशक की शुरुआत में सामाजिक-आर्थिक परिवर्तनों के साथ शुरू हुआ। इसमें खेल
से जुड़े कई लोगों की आय में वृद्धि हुई, तथा उच्च कमाई वाले व्यक्ति जिनके लिए यह
खेल पहले अनुपलब्ध था, भी इसमें भाग लेकर अपनी इच्छा पूरी करने लगे। गेम शूटिंग
प्रदान करना महंगा माना जाता है तथा पिछले 30 वर्षों में व्यावसायिक शूटिंग आदर्श बन गई
है।आज, गेम शूटिंग को मोटे तौर पर तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है, जिनमें
ड्रिवन शूटिंग, वाइल्ड फाउलिंग (Wildfowling) और वॉक्ड-अप (Walked-up) या रफ (Rough)
शूटिंग शामिल हैं।
एशियाई हुबारा बस्टर्ड का शिकार पाकिस्तान में प्रतिबंधित है, लेकिन इसका उपयोग विदेश
नीति के साधन के रूप में किया जाता है,क्योंकि अरब राजघरानों को इनका शिकार करने की
अनुमति प्राप्त है।अरब राजघराने एक खेल के रूप में पक्षी का शिकार करते हैं और इसलिए
भी कि क्यों कि इसके मांस को कामोत्तेजक माना जाता है।अरब राजघरानों द्वारा इस
विवादास्पद प्रथा का 1970 के दशक तक भारत में भी पालन किया गया था, जिसका लक्ष्य
ग्रेट इंडियन बस्टर्ड था।हालांकि, बड़े पैमाने पर जन आक्रोश के बीच इसे समाप्त कर दिया
गया था। फिर भी, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड गंभीर रूप से संकटग्रस्त बना हुआ है और अगर
तत्काल हस्तक्षेप नहीं किया जाता है तो यह विलुप्त हो सकता है।अब इसे प्रकृति के संरक्षण
के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ द्वारा गंभीर रूप से लुप्तप्राय के रूप में वर्गीकृत किया गया है और
शिकार और आवास के नुकसान से उनकी संख्या में भारी गिरावट आई है।हाई-टेंशन (High-
tension) बिजली के तार जो उड़ते समय इसके रास्ते में आते हैं,ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के लिए
सबसे बड़े खतरों में से एक हैं।माना जाता है कि उनकी संख्या 1969 में 1,260 से 2018 में
घटकर 150 हो गई है।वर्तमान में इन प्रजातियों को बचाने के लिए एक कैप्टिव (Captive)
प्रजनन परियोजना शुरू करने के प्रयास किए जा रहे हैं। स्वतंत्रता के बाद, सरकार द्वारा
वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत शिकार पर प्रतिबंध लगा दिया गया था,
हालांकि कुछ परिस्थितियों (आत्मरक्षा के लिए, फसल की क्षति को रोकने के लिए, कीट
प्रजातियों का मुकाबला करने के लिए और वैज्ञानिक या शैक्षिक कारणों से आदि) को
छोड़कर। कर्नाटक का रानेबेन्नूर ब्लैकबक (Ranebennur blackbuck) अभयारण्य ग्रेट इंडियन
बस्टर्ड की आबादी को पुनर्जीवित करने का काम कर रहा है।मनोरंजक शिकार जो कि एक
मिलियन डॉलर का उद्योग है, संरक्षण प्रयासों को निधि प्रदान कर सकता है। लेकिन यह
अवैध व्यापार को भी बढ़ावा दे सकता है।मनोरंजक ट्रॉफी शिकार एक बहु मिलियन डॉलर का
उद्योग संचालित करता है।धन का उपयोग संरक्षण के लिए और स्थानीय समुदायों को
आजीविका प्रदान करने के लिए किया जाता है।शिकार के समर्थक इस बात पर जोर देते हैं
कि इससे संरक्षण के लिए प्रोत्साहन मिल सकता है। हालांकि, दुनिया भर में व्यापक अवैधशिकार को देखते हुए, गतिविधि की आलोचना भी की जाती है।प्रजातियों के प्रजनन पैटर्न में
परिवर्तन, आनुवंशिक विविधता में कमी और पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव शिकार से
जुड़े कुछ नकारात्मक पहलू हैं।वास्तव में, केन्या (Kenya), बोत्सवाना (Botswana) और जाम्बिया
(Zambia) जैसे कई देशों ने पहले ही इस प्रकार के शिकार पर प्रतिबंध लगा दिया है।ट्रांसपेरेंसी
इंटरनेशनल (Transparency International) के अनुसार, शिकार से प्राप्त पैसा जिम्बाब्वे
(Zimbabwe), जाम्बिया और तंजानिया (Tanzania) जैसे देशों में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है,
जो खतरनाक रूप से उच्च संख्या में शिकार की अनुमति देते हैं।
संदर्भ:
https://bit.ly/3Lz3Xb1
https://bit.ly/3uSKgVz
https://bit.ly/3HVg1kv
https://bit.ly/3sKd93v
https://bit.ly/3uMOwWK
https://bit.ly/3GTpuHU
चित्र संदर्भ
1. रंशानदार एशियाई हुबारा बस्टर्ड को दर्शाता चित्रण (flickr)
2. मृत पक्षियों को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. द ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (The Great Indian bustard),को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. त्रिची में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड संग्रहालय के नमूने को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
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