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आपने यह कहावत तो अवश्य सुनी होगी की "खुशियाँ बांटने से बढ़ती हैं" लेकिन कुछ मायनों में यह
कहावत कई दूसरे संदर्भों में भी कही जा सकती हैं। सबसे प्रबल और सार्थक कहावत के रूप में इसे इस
प्रकार कहा जा सकता है कि "जंगल बांटने से बढ़ते हैं" ! आज वैश्वीकरण के दौर में इंसान हर वर्ग के
संसाधनों का आदान प्रदान करने लगे हैं। प्राकृतिक संसाधनों के रूप में लोकप्रिय वृक्ष भी इस फैलाव अर्थात
वैश्वीकरण से अछूते नहीं हैं। जिसके कुछ लाभ तथा कुछ हानियाँ भी देखी जा रही हैं।
इन कथनों को आसान भाषा में उदाहरण स्वरूप में समझें तो बीएमसी (BMC) जनगणना के अनुसार मुंबई
शहर की 29.75 लाख से अधिक वृक्षों की आबादी विदेशी मूल की है। बीएमसी द्वारा एक विदेशी पेड़ गिरने
के बाद एक महिला की मौत के बाद जनगणना के आंकड़े उपलब्ध कराए गए थे। यहाँ समझने योग्य यह
बात है कि पिछले छह महीनों में, शहर के अलग-अलग हिस्सों में पेड़ गिरने की घटनाओं में चार लोगों की
जान चली गई और इन सभी पेड़ों में विदेशी किस्में शामिल हैं। यह डेटा इसलिए भी चिंता का एक कारण है,
क्यों की विदेशी पेड़ों के उनके मजबूत स्थानीय समकक्षों की तुलना में अधिक गिरने की संभावना है।
इसी बात को ध्यान में रखते हुए तीन साल पहले बीएमसी ने सिर्फ देशी पेड़ लगाने को बढ़ावा देना शुरू
किया था। विशेषज्ञों ने भी जानलेवा घटनाओं से बचने के लिए धीरे-धीरे विदेशी पेड़ों को हटाकर उन्हें देशी
किस्मों के साथ बदलने का सुझाव दिया है। शुरू में विदेशी किस्मों को इसलिए प्राथमिकता दी गई क्योंकि
वे देशी पेड़ों की तुलना में तेजी से बढ़ती हैं। पर्यावरणविद डी (Dee) के अनुसार, " विदेशी पेड़ों की जड़ें धरती
के अंदर गहराई तक नहीं जा सकतीं। बीएमसी द्वारा ऐसे पेड़ों के खराब रखरखाव के कारण पेड़ गिरने की
घटनाएँ हुई हैं। बीएमसी द्वारा नियुक्त ठेकेदार इन पेड़ों के चारों ओर खुदाई और कंक्रीटिंग कार्य
(concreting work) करते समय जड़ों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए दिशानिर्देशों का पालन नहीं
करते हैं। हालांकि देशी पेड़ बढ़ने में अधिक समय लेते हैं, लेकिन वे किसी भी विदेशी पेड़ों की तुलना में
अधिक बेहतर और मजबूत विकल्प होते हैं। उदाहरण के लिए बरगद और पीपल, अलग-अलग किस्में हैं,
जो पेड़ों के एक ही परिवार से सम्बंधित हैं। नागरिक अधिकारियों ने स्वीकार किया कि मानसून के दौरान,
तेज हवाओं के कारण विदेशी पेड़ों के गिरने की संभावना देशी पेड़ों की तुलना में अधिक होती है। अतः आज
बीएमसी भी केवल देशी रोपण का समर्थन करती है।
आज जबकि दुनिया अभूतपूर्व आर्थिक और पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना कर रही है। वहीं जलवायु
परिवर्तन तेजी से व्यापक आर्थिक और वित्तीय स्थिरता के लिए जोखिम पैदा करता है। वनों के नुकसानऔर क्षय से वैश्विक जैव विविधता, पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के प्रावधान और अन्य प्रमुख पारिस्थितिक
निकायों को भी खतरा है, जिन पर दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएँ निर्भर हैं।
जलवायु स्थिरता और सतत विकास के व्यापक प्रभाव के अलावा वनों की कटाई और वन क्षरण उभरते हुए
जूनोटिक रोगों (Zoonotic) के जोखिम को भी बढ़ाते हैं। जैसे-जैसे मनुष्य प्राकृतिक वनों का अतिक्रमण
करते हैं, वेसे ही जानवरों से मनुष्यों में इस तरह की बीमारियों के फैलने और संचरण की संभावना बढ़ जाती
है। आज जलवायु से सम्बंधित कई चुनौतियों का जवाब देने के लिए बड़े पैमाने पर निवेश की आवश्यकता
है। उदाहरण स्वरूप पेरिस समझौते में अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान को प्राप्त करने के लिए
देशों के लिए आवश्यक अनुमानित निवेश अगले 15 वर्षों में प्रति वर्ष $ 1 ट्रिलियन से अधिक है। सरकारों
को इन संसाधनों को तेजी से तंग वित्तीय समय में जुटाना चाहिए। इस प्रकार नीति निर्माता तेजी से ऐसे
उपकरणों की तलाश कर रहे हैं जो बड़ी मात्रा में सार्वजनिक धन को हटाने या सार्वजनिक ऋण को बढ़ाए
बिना जलवायु, विकास और पुनर्प्राप्ति लक्ष्यों को पूरा करने में मदद कर सकें!
वित्तीय नीति हमेशा वन उत्पादन और संरक्षण प्रोत्साहनों को प्रभावित करती है। इस प्रकार, प्रश्न यह नहीं
है कि इसका उपयोग किया जाए या नहीं, बल्कि यह है कि इसका उपयोग होशपूर्वक कैसे किया जाए? हमें
भविष्य के विकास को एक टिकाऊ पथ पर निर्देशित करने वाले प्रोत्साहनों को सशक्त बनाने की
आवश्यकता है।
देश के विभिन्न हिस्सों में जंगलों और प्राकृतिक संसाधनों की स्थिति पर इस बार सरकार का ध्यान भी
आकर्षित हुआ है। 1 फरवरी 2022 को, भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पहली बार जलवायु
परिवर्तन, नेट-जीरो, एनर्जी ट्रांजिशन, ग्रीन बॉन्ड और सर्कुलर इकोनॉमी (Net-Zero, Energy
Transition, Green Bonds and the Circular Economy) जैसे शब्दों का उपयोग करते हुए संघीय
सरकार का वार्षिक बजट पेश किया। साथ ही इस बजट में उच्च दक्षता वाले सौर पीवी मॉड्यूल (Solar PV
Module) के उत्पादन को प्रोत्साहित करने और इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय सहायता
देने की भी योजना है। भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा 1 फरवरी को पेश किया गया 2022-23
का केंद्रीय बजट पर्यावरण के अनुकूल हो सकता है। पहली बार किसी केंद्रीय बजट में, पर्यावरण सम्बंधी
चर्चाओं में उपयोग किए जाने वाले शब्दों का इतना उल्लेख किया गया है, जिनमे जलवायु परिवर्तन, शुद्ध-
शून्य, ऊर्जा संक्रमण, कार्बन तीव्रता, हरित बांड, परिपत्र अर्थव्यवस्था, बैटरी की अदला-बदली और ऊर्जा
भंडारण प्रणालियों के लिए बुनियादी ढांचे की स्थिति शामिल है। आर्थिक सर्वेक्षण, जिसे बजट का दोहरा
दस्तावेज माना जाता है, में भारत के एसडीजी (सतत विकास लक्ष्य) कार्यान्वयन, वन आवरण, प्लास्टिक
अपशिष्ट प्रबंधन, भूजल संसाधन, नदी प्रणाली, वायु प्रदूषण प्रबंधन और जलवायु से निपटने की स्थिति
का विवरण देने वाला एक पूरा अध्याय है। बजट के प्रस्तावित "भविष्यवादी और समावेशी" विकास और "
आधुनिक बुनियादी ढांचे के लिए बड़े सार्वजनिक निवेश, का उद्देश्य नदी घाटियों में नदी के पानी के
हस्तांतरण सहित बड़े पैमाने पर परिवहन के तरीके विकसित करना है।
संदर्भ
https://bit.ly/3ryPunm
https://bit.ly/3rxzYbu
https://bit.ly/3rzcoee
https://www.nature.com/articles/d41586-022-00182-8
चित्र संदर्भ
1. सड़क पर गिरे हुए पेड़ को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. सड़क पर गिरे हुए एक अन्य पेड़ को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. पेड़ के नीचे दबी हुई गाडी को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. बरगद के मजबूत पेड़ को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
5. भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को दर्शाता एक चित्रण (NewsClick)
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