पर्यावरण के लिए लाभदायक मोक्षदा हरित शवदाह प्रणाली

मेरठ

 20-05-2021 08:18 AM
जलवायु व ऋतु

मोक्षदा हरित शवदाह प्रणाली 60% तक लकड़ी बचाने में मदद करता है और इस तरह न केवल हमारे जंगल के संरक्षण में मदद करता है बल्कि इस प्रक्रिया का खर्च भी काफी काम आता है जिससे आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों के लिए अनुकूल है | नदियों के प्रदूषण को कम करना और ग्रीन हाउस गैस(green house) उत्सर्जन को कम करना इस प्रक्रिया के उपयोग के अन्य महत्वपूर्ण लाभ हैं |
हिंदू धर्म दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है | हर साल औसतन 85 लाख हिन्दुओं का दाहसंस्कार होता है | हिन्दू धर्म में शव को जलाने का धार्मिक महत्व है खास तौर पर भारत में | धार्मिक रीतिरिवाजों के मुताबिक शव को जलाने के लिए लकड़ी का इस्तेमाल होता है | एक सर्वेक्षण के मुताबिक अकेले दिल्ली में हर दिन करीब 40 लाख टन लकड़ी का उपयोग शव को जलाने में किया जाता है | इस आपूर्ति के लिए लगभग 4000 पेड़ो को काटा जाता है, अर्थात हर वर्ष हम 1500 से 2000 वर्ग किलोमीटर तक के जंगलो को ख़त्म कर रहे हैं | साथ ही जलाये जाने पर ये लकड़ी 75 लाख टन कार्बन डाई ऑक्सईड गैस (Carbon Dioxide) उत्सर्जित करती है जिससे गर्मी और बढ़ रही है और पर्यावरण को काफी नुकसान पहुँचता है | पारंपरिक श्मशान प्रणाली को पर्यावरण के अधिक अनुकूल बनाने के लिए मोक्षदा नाम की गैर सरकारी संगठन सन 1992 से एक ऊर्जा कुशल और पर्यावरण अनुकूल लकड़ी आधारित श्मशान प्रणाली विकसित करने के लिए काम कर रही है। देश भर में 2000 से अधिक शमशान घाटों का सर्वेक्षण करने और सार्वजनिक, धार्मिक प्रमुखों और अन्य हितधारकों के विचार प्राप्त करने के बाद मोक्षदा हरित शवदाह प्रणाली विकसित किया गया है। इस प्रणाली में पारंपरिक रूप से लकड़ी जलाकर और सभी पारंपरिक अनुष्ठान करके दाह संस्कार किया जाता है और इसमें बिजली की भी आवश्यकता नहीं होती है । मोक्षदा हरित शवदाह प्रणाली 60% तक लकड़ी बचाने में मदद करता है और इस तरह न केवल हमारे जंगल के संरक्षण में मदद करता है बल्कि इस प्रक्रिया का खर्च काफी काम आता है जिससे आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों के लिए भी यह अनुकूल है | नदियों के प्रदूषण को कम करना और ग्रीन हाउस गैस (green house gas) उत्सर्जन को कम करना इस प्रक्रिया के उपयोग के अन्य महत्वपूर्ण लाभ हैं |
पर्यावरण की सुरक्षा के लिए विद्युत् और गैस पर आधारित शवदाह गृह का भी उपयोग किया जा रहा है, लेकिन उन्हें उतनी सफलता नहीं मिल पायी क्यों की लोगो का मानना है की उसमे कई प्रकार की क्रियाएं नहीं की जा सकती हैं जो की मोक्षदा हरित शवदाह प्रणाली में आसानी से की जा सकती हैं | दिल्ली सहित अन्य राज्यों में इस तरह के शवदाह गृह बनाने पर कार्य चल रहा है | इस तरह के शवदाह गृह अभी भी कई जगह पर इस्तेमाल किये जा रहे हैं | जहाँ एक ओर हिन्दू धर्म में जलाये जाने की प्रथा है वहीँ दूसरी ओर प्रदुषण का कारण भी बनता है लेकिन इस मोक्षदा हरित शवदाह प्रणाली के माध्यम से जहां पारम्परिक रिवाजों(तर्पण,मुखाग्नि और कपाल क्रिया विधियों) को ध्यान में रखने के साथ-साथ पर्यावरण पर भी पूरा ध्यान रखा जाता है | इस माध्यम में शव की पूर्ण दहन 2 घंटे के भीतर हो जाता है वहीँ अगर हम पुराने विधि से शव का दहन करें तो 7 से 8 घंटा लगते है | मोक्षदा की इस कोशिश से हर वर्ष करीब 2 करोड़ पेड़ बचाये जा सकते हैं और करीब 50 लाख टन कॉर्बन डाई ऑक्सईड गैस वातावरण में जाने से रोकी जा सकेगी | इसमें ऊष्मा बहार बहोत कम उत्सर्जित होती है क्यूंकि अधिकतर ऊष्मा अंदर ही समाहित हो जाती है |
इसकी संरचना में एक धातु का उपयोग किया जाता है जिस पर चिता को रखा जाता है जिसे जलाऊ लकड़ी के माध्यम से जलाया जाता है | उस ऊष्मा से धातु गर्म हो जाती है और अत्यधिक ऊष्मा उत्पन्न होती है | आग लगाने के पश्चात इसको ऊपर से आवरित कर दिया जाता है जिससे ऊष्मा की हानि कम हो और अंदर का तापमान अधिक होकर जल्द ही शव जल सके | इसमें कम समय के साथ-साथ कम लकड़ी की आवश्यकता होती है।जब शव पूरी तरह से जल जाता है तो सिर्फ रIख बचती है, तब उस धातु की आकृति को हटाकर दूसरे शव के साथ उपयोग करते हैं जिससे कम समय में अधिक शव दाह किये जा सकें |
वन और पर्यावरण मंत्रालय ने भी इसे अपनाने के साथ-साथ इसका विस्तार करने का फैसला किया है | इसमें 70 % पैसा केंद्र तथा 30% राज्य सरकारें या स्थानीय निकाय लगाएंगे | मोक्षदा हरित शवदाह प्रणाली के निदेशक अंशुल गर्ग के अनुसार अभी भारत में लगभग 50 ऐसी इकाईयां राज्यों में फैली हुई हैं। , मोक्षदा हरित शवदाह प्रणाली एक दिन में लगभग एक स्थान पर 45 दाह संस्कार कर सकती है। यह प्रणाली पारंपरिक शवदाह के लिए लगभग 400 से 500 किग्रा की लकड़ी की मात्रा को 100 से 150 किग्रा तक में करती है। बढ़ती जनसँख्या और घटते जंगलो को देखते हुए ये तकनीक काफी व्यवहारिक लगती है |

संदर्भ
https://bit.ly/3wkWXWJ
https://bit.ly/3yokJTE
https://bit.ly/3u5jOnH
https://cutt.ly/Hb250QH
https://cutt.ly/3b259AG
https://cutt.ly/pb253Vx

चित्र संदर्भ
1.हरित शवदाह प्रणाली का एक चित्रण (facebook)
2. शवदाह का एक चित्रण (Wikimedia)
3. हरित शवदाह प्रणाली का एक चित्रण (facebook)

RECENT POST

  • अपने युग से कहीं आगे थी विंध्य नवपाषाण संस्कृति
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:28 AM


  • चोपता में देखने को मिलती है प्राकृतिक सुंदरता एवं आध्यात्मिकता का अनोखा समावेश
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:29 AM


  • आइए जानें, क़ुतुब मीनार में पाए जाने वाले विभिन्न भाषाओं के शिलालेखों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:22 AM


  • जानें, बेतवा और यमुना नदियों के संगम पर स्थित, हमीरपुर शहर के बारे में
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:31 AM


  • आइए, अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस के मौके पर दौरा करें, हार्वर्ड विश्वविद्यालय का
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:30 AM


  • जानिए, कौन से जानवर, अपने बच्चों के लिए, बनते हैं बेहतरीन शिक्षक
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:17 AM


  • आइए जानें, उदासियों के ज़रिए, कैसे फैलाया, गुरु नानक ने प्रेम, करुणा और सच्चाई का संदेश
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:27 AM


  • जानें कैसे, शहरी व ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं के बीच अंतर को पाटने का प्रयास चल रहा है
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:20 AM


  • जानिए क्यों, मेरठ में गन्ने से निकला बगास, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के लिए है अहम
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:22 AM


  • हमारे सौर मंडल में, एक बौने ग्रह के रूप में, प्लूटो का क्या है महत्त्व ?
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:29 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id