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हम कई बार पश्चिमी देशों में निर्मित शानदार और ऊँची-ऊँची इमारतों को देखकर अचंभित होते हैं,
और यह समझ बैठते हैं की संभवतः पश्चिमी देशों की निर्माण शैली और वास्तुकला विश्व में सबसे
पहले से है, और सबसे शानदार है। किंतु जैसा की (1970) में रिलीज़ हुई एक लोकप्रिय भारतीय
फिल्म "पूरब और पश्चिम" में सुपरहिट रहे एक गीत के बोल हैं।
जब जीरो दिया मेरे भारत ने,दुनिया को तब गिनती आयी।
तारों की भाषा भारत ने, दुनिया को पहले सिखलायी।।
देता ना दशमलव भारत तो, यूँ चाँद पे जाना मुश्किल था।
धरती और चाँद की दूरी का, अंदाज़ा लगाना मुश्किल था।।
संभवतः आज पूरे विश्व के विभिन्न देशों में एक से बढ़कर एक अद्भुद और अविश्वसनीय इमारतों
का निर्माण हो चुका है, परंतु "विश्व गुरु के रूप में" हमारे देश भारत ने हजारों वर्षो पूर्व ही पूरी
दुनिया को अपने गणित ज्ञान की दक्षता के माध्यम से ईमारत निर्माण कला का ज्ञान दिया था।
एक पल के लिए कोई भी व्यक्ति यह सोच सकता है की "भला कक्षा का सबसे उदासीन विषय,
गणित और दुनिया की सबसे बेहतरीन और आकर्षक इमारतों में क्या संबंध हो सकता है?"
वास्तव में वास्तुकला और गणित के बीच उतना ही गहरा संबंध है जितना की चित्रकार और
चित्रकारी के बीच", दोनों एक दूसरे के पूरक हैं।
बिना सटीक गणितीय आंकड़ों के बहुमंजिला, और रचनात्मक इमारतों का निर्माण तकरीबन
असंभव माना जाता है। उदाहरण के तौर पर इमारतों को घुमावदार बनाना हो, बहुमंजिला बनाना
हो, उनमे यथावत नक्काशी करनी हो ,अथवा सटीक आकार प्रदान करना हो, तो भी गणित के बिना
काम नहीं चल सकता।
भवन निर्माण में विशेष तौर पर इमारत के स्थानिक रूप को परिभाषित करने के लिए गणित के
एक रूप ज्यामिति का सहारा लिया जाता है। प्राचीन भारत, मिस्र, ग्रीस, और इस्लामी सभ्यता में,
मंदिर, पिरामिड (Pyramid), मस्जिद, महल और मकबरे सहित इमारतों एवं धार्मिक स्थलों को
कई कारणों से एक विशिष्ट अनुपात में रखा गया था। इस्लामी वास्तुकला में, ज्यामितीय
आकृतियों और ज्यामितीय टाइलिंग पैटर्न का उपयोग इमारतों को अंदर और बाहर सजाने के लिए
किया जाता है। कुछ हिंदू मंदिरों में भग्न जैसी (fractal-like) संरचना के निर्माण हेतु गणित का
प्रयोग किया गया था, अथवा आज भी किया जाता है। यदि आप कुछ प्राचीन हिंदू मंदिरों को गौर से
देखेंगे तो पाएंगे की इनकी संरचनायें इंच बाई इंच (inch by inch) के हिसाब से सटीक हैं। आश्चर्य
की बात तो यह है यह संचनाएँ आधुनिक कम्प्यूटरों के बिना केवल पारंपरिक गढ़नायें करके ही
निर्मित की गई हैं। दरसल मंदिरों की ऐसी शंक्वाकार संरचनाएं हिंदू ब्रह्मांड विज्ञान में अनंतता के
बारे में एक संदेश देती हैं।
उदारहण के तौर पर हिंदू विरुपाक्ष मंदिर के गोपुरम में एक भग्न जैसी संरचना है, जिसके सभी
भग्न पूरी तरह समान हैं।
वास्तु शास्त्र, वास्तुकला और नगर नियोजन के प्राचीन भारतीय सिद्धांत, मंडल नामक सममित
रेखाचित्रों का उपयोग करते हैं। एक इमारत और उसके घटकों के आयामों पर पहुंचने के लिए
जटिल गणनाओं का उपयोग किया जाता है। खाचित्रों का उद्देश्य वास्तुकला को प्रकृति के साथ
एकीकृत करना, संरचना के विभिन्न हिस्सों के सापेक्ष कार्यों और ज्यामितीय पैटर्न निर्धारित
करना है। मध्ययुगीन इस्लामी वास्तुकला में शानदार परिष्कृत ज्यामितीय पैटर्न इंगित करते हैं
कि, उनके डिजाइनरों ने पश्चिमी विद्वानों की तुलना में 500 साल पहले गणितीय दक्षता हासिल
की थी।
मध्ययुगीन इस्लामी इमारतों की कई दीवारों में अलंकृत ज्यामितीय तारे और बहुभुज, या "गिरिह"
पैटर्न हैं, जिन्हें अक्सर लाइनों के एक ज़िग-ज़ैगिंग नेटवर्क के साथ मढ़ा जाता है। इस्लामी परंपरा
कलाकृति में सचित्र निरूपण पर आधारित है। मध्य पूर्व, मध्य एशिया और अन्य जगहों पर
इस्लामी वास्तुकारों द्वारा बनाई गई मस्जिदों और अन्य भव्य इमारतों को अक्सर विस्तृत
ज्यामितीय पैटर्न का प्रयोग करते हुए समृद्ध, जटिल टाइल डिजाइनों से निर्मित किया जाता है।
7 वीं शताब्दी में इस्लामी संस्कृति गणित, चिकित्सा, इंजीनियरिंग, चीनी मिट्टी की चीज़ें, कला,
वस्त्र, वास्तुकला और अन्य क्षेत्रों में कई शताब्दियों में उपलब्धियों के साथ शुरू हुई। इस्लामी
वास्तुकला में प्रयुक्त पैटर्न के परिष्कार ने दुनिया भर के विद्वानों को आकर्षित किया है। इस्लामी
कलाकार पारंपरिक कला के साथ ज्यामिति को जोड़कर एक नई कला बनाते हैं, जिसमें दोहराए
जाने वाले पैटर्न और संबंधित आकार शामिल होते हैं।
ज्यामिति, बीजगणित और त्रिकोणमिति सभी वास्तुशिल्प डिजाइन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते
हैं। आर्किटेक्ट इन गणित रूपों को अपने ब्लूप्रिंट या प्रारंभिक स्केच डिज़ाइन (blueprint or
preliminary sketch designs) की योजना बनाने के लिए प्रयोग करते हैं। प्राचीन काल से,
आर्किटेक्ट्स ने इमारतों के आकार और स्थानिक रूपों की योजना बनाने के लिए ज्यामितीय
सिद्धांतों का उपयोग किया है। 300 ईसा पूर्व में, ग्रीक गणितज्ञ यूक्लिड (Euclid) ने प्रकृति के
एक गणितीय नियम को परिभाषित किया जिसे स्वर्ण अनुपात कहा जाता है। दो हजार से अधिक
वर्षों से, आर्किटेक्ट्स ने इस फॉर्मूले का उपयोग इमारतों में अनुपात डिजाइन करने के लिए किया
है, जो इमारतों को भव्य, बहुमंजिला और संतुलित बनाते हैं। इसे गोल्डन कॉन्स्टेंट (Golden
Constant) के रूप में भी जाना जाता है।
सबसे उल्लेखनीय प्राचीन वास्तुकला मिस्र के पिरामिड माने जाते हैं, जिनका निर्माण 2700 ईसा
पूर्व के बीच हुआ था। और 1700 ई.पू. उनमें से अधिकांश को लगभग 51-डिग्री के कोण पर बनाया
और बढ़ाया गया था। पिरामिड निर्माण की सटीकता के प्रमाण के रूप में मिस्रवासियों को स्पष्ट
रूप से और रहस्यमय तरीके से ज्यामिति का ज्ञान था।
संदर्भ
https://bit.ly/3c3HORF
https://reut.rs/3c2Upo4
https://bit.ly/3c7U6s1
https://bit.ly/3FdeXH9
चित्र संदर्भ
1. खजुराहों में मंदिरों के समूह को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. "द गेरकिन" (The Gherkin), 30 सेंट मैरी एक्स, लंदन (30 St Mary Axe, London), को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. हिंदू विरुपाक्ष मंदिर के गोपुरम में एक भग्न जैसी संरचना है, जहां भाग पूरे के समान हैं, जिसको दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. इस्लामी वास्तुकारों द्वारा बनाई गई मस्जिदों और अन्य भव्य इमारतों को अक्सर विस्तृत ज्यामितीय पैटर्न का प्रयोग करते हुए समृद्ध, जटिल टाइल डिजाइनों से निर्मित किया जाता है, जिसके उदाहरण स्वरूप ताजमहल को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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