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किसी देश के आर्थिक प्रदर्शन के उपयोगी संकेतक, सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की कैसे होती है, गणना?

रामपुर

 07-12-2023 09:47 AM
सिद्धान्त I-अवधारणा माप उपकरण (कागज/घड़ी)

सकल घरेलू उत्पाद (GDP) किसी अर्थव्यवस्था या देश के आर्थिक उत्पादन के लिए, सबसे व्यापक रूप से प्रयुक्त मानकों में से एक है।इसे एक विशिष्ट अवधि में, देश की सीमाओं के भीतर उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के कुल मूल्य के रूप में परिभाषित किया गया है। जीडीपी किसी अर्थव्यवस्था के उत्पादन का एक सटीक संकेतक है, और ‘जीडीपी विकास दर’ संभवतः आर्थिक विकास का सबसे अच्छा संकेतक भी है।
एक तरफ़, जीडीपी नीति निर्माताओं और केंद्रीय बैंकों को यह निर्णय लेने में सक्षम बनाता है कि, अर्थव्यवस्था सिकुड़ रही है या उसका विस्तार हो रहा है। इस आधार पर, वे तुरंत आवश्यक कार्रवाई कर सकते हैं।नीति निर्माताओं के अलावा, यह अर्थशास्त्रियों और व्यवसायों को मौद्रिक एवं राजकोषीय नीति, आर्थिक समस्या तथा कर और व्यय योजनाओं के प्रभावों का विश्लेषण करने की भी, अनुमति देता है। जीडीपी इसलिए भी महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि, यह अर्थशास्त्रियों को वैश्विक रुझानों के बारे में जानने की अनुमति देता है। उदाहरण के लिए, चीन(China) और हमारा देश भारत अपनी विशाल आबादी के बावजूद, सफल हुए हैं। चीन की जीडीपी 1978 में 149.54 बिलियन डॉलर से बढ़कर, 2022 में 17.96 ट्रिलियन डॉलर हो गई है। इसी अवधि में, जबकि, भारत ने 137.3 बिलियन डॉलर से 3.39 ट्रिलियन डॉलर के साथ धीमी विकास गति का अनुभव किया है। जीडीपी की गणना व्यय, आय या मूल्य वर्धित दृष्टिकोण के माध्यम से की जा सकती है।तथा, राष्ट्रीय आय और उत्पाद खाते(National Income and Product Accounts) सकल घरेलू उत्पाद को मापने का आधार बनते हैं। जीडीपी की गणना व्यय दृष्टिकोण – एक विशेष अवधि में अर्थव्यवस्था में हर किसी के खर्च के योग, के माध्यम से की जा सकती है। जबकि, आय दृष्टिकोण में, सभी की कमाई के कुल योग का भी उपयोग किया जा सकता है। और, तीसरी विधि, मूल्य वर्धित दृष्टिकोण है, जो उद्योगों द्वारा सकल घरेलू उत्पाद की गणना करती है।
व्यय-आधारित जीडीपी (मुद्रास्फीति-समायोजित) वास्तविक और नाममात्र मूल्यों दोनों का उत्पादन करती है।जबकि, आय-आधारित जीडीपी की गणना केवल नाममात्र मूल्यों में की जाती है। व्यय दृष्टिकोण अधिक सामान्य है और कुल खपत, सरकारी खर्च, निवेश और शुद्ध निर्यात को जोड़कर प्राप्त किया जाता है।
दरअसल, जीडीपी की गणना इस प्रकार की जाती है:
जीडीपी = उपभोक्ता व्यय + व्यापार व्यय + सरकारी खर्च + ( निर्यात मूल्य – आयात का मूल्य)
सकल घरेलू उत्पाद को परिभाषित करना आसान हो सकता है लेकिन इसकी गणना करना जटिल है, और विभिन्न देश इसके लिए, अलग-अलग तरीके अपनाते हैं। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के तहत, केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय(Central Statistics Office) व्यापक आर्थिक डेटा एकत्र करने और सांख्यिकीय रिकॉर्ड रखने के लिए प्रतिबद्ध है। इसकी प्रक्रियाओं में उद्योगों का वार्षिक सर्वेक्षण करना और औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (Industrial Production Index) और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index) जैसे विभिन्न सूचकांकों का संकलन भी शामिल है। केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय सकल घरेलू उत्पाद और अन्य आंकड़ों की गणना के लिए, आवश्यक डेटा एकत्र करने और संकलित करने के लिए विभिन्न संघीय और राज्य सरकारी संस्थानों और विभागों के साथ समन्वय करता है। इस तरह, सभी आवश्यक डेटा बिंदुओं को केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय में एकत्रित किया जाता है, और जीडीपी संख्या की गणना करने के लिए, इसका उपयोग किया जाता है। भारत में जीडीपी की गणना दो अलग-अलग तरीकों का उपयोग करके की जाती है, जिससे अलग-अलग आंकड़े मिलते हैं, जो वैसे तो,लगभग समान ही होते हैं। पहली विधि आर्थिक गतिविधि या कारक लागत पर आधारित है, और दूसरी व्यय या बाजार कीमतों पर आधारित है। आगे की गणना,नाममात्र जीडीपी(मौजूदा बाजार मूल्य का उपयोग करके) और वास्तविक जीडीपी(मुद्रास्फीति-समायोजित) पर पहुंचने के लिए, की जाती है। जारी किए गए इन चार आंकड़ों में, कारक लागत पर जीडीपी सबसे अधिक प्रयुक्त किया जाने वाला आंकड़ा है। प्रत्येक तिमाही का डेटा, उस तिमाही के अंतिम कार्य दिवस से, दो महीने के अंतराल पर जारी किया जाता है। जबकि, वार्षिक जीडीपी डेटा दो महीने के अंतराल के साथ 31 मई को जारी किया जाता है। इस प्रकार, जारी किए गए पहले आंकड़े तिमाही के अनुमान होते हैं। और फिर, जैसे-जैसे अधिक से अधिक सटीक डेटा उपलब्ध होता जाता हैं, परिकलित आंकड़ों को अंतिम संख्याओं में संशोधित किया जाता है। हालांकि, जीडीपी को विभिन्न तरीकों से विखंडित करना संभव है, लेकिन सबसे आम तरीके में, इसे किसी देश की निजी खपत, निवेश, सरकारी खर्च और शुद्ध निर्यात के योग के रूप में देखा जाता है। जैसे कि, हमनें ऊपर पढ़ा हैं, जीडीपी को नाममात्र या वास्तविक रूप में व्यक्त किया जा सकता है। नाममात्र जीडीपी की गणना, एकत्र किए गए उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य के आधार पर की जाती है। इसलिए, यह न केवल उत्पादन के मूल्य को दर्शाता है, बल्कि, उस उत्पादन के कुल मूल्य निर्धारण में बदलाव को भी दर्शाता है।
इसके विपरीत, वास्तविक जीडीपी को मुद्रास्फीति के लिए समायोजित किया जाता है, जिसका अर्थ है कि, यह वास्तविक उत्पादन में परिवर्तन को मापने के लिए मूल्य स्तर में परिवर्तन को ध्यान में रखता है। जीडीपी किसी देश के आर्थिक प्रदर्शन का एक उपयोगी संकेतक है। 

हालांकि, इसकी कुछ महत्वपूर्ण सीमाएं भी हैं। इनमें निम्न बातें शामिल हैं–
1.इसमें गैर-बाजार लेनदेन का विचार नहीं किया जाता है,
2.समाज में आय असमानता की व्याप्ति का हिसाब देने या उसका प्रतिनिधित्व करने में, जीडीपी विफल है,
3.देश की विकास दर टिकाऊ है या नहीं, यह बताने में भी, जीडीपी विफल है,
4.राष्ट्र के उत्पादन या उपभोग से उत्पन्न नकारात्मक बाह्यताओं के कारण मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर लगने वाली लागत का हिसाब देने में भी विफलता, और
5.जीडीपी ह्रास हुई पूंजी के प्रतिस्थापन को, नई पूंजी के निर्माण के समान मानता है। परंतु, एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि, भारत की जीडीपी वृद्धि और लोगों के लिए रोज़गार सृजन के बीच संबंध, समय के साथ कमज़ोर हो गया है। लेकिन, हमारे देश में, 1990 के दशक में, एवं उसके बाद वाले दशकों में, अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि के साथ-साथ कई अन्य आर्थिक संकेतकों के मामले में पहले के दशकों से काफी अलग है। हालांकि, पिछले दशक के दौरान कार्यरत लोगों की संख्या और रोज़गार दिवसों की संख्या में वृद्धि के पश्चात भी, उत्पादकता में कम वृद्धि और श्रम बाज़ार के विखंडन के संबंध में चिंता व्यक्त की गई है। संस्थागत और सामाजिक बाधाओं के परिणामस्वरूप, श्रम बाज़ार विभाजन हुआ है, जो पिछड़े क्षेत्रों, छोटे शहरों, ग्रामीण क्षेत्रों और जनसंख्या की वंचित सामाजिक-आर्थिक श्रेणियों में श्रमिकों तक विकास के लाभों के प्रसार के रास्ते में आ गया है। साथ ही, सामाजिक और धार्मिक समूहों में ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों में असमानता बढ़ी है। उपभोग व्यय के मामले में अनुसूचित जनजाति आबादी को सबसे कम लाभ हुआ है, उसके बाद अनुसूचित जाति और मुस्लिम आबादी को लाभ हुआ है। उच्च जाति की हिंदू आबादी के साथ-साथ पारसियों और सिखों जैसे अन्य धार्मिक समूहों ने, हालांकि, अपेक्षाकृत अच्छा प्रदर्शन किया है। जबकि, लैंगिक असमानता भी नीतिगत चिंता का एक प्रमुख क्षेत्र बनकर उभरी है।
अतः अब यह देखना दिलचस्प होगा, की ये रुझान आने वाले वर्षों में, कैसे बदलते हैं?

संदर्भ
https://tinyurl.com/3nhvcpcf
https://tinyurl.com/2ku3achm
https://tinyurl.com/3dfj839x
https://tinyurl.com/5xe5n2fm
https://tinyurl.com/nzeyp2mc

चित्र संदर्भ
1. भारतीय रुपयों को दर्शाता एक चित्रण (pixels)
2. सकल घरेलू उत्पाद के साथ क्षेत्र के मानचित्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. सकल घरेलू उत्पाद में क्षेत्र के योगदान को दर्शाता एक चित्रण (pxhere)
4. निर्मला सीतारामन् भारत की वित्तमन्त्री हैं। को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. एक महिला किसान को दर्शाता एक चित्रण (flickr)



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