हर राजा महाराजा के राज में उसके पास अश्व और हाथी ऐसे प्राणी होते ही हैं खास कर जब बात भारतीय राजाओं की आती है क्यूंकि यह एक प्रतिष्ठा की बात होती है की किसी राजा का अश्वदल या गजदल कितना बड़ा है। बहुतसे राजा इन के अलावा और भी कई प्राणियों-पक्षियों को पालते थे। गज-अश्व का उपयोग शिकार, युद्ध, मनोरंजन, यातायात तथा समारोह में होता था। हाथी और घोड़े आज भी वैभव का प्रतिक माने जाते हैं।
रामपुर नवाब भी हाथी और घोड़ों को पालते थे और उनका अपना एक उम्दा संग्रह भी था। रामपुर के इतिहास का मुआयना करें तो इस काल के गज़ेटियर आदि से पता चलता है की रामपुर नवाब अपने लिए हाथी और घोड़ो की खरीददारी करते थे क्यूंकि रामपुर में यह अधिक मात्रा में उपलब्ध नहीं थे।
काफी काल के लिए रामपुर हाथी-व्यापार का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा था। बहुतायता से यह व्यापार पठान व्यापारियों के कब्ज़े में था जो पटना और बंगाल के मेलों से इनकी खरीददारी करते थे और फिर उन्हें राजपुताना तथा पंजाब के बंजारों को बेच देते थे। रामपुर नवाब बहुत बड़ी संख्या में हाथी पालते थे जो शाहाबाद रातसे पर पिलखना नामक बड़ी इमारत मतलब हाथीखाने में रखे जाते थे।
रामपुर नवाब खास महावत/पीलवान को हाथी पकड़ने के लिए भेजते थे जो तराई और बाकी जंगलों में जाकर जवान हाथी पकडके लाते थे। सरकार ने इस पर आगे रोक लगा दी थी जिस वजह से यह प्रथा बंद हो गयी।
घोड़ों का व्यवसाय भी रामपुर में बहुत होता था क्यूंकि यहाँ पर घोड़ों की पैदाइश कम होती थी। बिलासपुर, टांडा और केमरी के बंजारे घोड़ों का व्यापार बड़ी तादात में करते थे। वे घोड़े के बच्चे दूर दराज़ के इलाकों से लाते थे फिर उन्हें दो-चार साल पालते थे और बाद में मुनाफा कमा कर बेच देते थे। रामपुर के नवाबों के अस्तबल में काफी कीमती नस्ल के घोड़े थे।
प्रस्तुत चित्र जो रामपुर नवाबों के घोड़े के अस्तबल (चित्र 1) और हाथीखाना (चित्र 2) के हैं। इन्हें देखकर हम अंदाज़ा लगा सकते हैं की उनका हाथी और घोड़ों का कितना अच्छा संग्रहण होगा।
1. रामपुर डिस्ट्रिक्ट गज़ेटियर 1911
2. http://www.bl.uk/onlinegallery/onlineex/apac/photocoll/e/019pho000000036u00035000.html
3. http://www.rarebooksocietyofindia.org/postDetail.php?id=196174216674_10151057249201675
© - , graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.