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क्या आप जानते हैं कि पहले के समय में कोयले का खनन करने वाले कोयला खनिक (Coal Miners), जमीन के अंदर काम करते समय अपने साथ, पिंजरे में बंद पक्षी को भी ले जाते थे। यदि वह पक्षी मर जाता, तो यह इस बात का संकेत माना जाता था कि अंदर जहरीली गैसें बन चुकी हैं, और खदान को जल्द से जल्द खाली करने की जरूरत है। शुरुआती दिनों में सोने का अयस्क या दूसरी धातुएं, पृथ्वी की सतह पर यूँ ही पड़ी मिल जाती थी। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, वेसे-वेसे सतह पर इन धातुओं की मात्रा या उपलब्धता भी कम होने लगी, जिसके बाद खनिकों को धातु की तलाश में जमीन के भीतर गहराई तक जाने के लिए मजबूर होना पड़ा। इस बदलाव ने खनन की दो प्राथमिक विधियों का निर्माण किया, जिन्हें आज हम “सतही खनन और भूमिगत खनन” के नाम से जानते हैं।
आइए इन तकनीकों के बीच मुख्य अंतरों पर गौर करें।
➲ सतही खनन में खनिज को पृथ्वी की सतह से निकाला जाता है, जबकि भूमिगत खनन में खनिजों तक पहुँचने के लिए पृथ्वी की गहराई में सुरंग खोदी जाती है।
➲ सतही खनन में, खनिजों तक पहुँचने के लिए मिट्टी और चट्टान की ऊपरी परत को हटाया जाता है। वहीँ भूमिगत खनन में, ऊपर की चट्टान को छेड़े बिना खनिजों तक पहुंचने के लिए सुरंग खोदी जाती है।
➲ सतही खनन का उपयोग नदी तल में पाए जाने वाले खनिजों के लिए या फिर तब किया जाता है, जब निम्न-श्रेणी के खनिजों के बड़े भंडार सतह के ठीक नीचे पाए जाते हैं। वहीँ भूमिगत खनन का उपयोग छोटे, उच्च श्रेणी के निक्षेपों (Deposits) के लिए किया जाता है जो पृथ्वी की गहराइयों में मौजूद होते हैं या चट्टान और मिट्टी की मोटी परत से ढके होते हैं।
➲ सतही खनन में, सबसे पहले मिट्टी और चट्टान की ऊपरी परत को हटाया जाता है, फिर खनिजों को निकालने और उन्हें ट्रकों में लोड (Load) करने के लिए मशीनों का उपयोग किया जाता है। एक बार जब सभी खनिज प्राप्त कर लिए जाते हैं, तो खनन के दौरान निर्मित गड्ढे को वापस भर दिया जाता है और उस स्थान पर स्थानीय वनस्पति को दोबारा लगा दिया जाता है। वहीँ भूमिगत खनन में, हम खनिजों तक पहुंचने के लिए जमीन में गहरी ऊर्ध्वाधर सुरंगें और इन शाफ्ट के नीचे से क्षैतिज सुरंगें खोदते हैं। फिर हम खनिज भंडार को तोड़ने और उसे वापस सतह पर ले जाने के लिए मशीनों का उपयोग करते हैं।
➲ सतही खनन की विधियों में खुले गड्ढे में खनन, उत्खनन, पट्टी खनन और ड्रेजिंग (Dredging) शामिल हैं। वहीं भूमिगत खनन विधियों में स्तंभ खनन, लॉन्ग वॉल खनन और कट एंड फिल खनन (Longwall Mining And Cut And Fill Mining) शामिल हैं।
➲ भूमिगत की तुलना में सतही खनन अधिक आम होता है! यह सस्ता पड़ता है, इसमें कम श्रम की आवश्यकता होती है, और इसके तहत अयस्क को साइट पर संसाधित करने की अनुमति मिल जाती है। हालाँकि इससे बड़े पैमाने पर भूमि व्यवधान, पारिस्थितिक क्षति और ध्वनि प्रदूषण हो सकता है। वहीँ भूमिगत खनन का पर्यावरणीय प्रभाव बहुत कम होता है और सतह पर न्यूनतम व्यवधान होता है! लेकिन यह तुलनात्मक रूप से कम उत्पादक और अधिक महंगा साबित होता है! साथ ही यह विकिरण, जहरीली गैसों और सुरंगों के धंसने के जोखिम के कारण अधिक खतरनाक हो सकता है।
➲ सतही खनन का उपयोग आमतौर पर कोयला, तांबा और सोने जैसी कीमती धातुओं को निकालने के लिए किया जाता है। वहीँ भूमिगत खनन का उपयोग सोना, प्लैटिनम, जस्ता, सीसा और कोयले के खनन लिए किया जाता है।
खनन करने के लिए ऑगर्स (Augers) या बरमा नामक अनोखे उपकरण का प्रयोग किया जाता है! यह एक सर्पिल आकार का शाफ्ट (Shaft) और ब्लेड वाला एक उपकरण होता है, जिसका उपयोग जमीन और अन्य सतहों या सामग्रियों में छेद करने के लिए किया जाता है। इसमें सर्पिल आकार के धातु शाफ्ट या ब्लेड को "फ्लाइट (Flight)" कहा जाता है। फ्लाइट, सतह को खुरचने, काटने या निकालने के लिए एक स्थान पर घूमती है।
ब्लेड के घूमने के दौरान ड्रिल की गई सामग्री (जैसे, मिट्टी या बर्फ) का मलबा फ्लाइट के साथ और छेद से बाहर निकल आता है। बरमा अलग-अलग प्रकार के होते हैं, जिनमें से प्रत्येक को विशिष्ट सामग्री, सतहों या अन्य आवश्यकताओं के अनुरूप काम करने के लिए डिज़ाइन किया जाता है। बरमा को पावर अर्थ ड्रिल (Power Earth Drills), ग्रेन ऑगर्स और आइस ऑगर्स (Grain Augers And Ice Augers) जैसे अलग-अलग नामों से भी पहचाना जा सकता है। इन्हें ट्रैक्टर से जोड़कर इलेक्ट्रिक मोटर द्वारा संचालित किया जा सकता है, या हाथ से मैन्युअल (Manual) रूप से नियंत्रित किया जा सकता है। कोयला खनन के लिए बरमा या ऑगर माइनिंग (Auger Mining) एक लाभकारी विधि साबित होती है। बरमा खनन में अधिक लागत नहीं आती है और इसका उपयोग तब किया जाता है जब कोयले को ढकने वाली मिट्टी और चट्टान की परत इतनी मोटी हो कि उसे हटाया न जा सके, या जब कोयला परत भूमिगत खनन के लिए बहुत पतली हो।
हालांकि खनिजों की स्थिति और भूमि की प्रकृति को देखते हुए खनन करने के लिए बरमा खनन के अलावा भी अलग-अलग प्रकार की विधियों का प्रयोग किया जाता है! जैसे:
➥ हाईवॉल खनन (Highwall Mining): इस विधि के तहत एक रिमोट-नियंत्रित मशीन का उपयोग किया जाता है, जो सतह पर खुले कोयले की परत में खुदाई करती है। मशीन कोयले को एकत्र करने के लिए उसे सुरंग से बाहर लाती है। यह विधि बरमा खनन की तुलना में अधिक कोयला निकाल सकती है, लेकिन इसकी लागत अधिक है।
➥ भूमिगत खनन (Underground Mining): इस विधि का उपयोग तब किया जाता है, जब कोयला सतह से 300 फीट से अधिक नीचे होता है। इसमें भारी मशीनरी और बहुत अधिक निवेश की आवश्यकता होती है।
➥ कमरे और स्तंभ का खनन (Room And Pillar Mining): इस विधि में, कोयले को इस तरह से हटा दिया जाता है कि ऊपर की परत को सहारा देने के लिए कोयले और चट्टान के खंभे रह जाते हैं। यह विधि लचीली होती है और इसे कोयला सीम (Coal Seam) के आकार के अनुसार अनुकूलित किया जा सकता है।
➥ लॉन्ग वॉल माइनिंग (Longwall Mining): इस विधि का उपयोग तब किया जाता है, जब कोयले की परतें सपाट और बड़ी होती हैं। इसमें कोयले के बड़े ब्लॉकों का खनन किया जाता है, जिसमें कोयले को वहां से ले जाने के लिए कन्वेयर सिस्टम (Conveyor System) स्थापित किया गया है, जहां इसे लोड और संग्रहीत किया जा सकता है।
हैं।
संदर्भ
Https://Tinyurl.Com/Mtr65hfv
Https://Tinyurl.Com/Yte6n54m
Https://Tinyurl.Com/34dnt4ru
Https://Tinyurl.Com/3fh4aynj
Https://Tinyurl.Com/Yrwfh269
चित्र संदर्भ
1. सतही और भूमिगत खनन को संदर्भित करता एक चित्रण (Wikimedia)
2. खनन क्षेत्र को दर्शाता एक चित्रण (Sentinel)
3. सतही खनन को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
4. ऑगर्स को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
5. भूमिगत खनन कर रही मशीन को संदर्भित करता एक चित्रण (pxhere)
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