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आयुर्वेद को पूरी में दुनिया में मनुष्य के स्वास्थ्य और देखभाल को समर्पित, सबसे प्राचीन ग्रंथ माना जाता है, जिसकी उत्पत्ति 5,000 साल पहले भारत में हुई थी। आयुर्वेद, चिकित्सा की एक समग्र प्रणाली है जो हमारे मन, शरीर और आत्मा के अंतर्संबंध पर ज़ोर देती है। आयुर्वेद के अनुसार “आपका व्यक्तित्व आपके शरीर और दिमाग के भीतर ऊर्जा के अंतर्निहित संतुलन से निर्मित होता है।” यही व्यक्तित्व या व्यवहार आपकी हड्डी की संरचना से लेकर, आपकी मनोदशा और प्रवृत्ति तक सब कुछ निर्धारित करता है। आयुर्वेद के अनुसार, ब्रह्मांड की शुरुआत अव्यक्त चेतना (प्रकृति) और अव्यक्त पदार्थ (पुरुष) के रूप में हुई थी। इन दो सिद्धांतों से बुद्धि (महान) का उदय हुआ, उसके बाद अहंकार का उदय हुआ। अहंकार के तीन गुण पवित्रता (सत्व), गतिशीलता (रजस), और जड़ता (तमस) होते हैं। सत्व और रजस मिलकर ग्यारह इंद्रिय (ज्ञानेंद्रिय और कर्मेंद्रिय) और मन (मानस) को निर्मित करते हैं। तमस और रजस मिलकर पांच ऊर्जा क्वांटा (इच्छा) बनाते हैं, जो बदले में पंच तत्वों (महाभूत) का निर्माण करते हैं।
आयुर्वेद के मूल सिद्धांतों में से एक प्रमुख सिद्धांत यह भी है कि “मानव शरीर ब्रह्मांड की ऊर्जा का ही एक सूक्ष्म रूप है।” इसका मतलब यह है कि जो भी तत्व मिलकर इस दुनिया को बनाते हैं, उन्हीं तत्वों से हमारा शरीर भी निर्मित होता है। हालांकि इन तत्वों की मात्रा और संयोजनों का स्तर अलग-अलग होता है। इन तत्वों को पाँच महाभूतों (आकाश “अंतरिक्ष”, वायु, तेजस “अग्नि”, अप “जल”, और पृथ्वी) के रूप में जाना जाता है। आयुर्वेद हमें यह भी सिखाता है कि पृथ्वी पर मौजूद सभी जीवित प्राणी, यहां तक कि निर्जीव चीजें भी इन्हीं पांच तत्वों की अलग-अलग मात्रा से निर्मित हुए हैं।
यही पांच तत्व मिलकर “तीन दोष यानी (त्रिदोषों)” का निर्माण करते हैं, जिन्हें आयुर्वेदिक दर्शन की आधारशिला माना जाता हैं। ये दोष हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य, भावनाओं और व्यवहार सहित शरीर और दिमाग के सभी पहलुओं को नियंत्रित करते हैं। प्रत्येक दोष के अपने अनूठे गुण होते हैं। जब ये सभी दोष संतुलन में होते हैं, तो हम अधिक स्वस्थ और प्रसन्नता का अनुभव करते हैं। हालाँकि, जब यही दोष असंतुलित हो जाते हैं, तो यह कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे सकते हैं। प्रत्येक व्यक्ति में इन तीनों दोषों का एक अनूठा संतुलन होता है, लेकिन कुछ लोगों में एक या दो दोष अथवा उससे भी अधिक दोषों का मिश्रण प्रबल हो सकता है।
चलिए इन त्रिदोषों की अद्वितीयता को विस्तार से समझते हैं:
1. वात दोष: कहा जाता है कि "वात दोष” वायु और आकाश तत्वों से निर्मित होता है।" इसलिए हवा की भांति यह हल्का, ठंडा, शुष्क और गतिशील होता है। वात प्रकृति वाले लोग पतले होते हैं, उनकी त्वचा और बाल शुष्क होते हैं और वे तेजी से चलते और बोलते हैं। वात दोष के असंतुलित होने पर, ऐसे लोगों का वजन कम हो सकता है, इन्हें कब्ज की समस्या हो सकती है, और उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली तथा तंत्रिका तंत्र कमजोर हो सकते हैं। इस दोष के असंतुलित होने पर लोग आसानी से भ्रमित हो सकते हैं, अभिभूत हो सकते हैं और उन्हें सोने में परेशानी हो सकती है। वात दोष, में संतुलन लाने के लिए लोगों को पका हुआ अनाज, पकी हुई सब्जियां और मसालों के साथ गर्म दूध का सेवन करना चाहिए। ये लोग अदरक और अश्वगंधा जैसी जड़ी-बूटियाँ भी ले सकते हैं। वात लोगों को अत्यधिक ठंड और शुष्कता से बचना चाहिए। उन्हें गहरी साँस लेने, ध्यान और प्रकृति में समय बिताने जैसी शांत गतिविधियों का भी अभ्यास करना चाहिए।
2. पित्त दोष: पित्त, अग्नि और जल तत्व से निर्मित होता है, इसलिए इसे गर्म, तीक्ष्ण और भेदक प्रकृति का माना जाता है। पित्त प्रकृति वाले लोगों की त्वचा तैलीय, और नैन-नक्श तीखे होते हैं। उनका वजन मध्यम होता और मांसलता भी अच्छी होती है। संतुलन से बाहर होने पर, उन्हें दस्त, संक्रमण, त्वचा पर चकत्ते, और कमजोरी का अनुभव हो सकती है। पित्त व्यक्तित्व के लोग अत्यधिक केंद्रित, प्रतिस्पर्धी, सक्षम, साहसी, ऊर्जावान और स्पष्ट संचारक होते हैं। ऐसे लोग सीधे मुद्दे पर आते हैं, समस्याओं को हल करना पसंद करते हैं, और दबाव में अपनी एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा देते हैं। हालाँकि, पित्त प्रकृति के लोग अत्यधिक तीखी जुबान से बोल सकते हैं। ऐसे लोग दोस्त बनाने में बहुत अच्छे होते हैं, लेकिन दुश्मनों से डरते हैं। पित्त दोष के बिगड़ जाने पर लोगों को गहरी सांस लेने और एकाग्रता और ध्यान और प्रकृति में समय बिताने जैसी शांत गतिविधियों को करने में दुविधा होती है। पित्त लोगों को अत्यधिक गर्मी और तनाव से बचना चाहिए है। पित्त में संतुलन लाने के लिए लोगों को ठंडे आहार, कच्ची सब्जियां, पके हुए चावल, गेहूं और फलियाँ खानी चाहिए।
3.कफ दोष: कफ जल और पृथ्वी तत्व से निर्मित होता है, इसलिए इसकी प्रकृति, नम, स्थिर और भारी होती है। कफ प्रकृति वाले लोगों की हड्डियाँ घनी, त्वचा चमकदार, चयापचय कमजोर और इनका शरीर विशाल होता है। संतुलन से बाहर होने पर, उनका वजन काफी बढ़ सकता है और उनके फेफड़े और नाड़ीव्रण कमजोर हो सकते हैं। ऐसे लोगो को गैर-इंसुलिन निर्भर मधुमेह मेलिटस (diabetes mellitus) का भी खतरा हो सकता है। इसके अलावा, कफ प्रकृति वाले लोगों को अधिक ठंड महसूस होती है। कफ प्रकृति वाले लोग तनाव को बहुत अच्छी तरह से संभाल लेते है। इन लोगों को आराम भी पसंद होता है, अगर वे सावधान न रहें तो आलस्य और अवसाद से घिर सकते हैं। कफ दोष में संतुलन लाने के लिए लोगों को हल्के अनाज, गर्म मसाले और ढेर सारी सब्जियां खानी चाहिए।
हम सभी इन्ही तीन दोशिक ऊर्जाओं के संयोजन से निर्मित होते हैं। पित्त हमारे चयापचय को, कफ हमारी संरचना को, और वात हमारी गतिशीलता को नियंत्रित करता है। हमें जीवित रहने के लिए इन तीनों ऊर्जाओं की आवश्यकता पड़ती है।
हालांकि कि आपको यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि किसी व्यक्ति में कोई भी दोष पूर्णतः उपस्थित या अनुपस्थित नहीं होता। हालांकि, प्रत्येक व्यक्ति में दोषों का एक अनूठा संतुलन होता है, जिसे उनकी प्रकृति कहा जाता है। यह संतुलन गर्भाधान के समय निर्धारित होता है और व्यक्ति के पूरे जीवन भर अपरिवर्तित रहता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/5e2ejstu
https://tinyurl.com/54d5pats
चित्र संदर्भ
1. ध्यान करते लोगों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. शारीरिक ऊर्जा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. आयुर्वेद चक्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. त्रिदोषों को संदर्भित करती छवि को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
5. संतुलित भोजन को दर्शाता एक चित्रण (medium)