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युद्ध के संदर्भ में विश्व प्रतिबद्ध है, जिनेवा समझौता एवं अंतरराष्ट्रीय मानववादी कानून से

रामपुर

 28-09-2023 09:25 AM
उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक

किसी भी युद्ध (War) को आम तौर पर, किन्हीं राज्यों या राष्ट्रों के बीच होने वाले हिंसक संघर्ष के रूप में परिभाषित किया जाता है। राष्ट्र या राज्य विभिन्न कारणों से युद्ध में उतरते हैं। युद्ध के पक्ष में अक्सर यह तर्क दिया जाता है कि यदि युद्ध के लाभ इससे होने वाले नुकसान से अधिक हैं तथा यदि युद्ध के अलावा कोई अन्य पारस्परिक रूप से सहमत समाधान नहीं है, तो कोई भी राष्ट्र युद्ध का रास्ता अपना सकता है। जबकि, कुछ लोग तर्क देते हैं कि युद्ध मुख्य रूप से आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक कारणों से लड़े जाते हैं। इसके अलावा, कुछ अन्य लोग दावा करते हैं कि आज अधिकांश युद्ध वैचारिक कारणों से लड़े जाते हैं। भगवत गीता से प्रेरित भारतीय परंपरा के साथ-साथ पश्चिमी दुनिया एवं परंपरा में भी, यह माना जाता है कि युद्ध के कारण उचित होने चाहिए। दरअसल, यह विचार प्राचीन काल से ही मौजूद है। कुछ विचारवंतो ने इस विचार को ईसाई मान्यता के साथ समेटने का भी प्रयास किया कि, मानव जीवन को हानि पहुंचाना गलत है।
कुछ न्यायोचित युद्ध सिद्धांतों को आज अंतरराष्ट्रीय समझौतों के हिस्से के रूप में अपनाया गया है और इन्हें युद्ध के अंतरराष्ट्रीय कानूनों के रूप में शामिल किया गया है, जिनमें सशस्त्र बल के उपयोग, शत्रुता के व्यवहार तथा युद्ध पीड़ितों की सुरक्षा के संबंध में नियम निहित हैं। उदाहरण के लिए, ‘जिनेवा समझौता’ (Geneva Convention) अंतरराष्ट्रीय संधियों की एक श्रृंखला है, जो गैर-लड़ाकों, नागरिकों और युद्धबंदियों की रक्षा के लिए बनाई गई है। इन संधियों पर वर्ष 1864 और 1977 के बीच, स्विट्जरलैंड (Switzerland) के जिनेवा (Geneva) शहर में बातचीत की गई थी। पहला और दूसरा जिनेवा समझौता ‘बीमार तथा घायल सैनिकों और नाविकों’ पर लागू होता है। इनमें घायल सैनिकों और बीमारों के साथ-साथ चिकित्साकर्मियों तथा परिवहन की सुरक्षा से संबंधित प्रावधान शामिल हैं। तीसरा जिनेवा समझौता युद्धबंदियों पर लागू होता है, जबकि, चौथा जिनेवा समझौता युद्ध के दौरान कब्जे वाले क्षेत्रों के लोगों पर लागू होता है। तीसरे समझौते में युद्धबंदियों के लिए पर्याप्त भोजन और पानी सहित कैदियों के साथ मानवीय व्यवहार का भी प्रावधान है। चौथा समझौता यातना देने और बंधक बनाने पर रोक लगाता है, साथ ही यह समझौता चिकित्सा देखभाल और अस्पतालों से संबंधित प्रावधान भी करता है।
दरअसल, जिनेवा समझौता का इतिहास व्यापक भी रहा है। 1862 में युद्धों की भयावह तस्वीर पर प्रकाशित अपनी पुस्तक, ए मेमोरी ऑफ सोलफेरिनो (A Memory of Solferino) में, इसके लेखक हेनरी ड्यूनेंट (Henry Dunant) को अपने युद्धकालीन अनुभवों ने, एक विशेष प्रस्ताव रखने के लिए प्रेरित किया था, जिसमें उन्होंने दो सुझाव दिए- पहला युद्ध के समय मानवीय सहायता के लिए एक स्थायी राहत निकाय की स्थापना की जाए। दूसरा एक ऐसी सरकारी संधि की जाए, जो उस निकाय की तटस्थता को मान्यता दे और उसे युद्ध क्षेत्र में सहायता प्रदान करने की अनुमति भी दे। पहले प्रस्ताव के परिणामस्वरूप जिनेवा में रेडक्रॉस (Red Cross) की स्थापना हुई। जबकि, दूसरे प्रस्ताव ने, 1864 के ‘जिनेवा समझौते’ का नेतृत्व किया, जो युद्ध के संदर्भ में पहली संहिताबद्ध अंतर्राष्ट्रीय संधि थी। इसमें युद्ध के मैदान में बीमार और घायल सैनिकों को शामिल किया गया था। फिर 22 अगस्त 1864 को, स्विट्जरलैंड की सरकार ने सभी यूरोपीय (European) देशों के साथ-साथ संयुक्त राज्य अमेरिका (United States of America), ब्राजील (Brazil) और मैक्सिको (Mexico) आदि सोलह देशों की सरकारों को एक आधिकारिक राजनयिक सम्मेलन में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया। तब, 22 अगस्त 1864 को, इस सम्मेलन ने “सेनाओं में घायलों की स्थिति में सुधार के लिए” पहला जिनेवा समझौता अपनाया। 12 राज्यों और साम्राज्यों के प्रतिनिधियों ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए। 20 अक्टूबर 1868 को “युद्ध में घायलों की स्थिति से संबंधित अतिरिक्त अनुच्छेद” के साथ, 1864 के समझौते के कुछ नियमों को स्पष्ट करने और उन्हें समुद्री युद्ध तक विस्तारित करने का प्रयास शुरू किया गया। हालांकि, यह एक असफल प्रयास रहा। फिर, 6 जुलाई 1906 को स्विट्जरलैंड सरकार द्वारा बुलाए गए एक सम्मेलन में, “सेनाओं में घायल और बीमारों की स्थिति में सुधार के लिए समझौता” अपनाया गया, जिसमें पहली बार 1864 के समझौते में सुधार किया गया।
इसके बाद, 1929 के सम्मेलन में दो समझौते हुए, जिन पर 27 जुलाई 1929 को हस्ताक्षर किए गए थे। एक, “युद्धक्षेत्र में सेनाओं के घायल और बीमार सैनिकों की स्थिति में सुधार के लिए समझौता”, 1864 के मूल समझौते को बदलने वाला तीसरा संस्करण था। जबकि, दूसरे समझौते को प्रथम विश्व युद्ध के अनुभवों के बाद अपनाया गया था।
परंतु, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद मानवतावादी और शांतिवादी उत्साह की लहर दौड़ने लगी व नूरमबर्ग (Nuremberg) तथा टोक्यो (Tokyo) की दुखद घटनाओं द्वारा प्रकट किए गए युद्ध अपराधों के प्रति आक्रोश से प्रेरित होकर कुछ सम्मेलन आयोजित किए गए। अतः 1949 में पूर्व जिनेवा और हेग सम्मेलनों (Hague Conventions) की पुष्टि, विस्तार और अद्यतन करने के लिए सम्मेलनों की एक श्रृंखला आयोजित की गई। इससे चार अलग-अलग समझौते सामने आए। पहला जिनेवा समझौता “युद्धक्षेत्र में सशस्त्र बलों में घायल और बीमार सदस्यों की स्थिति में सुधार के लिए” मूल 1864 समझौते का चौथा अद्यतन था। दूसरा जिनेवा समझौता “समुद्र में, सशस्त्र बलों के घायल, बीमार और क्षतिग्रस्त जहाजों के सदस्यों की स्थिति में सुधार के लिए” था। यह पीड़ितों की सुरक्षा पर पहला जिनेवा समझौता था। तीसरे जिनेवा समझौते में “युद्धबंदियों के साथ व्यवहार के संबंध में” प्रावधान थे। इन तीन समझौतों के अलावा, सम्मेलन ने “युद्ध के समय में आम नागरिको की सुरक्षा के संबंध में” एक नया विस्तृत चौथा जिनेवा समझौता भी जोड़ा था।
समझौतों के प्रावधानों में विकास के साथ, इसमें 1977 में दो प्रोटोकॉल (Protocol) या औपचारिक शिष्‍टाचार अपनाए गए। इन्होंने सम्मेलन के प्रावधानों की अतिरिक्त सुरक्षा के साथ, 1949 सम्मेलन की शर्तों को बढ़ाया। 2005 में, रेड क्रिस्टल (Red Crystal) की स्थापना करते हुए, एक तीसरा संक्षिप्त प्रोटोकॉल भी जोड़ा गया।
जिनेवा समझौते के साथ ही, दुनिया में युद्ध के संदर्भ में एक अंतरराष्ट्रीय कानून भी है। ‘अंतर्राष्ट्रीय मानवतावादी कानून’ (International Humanitarian Law) कुछ विशिष्ट नियमों की श्रृंखला है, जो मानवीय कारणों से उत्पन्न सशस्त्र संघर्ष के प्रभावों को सीमित करने का प्रयास करता है। यह उन व्यक्तियों की भी रक्षा करता है, जो लड़ाई में भाग नहीं लेते हैं, फिर भी युद्ध से प्रभावित होते हैं। अंतर्राष्ट्रीय मानवतावादी कानून को ‘युद्ध का कानून’ या ‘सशस्त्र संघर्ष का कानून’ के रूप में भी जाना जाता है। और यह जिनेवा समझौते तथा इसके अतिरिक्त प्रोटोकॉल और प्रथागत अंतरराष्ट्रीय कानून से बना है। यह केवल सशस्त्र संघर्ष की स्थिति में ही लागू होता है।
अंतर्राष्ट्रीय मानवतावादी कानून, सुरक्षा की दो प्रणालियां प्रदान करता है:
1. अंतर्राष्ट्रीय सशस्त्र संघर्ष के लिए
2. गैर-अंतर्राष्ट्रीय सशस्त्र संघर्ष के लिए
अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून का एक बड़ा हिस्सा 1949 के चार जिनेवा समझौतों में निहित है। इसका सार्वभौमिक संहिताकरण उन्नीसवीं सदी में शुरू हुआ था। और अब, दुनिया का लगभग हर राज्य एवं राष्ट्र इससे बाध्य होने के लिए सहमत हो गया है। दरअसल, अंतर्राष्ट्रीय मानवतावादी कानून प्राचीन सभ्यताओं और धर्मों के नियमों में ही निहित है, क्योंकि, युद्ध हमेशा से ही कुछ सिद्धांतों और रीति-रिवाजों के अधीन रहा है। और आज आधुनिक युग में, इस कानून के नियम मानवीय सुरक्षा चिंताओं और राज्यों या राष्ट्रों की सैन्य आवश्यकताओं के बीच सावधानीपूर्वक संतुलन बनाते हैं।

संदर्भ
https://tinyurl.com/29nsy48w
https://tinyurl.com/58cvysvm
https://tinyurl.com/2p89rrmz
https://tinyurl.com/yc5n63pu

चित्र संदर्भ
1. जिनेवा कन्वेंशन के दौरान के दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
2. जिनेवा कन्वेंशन 1864 को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. युद्ध में घायल सैनिक को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
4. पहले प्रस्ताव के परिणामस्वरूप जिनीवा में रेडक्रॉस (Red Cross) की स्थापना हुई। को दर्शाता एक चित्रण (Wallpaper Flare)
5. अपने घायल साथी को बचाते सैनिकों को दर्शाता एक चित्रण (Free Vectors)
6. जिनेवा कन्वेंशन को स्वीकृत किए हुए देशों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)



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