रामपुर के पास खोजे गए कुषाण सिकके व् इंडो-पार्थियन साम्राज्य में भगवान शिव की महिमा

धर्म का युग : 600 ई.पू. से 300 ई.
14-08-2023 10:42 AM
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रामपुर के पास खोजे गए कुषाण सिकके व् इंडो-पार्थियन साम्राज्य में भगवान शिव की महिमा

"गड़े मुर्दे उखाड़ने का कोई फायदा नहीं होता है।" लेकिन आपको कहीं पर गड़े सिक्के मिल जाएं तो समझिये आपकी लॉटरी (Lottery) लग गई। ये सिक्के हम सभी को भारत की ऐतिहासिक जीवनशैली से जुड़े अहम् सुराग प्रदान कर सकते हैं। हाल ही में हमारे रामपुर के पास भी कुषाण युग के सिक्के खोजे गए हैं। आज के इस लेख में हम इंडो-पार्थियन शासक (Indo-Parthian Rulers), गोंडोफेरेस (Gondophares) के शासनकाल के दौरान निर्मित सिक्कों का विश्लेषण करके यह पता लगाने की कोशिश करेंगे कि, ये सिक्के आज से 2000 साल पहले की जीवनशैली से जुड़े कौन से राज़ उजागर करते हैं? इंडो-पार्थियन साम्राज्य, गोंडोफेरेस नामक एक शासक द्वारा स्थापित एक पार्थियन साम्राज्य था। यह साम्राज्य 19 ईस्वी से 226 ईस्वी तक सक्रिय था। अपने शासनकाल के दौरान इस साम्राज्य के शासकों ने पूर्वी ईरान, अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों और भारत के कुछ हिस्सों (आज के पाकिस्तान के अधिकांश और उत्तर-पश्चिमी भारत के कुछ हिस्से) को नियंत्रित कर दिया था। कई इतिहासकार मानते हैं कि, इस साम्राज्य के शासक संभवतः सुरेन परिवार से संबंधित थे, इसीलिए कुछ जानकार इनके राज्य को "सुरेन साम्राज्य" भी कहते हैं। इस साम्राज्य की शुरुआत 19/20 ईस्वी में तब हुई जब गोंडोफेरेस नाम का एक नेता पार्थियन साम्राज्य नामक एक अन्य बड़े साम्राज्य से अलग हो गया। इसके बाद वह इंडो-सीथियन और इंडो-ग्रीक (Indo-Scythian And Indo-Greek) जैसे कई अन्य साम्राज्यों पर हमला करते हुए, पूर्व की भूमि को जीतने के लिए आगे बढ़ा। देखते ही देखते उसका साम्राज्य विशाल और अत्यंत मजबूत हो गया। गोंडोफेरेस प्रथम के साम्राज्य में ड्रैंगियाना (Drangiana), अराकोसिया (Arachosia) और गांधार (Gandhara) जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र भी जुड़ गए थे, जो अब पाकिस्तान और अफगानिस्तान का हिस्सा हैं। गोंडोफ़ेरेस एक कुलीन परिवार में जन्मा था और इंडो-सीथियनों (Indo-Scythians) द्वारा राजकाज में व्यवधान पैदा करने के बाद उसने नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया। उसने तक्षशिला को अपनी राजधानी बनाया। हालाँकि, गोंडोफेरेस का भावी साम्राज्य बहुत अधिक मजबूत नहीं था और उसके निधन के बाद वह भी टूटने लगा। गोंडोफेरेस के शासनकाल के बाद, उनके भतीजे अब्दगासेस प्रथम (Abdagases I) ने गांधार पर शासन किया। गोंडोफेरेस के बाद कई लोगों ने कुशल शासक बनने की कोशिश की। उन्होंने साम्राज्य के विभिन्न हिस्सों में शासन किया, लेकिन उनका समग्र साम्राज्य भी गोंडोफेरेस प्रथम के बराबर शक्तिशाली नहीं हो सका और इनमें से कोई भी शासक गोंडोफेरेस प्रथम जैसी मजबूत स्थिति को वापस नहीं ला सका। पहली शताब्दी ईस्वी के मध्य के आसपास, कुषाण शासक कुजुला कडफिसेस (Kujula Kadphises) के नेतृत्व में कुषाण साम्राज्य ने इंडो-पार्थियन साम्राज्य के उत्तरी भाग पर नियंत्रण करना शुरू कर दिया। इसके बाद भारत में इंडो-पार्थियन की शक्ति बहुत कम हो गई। कुषाण साम्राज्य ने इंडो-पार्थियनों पर आक्रमण करके उनकी बहुत सारी भूमि छीन ली।आखिरकार इंडो-पार्थियन सकास्तान (Afghanistan, Pakistan, Iran) जैसे कुछ स्थानों तक ही सीमित रह गए। अंततः 224/5 CE के आसपास इन्हें एक अन्य शक्तिशाली साम्राज्य, सासैनियन साम्राज्य (Sasanian Empire) द्वारा पूरी तरह से पराजित कर दिया गया। यदि हम इनकी उपलब्धि की बात करें तो अपने सुनहरे दिनों में इंडो-पार्थियन साम्राज्य को पाकिस्तान के मर्दन में तख्त-ए-बही मठ नामक एक विशेष बौद्ध स्थल के निर्माण के लिए जाना जाता हैं। आज इसे यूनेस्को द्वारा भी एक विशेष स्थान के रूप में मान्यता दी गई है। इसके अलावा आज भी समय-समय पर सबसे शक्तिशाली इंडो-पार्थियन शासक गोंडोफेरेस प्रथम के समय के कई सिक्के मिलते रहते हैं। इनमें से कुछ सिक्कों में हिंदू देवता भगवान शिव की प्रतिमा भी उकेरी गई हैं। ऐसा माना जाता है कि इंडो-पार्थियनों ने पारसी धर्म का पालन किया था, क्योंकि वे ईरानी मूल के थे। इंडो-पार्थियनों ने अपने निजी सिक्के जारी किये थे जो आम तौर पर ग्रीक मुद्राशास्त्र के अनुरूप दिखाई देते थे। किसी भी साम्राज्य के सिक्के, एक महत्वपूर्ण पुरातात्विक कलाकृति माने जाते हैं जो किसी भी सभ्यता की संस्कृति और ऐतिहासिक संदर्भ में महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। उदाहरण के तौर पर गोंडोफेरेस प्रथम और अन्य इंडो-पार्थियन शासकों के सिक्कों में भी हमें उस समय के उनके समाज के धार्मिक तथा सांस्कृतिक पहलुओं की झलक दिखाई देती है। उनके सिक्के गोल, चाँदी के बने और डिज़ाइन वाले होते थे। आइये उस दौर के कुछ सिक्कों पर एक नजर डालें: ऊपर दिए गए इस पुराने सिक्के, पर (लगभग 30-50 ईस्वी) इंडो-पार्थियन राजा गोंडोफेरेस का चित्र अंकित है। आप दाहिनी ओर घोड़े पर बैठे राजा की तस्वीर देख सकते हैं। वहीं दूसरी ओर, त्रिशूल धारण किए हुए भगवान शिव की एक तस्वीर उकेरी गई है। इसी प्रमाण से पता चलता है कि गोंडोफेरेस तथा उनकी प्रजा भी हिंदू देवता भगवान् शिव का सम्मान करते थे या उन्हें पसंद करते थे। ऊपर दिए गए गोंडोफेरेस के इस सिक्के पर ग्रीक देवी नाइके (Nike) की छवि है, और उस पर ग्रीक और खरोष्ठी दोनों लिपियों में शिलालेख हैं। ग्रीक-खरोष्ठी टेट्राड्राचम नामक इस अलग सिक्के में, गोंडोफ़ेरेस को ग्रीक देवता ज़ीउस (Zeus) को श्रद्धांजलि देते हुए दिखाया गया है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/yckv5mah
https://tinyurl.com/4hrmavaj

चित्र संदर्भ
1. तक्षशिला में आयनिक स्तंभों वाले हेलेनिस्टिक मंदिर की व्याख्या आमतौर पर इंडो-पार्थियन काल के पारसी अग्नि मंदिर के रूप में की जाती है। को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. कुषाण राजा वासुदेव द्वितीय के सिक्के को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. इंडो-पार्थियन साम्राज्य के संस्थापक गोंडोफेरेस को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. प्राचीन बौद्ध मठ तख्त-ए-बही (एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल) जिसका निर्माण इंडो-पार्थियनों द्वारा किया गया था। को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. अपने एक सिक्के पर गोंडोफेरेस के चित्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. एक पुराने सिक्के, पर (लगभग 30-50 ईस्वी) इंडो-पार्थियन राजा गोंडोफेरेस का चित्र अंकित है। को दर्शाता एक चित्रण (franpritchett)
7. गोंडोफेरेस के इस सिक्के पर ग्रीक देवी नाइके (Nike) की छवि है, और उस पर ग्रीक और खरोष्ठी दोनों लिपियों में शिलालेख हैं। को दर्शाता एक चित्रण (franpritchett)
8. ग्रीक-खरोष्ठी टेट्राड्राचम नामक इस अलग सिक्के में, गोंडोफ़ेरेस को ग्रीक देवता ज़ीउस (Zeus) को श्रद्धांजलि देते हुए दिखाया गया है। को दर्शाता एक चित्रण (franpritchett)



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