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हमारे देश को आजादी मिलने से पहले हमारे शहर रामपुर में नवाबों का एक अलग ही रुतबा था। आज रामपुर में नवाबी दौर भले ही खत्म हो चुका है, लेकिन, उस दौर में निर्मित ऐतिहासिक इमारतें आज भी बुलंदी से मजबूत खड़ी हैं। ऐसी ही एक इमारत रामपुर रेलवे स्टेशन के पास भी है। दरअसल, यह इमारत, कभी नवाबों का अपना निजी रेलवे स्टेशन हुआ करती थी, जहां हर समय ट्रेन की दो विशेष एवं निजी बोगियां तैयार खड़ी रहती थी। इसे “नवाब स्टेशन” के नाम से जाना जाता है। जब भी नवाब परिवार के किसी सदस्य को दिल्ली, लखनऊ आदि जगहों पर आना–जाना होता था, तब वे अपने महल से सीधे नवाब रेलवे स्टेशन पहुंच जाते थे। वहां से गंतव्य पर जाने वाली किसी ट्रेन में उनकी बोगियां जोड़ दी जाती थीं। नवाबों की बोगियां काफ़ी विलासी थी, और उन्हें सैलून(Saloon) भी कहा जाता था, जिसका शाब्दिक अर्थ ‘बड़ा दालान’ है।
रामपुर के नौवें नवाब हामिद अली खां के दौर में जब हमारे जिले से रेलवे लाइन बिछाई गई थी,तब उन्होंने मुख्य रेलवे स्टेशन के करीब ही अपने लिए एक अलग, निजी स्टेशन बनवाया था। रामपुर स्टेशन पर कोई ट्रेन आने पर, नवाबों की बोगियां उसमें जोड़ दी जाती थी। हमारे देश को आजादी मिलने के बाद भी, कुछ वर्ष नवाब अपनी बोगियों में सफर करते रहे। लेकिन, बाद में सरकारी नियमों के चलते उनके इस तरह के प्रवास पर रोक लग गई। इसके बाद नवाब परिवारों के बीच संपत्ति को लेकर विवाद खड़ा हो गया। इसके चलते, उचित देखरेख न होने के कारण, नवाब रेलवे स्टेशन की चमक फीकी पडऩे लगी। और इस कारण कभी शाही अंदाज में सजी रहने वाली इन बोगियों में आज जंग लग चुका है। बोगियों के दरवाजों पर ताले जड़े हुए हैं। इसी तरह, आज नवाब स्टेशन भी खंडहर बन चुका है।
रामपुर में नवाब स्टेशन आज बदहाल हो चुका है। लेकिन, इसका स्वर्णिम इतिहास हमारे दिलों में आज भी रोमांच और सम्मान पैदा करता हैं। इतिहास के पन्ने उलटने से इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि, इस क्षेत्र में वर्ष 1894 में रेलवे सेवा शुरू हुई थी। ‘अवध और रोहिलखंड रेलवे(Oudh &RR)’ ने यहां ट्रेन सेवा शुरू की थी। फिर, वर्ष 1925 में ईस्ट इंडिया कंपनी(East India Company)अर्थात अंग्रेज सरकार ने हमारे देश में रेल सेवा का संचालन अपने हाथ ले लिया। हालांकि, उसी वर्ष नवाब हामिद अली ने चालीस किलोमीटर की निजी रेलवे लाइन बिछवाई थी। इस रेलवे लाइन पर कुलतीन, अर्थात रामपुर नवाब रेलवे स्टेशन, उससे कुछ दूरी पर स्थित रामपुर रेलवे स्टेशन और फिर मिलक स्टेशन बनवाए गए थे।
रामपुर का मुख्य रेलवे स्टेशन आम लोगों के लिए था। 1930 में नवाब हामिद अली की मृत्यु हो गई। इसके बाद, नवाब रजा अली खां ने नवाबों के रियासत की बागडोर संभाली थी। वर्ष 1949 में रेलवे भारत सरकार के अधिकार में चली गई। और अतः वर्ष 1954 में नवाब ने रामपुर रेलवे स्टेशन तथा उनके दो सैलून भारतीय रेलवे को उपहार के तौर पर दे दिए।
आइए जानते हैं कि,रामपुर रेलवे लाइन कैसे बिछाई गई थी।वाराणसी शहर कोरेल मार्ग द्वारा लखनऊ से जोड़ने के बाद, अवध और रोहिलखंड रेलवे ने लखनऊ शहर के पश्चिम क्षेत्र में काम करना शुरू कर दिया। 1872 में लखनऊ से संडीला और फिर हरदोई तक रेलवे लाइन का निर्माण पूरा हुआ। जबकि, बरेली तक रेलवे लाइन 1873 में पूरी हुई। मुरादाबाद को चंदौसी से जोड़ने वाली एक रेलवे लाइन भी 1872 में बनाई गई थी और इसे ही 1873 में बरेली तक बढ़ा दिया गया। फिर कुछ वर्षों पश्चात, 1894 में बरेली-मुरादाबाद कॉर्ड का निर्माण पूरा हुआ। पूर्व मुख्य रेलवे लाइन चंदौसी लूप बन गई और रामपुर के माध्यम से मुख्य लाइन बनाई गई। साथ ही, 1894 में लाइन की एक शाखा का निर्माण किया गया, जो चंदौसी को अलीगढ़ से जोड़ती थी।
अवध और रोहिलखंड रेलवे की पिछली मुख्य लाइन लखनऊ से शाहजहाँपुर, बरेली, चंदौसी और मुरादाबाद होते हुए सहारनपुर तक जाती थी। फिर, 4 दिसंबर 1891 को रामपुर के रास्ते स्वीकृत किए गए बरेली-मुरादाबाद कॉर्ड को 8 जून 1894 को खोला गया। 1 दिसंबर को मुख्य लाइन को आधिकारिक तौर पर कॉर्ड की ओर मोड़ दिया गया।जबकि, पिछली मुख्य लाइन अलीगढ़ जंक्शन और एक स्थानीय शाखा लाइन के साथ चंदौसी लूप बन गई।
हमारा रामपुर रेलवे स्टेशन लखनऊ-मुरादाबाद लाइन और काठगोदाम रेलवे लाइन के जंक्शन बिंदु पर स्थित है। यह स्टेशन उत्तर पूर्व रेलवे के अंतर्गत काम करता है और उत्तर रेलवे द्वारा संचालित है। मुरादाबाद रेलवे स्टेशन रामपुर के पश्चिम में 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसके दक्षिण-पूर्व की ओर,निकटतम प्रमुख स्टेशन बरेली रेलवे स्टेशन है।
अवध और रोहिलखंड रेलवे,गंगा नदी के उत्तर में, बनारस से लेकर दिल्ली तक एक फैला हुआ एक व्यापक रेलवे जल था। अवध और रोहिलखंड रेलवे का गठन 1872 में इंडियन ब्रांच रेलवे कंपनी(Indian Branch Railway Company) की संपत्ति और सरकारी गारंटी से किया गया था। परंतु फिर,1 जुलाई 1925 को अवध और रोहिलखंड रेलवे का पूर्व भारतीय रेलवे में विलय कर दिया गया। दूसरी ओर, रोहिलखंड व कुमाऊँ रेलवे(R&KR) भारत में मीटरगेज रेलवे(Metre gauge railway) कंपनी थी, जिसका जल कुल 953 किलोमीटर में फैला था। परंतु, 1 जनवरी 1943 को इसे भारत सरकार को हस्तांतरित कर दिया गया। तभी अवध व तिरहुत रेलवे में इसका विलय हो गया।
क्या आप जानते हैं कि,अब मारेरामपुर रेलवे स्टेशन के साथ ही देश के अन्य 500 रेलवे स्टेशनों का ‘अमृत भारत स्टेशन योजना’ के तहत सौंदर्यीकरण किया जा रहा हैं। हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने अभी 6 अगस्त को इस योजना का ऑनलाइन शिलान्यास किया है। यात्रियों को बेहतर सुविधाएं देने हेतु,इन रेलवे स्टेशनों का आधुनिकीकरण एवं सौंदर्यीकरण किया जा रहा हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/4fx6jeza
https://tinyurl.com/y28unr9h
https://tinyurl.com/y49d4ccs
https://tinyurl.com/nhce5z7s
https://tinyurl.com/y6rccu5m
चित्र संदर्भ
1. उत्तर प्रदेश के रामपुर में स्टेशन भवन और प्लेटफार्म की तस्वीर को दर्शाता चित्रण (Prarang)
2. रामपुर में एक अस्तबल को दर्शाता चित्रण (Prarang)
3. रामपुर के नौवें नवाब, हामिद अली खां और ट्रेन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia, Pxfuel)
4. 1854 में ईस्ट इंडियन रेलवे की पहली ट्रेन - को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
5. अवध और रोहिलखंड रेलवे की भाप चलित रेल को दर्शाता चित्रण (PICRYL)
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