वर्तमान का भारत और इसके 1947 के बाद अपने इस स्वरूप में आये अन्यथा यह कई विभिन्न रजवाड़ों में विभाजित था। सभी रजवाड़ों की अपनी एक भूमि निर्धारित होती थी तथा उनका अपना एक चिन्ह होता था। प्रत्येक रजवाड़ों का अपना एक विशिष्ट ध्वज व चिन्ह होता था जिनका अपना एक महत्व व अर्थ होता था। रामपुर राज्य का भी अपना एक विशिष्ट चिन्ह था जिसे चित्र में दिखाया गया है। यदि राज चिन्हों के इतिहास के बारे में देखा जाये तो निम्नलिखित तथ्य सामने आते हैं- भारत में प्रतीक चिन्हों का इतिहास महाजनपद काल तक जाता था जहाँ पर मुख्य रूप से पञ्च प्रकार के प्रतीक चिन्ह पाए जाते थे जिनको हम आहत सिक्कों पर भी देखते हैं, कुम्रहार में मिले अशोक के स्तम्भ में हम इनके आधार चिन्हों का अंकन देख सकते है, विभिन्न राजाओं व चक्रवर्तियों का अपना एक चिन्ह होता था, महाभारत में अर्जुन के रथ के ऊपर के ध्वज पर हनुमान का चिन्ह अंकित था, मध्यकाल में विभिन्न रजवाड़ों के भी ध्वज पर कई चिन्ह दिखाई देते हैं जैसे रामपुर, बड़ौदा, हैदराबाद आदि| महाजनपद काल से ले कर, मुग़ल दरबार तक, राजपूतों का राज हो या छोटे बड़े साम्राज्यों का, ब्रिटिश शासनकाल हो या स्वतंत्रता संग्राम पूरे भारतवर्ष में हमें अलग अलग काल में इस्तेमाल किये चिन्हों एवं उनकी महत्ता के प्रमाण मिलते है। चिन्हों एवं ध्वजों के प्रमाण हमे मूर्तिकला, चित्रकला,किलों के दिवार, राजाओं के महल इत्यादि से प्राप्त होते हैं। उत्तर प्रदेश में अवध, आगरा, वाराणसी, समथर, रामपुर इत्यादि के अलग-अलग ध्वज थे - यह उनके शासन एवं उनकी राज्य को दर्शाता था, यह उनकी ‘पहचान’ एवं उनकी ‘विचारधारा’ का प्रतीक था। चिन्हों का प्रतीक और उनकी महत्ता हम आज भी देख सकते हैं। अंगेजी में इसे हेराल्ड्री बोलते है जिसका मतलब होता है कमान/सेना/शासन। 1. https://www.royalark.net/ 2.http://www.hubert-herald.nl/BhaUttarPradesh.htm#Ramp 3. http://www.flagheritagefoundation.org/pdfs/emblems-of-the-indian-states.pdf
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