रामपुर का योगदान हिन्दी सिनेमा में काफी सराहनीय एवं रोमांचक रहा है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है ‘रामपुरिया चाकू’ जो की 20वीं दशक में काफ़ी लोकप्रिय था। उस दौर के लगभग सारे सिनेमा में अभिनेता और विलेन, रामपुरिया चाकू से लोगों का मन मोहने में सफल रही। 19वीं सदी के शुरुआती दौर में रामपुरिया चाकू सिर्फ हिन्दी सिनेमा में ही नही बल्कि आम जनता में भी काफ़ी लोकप्रिय था - तेज़ धार, छोटे और आकर्षक आकार ने लोगों को खूब आकर्षित किया। ‘चाकू छुरियां तेज़ करा लो’(ज़ंजीर ,1973) गाना अपने ज़माने में सबके ज़ुबान पर रहा। बदलते दौर के साथ सिनेमा का भी रुझान ‘रामपुरिया चाकू’ के प्रति कम हो गया और बीते कुछ सालों में यहाँ की कला को भारतीय सिनेमा में कुछ ख़ास लोकप्रियता नहीं मिली। एक तरफ जहाँ ‘रामपुरिया चाकू’ अपनी पहचान खो रहा था वही दूसरी तरफ ज़री कारिगरी हिन्दी सिनेमा में खूब दिखी। आज रामपुर का योगदान हिन्दी सिनेमा में कुछ ख़ास नहीं रहा लेकिन यहाँ की कला और कारीगरी अभी भी सराहनीय है और बीते कुछ दिनों में यहाँ की साड़ियाँ और कपड़े हिन्दी सिनेमा में एवं आम जनता में काफी प्रसिद्ध हुई।
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