प्रस्तुत चित्र है द स्टेट्समैन अखबार के 1940 के दशक में छपे प्रकाशन का। अखबार में बात की गयी है रामपुर में उस समय हो रहे औद्योगिक विकास की। कहा गया है कि, “वर्तमान शासक के प्रवेश से पहले रामपुर केवल कुछ छोटे कुटीर उद्योगों तक सीमित रहा जैसे चाक़ू, तम्बाकू, कपड़े और रामपुरी टोपी। परन्तु पिछले कुछ वर्षों से हालात बिलकुल बदल चुके हैं और अब रामपुर में औद्योगिक तेज़ी दिखाई पड़ रही है। अब की नीति ऐसे उद्योगों को प्रोत्साहन देती है जो न केवल शहरी नागरिकों के लिए रोजगार पैदा करे बल्कि जो ग्रामीण क्षेत्र के कृषि उत्पादन के लिए भी लाभदायी हो। रामपुर का पहला उद्योग था रज़ा शुगर कंपनी लिमिटेड जो गन्ने का उद्योग करता था।"
आगे बताया गया है कि, “पिछले दो से तीन वर्षों से औद्योगिक विकास और भी तीव्र रहा है। रज़ा टेक्सटाइल्स लिमिटेड की स्थापना 1938 में की गयी और विश्व युद्ध के कारण आयी कठिनाईयों के बावजूद भी यह कारखाना काफी सफल रूप से चल रहा है।" इसके अलावा रामपुर के और भी सफल उद्योगों की चर्चा की गयी है जैसे माचिस, फल, सेना के तम्बू और उपकरण, तेल, बरफ, मोटर कार के भाग, कागज़ आदि। इसके साथ ही बढ़ते उद्योग के समर्थन के लिए एक बड़ा बिजली घर भी बनवाया गया था जिसका ज़िक्र भी किया गया है। आगे लिखा गया है, “कुटीर उद्योग में दरी, कालीन आदि भी बनाये जा रहे हैं जो स्थानीय बुनकरों द्वारा बुने जाते हैं। इन बुनकरों को बेहतर कारीगरी और तकनीक सिखाई जाती है तथा इनके बनाये उत्पादों का विपणन उद्योग विभाग द्वारा रामपुर एवं नैनीताल में किया जाता है। चाकू उद्योग क्षेत्र अब सेना के लिए भी उत्पादन कर रहा है।”
उस समय की शिक्षा की स्थिति को स्पष्ट करते हुए लिखा गया है, “औद्योगिक विकास के साथ साथ शैक्षिक नीति की भी पुनर्रचना की जा रही है। 150 से अधिक छात्र जिन्हें वेतन प्रदान किया जा रहा है, उन्हें साथ ही तकनीकी संस्थानों में शिक्षा भी प्रदान की जा रही है और जल्द ही हर आंठवी पास छात्र को यह शिक्षा उपलब्ध कराई जाएगी ताकि वे अपनी शिक्षा के सांस्कृतिक पक्ष की उपेक्षा किये बिना शिल्प उद्योग के सहारे अपनी रोज़ी रोटी कमा सकें।”
अख़बार को अच्छी तरह से पढ़ने के बाद यह तो सिद्ध हो जाता है कि अतीत में रामपुर भारत में उद्योग का एक काफी महत्वपूर्ण केंद्र था। परन्तु सवाल यह है कि क्या रामपुर ने अपना वह स्थान बरक़रार रखा है? जवाब है नहीं। आज रामपुर की कला और शिल्प मरती जा रही है। कला को अच्छी तरह से समझने वाले कारीगर अब बहुत कम बचे हैं और उनकी यह कला आगे की पीढ़ियों को नहीं सौंपी जा रही है। यदि इस बात पर गौर किया जाए और गहराई से समझा जाये तो अभी भी देर नहीं हुई है। आज भी रामपुर में भारत के सबसे बड़े औद्योगिक शहरों में गिने जाने की क्षमता है।
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