उल्टे बाँस बरेली’ की प्रसिद्ध कहावत अब सच होती जा रही है-आखिर क्यों?

वृक्ष, झाड़ियाँ और बेलें
27-03-2023 11:20 AM
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उल्टे बाँस बरेली’ की प्रसिद्ध कहावत अब सच होती जा रही है-आखिर क्यों?

आपने एक प्रसिद्ध कहावत “उल्टे बाँस बरेली” के बारे में तो सुना ही होगा, जो बरेली की प्रसिद्ध बाँस हस्तकला उद्योग को दर्शाती है। यहां पर बांस के अनेकों पेड़ मौजूद हैं, जिस वजह से बांस के विभिन्न उत्पाद यहां देखने को मिलते हैं। किंतु अब विभिन्न उत्पादों के निर्माण के लिए बांस का अत्यधिक दोहन किया जा रहा है, जिसके कारण क्षेत्र में एक ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है, कि क्षेत्र को अब असम और उत्तर पूर्व से बाँस और बेंत के कच्चे माल का आयात करना पड़ रहा है। हालांकि, क्षेत्र में अधिक बांस उत्पादन के लिए कुछ वर्ष पूर्व सरकार द्वारा “राष्ट्रीय बांस मिशन” योजना शुरू की गई थी, जिसके अंतर्गत बरेली, पीलीभीत और उत्तर प्रदेश के कुछ अन्य जिलों में निजी भूमि मालिकों को प्रोत्साहित और सरकारी भूमि को उपलब्धकिया जा रहा है, ताकि बांस के वन क्षेत्र को बढ़ाया जा सके। लेकिन बांस के उत्पादन को बढ़ाने के लिए अभी भी बहुत कुछ किए जाने की आवश्यकता है। उत्तर प्रदेश में दैनिक जीवन में बेंत और बांस से बनी वस्तुओं जैसे घरेलू उपकरणों, घरों के निर्माण का सामान, बुनाई का सामान, संगीत वाद्ययंत्र आदि के निर्माण में बांस का अत्यधिक उपयोग किया जाता है। बांस से विभिन्न सामानों को बनाने वाले इस शिल्प में किसी भी यांत्रिक उपकरण का उपयोग नहीं किया जाता है। यह शिल्प पारंपरिक रूप से खेती करने वालों को अंशकालिक रोजगार भी प्रदान करता है, चूंकि जिस समय खेती का समय नहीं होता है, लोग इसके शिल्प कार्य में संलग्न हो जाते हैं। हालांकि अनेकों लोग ऐसे भी हैं, जो पूर्णकालिक रोजगार के रूप में इस शिल्प के साथ जुड़े हुए हैं। बाँस से निर्मित की जाने वाली टोकरियां उपयोग के अनुसार अनेक प्रकार और आकार में बनाई जाती हैं। बाँस की टोकरियाँ बुनने का काम आमतौर पर घर के पुरुषों का होता है। प्रत्येक जिले की अपनी विशिष्ट शैली होती है, तथा शैली के अनुसार उत्पाद भी अलग-अलग होते हैं। सामान्य, शंक्वाकार टोकरियों का उपयोग जहां सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए किया जाता है, तो वहीं वर्गाकार या गोल तल वाली टोकरियों का उपयोग भंडारण के लिए किया जाता है। बांस की एक टोकरी का उदाहरण उत्तर प्रदेश की सिल्चर टोकरी भी है। इसका आधार वर्गाकार होता है, जो कि अंदर की ओर से मुड़ा होता है, ताकि वर्गाकार तल के कोने एक सहारे या संबल के रूप में कार्य करें। इसका उपयोग प्रायः सुपारी रखने के लिए किया जाता है। बांस की टोकरी का एक अन्य उदाहरण बोडो है, जो एक सांचे की मदद से बनाई जाती है। सांचे का उपयोग मुख्य रूप से टोकरी की गर्दन और मुंह को आकार देने के लिए किया जाता है। बांस उत्पाद का एक अन्य उदाहरण जापी है, जिसका उपयोग पारंपरिक धूप से बचाव के संसाधनों जैसे छाता आदि को बनाने के लिए किया जाता है। इसका उपयोग तब से किया जा रहा है, जब महान चीनी यात्री ह्वेन त्सांग (Hiuen Tsang) असम आए थे। यहां आगंतुकों का स्वागत रंगीन डिजाइन और रूपांकनों वाले जापियों से किया जाता है । बेंत और बांस से गुड़िया और खिलौने भी बनाए जाते हैं। मानव और जानवरों की आकृतियों के अलावा, शॉटगन और संगीत वाद्ययंत्र भी बांस से तैयार किए जाते हैं। बांस से छाते के हैंडल भी बनाए जाते हैं। उत्तर प्रदेश में बांस का अत्यधिक उत्पादन होता है, इसलिए यहां इसके सुंदर उत्पादों की एक विशाल विविधता देखने को मिलती है। बेंत और बांस से विभिन्न प्रकार के फर्नीचर भी तैयार किये जाते हैं। बेंत और बाँस को स्वच्छ और पवित्र माना जाता था, इसलिए इससे बने उत्पादों का उपयोग धार्मिक उद्देश्यों के लिए भी किया जाता है। वर्तमान समय में बरेली में बांस से पतंग की तीलियों का निर्माण किया जा रहा है। इन तीलियों की मांग भारत के अन्य क्षेत्रों सहित हॉलैंड (Holland), अमेरिका (America), ऑस्ट्रेलिया (Australia) आदि जैसे विभिन्न देशों में भी है। पतंग की तीलियों के अलावा आज बांस के फोल्डिंग पलंग भी आकर्षण का केंद्र बन रहे हैं, जिनकी मांग दुनिया भर में हो रही है। पौधों की एक विशाल विविधता को जन्म व् संरक्षण देने के लिए बरेली के ‘रुहेलखंड विश्वविद्यालय’ में प्लांट एंड साइंस विभाग (Department of Plant and Science) की ओर से एक वनस्पति उद्यान विकसित किया जा रहा है। इसका उपयोग शोध कार्यों के लिए किया जाएगा। यह उद्योग करीब सात एकड़ जमीन पर विकसित हो रहा है। इसमें उन दुर्लभ पौधों को रोपित किया जाएगा, जिन पर शोध से कुछ नई और महत्वपूर्ण जानकारियां हासिल हो सकती हैं। बांस की खेती एवं उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए बरेली शहर की सड़कों पर लगे पेड़ों को वन विभाग प्राइवेट संस्था द्वारा बांस से बने ट्री गार्डो द्वारा संरक्षित करने की मुहिम चलाई जा रही है। इस मुहिम के पहले चरण के तहत 500 बांस से बने ट्री गार्ड बनाए जाएंगे।आमतौर पर ट्री गार्ड लोहे के बने होते हैं किंतु बांस की खेती एवं उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए और इसकी खेती से जुड़े किसानों और उत्पादों से जुड़े कारीगरों को प्रोत्साहन देने के लिए इस मुहिम को चलाया जा रहा है।

संदर्भ:
https://bit.ly/3K3kwNG
https://bit.ly/3LLKLcy
https://bit.ly/3ZhCyA8
https://bit.ly/3TAUZ18
https://rb.gy/odjz9r

चित्र संदर्भ

1. बांस के सामान बनाते कारीगर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. बांस के ढेर को संदर्भित करता एक चित्रण (Pxfuel)
3. बाँस का कंगन बनाने वाले शिल्पकार को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. बांस की टोकरी बुनाई को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)