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सर्दियों में भी तपने लगा है पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश

रामपुर

 30-01-2023 10:50 AM
जलवायु व ऋतु

सर्दियों के दौरान देश के उत्तरी हिस्से के कई शहरों में कोहरे और धुंध के कारण दिन के 12 बजे भी अर्धरात्रि जैसा नज़ारा रहता है। ऐसे में यदि आपको खबर मिले, कि हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के पहाड़ों में गुनगुनी धूप खिली है, तो भला वहां जाकर धूप सेकने का मन किसका नहीं करेगा! हालांकि, शहरवासियों के लिए दिसंबर और जनवरी के बीच पहाड़ो पर धूप सेकना एक सुखद अनुभव हो सकता है, लेकिन कई पर्यावरणविदों और हिमाचल जैसे पहाड़ी क्षेत्रों के मूल निवासियों के लिए यह धूप एक बड़े खतरे की घंटी साबित हो सकती है, क्योंकि सर्दियों के दौरान इन पहाड़ी राज्यों को धूप की नहीं, बल्कि रूईदार बर्फ की नितांत आवश्यकता होती है।
एक सरकारी अध्ययन में पाया गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण हिमाचल प्रदेश के हिमालयी क्षेत्र में बर्फ का आवरण पिछले केवल एक वर्ष में 18% तक कम हो गया है। 2019-20 में हिमाचल प्रदेश का 23,542 वर्ग किमी क्षेत्रफल बर्फ से ढका हुआ था, जो 2020-21 में स्पष्ट तौर पर 3,404 वर्ग किमी या 18.52% की गिरावट के साथ घटकर मात्र 19,183 वर्ग किमी ही रह गया है। वैज्ञानिकों ने हिमाचल प्रदेश में हिमालय के ऊपर के ग्लेशियरों (Glaciers) सहित क्रायोस्फीयर (Cryosphere ), जोकि पृथ्वी के जमे हुए हिस्से हैं, का अध्ययन करने के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग किया। उपग्रह द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों का विश्लेषण दर्शाता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण हिमाचल प्रदेश में हिमपात 18% घट गया है। यदि हिमपात के पैटर्न में इसी प्रकार बदलाव होता है, जैसा कि पिछले कुछ वर्षों में देखा गया है, तो नदियों में पानी की उपलब्धता पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि मौसमी बर्फ का आवरण शुष्क मौसम के दौरान भी नदियों के निर्वहन अर्थात निरंतर बहाव में अहम् योगदान देता है। पिछले साल 26 जनवरी के दिन भी शिमला, मनाली, कसौली, नारकंडा, धर्मशाला, पालमपुर, चंबा और डलहौजी जैसे पर्यटन स्थलों पर धूप खिली हुई थी। इसी तरह के रुझान 2020-21 की सर्दियों के दौरान भी देखे गए थे।
वहीँ गर्मियों में देर से होने वाले हिमपात के पैटर्न अधिक टिकाऊ नहीं माने जाते हैं, क्योंकि यह अधिक गर्मी के कारण तेजी से पिघल जाते हैं। यदि इस तरह के उतार-चढ़ाव के रुझान लंबे समय तक जारी रहते हैं, तो वे मौसम चक्र को भी प्रभावित करेंगे, जिसके परिणामस्वरूप अनियमित बारिश, बर्फबारी और गर्मी और अंततः पानी की भारी किल्लत का सामना करना पड़ सकता है। चिनाब, ब्यास, पार्वती, बसपा, स्पीति, रावी, सतलज जैसी अधिकांश प्रमुख नदियाँ और हिमालय से निकलने वाली उनकी बारहमासी सहायक नदियाँ अपने निर्वहन के लिए मौसमी हिम आवरण पर निर्भर करती हैं।
आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि हिमाचल प्रदेश में सभी चार प्रमुख नदी घाटियों, अर्थात् रावी, सतलुज, चिनाब और ब्यास में 2020-21 में कुल मासिक औसत क्षेत्र में कमी दर्ज की गई है। चिनाब घाटी में बर्फ का आवरण 2019-20 में 7,154.12 वर्ग किमी से गिरकर 2020-21 में 6,515.92 वर्ग किमी रह गया है।
ब्यास घाटी अपने औसत हिम आवरण क्षेत्र के साथ लगभग 19% की कमी दर्शाती है, जो 2457.68 वर्ग किमी से घटकर 2002.04 वर्ग किमी हो गया है। इसके साथ ही रावी घाटी में बर्फ से ढके कुल क्षेत्रफल में 23% की कमी देखी गई। वहीं सतलुज घाटी में हिम आवरण 2,777 वर्ग किमी (23%) सिकुड़ गया।
हालांकि, बर्फ से ढकी चोटियों का मनमोहक दृश्य हिमाचल प्रदेश में पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है, हिमाचल के वृद्ध लोग बताते हैं कि आजकल शिमला और इसके आस-पास के इलाकों में सर्दी उतनी कठोर नहीं होती जितनी 1970 के दशक के अंत तक रहती थी। 1960 से शिमला में रह रहे रमेश सूद कहते हैं कि “धुआं उगलती चिमनियां, जो कभी शहर की पहचान हुआ करती थीं, आज बीते जमाने की बात हो गई हैं।" पिछले वर्ष राज्य की राजधानी से करीब 250 किलोमीटर दूर मनाली में 13 से 21 जनवरी के बीच सिर्फ दो बार ही बर्फबारी हुई थी। वर्तमान में, दुनिया का हर देश तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के लिए काम कर रहा है लेकिन फिर भी परिणाम संतोषजनक नहीं हैं और अनुमान हैं कि इस सदी के अंत तक तापमान 2 डिग्री से अधिक बढ़ सकता है जो कि स्पष्टतौर पर जलवायु आपातकाल का संकेत दे रहा है।
वैश्विक स्तर पर शहरी क्षेत्र भी, तापमान में धीरे-धीरे वृद्धि और गर्मी के स्तर में खतरनाक वृद्धि का अनुभव कर रहे हैं। हाल ही में प्रकाशित लांसेट रिपोर्ट (Lancet Report) में कहा गया है कि भारत में सालाना 7 लाख से अधिक अतिरिक्त मौतें जलवायु परिवर्तन के कारण असमान्य रूप से गर्म और ठंडे तापमान के कारण होती हैं, जिसमें अत्यधिक ठंड की स्थिति के कारण लगभग 655,400 मौतें और चिलचिलाती गर्मी के कारण लगभग 83,700 मौतें होती हैं। हालांकि, पिछले पांच वर्षों के दौरान देश की राजधानी दिल्ली चरम मौसम की घटनाओं की अधिक आवृत्ति और औसत तापमान में कमी का अनुभव कर रही है ।ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के कारण बढ़ते तापमान के वैश्विक रुझान के बावजूद, पिछले पांच वर्षों में दिल्ली के औसत वार्षिक तापमान में 1.3 डिग्री सेल्सियस की गिरावट आई है। यह प्रवृत्ति मुंबई, चेन्नई और कोलकाता जैसे अन्य प्रमुख भारतीय शहरों के विपरीत है, जहां औसत तापमान में वृद्धि देखी गई है। राष्ट्रीय स्तर पर 2005 के बाद से भारत में चरम जलवायु घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता में लगभग 200% की वृद्धि हुई है। शहरों में बढ़ता तापमान और वर्षा पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव मानव स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है। इसलिए सरकार के साथ-साथ यह सभी आम नागरिकों का भी कर्तव्य हो जाता है कि हम जलवायु स्थिति के प्रति कम से कम जागरूक तो रहें! अथवा वह दिन अधिक दूर नहीं है जब पर्यावरणविद भी हाथ खड़े कर देंगे और कह देंगे कि “अब कुछ नहीं हो सकता!"

संदर्भ
https://bit.ly/3Hs007L
https://bit.ly/3XRaBPg
https://bit.ly/3XPiMeQ

चित्र संदर्भ

1. पहाड़ों में चलती गाड़ी को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. भारत के मानचित्र में हिमांचल प्रदेश को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. हिमाचल प्रदेश में शिवालिक पहाड़ियों और मध्य हिमालय के दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. रात में शिमला के दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. पार्वती नदी, कुल्लू जिला, हिमाचल, भारत में बर्फ से ढकी सीमा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)



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