गेंदे के फूलों की धार्मिक अहमियत, और किन वजहों से बढ़ रही है भारत में, इनकी खेती का महत्त्व?

फूलदार पौधे (उद्यान)
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गेंदे के फूलों की धार्मिक अहमियत, और किन वजहों से बढ़ रही है भारत में, इनकी खेती का महत्त्व?

गेंदे के फूल भारतीय जीवन, शादियों और उत्सवों का एक अविभाज्य घटक हैं। माना जाता है कि वे सूर्य का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो चमक और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है। पारंपरिक भारतीय शादियों एवं पूजा आयोजनों की सजावट में पीले और नारंगी गेंदे, दोनों का ही व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। साथ ही, गेंदे के फूलों का आध्यात्मिक अर्थ तथा महत्व सिर्फ हिंदू धर्म में ही नहीं, बल्कि ईसाई धर्म में भी पाया जाता है।
जैसा कि,“तोरण” का अर्थ संस्कृत में प्रवेश द्वार होता है, भारत में ज्यादातर हिन्दू घरों में आम के पत्तों और गेंदे के फूलों की माला को तोरण के रूप में दरवाजे के ऊपर लगाया जाता है। इस माला को दहलीज पर लटकाया जाता है। प्रत्येक उत्सव के अवसर पर इस दरवाजे की माला को बदला जाता है। गेंदे के फूल में कुछ सुरक्षात्मक गुण होते हैं और इन फूलों को तोरण के रूप में उपयोग करने का यह एक महत्वपूर्ण कारण है। इन फूलों में एक तीखी गंध होती है जो कीटों को दूर रखती है और इन गुणों को तो शोधकर्ताओं द्वारा अच्छी तरह से प्रलेखित भी किया गया है। यही कारण हो सकता है कि यह भारत के उष्णकटिबंधीय जलवायु में विशेष रूप से उपयोगी है। यह कीड़ों को मूर्तियों से भी दूर रखता है, और जब हम गेंदे के फूल की माला पहनते हैं, तो हम लोगों से भी कीड़ों को दूर रखता है!तमिल भाषा में, इस फूल को कैमंती (Camanti) के नाम से जाना जाता है। ईसाई धर्म और हिंदू धर्म दोनों में कैलेंडुला (Calendula) जो कि गेंदे के फूल का ही एक प्रकार है, का बहुत अधिक आध्यात्मिक महत्व है। प्रत्येक वर्ष 25 मार्च को यह फूल मदर मैरी को घोषणा के पर्व (Feast of the Annunciation) पर चढ़ाया जाता है। यह वह दिन है जब स्वर्गदूत गेब्रियल (Gabriel) ने मदर मैरी को येशुमसीह (Jesus Christ) के आने की सूचना दी थी। कुछ परंपराओं में इस दिन, दिव्यता की प्रतीक्षा करने के लिए शुभता और धैर्य के प्रतीक के रूप में गमलों में गेंदे के फूल के बीज भी बोए जाते हैं।
हिंदू धर्म में भी यह फूल अच्छाई का प्रतीक माना जाता है। केसरिया या नारंगी रंग त्याग का प्रतीक है और इसलिए समर्पण के प्रतीक के रूप में गेंदे का फूल भगवान को चढ़ाया जाता है। फूल अर्पित करते समय, यह भी याद रखना चाहिए कि गेंदा एक बहुत ही कठोर फूल है और इसका तना मजबूत और सीधा होता है; वास्तव में, गेंदे का संस्कृत भाषा में नाम ‘स्थूलपुष्प’ भी यही अर्थ देता है। यह परमात्मा में विश्वास और बाधाओं को दूर करने की इच्छा का प्रतीक है। यही कारण है कि विजयादशमी के अवसर पर यह फूल इतना महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि उस दिन भगवान श्री राम ने रावण को हराया था। ये फूल भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी से भी जुड़े हुए हैं, जिन्हें हिंदू पौराणिक कथाओं में एक आदर्श जोड़ी माना जाता है।
आधुनिक समय में, इन फूलों को विश्व युद्धों में भाग लेने वाले भारतीय सैनिकों के बलिदानों का प्रतीक माना गया, जब दुनिया ने 11 नवंबर, 2018 को प्रथम विश्व युद्ध के अंत की पहली शताब्दी को चिह्नित किया था। गेंदे के फूल का पौधा सबसे नियमित रूप से लगाए जाने वाले फूलों के पौधों में से एक है।यह पौधा एस्टेरसिया (Asteraceae) परिवार से संबंधित है। गेंदे का ‘टैगेटेस एसपीपी’ (Tagetes spp.) प्रकार भारत में सबसे लोकप्रिय खुला फूल है। यह एक सजावटी फसल, गमले के पौधे और भुदृश्य के हिस्से के रूप में भी लगाया जाता है। हमने ‘गेंदे के फूलों के आध्यात्मिक तथा सांस्कृतिक महत्व’ के बारे में पहले ही पढ़ा है, इसके अलावा भी इस फूल के तमाम उपयोग है। हाल के वर्षों में गेंदा खुले फूल के रूप में बहुत लोकप्रिय हो गया है। सौंदर्य मूल्य के साथ-साथ ही बीज के उद्देश्य के लिए गेंदे की खेती पंजाब राज्य के व्यक्तिगत उत्पादकों के बीच महत्व प्राप्त कर रही है। कुछ उत्पादक गमले के पौधों के रूप में या तो फ्रेंच (French) या अफ्रीकी (African) प्रकार के गेंदे के फूल बेचते हैं। गेंदे का फूल गमले में उत्पादन के लिए एक त्वरित फसल है और उत्पादकों को पौधे की वर्तमान मांग का लाभ उठाने का अवसर प्रदान करता है। और इन्ही वजहों से, भारत में गेंदे के फूलों की खेती का महत्व बढ़ता जा रहा है।
आइए अब,गेंदे के महत्व तथा उसकी बढ़ती मांग को ध्यान में रखते हुए, गेंदे की खेती को बढ़ावा देने की झारखंड राज्य ग्रामीण विकास विभाग की पहल के बारे में पढ़ते है। झारखंड का खूंटी जिला लंबे समय से अफीम की अवैध खेती के लिए बदनाम है, जहां अफीम के व्यापारी ग्रामीणों को मोटी रकम का झांसा देकर अफीम की खेती करने के लिए बाध्य करते हैं। इस खतरे से निपटने के लिए, जिला प्रशासन, पुलिस और एक सामाजिक संगठन – ‘प्रदान’, ने इसके बारे में जागरूकता फैलाने और लोगों को आजीविका के अन्य अवसर प्रदान करने की दिशा में काम करना शुरू कर दिया। ‘प्रदान’ ने पांच साल पहले ग्रामीणों को एक साथ जुटाना शुरू किया और अब वर्षों के प्रयासों के बाद, ग्रामीण किसान धीरे-धीरे अफीम से गेंदे की खेती की ओर बढ़ रहे हैं। आज जिले में वर्तमान में 1,023 परिवार गेंदे की खेती से जुड़े हुए हैं, और उन्होंने जिले के मुरहू, खूंटी, तोरपा और अर्की प्रखंडों में 93 एकड़ जमीन पर गेंदे की खेती की है।
गेंदे की खेती में महिलाओं के आगे बढ़ने के साथ ही, उनके पति भी, जो पहले अफीम की खेती करते थे, अब खेतों की जुताई और अन्य श्रम साध्य काम करके उनकी मदद कर रहे हैं। गेंदे की खेती गांव की महिलाओं को आत्म निर्भर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। पौधों के रोपण से लेकर बाज़ार में माला बनाने और बेचने तक, सब कुछ महिलाओं द्वारा किया जा रहा है। पूर्व अफीम किसान अब गेंदे के फूलों की खेती में खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं। इस तरह हम देखते है कि गेंदे के फूल का हमारी संस्कृति एवं अध्यात्मिक जीवन में क्या महत्व है। साथ ही गेंदे की लोकप्रियता के कारण भी हमने देखे। और इससे हमे पता चलता है कि हमे भारत में गेंदे की खेती को और बढ़ावा देना चाहिए,और इसके लिए कुछ प्रयास किए भी जा रहे है।

संदर्भ
https://bit.ly/3GSPJA9
https://bit.ly/3wg2Ma4
https://bit.ly/3iWslts

चित्र संदर्भ
1. गेंदें के फूल विक्रेताओं को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. गेंदें के फूल को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. गेंदें के फार्म को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. गेंदे के फूल उद्यान को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)