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लकड़बग्घे, जानवरों के साम्राज्य में सबसे अधिक नज़र अंदाज की जाने वाली और उपेक्षित प्रजातियों में से एक है। हालांकि इनमें मिलकर काम करने और आदर्श मातृत्व जैसे कई सीखने लायक गुण भी होते हैं। भारत में पाए जाने वाले धारीदार लकड़बग्घे (Striped Hyena) भी अपने अनोखे व्यव्हार के कारण आमतौर पर सुर्ख़ियों में बने रहते हैं।
धारीदार लकड़बग्घा उत्तर और पूर्वी अफ्रीका ( North and East Africa),, मध्य पूर्व, कौकेशस (Caucasus), मध्य एशिया (Central Asia) और भारतीय उपमहाद्वीप के कुछ हिस्सों में पाए जाने वाले लकड़बग्घे की एक प्रजाति है। यह अपने जीन (Genes) में एकमात्र ज्ञात प्रजाति है, और इसे ‘प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ’ (The International Union for Conservation of Nature (IUCN)) द्वारा अधिक खतरे वाली प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया है, क्योंकि इसकी वैश्विक आबादी 10,000 से भी कम रह गई है। धारीदार लकड़बग्घा, लकड़बग्घे की अन्य प्रजातियों की तुलना में छोटा होता है।
धारीदार लकड़बग्घा एक पत्नीक जानवर है, अर्थात इस प्रजाति में नर और मादा दोनों अपने शावकों को पालने में एक दूसरे की सहायता करते हैं। यह एक निशाचर जानवर होता है, जो आमतौर पर केवल पूर्ण अंधेरे में ही निकलता है और सूर्योदय से पहले अपनी मांद में लौट जाता है। हमला होने पर मौत का नाटक करने की इसकी अनोखी आदत है, इसके अलावा भोजन के विवादों में यह अपने से अधिक बड़े शिकारियों के खिलाफ भी जाने से नहीं डरता है।
धारीदार लकड़बग्घे का उल्लेख अक्सर मध्य पूर्वी साहित्य और लोककथाओं में भी मिलता है, हालांकि वहां आमतौर पर यह विश्वासघात और मूर्खता के प्रतीक के रूप में प्रकट होता है। निकट और मध्य पूर्व में तथा कभी-कभी इस्लामी पौराणिक कथाओं में, धारीदार लकड़बग्घे को जिन्नों, या अलौकिक जीवों का भौतिक अवतार भी माना जाता है। अरबी लोककथाओं में, लकड़बग्घे के बारे में कहा जाता है कि वह अपनी आंखों या फेरोमोन (Pheromones) से सम्मोहित करने की क्षमता भी रखता है। अफगानिस्तान, भारत और फिलिस्तीन में, धारीदार लकड़बग्घे प्रेम और उर्वरता के प्रतीक माने जाते हैं। ग्रीक पौराणिक कथाओं में, यह माना जाता था कि भेड़िया मानव (Werewolves) (एक व्यक्ति जो समय की अवधि के लिए एक भेड़िया बन जाता है), के शरीर पैशाचिक लकड़बग्घे (Vampiric Hyena) के रूप में, युद्ध के मैदानों में मरने वाले सैनिकों का खून पीते थे। इसका उल्लेख हिब्रू बाइबिल (Hebrew Bible) में किया गया है, जहां इसे ज़ेबुआ या ज़ेवोआ (Tzebua or Zevoa) के रूप में संदर्भित किया गया है, हालांकि यह अंग्रेजी में कुछ बाइबिल अनुवादों में अनुपस्थित है। गूढ़ज्ञानवाद में, एक प्रकार की विश्वास प्रणाली, आर्कोन एस्टाफियोस (Archon Astafios) को एक लकड़बग्घे जैसे चेहरे के साथ चित्रित किया गया है। बलूच लोगों और उत्तर भारत में धारीदार लकड़बग्घे को चुड़ैलों या जादूगरों की सवारी भी माना जाता हैं।
लकड़बग्घे के लिए मांद (Den) में रहने का व्यवहार, प्रजनन और उत्तरजीविता रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। ये जानवर अक्सर अपने निवास स्थान को, शेर और बाघ जैसे बड़े मांसाहारियों के साथ भी साझा करने से पीछे नही हटते हैं। मांद इन प्रजातियों के कमजोर बच्चों की रक्षा करने और उन्हें जीवित रहने में मदद भी करती हैं। शोधकर्ताओं ने भारत के एक क्षेत्र में धारीदार लकड़बग्घे के मांद व्यवहार का अध्ययन किया जहां वे अपने से बड़े मांसाहारियों के साथ रहते हुए पाए गए। उन्होंने पाया कि अन्य मांसाहारियों के साथ संघर्ष से बचने और भोजन तक पहुंच बनाने के लिए लकड़बग्घे ने पहाड़ी ढलानों पर मांदों का चयन किया। लकड़बग्घे शिकार को मारने के बजाय दूसरे जानवरों द्वारा छोड़े गए अवशेषों पर भरोसा करते हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि लकड़बग्घे अपने घरों को उन क्षेत्रों के पास बनाना पसंद करते हैं जहां जानवरों के शवों के रूप में बहुत अधिक भोजन उपलब्ध होता है। हालांकि, यह लकड़बग्घे को अन्य जानवरों के साथ संघर्ष के जोखिम में भी डालता है। इस जोखिम को कम करने के लिए, लकड़बग्घे को पहाड़ी ढलानों पर अपनी मांद बनाते हुए देखा गया है। अन्य जानवरों द्वारा इन ढलानों को पार कर पाना मुश्किल होता है, जिससे कि अन्य मांसाहारी जानवरों के वहाँ आने की संभावना कम होती है।
यह लकड़बग्घे को अन्य मांसाहारियों से अधिक प्रतिस्पर्धा के बिना इन क्षेत्रों में अपनी मांद स्थापित करने की अनुमति देता है। लकड़बग्घे की मांद की आदतों के अध्ययन से हमें यह समझने में मदद मिल सकती है कि ये जानवर बड़े मांसाहारियों के वर्चस्व वाले वातावरण में भी कैसे जीवित रहते हैं, और हम उनके संरक्षण प्रयासों को कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं ? हाल ही में उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में कोसी कलां के अजीजपुर गांव में भी एक नर धारीदार लकड़बग्घे ने काफी हलचल मचा दी। दरअसल गाँव की एक पुलिया में एक नर धारीदार लकड़बग्घा पाया गया, जिससे गावं वालों की रक्षा करने के लिए वन्यजीव एसओएस रैपिड रिस्पांस यूनिट (Wildlife SOS Rapid Response Unit) के साथ राज्य वन विभाग के अधिकारियों को तुरंत बुलाया गया। बचाव दल ने लकड़बग्घे तक पहुंचने के लिए दो घंटे की मशक्कत की और टॉर्च की रोशनी का उपयोग करके उसकी उपस्थिति की पुष्टि की। फिर उन्होंने पुलिया के एक छोर पर एक परिवहन पिंजरा रखा और लकड़बग्घे के बाहर आने का इंतजार किया, इस पूरी प्रक्रिया में भी तकरीबन दो घंटे लग गए। लकड़बग्घे की जांच की गई तो उसकी उम्र छह साल पाई गई।
अधिकारियों के अनुसार यह वर्तमान में अस्थायी निगरानी में है और जल्द ही इसे अपने प्राकृतिक आवास में वापस छोड़ दिया जाएगा।
भारत में प्रचलित संरक्षण नीतियां मुख्य रूप से बड़े मांसाहारी जानवरों पर ही केंद्रित हैं जिनमें आम तौर पर लकड़बग्घे जैसे छोटे जानवरों की उपेक्षा की जाती है । पृथ्वी की विभिन्न विकसित प्रणालियों के बीच नाजुक संतुलन बनाए रखने के लिए प्रत्येक प्रजाति का संरक्षण महत्वपूर्ण है। अतः लकड़बग्घे जैसे उप-समन्वय प्रजातियों के सह-अस्तित्व को बनाए रखने की आवश्यकता है।
संदर्भ
https://bit.ly/3VBDVrv
https://bit.ly/3i71Ykc
https://bit.ly/3GjOUjM
चित्र संदर्भ
1. धारीदार लकड़बग्घे को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. दाहोद जिले, गुजरात, भारत में पोल्ट्री कचरे पर धारीदार लकड़बग्घे को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. जूलॉजी के संग्रहालय, सेंट पीटर्सबर्ग में प्रदर्शित भरवां धारीदार लकड़बग्घा भेड़ के शव को हुड वाले कौवे से बचाते हुए। दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. मेरेरुका के मकबरे पर धारीदार लकड़बग्घे को जबरन खिलाया जा रहा है को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. धारीदार लकड़बग्घा (हाइना लकड़बग्घा) के विस्तार को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. अपने पूरे परिवार के साथ धारीदार लकड़बग्घे को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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