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रामपुर के रजा पुस्तकालय के अरबी संग्रहों में, अरबी सुलेख के कुछ बेहद दुर्लभ हस्तनिर्मित लिखित साक्ष्य आज भी मौजूद हैं। इन्हीं में से एक सातवीं शताब्दी ईसवी की कुफिक लिपि में चर्मपत्र पर लिखी गई कुरान भी है, जिसके लिखने का श्रेय 661 ईसवी में हजरत अली को दिया जाता है। लेकिन यदि हम विक्रमी कैलेंडर के अनुसार चलें तो यह वर्ष 718 ईसवी गिना जायेगा।
विक्रम संवत कैलेंडर एक प्राचीन और मध्यकालीन युग का कैलेंडर है, जिसका नाम महान राजा विक्रमादित्य के नाम पर रखा गया है। लेकिन "विक्रम संवत" शब्द 9वीं शताब्दी से पहले के ऐतिहासिक रिकॉर्ड में नहीं मिलता है। हालांकि, यह सुझाव दिया जाता है कि यह युग, उज्जैन से शकों को निष्कासित करने वाले राजा विक्रमादित्य की स्मृति पर आधारित था, लेकिन इस सिद्धांत का कोई ऐतिहासिक आधार नहीं है। 9वीं शताब्दी में, पुरालेख कला में विक्रम संवत का उपयोग शुरू हुआ, और समय के साथ यह हिंदू कैलेंडर युग के रूप में लोकप्रिय हो गया। वहीँ बौद्ध और जैन पुरालेख बुद्ध या महावीर पर आधारित युग का उपयोग करते रहे।
एक किंवदंती के अनुसार, उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने एक युद्ध में शकों को पराजित करने के बाद विक्रम संवत युग की स्थापना की थी। माना जाता है कि कालकाचार्य नाम के एक जैन साधु ने अपनी बहन को छुड़ाने के लिए सिस्तान में शक राजा, साही से मदद मांगी थी, जिसका उज्जैन के तत्कालीन शक्तिशाली राजा गंधर्वसेन ने अपहरण कर लिया था। भारी बाधाओं का सामना करने के बावजूद, शक राजा साही, गंधर्वसेन को हराने और जैन साधु की बहन को बचाने में सफल रहे, हालांकि उन्होंने पराजित राजा को माफ कर दिया।
इसके बाद गंधर्वसेन जंगल में चले गए, जहां अंततः उन्हें एक बाघ ने मार डाला। लेकिन वहीँ गंधर्वसेन के पुत्र, विक्रमादित्य, जिनका पालन-पोषण जंगल में हुआ था, वह प्रतिष्ठान (महाराष्ट्र में आधुनिक पैठण) के शासक बन गए। विक्रमादित्य ने आखिरकार, उज्जैन पर आक्रमण किया और शकों को खदेड़ दिया। माना जाता है कि इस घटना को ऐतिहासिक बनाने के लिए, उन्होंने "विक्रम युग" नामक एक नए युग और विक्रम संवत कैलेंडर की शुरुआत की ।
विक्रम संवत, जिसे विक्रमी कैलेंडर या बिक्रम संवत के नाम से भी जाना जाता है, भारत और नेपाल के कुछ हिस्सों में इस्तेमाल किया जाने वाला एक हिंदू कैलेंडर है। यह आम तौर पर ग्रेगोरियन कैलेंडर (Gregorian Calendar) से 57 साल या कुछ अपवादों के साथ यह 56 साल आगे है। पारंपरिक विक्रम संवत कैलेंडर चंद्र महीनों और सौर नक्षत्र वर्षों पर आधारित है, तथा नेपाल में ‘नेपाल संबत कैलेंडर’ के नाम से प्रयोग किया जाता है। “विक्रम संवत” के अनुसार साल की शुरुआत चैत्र महीने की अमावस्या से होती है। यह कैलेंडर नेपाल का राष्ट्रीय कैलेंडर भी है और भारत के कुछ हिस्सों में हिंदुओं द्वारा भी इसका उपयोग किया जाता है। हालांकि, भारत के अन्य हिस्सों में, भारतीय राष्ट्रीय "शक कैलेंडर" का अधिक उपयोग किया जाता है।
विक्रम संवत हिब्रू और चीनी कैलेंडर के समान है क्योंकि यह चंद्र-सौर है, जिसका अर्थ है कि यह चंद्रमा और सूर्य दोनों पर आधारित है। इसकी दो प्रणालियाँ हैं, एक 56 ईसा पूर्व में शुरू हुई और दूसरी 57-56 ईसा पूर्व में शुरू हुई। यह ग्रेगोरियन कैलेंडर से लगभग 56.7 वर्ष आगे है। उदाहरण के लिए, विक्रम संवत कैलेंडर में वर्ष 2079 बी एस ग्रेगोरियन कैलेंडर में अप्रैल 2022 के मध्य से अप्रैल 2023 के मध्य तक चलता है।
भारत में आधिकारिक कैलेंडर के रूप में शक कैलेंडर का उपयोग किया जाता है, लेकिन इसे विक्रम संवत से बदलने की मांग की गई है। उत्तर, पश्चिम और मध्य भारत के हिंदुओं द्वारा विक्रम संवत कैलेंडर का प्रतीकात्मक रूप से उपयोग किया जाता है जबकि दक्षिण भारत और ‘पूर्व और पश्चिम’ भारत के कुछ हिस्सों (जैसे असम, पश्चिम बंगाल और गुजरात) में, भारतीय राष्ट्रीय कैलेंडर का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। इस्लामिक शासन के आगमन के साथ, हिजरी कैलेंडर सल्तनतों और मुगल साम्राज्य का आधिकारिक कैलेंडर बन गया।
भारतीय उपमहाद्वीप के ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान, ग्रेगोरियन कैलेंडर को अपनाया गया था और आमतौर पर भारत के शहरी क्षेत्रों में भी इसे उपयोग किया जाता है। पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे मुस्लिम देशों ने 1947 से मुख्य रूप से इस्लामी कैलेंडर का उपयोग किया है, लेकिन पुराने ग्रंथों में सिर्फ विक्रम संवत और ग्रेगोरियन कैलेंडर शामिल थे। विक्रम संवत में ग्रेगोरियन कैलेंडर की तरह विशिष्ट तिथियां नहीं हैं, बल्कि, प्रथमा, द्वितीया, तृतीया..पूर्णिमा" और "अमावस्या" जैसे चंद्र दिवस हैं। यह इसे रोजमर्रा के उपयोग के लिए असुविधाजनक बनाता है, क्योंकि इस प्रणाली का उपयोग करके घटनाओं और त्योहारों को याद रखना और गणना करना मुश्किल होता है।
उदाहरण के लिए, विक्रम संवत के अनुसार, स्वतंत्रता दिवस हर साल 15 अगस्त को नहीं मनाया जाएगा, बल्कि श्रावण कृष्ण चतुर्दशी के दिन मनाया जाएगा। इसी प्रकार गणतंत्र दिवस हर वर्ष 26 जनवरी को न होकर 26 जनवरी, 1950 (माघ शुक्ल अष्टमी) के दिन मनाया जाएगा। स्वतंत्रता के समय भारत में लगभग 30 विभिन्न कैलेंडर या पंचांग उपयोग में थे। ये कैलेंडर या तो सौर या चन्द्र-सौर प्रणाली का अनुसरण करते थे और देश के विभिन्न राज्यों में उपयोग किए जाते थे।
1950 के दशक में, उपयोग में आने वाले विभिन्न कैलेंडरों की जांच करने और पूरे देश के लिए एक समान कैलेंडर प्रस्तावित करने के लिए भारत में एक कैलेंडर सुधार समिति की स्थापना की गई थी। खगोल वैज्ञानिक डॉ. मेघनाद साहा की अध्यक्षता वाली समिति ने अंततः शक कैलेंडर के उपयोग की सिफारिश की, जो एक सौर कैलेंडर है और दैनिक जीवन के लिए अधिक सुविधाजनक माना जाता है। समिति ने यह भी कहा कि विक्रम संवत की उत्पत्ति स्पष्ट नहीं थी और राजा विक्रमादित्य, जिन्हें अक्सर कैलेंडर शुरू करने का श्रेय दिया जाता है, के अस्तित्व के लिए बहुत कम ऐतिहासिक साक्ष्य थे ।
कैलेंडर सुधार समिति द्वारा शक कैलेंडर के राष्ट्रीय कैलेंडर के रूप में मंजूरी की सिफारिश के बावजूद, विक्रम संवत अभी भी व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह देश में इस्तेमाल किया जाने वाला एकमात्र कैलेंडर नहीं है बल्कि भारत में लंबे इतिहास और सांस्कृतिक महत्व वाले अन्य कैलेंडर भी हैं।
संदर्भ
https://bit.ly/3WK5Shw
https://bit.ly/3hUapzq
चित्र संदर्भ
1. राजा विक्रमादित्य और विक्रम सम्वत को संदर्भित करता एक चित्रण (facebook)
2. महाराजा विक्रमादित्य को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. विक्रम सम्वत 2023 मार्गशीर्ष मास को दर्शाता एक चित्रण (prokerala)
4. विक्रम संवत में मांस अथवा महीनों के नाम को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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