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शारदीय नवरात्र, हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण पर्वो में से एक है, जिसमें बड़े धूम-धाम से नौ दिनों
तक देवी दुर्गा की आराधना की जाती है।यूं तो देवी दुर्गा को प्रकृति की देवी, शक्ति, आदिमाया,
भगवती, सनातनी देवी आदि नामों से भी जाना जाता है, लेकिन “दुर्गा” शब्द अपने आप में
एक गहन अर्थ को समेटे हुए है। तो चलिए आज अष्टमी के पावन अवसर पर इस शब्द के
गहन अर्थ को समझने का प्रयास करें।
देवी दुर्गा हिंदू धर्म की प्रमुख देवियों में से एक हैं, जो सुरक्षा, शक्ति, मातृत्व, विनाश और
युद्ध का प्रतिनिधित्व करती हैं। मां दुर्गा की कथा मुख्य रूप से इस बात पर आधारित है, कि
कैसे उन्होंने शांति, समृद्धि और धर्म के लिए खतरा पैदा करने वाली बुराइयों और राक्षसी
ताकतों का विनाश किया, जिससे बुराई पर अच्छाई की जीत हुई। देवी दुर्गा को एक मातृ
आकृति के रूप में प्रदर्शित किया जाता है, और अक्सर एक खूबसूरत महिला के रूप में
चित्रित किया जाता है, जो शेर या बाघ की सवारी करती है। उनके पास कई हथियार हैं,
जिनसे वे अक्सर राक्षसों का वध करती हैं।
वे संप्रदाय जो देवी-केंद्रित हैं, तथा शक्तिवाद, शैववाद और वैष्णववाद का अनुसरण करते हैं,
उनके द्वारा देवी दुर्गा की व्यापक रूप से पूजा की जाती है। शक्तिवाद, देवी महात्म्य और
देवी भागवत पुराण के सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ, देवी दुर्गा को ब्रह्मांड का निर्माता मानते हैं। पूरे
भारत, बांग्लादेश, नेपाल और कई अन्य देशों में देवी दुर्गा के अनेकों अनुयायी हैं। उनकी पूजा
ज्यादातर वसंत और शरद ऋतु की फसल के बाद की जाती है, खासकर दुर्गा पूजा, दुर्गा
अष्टमी, विजयदशमी, दीपावली और नवरात्रि के त्योहारों के दौरान।
दुर्गा शब्द का शाब्दिक अर्थ है,"अगम्य" या "अजेय। यह दुर्ग शब्द से संबंधित है,जिसका अर्थ
है "किला”, अर्थात एक ऐसा क्षेत्र जिसे जीतना या जिससे होकर गुजरना बहुत मुश्किल है।
क़िले या दुर्ग का निर्माण प्रायः शत्रु से सुरक्षा के लिए किया जाता था, जिन्हें 'गढ़' और 'कोट'
भी कहा जाता था। दुर्ग, पत्थर आदि की चौड़ी दीवारों से घिरा हुआ वह स्थान है,जिसके भीतर
राजा, सरदार और सेना के सिपाही आदि सुरक्षित रूप से रहते थे।
देवी दुर्गा के संदर्भ में किले से तात्पर्य हमारा मानव शरीर है, तथा दुर्गा वह शक्ति है जो
हमारे शरीर को चला रही है। इसलिए उन्हें हमारी ज्ञान शक्ति, क्रिया शक्ति और इच्छा शक्ति
कहा जाता है। मोनियर-विलियम्स (Monier-Williams) के अनुसार, दुर्गा शब्द की उत्पत्ति दुर
(कठिन) और गम (जिसके आर-पार जाया जा सके) से हुई है, जिसका पूरा अर्थ है, ऐसा क्षेत्र
जिसके आर-पार जाना बहुत कठिन हो। एलेन डेनियलौ (Alain Daniélou) के अनुसार, दुर्गा का
अर्थ है "हार से परे"।
दुर्गा शब्द और इससे संबंधित शब्द वैदिक साहित्य में दिखाई देते हैं, जैसे कि ऋग्वेद के कुछ
श्लोकों और अथर्ववेद के कुछ खंडों में। “तैत्तिरीय आरण्यक” के खंड 10.1.7 में देवी के लिए
दुर्गे शब्द प्रयुक्त किया गया है, जबकि वैदिक साहित्य में दुर्गा शब्द का उपयोग किया गया
है।
वैदिक ग्रंथों में केवल देवी दुर्गा को ही सर्वोच्च और ब्राह्मण या ब्रह्म का पूर्ण पहलू माना
गया है, जैसे देवी-अथर्वशीर्ष में कहा भी गया है कि:
“यस्याः परतरं नास्ति सैषा दुर्गा प्रकीर्तिता”,
अर्थात वह जो "दुर्गा" नाम से प्रसिद्ध है, वह श्रेष्ठ है, उसके ऊपर किसी भी चीज का
अस्तित्व नहीं है।
देवी दुर्गा जैसी छवियों के साक्ष्य शायद सिंधु घाटी सभ्यता में भी देखे जा सकते हैं। आस्को
परपोला (Asko Parpola) के अनुसार, कालीबंगन की एक बेलनाकार मुहर में देवी दुर्गा जैसी
आकृति मौजूद है, जिसमें उनके साथ बाघ भी है। भगवान की स्त्री प्रकृति का वर्णन पहली
बार ऋग्वेद के 10 वें मंडल में किया गया था। इस स्तोत्र को “देवी सूक्तम स्तोत्र” भी कहा
जाता है। देवी दुर्गा का पर्यायवाची शब्द उपनिषदिक साहित्य, जैसे “काली”, मुंडका उपनिषद में
दिखाई देता है, जो लगभग 5 वीं शताब्दी ईसा पूर्व का है।दुर्गा, अपने विभिन्न रूपों में, प्राचीन
भारत के महाकाव्य काल में एक स्वतंत्र देवता के रूप में दिखाई देती हैं।
महाभारत में
युधिष्ठिर और अर्जुन दोनों पात्रों को देवी दुर्गा की स्तुति करते हुए दिखाया गया है।पहली
सहस्राब्दी ईसा पूर्व की शुरुआत से लेकर अंत तक लिखे गए विभिन्न पुराणों में देवी दुर्गा से
जुड़ी असंगत पौराणिक कथाओं का वर्णन किया गया है।इनमें से मार्कंडेय पुराण और देवी-
भागवत पुराण देवी दुर्गा की कथा पर लिखे गए सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ हैं। देवी उपनिषद और
अन्य शाक्त उपनिषद, जो ज्यादातर 9वीं शताब्दी में या उसके बाद रचे गए थे, में देवी दुर्गा
को ब्रह्म और पूर्ण आत्मा के रूप में दर्शाया गया है।
महाराष्ट्र में, कई पुराने किले (दुर्ग) अभी भी नवरात्रि के दौरान दुर्ग और दुर्गा के इस पुराने
संबंध को याद करते हैं और वहां मौजूद देवी दुर्गा की मूर्तियों की आज भी उपासना करते हैं।
किलों में मूर्तियों को इसलिए स्थापित किया गया था, क्योंकि सैनिकों का मानना था कि
यह उन्हें बुराई और किले को दुश्मन से बचाएगा। देवी की प्रतिमाओं की न केवल नियमित
रूप से पूजा की जाती थी बल्कि उनका आशीर्वाद लेने के बाद ही महत्वपूर्ण निर्णय लिए
जाते थे। आज भी, हजारों भक्त नवरात्रि के दौरान इन देवी की उपासना के लिए इन किलों
पर पहुंचते हैं।इन किलों में वाणी, रायगढ़, प्रतापगढ़, शिवनेरी, कोराईगढ़, राजगढ़, सुधागढ़ आदि
शामिल हैं, जहां क्रमशः सप्तश्रृंगी देवी, शिरकाई देवी, भवानी देवी, शिवई देवी, कोरई देवी,
पद्मावती, भोराई देवी आदि की आज भी पूजा की जाती है।
संदर्भ:
https://bit.ly/2uxNgcF
https://bit.ly/3xYlP9W
https://bit.ly/3y2nkE7
चित्र संदर्भ
1. मां दुर्गा की मनमोहक छवि को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. मां दुर्गा की लोकप्रिय छवि को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. नेवाड़ी लिपि में लिखी गई 17वीं शताब्दी की देवीमहात्म्य पांडुलिपि को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. दुर्गा उत्सव के चित्रों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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