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भारत में प्राकृतिक वनस्पति पर्वतीय जंगलों में भी पाई जा सकती है। हिमालय में भिन्न-
भिन्न ऊंचाईयों पर विभिन्न प्रकार के पौधे पाए जाते हैं, जो मुख्य रूप से हिमालय के
दक्षिणी ढलानों में पाए जाते हैं। इन क्षेत्रों में अधिक ऊंचाई पर भी समशीतोष्ण घास के
मैदान देखे जा सकते हैं।हिमालयी वनस्पति को मोटे तौर पर चार प्रकारों में वर्गीकृत किया
जा सकता है, जिनमें उष्णकटिबंधीय, उपोष्णकटिबंधीय, समशीतोष्ण और अल्पाइन (Alpine)
शामिल है। इन चारों को मुख्य रूप से इनकी ऊंचाई और वर्षा के आधार पर विभिन्न क्षेत्रों
में वर्गीकृत किया गया है।
उष्णकटिबंधीय सदाबहार वर्षावन पूर्वी और मध्य हिमालय की नम तलहटी तक सीमित हैं।
सदाबहार डिप्टरोकार्प्स (Dipterocarps), जो कि लकड़ी और राल-उत्पादक पेड़ों का समूह है,
यहां सामान्य तौर पर पाए जाते हैं। इनकी विभिन्न प्रजातियां अलग-अलग मिट्टी पर और
अलग-अलग पहाड़ी ढलानों पर उगती हैं। सीलोन आयरनवुड (Ceylon ironwood) छिद्रयुक्त
मिट्टी पर 600 और 2,400 फीट तक की ऊंचाई पर पाई जाती है,खड़ी ढलानों पर सामान्यतः
बांस उगते हैं।ओक (Oak) और भारतीय हॉर्स चेस्टनट (horse chestnuts) लिथोसोल
(Lithosol– छिछली मिट्टी जिसमें अपक्षयित चट्टान के टुकड़े होते हैं),पर उगते हैं, जो
3,600 से 5,700 फीट की ऊंचाई पर मौजूद होते हैं।एल्डर ट्री (Alder trees) जलधाराओं के
किनारे खड़ी ढलानों पर पाए जाते हैं। इससे अधिक ऊंचाई पर उगने वाली प्रजातियां पर्वतीय
जंगलों का निर्माण करती हैं, जिनमें से एक जंगल सदाबहार हिमालयन स्क्रू पाइन
(Himalayan screw pine) है।
इन पेड़ों के अलावा, यह अनुमान लगाया गया है, कि पूर्वी हिमालय में फूलों के पौधों की
लगभग 4,000 प्रजातियां पाई जाती है, जिनमें से 20 प्रजातियां ताड़ की हैं।वर्षा में कमी और
बढ़ती ऊंचाई (पश्चिम की ओर) के साथ यहां उष्णकटिबंधीय पर्णपाती जंगल पाए जाते हैं, जहां
की मुख्य प्रजाति साल है। इसे मूल्यवान लकड़ी वाला पेड़ माना जाता है। लगभग3,000 फीट
की ऊंचाई पर नम साल के जंगल ऊंचे पठारों पर पनपते हैं, जबकि शुष्क साल के जंगल
4,500 फीट की ऊंचाई पर अधिक पनपते हैं।
इसके बाद पश्चिम की ओर ही सपाट वन (कुछ पेड़ों के साथ विस्तारित घास का
मैदान),उपोष्णकटिबंधीय कांटेदार सपाट वन और उपोष्णकटिबंधीय अर्ध-रेगिस्तान वनस्पति
क्रमिक रूप से देखने को मिलती है। समशीतोष्ण मिश्रित वन लगभग 4,500 से 11,000 फीट
तक फैले हुए हैं और इनमें शंकुधारी और चौड़ी पत्ती वाले समशीतोष्ण पेड़ शामिल हैं।2,700
से 5,400 फीट की ऊंचाई पर मुख्य रूप से चीड़ बहुतायत में मिलता है। पर्वतीय सीमा के
पश्चिमी भाग में देवदार जो कि एक अत्यधिक मूल्यवान स्थानिक प्रजाति मानी जाती है,पाई
जाती है। इस प्रजाति के सदस्य 6,300 से 9,000 फीट के बीच पाए जाते हैं और सतलुज
और गंगा नदियों की ऊपरी घाटियों में और भी अधिक ऊंचाई पर बढ़ने की प्रवृत्ति रखते हैं।
इसके अलावा 7,300 और 10,000 फीट के बीच अन्य शंकुधारी प्रजातियां जैसे ब्लू पाइन
(Blue pine) और मोरिंडा स्प्रूस (Morinda spruce) मौजूद हैं। वृक्षक्षेत्र की इस सीमा से
ऊपर 10,500 और 11,700 फीट की ऊंचाई के बीच अल्पाइन क्षेत्र शुरू होता है, जो पश्चिमी
हिमालय में लगभग 13,700 फीट और पूर्वी हिमालय में 14,600 फीट तक फैला हुआ है।इस
क्षेत्र में प्रायः नम अल्पाइन वनस्पति पाई जाती है।धूप वाली जगहों, खड़ी और चट्टानी
ढलानों और शुष्क क्षेत्रों में जुनिपर(Juniper) व्यापक रूप से पाए जाते हैं।रोडोडेंड्रोन
(Rhododendron) प्रायः हर जगह होता है लेकिन इसकी अधिक प्रचुर मात्रा पूर्वी हिमालय
के आर्द्र भागों में होती है। अल्पाइन क्षेत्र के निचले स्तर पर छायांकित क्षेत्रों,जहां आर्द्रता
अधिक होती है,में काई या मॉस (Mosses) और लाइकेन (lichens) उगते हैं, जबकि फूल
वाले पौधे प्रायः ऊंचाई पर पाए जाते हैं।
दक्षिण भारत के दक्षिण पश्चिमी घाट पर्वतीय वर्षा वन भी पौधों की एक विशाल प्रजाति को
आवरित करते हैं, जिनमें कलेनिया एक्सरिलाटा (Cullenia exarillata), मेसुआ फेरिया (Mesua
ferrea), पलाक्वियम एलिप्टिकम (Palaquium ellipticum), ग्लूटा ट्रैवनकोरिका
(Glutatravancorica), और नेजिया वालिचियाना (Nageiawallichiana),कैलोफिलम ऑस्ट्रोइंडिकम
(Calophyllumaustroindicum), गार्सिनिया रूब्रो-इचिनाटा (Garcinia rubro-echinata), गार्सिनिया
ट्रैवनकोरिका (Garcinia travancorica), डायोस्पायरोस बारबेरी (Diospyros barberi) आदि शामिल
है।
भारत की पर्वतीय प्राकृतिक वनस्पति भले ही भारत के वनस्पति घनत्व में महत्वपूर्ण
योगदान दे रही हो, लेकिन जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण कुछ ऐसे कारक हैं, जो पर्वतीय
प्राकृतिक वनस्पति में निरंतर गिरावट का कारण बन रहे हैं।पर्वतीय प्राकृतिक वनस्पति यहां
रहने वालों के लिए एक आधार है, क्यों कि यह उन्हें खाद्य सुरक्षा प्रदान करती है। किंतु
इसमें निरंतर गिरावट के कारण इन क्षेत्रों में रहने वाले लोग भोजन और पोषण असुरक्षा का
सामना कर रहे हैं।इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण खाद्य और पोषण या औद्योगिक क्षमता वाले कई
पौधों की प्रजातियां मौजूद हैं, लेकिन इनके मूल्यांकन और विकास के लिए स्पष्ट रणनीति न
होने की वजह से इनका उपयोग कम किया जाता है। इसलिए पर्वतीय प्राकृतिक वनस्पति के
संरक्षण की अत्यधिक आवश्यकता है।वर्तमान समय में पर्यावरण संरक्षण को उन प्रशिक्षित
वैज्ञानिकों के लिए एक नौकरी के रूप में देखा जा रहा है, जो जंगलों या पर्वतीय स्थानों के
भीतर या बाहर रहकर डेटा एकत्र कर रहे हैं, श्रमसाध्य विश्लेषण कर रहे हैं और लोगों को
इसके प्रभावों से अवगत करा रहे हैं।
आज इस क्षेत्र में वकीलों, अर्थशास्त्रियों और विश्लेषकों
की उतनी ही मांग है, जितनी कि अन्य क्षेत्रों में। कुशलता से परियोजनाओं को संचालित
करने,औद्योगिक कचरे का सुरक्षित रूप से उपचार और निपटान करने, नवोन्मेषी जलवायु
समाधानों को बढ़ाने, वन्यजीवों के लिए सुरक्षित मार्ग डिजाइन करने स्मार्ट पर्यावरण अभियान
को संचालित करने आदि के लिए इस क्षेत्र में क्रमशः प्रबंधकों, रासायनिक इंजीनियरों,
उद्यमियों, राजमार्ग इंजीनियरों, संचारकों आदि की आवश्यकता है।पर्यावरणीय चुनौतियों की
जटिलता के लिए एक बहु-विषयक दृष्टिकोण की आवश्यकता है, तथा इस क्षेत्र में रोजगार
एक अच्छा विकल्प हो सकता है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3eS4GIn
https://bit.ly/3RQRylk
https://bit.ly/3qNDVr6
https://bit.ly/3qEps0V
चित्र संदर्भ
1. उष्णकटिबंधीय सदाबहार वर्षावन में सीलोन आयरनवुड को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. 2015 तक भारतीय वन कवर मानचित्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. रोडोडेंड्रोन (Rhododendron) प्रायः हर जगह होता है लेकिन इसकी अधिक प्रचुर मात्रा पूर्वी हिमालय के आर्द्र भागों में होती है। को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. कुल्लू घाटी, वन, भारत को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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