पृथ्वी पर सबसे पुरानी भूवैज्ञानिक विशेषता है अरावली पर्वत श्रृंखला

पर्वत, पहाड़ियाँ और पठार
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पृथ्वी पर सबसे पुरानी भूवैज्ञानिक विशेषता है अरावली पर्वत श्रृंखला

अरावली पर्वत श्रृंखला यकीनन पृथ्वी पर सबसे पुरानी भूवैज्ञानिक विशेषता है, जिसकी उत्पत्ति प्रोटेरोज़ोइक (Proterozoic) युग में हुई है। अरावली रेंज प्राकृतिक संसाधनों (खनिजों सहित) से समृद्ध है और पश्चिमी रेगिस्तान के विकास को रोकने का काम करती है। यह बनास, लूनी, सखी और साबरमती सहित कई नदियों को जन्म देती है। दक्षिण में भले ही घना जंगल दिखाई देता है, किंतु यह क्षेत्र कम आबादी वाला है। साथ ही यहां रेत और पत्थर तथा गुलाबी रंग के क्वार्टजाइट (Quartzite) के बड़े क्षेत्र शामिल हैं।इस पर्वत श्रृंखला ने भारतीय उपमहाद्वीप को आकार देने,इसकी जलवायु को परिभाषित करने और बहुकोशिकीय जीवन के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। अरावली रेंज उत्तरी-पश्चिमी भारत में एक पर्वत श्रृंखला है, जो दक्षिण-पश्चिम दिशा में लगभग 670 किलोमीटर तक विस्तारित है। यह दिल्ली के पास से शुरू होती हुई दक्षिणी हरियाणा, राजस्थान से गुजरती है और अहमदाबाद गुजरात में समाप्त होती है। इसकी सबसे ऊंची चोटी माउंट आबू पर 1,722 मीटर (5,650 फीट) पर गुरु शिखर है।अरावली पर्वतमाला, प्राचीन पर्वतों का एक कटा हुआ हिस्सा माना जाता है।यह भारत में वलित पर्वतों की सबसे पुरानी श्रेणी है।अरावली रेंज का प्राकृतिक इतिहास उस समय का है जब भारतीय प्लेट को यूरेशियन (Eurasian) प्लेट से एक महासागर द्वारा अलग किया गया था।
उत्तर-पश्चिम भारत में प्रोटेरोज़ोइक अरावली-दिल्ली ऑरोजेनिक बेल्ट (Proterozoic Aravalli-Delhi orogenic belt) मेसोज़ोइक-सेनोज़ोइक (Mesozoic-Cenozoic) युग के छोटे हिमालयी- प्रकार के ऑरोजेनिक बेल्ट के समान है। रेंज का विकास अरावली-दिल्ली ऑरोजेन नामक प्रीकैम्ब्रियन (Precambrian)इवेंट में हुआ।अरावली रेंज भारतीय प्रायद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भाग में स्थित एक उत्तर-पूर्व-दक्षिण-पश्चिम ट्रेंडिंग ओरोजेनिक बेल्ट है। यह भारतीय शील्ड का हिस्सा है जो क्रैटोनिक (Cratonic) टकरावों की एक श्रृंखला से निर्मित हुआ है। दुनिया के इन सबसे पुराने पहाड़ों को बनाने हेतु टेक्टोनिक प्लेट्स (Tectonic plates) को हिलाने और धकेलने तथा मैग्मा के बाहर निकलने में लगभग दो अरब साल लगे।तब से इन पहाड़ों ने लावा प्रवाह के निरंतर हमले, समुद्र के द्वारा जलमग्नता, भू-भागों के साथ टकराव और हवा और बारिश से कटाव के लाखों वर्षों को सहन किया है।अरावली की ठोस, अक्सर अभेद्य, भूमिगत चट्टानें इसे एक परिभाषित भूगर्भिक और भौगोलिक विशेषता बनाती हैं। अरावली का छिपा हुआ हिस्सा जो दिल्ली से हरिद्वार तक फैला हुआ है, गंगा और सिंधु की नदियों के जल निकासी के बीच एक विभाजन बनाता है।
आधुनिक समय में भी, अरावली का उत्तर पश्चिम भारत और उसके बाहर की जलवायु पर प्रभाव जारी है। मानसून के दौरान, पर्वत श्रृंखला धीरे-धीरे क्षीण मानसून बादलों को पूर्व की ओर शिमला और नैनीताल की ओर निर्देशित करती है, इस प्रकार उप-हिमालयी नदियों और उत्तर भारतीय मैदानों को पोषित करने में यह मदद करता है।सर्दियों के महीनों में, यह उपजाऊ जलोढ़ नदी घाटियों को मध्य एशिया से आने वाली ठंडी पश्चिमी हवाओं के हमले से बचाता है।अरावली उन क्षेत्रों के साथ-साथ भूजल को भी प्रभावित करती है जिनसे वे गुजरते हैं।
हालांकि, पिछले चार दशकों में यह खनन, वनों की कटाई और इसके नाजुक और प्राचीन जल चैनलों के अति-शोषण से नष्ट हो गया है।अरावली ग्रेनाइट और गनीस (Gneiss) के एक बहुत बड़े प्रांत में फैली है।गनीस और ग्रेनाइट पहाड़ियाँ डूंगरपुर, उदयपुर, नाथद्वारा, भीलवाड़ा के पूर्व से निकलती हैं और अजमेर के निकट समाप्त होती हैं।कई सौ मिलियन वर्षों में,अन्य चट्टानें धीरे-धीरे इस गनीस प्रांत के ऊपर और आसपास इकट्ठी हुईं, जिनमें ग्रेनाइट, संगमरमर, क्वार्टजाइट (जयपुर और दिल्ली में प्रमुख चट्टान), बलुआ पत्थर, रयोलाइट (Rhyolite) की नई और छोटी किस्में शामिल हैं।
ग्रेनाइट और लगभग सभी तरह के पत्थरों का खनन असंगठित है और इन्हें बेईमान पट्टाधारकों के हवाले छोड़ दिया गया है। वे इन भव्य चट्टानों को तब तक निकालते हैं जब तक कोई भी शेष न रहे। इसने पूरे परिदृश्य को उजाड़ दिया है।अरावली अब राजनेताओं और निगमों के लालच, क्षुद्रता और अत्यधिक अदूरदर्शिता से बचने के लिए संघर्ष कर रहा है।सुप्रीम कोर्ट ने 2002 में रेंज में खनन पर प्रतिबंध लगा दिया था, किंतु जब तक केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा मंजूरी नहीं दी गई, तब तक अवैध खनन जारी रहा। यह खनन कार्य कानूनी खनन कार्यों से भी बड़े पैमाने पर किया जा रहा था।सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति की 2018 की रिपोर्ट के अनुसार 1967-68 से राजस्थान में अवैध खनन के कारण अरावली रेंज का 25 प्रतिशत हिस्सा नष्ट हो गया है।कई मामलों में, विशेष रूप से लघु खनिज के लिए आवंटित छोटी खदानों के संबंध में, अवैध खनन का प्रतिशत क्षेत्रफल की दृष्टि से 100 प्रतिशत से अधिक है।अरावली के संरक्षण के लिए काम करने वाले विशेषज्ञ और कार्यकर्ता कानूनों के खराब कार्यान्वयन पर अफसोस जताते हैं।चार राज्यों- गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली में फैली अरावली पर्वत श्रृंखला कभी भी निरंतर नहीं थी, लेकिन खनन और निर्माण गतिविधियों ने इसे और भी नष्ट कर दिया है। इसलिए संरक्षण के लिए बनाए गये कानूनों का उचित कार्यान्वयन अत्यंत आवश्यक है ताकि पूरी पारिस्थितिकी के लिए महत्वपूर्ण अरावली का संरक्षण किया जा सके।

संदर्भ:
https://bit.ly/2GZBUSH
https://bit.ly/2P1kS92
https://bit.ly/2Z1sxcq

चित्र संदर्भ
1. राजस्थान में गुरु शिखर पर पर्वतमाला के उच्चतम बिंदु से अरावली पर्वतमाला को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. टेक्टोनिक्स टक्कर के दौरान ज्वालामुखीय चाप और पानी के नीचे के सबडक्शन की भूवैज्ञानिक प्रक्रिया को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. राजस्थान में रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. अरावली पहाड़ियों में गाँव और खेत राजस्थान भारत 2015 को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)