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पक्षियों के राजा मोर को इसके बेहद खूबसूरत रंगीन पंखों तथा शानदार नृत्य के कारण पूरी दुनिया
के सभी पक्षियों में सबसे सुंदर पक्षी होने का दर्जा प्राप्त है! जब मोर की इस भव्यता और सुंदरता से
प्रेरणा लेने की बात आती है तो, 17 वीं शताब्दी में मुगल सम्राट शाहजहाँ के लिए बनवाये गए मयूर
सिंहासन का भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में कोई शानी मिलता ही नहीं है!
कहा जाता है कि मुगल सम्राट शाहजहाँ (1592-1666) के लिए निर्मित, मयूर सिंहासन की कीमत
ताजमहल से दोगुनी थी। तख़्त-ए-ताऊस (फ़ारसी: تخت طاووس, यानी मयूर सिंहासन) वह मशहूर
सिंहासन है जिसे मुगल बादशाह शाहजहाँ ने बनवाया था। प्रारंभ में यह सिंहासन आगरे के किले
की शोभा बढ़ाता था। वहाँ से इसे दिल्ली के लाल किले में ले जाकर रख दिया गया।
इसका नाम 'मयूर सिंहासन' इसलिए पड़ा क्योंकि इसके पिछले हिस्से में दो नाचते हुए मोर दिखाए
गए हैं। इस बेशकीमती सिंहासन को बादशाह शाहजहाँ ने ताजपोशी के बाद अपने लिए तैयार
करवाया था। इस सिंहासन की लंबाई तेरह गज, चौड़ाई ढाई गज और ऊंचाई पांच गज थी। यह
सिंहासन सोने के बने छह पायों पर स्थापित था। सिंहासन तक पहुंचने के लिए तीन छोटी सीढ़ियाँ
बनाई गयी थी, जिनमें दूरदराज के देशों से मंगवाए गए कई कीमती जवाहर जड़े गए थे। दोनों
बाजुओं पर दो खूबसूरत मोर, चोंच में मोतियों की लड़ी लिये, पंख पसारे, छाया करते नज़र आते थे
और दोनों मोरों के सीने पर लाल माणिक जुड़े हुए थे।
इस सिंहासन को बनाने में उस समय के कुल एक करोड़ रुपये खर्च किये गए थे। जब नादिरशाह ने
दिल्ली पर हमला किया तो दिल्ली की सारी धन-दौलत समेटने के साथ ही वह इस सिंहासन तख्त -
ए -ताउस के हीरे जवाहर को लूट कर ले गया। बाद में सिख इस को अमृतसर ले आए। इसके बाद
इस सिंहासन को अंग्रेज लूट कर ले गए।
सोने का पानी चढ़ा हुआ मंच, रेशम से ढका हुआ और कीमती गहनों में जड़ा हुआ मयूर सिंहासन
देखने वालों के लिए एक आश्चर्य था। मयूर सिंहासन में जड़े सैकड़ों माणिक, पन्ना, मोती और
अन्य रत्नों में प्रसिद्ध 186 कैरेट का “कोहिनूर हीरा” भी शामिल था, जिसे बाद में अंग्रेजों ने ले
लिया था।
मयूर सिंहासन के साथ, नादिरशाह, शानदार कोह-ए-नूर और दरिया-ए-नूर हीरे को भी फारस ले
गया था, जहाँ कुछ फ़ारसी मुकुट रत्नों का हिस्सा बन गए। नादिर द्वारा की गई लूट इतनी बड़ी थी
कि उसने 3 साल के लिए कर लगाना बंद कर दिया। माना जाता है की, मयूर सिंहासन का निचला
आधा भाग सूर्य सिंहासन में परिवर्तित हो गया। इस बाद के सिंहासन के विभिन्न 19वीं सदी के
भारतीय चित्र मौजूद हैं।
1747 में, नादिर शाह के अंगरक्षकों ने उसकी हत्या कर दी, और मयूर सिंहासन को उसके सोने और
गहनों के लिए टुकड़ों में काट दिया गया। कुछ पुरातन विशेषज्ञों का मानना है कि 1836 के
कजर सिंहासन के पैर, जिसे मयूर सिंहासन भी कहा जाता है, मुगल मूल से ही लिए गए है। कहा
जाता है कि न्यूयॉर्क शहर में मेट्रोपॉलिटन म्यूजियम ऑफ़ आर्ट (Metropolitan Museum of
Art) ने भी संभावित रूप से मूल सिंहासन के आसन से एक संगमरमर के पैर की खोज की है।
पारंपरिक इस्लामी फ़र्नीचर में लकड़ी में मार्केट्री जड़ना, टेबलटॉप पर सिरेमिक टाइलों या
पट्टिकाओं का उपयोग, और ताबूत और चेस्ट जैसी वस्तुओं पर जटिल काम होता है। इस तरह की
बारीक जड़ाई का काम संभवतः हथियारों और संगीत वाद्य यंत्रों के निर्माण में इस्तेमाल की जाने
वाली शैलियों और तकनीकों से विकसित हुआ है। 7वीं शताब्दी में भारत में इस्लाम के उदय ने
भारतीय फर्नीचर बनाने के तरीकों और रीति-रिवाजों पर इस्लामी प्रभाव डाला। इसके कुछ
सामान्य प्रथाओं में लकड़ी, धातु, संगमरमर और तामचीनी जैसी सामग्रियों पर राहत नक्काशी,
ज्यामितीय पैटर्न का उपयोग करके अलंकरण और जानवरों और वनस्पतियों की प्राकृतिक
प्रस्तुतियाँ, आकृति से प्रेरित सुलेख, और स्क्रीन, दरवाजे, टेबलटॉप जैसी वस्तुओं पर जटिल रूप से
छेदा गया काम शामिल हैं। ऊँची धनुषाकार पीठ मुगल सम्राट शाहजहाँ द्वारा इस्तेमाल किए गए
17 वीं शताब्दी के मयूरासन (मयूर सिंहासन) की छतरी जैसी संरचना को उजागर करती है।
इस सिंहासन के निर्माण में इंडो-इस्लामिक कला का प्रयोग किया गया था। इंडो-इस्लामिक
स्मारकों के उदाहरणों में 'ऑवरग्लास चेयर (hourglass chair)' भी शामिल है। मयूर सिंहासन का
यह संस्करण जटिल रूप से बुने हुए बेंत से बना है, और इसमें एक गोल, कुशन वाली सीट है।
संदर्भ
https://bit.ly/3Rhn1gP
https://bit.ly/3nPp0vm
https://bit.ly/3Rmcu3I
चित्र संदर्भ
1. भव्य मयूर सिंहासन,को दर्शाता एक चित्रण (GetArchive)
2. मयूर सिंहासन पर बैठे शाहजहां को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. नादिरशाह, को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. मूरिश कियोस्क के अंदर मयूर सिंहासन (1867) को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
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