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मानव सभ्यता के विकास के साथ ही जानवरों के प्राकृतिक आवास भी, उनसे छिनना शुरू हो गया हैं! चूंकि
उनके पास रहने के लिए अपना प्राकृतिक ठिकाना नहीं हैं, इसलिए भारत जैसे देश में धीरे-धीरे इंसानों और
जानवरों के बीच के आपसी संघर्ष की घटनाएं भी बढ़ रही हैं। हाथी भी जानवरों की उसी श्रेणी में आते हैं,
जिनसे उनका प्राकृतिक आवास छीन लिया गया और आज वे इंसानों (मुख्य रूप से किसानों) के लिए एक
सिरदर्द बन गए हैं।
जैसे-जैसे जानवरों का, प्राकृतिक वातावरण तेजी से खंडित होता जा रहा है, मानव और वन्यजीव संपर्क की
संभावनाएं भी बढ़ रही है। जब मनुष्य प्राकृतिक भूदृश्यों पर अतिक्रमण करते हैं, तो वन्यजीवों के साथ
उनके टकराव की संभावना और अधिक बढ़ जाती है। संघर्ष तब भी उत्पन्न हो सकता है, जब जंगली
जानवर किसानों की फसलों या उनके पालतू पशुओं को नुकसान पहुंचाते हैं, या जब मानवीय गतिविधियाँ
जानवरों के आवासों को नुकसान पहुँचाती हैं। उदाहरण तौर पर, भोजन की तलाश में हाथियों के लिए जंगल
के किनारे के क्षेत्र अत्यधिक आकर्षक माने जाते हैं, जो अक्सर उन्हें किसानों और परिपक्व फसलों के संपर्क
में लाते हैं।
"थाईलैंड में, देश की आधी आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है और कृषि पर निर्भर है।" वहां वनों की कटाई ने,
लगभग तीन से चार हजार जंगली हाथीयों के लिए निवास का संकट खड़ा कर दिया है, जिससे मनुष्यों और
हाथियों के बीच टकराव की संभावना और अधिक बढ़ गई है।" विशेषज्ञों का मानना है की, “जलवायु
परिवर्तन के कारण भी मानव-हाथी मुठभेड़ों की संभावना बढ़ रही है”, क्योंकि पर्यावरणीय परिस्थितियों में
बदलाव से हाथियों के व्यवहार और वितरण में भी परिवर्तन देखा जा रहा है।
हमारे पडोसी देश बांग्लादेश में हाल के वर्षों में इंसानी संघर्ष में कई जंगली मैमथ (wild mammoth) मारे
गए हैं, इसलिए वहां के वन विभाग ने जंगली हाथियों के संरक्षण और हाथी-मानव संघर्षों को कम करने के
लिए एक परियोजना चलाई है। परियोजना के अंतर्गत, हाथियों के लिए सुरक्षित आवास, प्रजनन और
खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से, 1,400 हेक्टेयर बागों में, ऐसे पोंधे लगाए जायेंगे, जिन्हें हाथी
खाना पसंद करते हैं! 150 हेक्टेयर कैलमस पाम गार्डन (Calamus Palm Garden) और 250 हेक्टेयर में
बांस उद्यान बनाए जाएंगे। जंगली हाथियों की दैनिक पानी की मांग को सुनिश्चित करने के लिए उनके
आवासों में, 15 छोटे-बड़े जलाशय और 50 खारे पानी के जलाशयों का निर्माण किया जाएगा। मानव-हाथी
संघर्ष को कम करने के लिए संवेदनशील जंगलों और गांवों की पारिस्थितिक सीमाओं के साथ लगभग 100
किलोमीटर की सौर ऊर्जा से चलने वाली बाड़ लगाई जाएगी। इसके अलावा, कैलमस टेनुइस पौधों
(calamus tenuis plants), नींबू और भारतीय बेर (बोरोई) के पेड़ों के साथ, लगभग 160 किलोमीटर की
पारिस्थितिक सीमा जैव-बाड़ स्थापित की जाएगी।यहां हाथी रिजर्व में एंटी डिप्रेशन स्क्वॉड (Anti
Depression Squad (ADS) का गठन किया जाएगा, जबकि 68 नए हाथी प्रतिक्रिया दल भी बनाए
जाएंगे। इन शानदार जानवरों की आवाजाही पर नजर रखने के लिए करीब 90 आरसीसी टावर (RCC
Tower) और 100 पारंपरिक ट्री टावर (tree tower) लगाए जाएंगे। साथ ही बच्चे, बीमार और घायल
हाथियों के लिए, सुरक्षित आश्रय हेतु, एक हाथी अनाथालय की स्थापना की जाएगी।
किसानों को हाथियों से बचाने के लिए अदरक, हल्दी, नींबू, खट्टे फल, मिर्च और अनानास जैसी फसलों की
खेती की जाएगी, जो हाथियों को पसंद नहीं होते हैं! इनके बीज और पौधे किसानों के बीच वितरित किए
जाएंगे, और उन्हें प्रशिक्षण तथा वित्तीय सहायता भी दी जाएगी। इसके अलावा, मानव-हाथी संघर्ष की
संभावना वाले क्षेत्रों और हाथियों के हमलों की चपेट में आने वाले परिवारों की पहचान की जाएगी।
अपने निवास स्थान के विनाश और वनों की कटाई के साथ-साथ हाथीदांत के अवैध शिकार के कारण हाथी
हमेशा खतरे में रहते हैं, जिस कारण हाथियों की आबादी में गिरावट जारी है। भारत के असम राज्य में भी
हाथियों द्वारा किसानों के खेतों और फसलों को नष्ट करने की घटनाएं आम हैं! लेकिन पिछले कुछ वर्षों में
वहां भी हाथियों से फसल की सुरक्षा करने हेतु, नीबू के पेड़ (बायोफेंस) लगाए जा रहे हैं, जो की कारगर भी
साबित हो रहे हैं।
पश्चिमी असम में मानस नेशनल पार्क के आसपास के गांवों में भी इसी तरह की बायोफेंस बनाने का विचार
रखा गया था। प्रोजेक्ट लीडर विभूति लहकर के अनुसार यहां के सौरगुड़ी में पांच किसानों को 500 नींबू के
पौधे दिए गए। चार वर्षों में, इन चारों में से एक किसान हजारिका के नींबू के पेड़ हाथियों के खिलाफ
शक्तिशाली अवरोध बन गए हैं।
इन नींबू के पेड़ों के कांटे और नींबू की गंध हाथियों को दूर भगाती है, और नींबू की उपज किसानों के लिए
आय के स्रोत के रूप में कार्य करती है। यहां का एक किसान अब प्रति सप्ताह 900-1,000 नींबू एकत्र कर
रहा है, और उन्हें खरीदारों को अच्छे दामों में बेच भी रहा है। हजारिका के अनुसार “ऑफ सीजन में, मैं 5
रुपये प्रति पीस के हिसाब से नींबू बेचता हूं, और पीक सीजन के दौरान वे 2 से तीन रुपये प्रति पीस के
हिसाब से बेचते हैं।“ उनका कहना है की, “नींबू के पेड़ों ने हमें बचाया है, और हाथी अब हमें परेशान नहीं
करते।”
संदर्भ
https://bit.ly/3QycHk2
https://bit.ly/3bezYHD
https://bit.ly/3xOxN58
चित्र संदर्भ
1. हाथी और नींबू को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. आपस में लड़ते हाथियों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. हाथियों के झुंड को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. अपने खेत में किसानों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. नींबू के पेड़ को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
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