नवाब सईद खान ने रामपुर रज़ा लाइब्रेरी को सार्वजनिक तौर पर सबके के लिए खुली की तथा उपलब्ध दुर्लभ पाण्डुलिपि एवं किताबों के संग्रह को ठीक से संयोजित करने की जिम्मेदारी अफ़ग़ान पंडित आघा युसूफ अली मौलवी को सौंप दी। इस दिन ब दिन बढ़ने वाले ज्ञान संचय को नवाब हामिद अली खान ने बनाए हुए हामिद मंजिल में सन 1957 में स्थानांतरित कर दिया गया था। आज भी रज़ा लाइब्रेरी इस ऐतिहासिक एवं वास्तुकला की सुन्दर मिसाल में बड़ी शान में स्थित है। नवाब हामिद अली खान ने हामिद मंजिल को सन 1904 में रामपुर किले के अंदरूनी क्षेत्र में बनवाया। चारबाग़ (पर्शियन) अंदाज़ में बने उद्यान से परिपूर्ण हामिद मंजिल इंडो-यूरोपियन शैली में बनाई गई हवेली है। वो नवाब हामिद अली खान और उनके परिवार का रहने का स्थान था। इस मंजिल का प्रवेशद्वार संगमरमर की फर्श से बनवाया था और सोने का पानी चढ़े छत पर बेल्जियन झूमर हैं। हामिद मंजिल के गलियारों में यूरोपीय पूर्णकाय स्वर्गीय अप्सराएँ और सुंदरियों के पुतले रखे हैं। प्रस्तुत चित्र हामिद मंजिल रज़ा लाइब्रेरी में परिवर्तित होने से पहले के हैं। 1. हामिद मंजिल की आलिशान ईमारत। 2. हामिद मंजिल का एक शयनगृह। 3. हामिद मंजिल का भोजन कक्ष। 4. हामिद मंजिल के गलियारे।
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