102 मिलियन वर्ष प्राचीन, अफ्रीकी डिप्टरोकार्प्स वृक्ष की भारत से दक्षिण पूर्व एशिया यात्रा, चुनौतियां, संरक्षण

रामपुर

 24-05-2022 07:33 AM
पेड़, झाड़ियाँ, बेल व लतायें

पक्षियों की चहचहाहट और मेंढकों के झुंड से लेकर हाथियों की गर्जना और बाघों के गुर्राने तक, दक्षिण पूर्व एशिया के जीवंत वर्षावन को जानवरों की एक विस्तृत श्रृंखला का घर माना जाता है, जिनमें से कई जानवर पृथ्वी पर पाए जाते हैं और कई जानवर अब पृथ्वी पर मौजूद नही हैं। दक्षिण पूर्व एशिया के वर्षावनों में संपूर्ण दुनिया के उष्णकटिबंधीय वर्षावनों का लगभग 15 प्रतिशत भाग शामिल है और यह उष्णकटिबंधीय वर्षावन इंडोनेशिया (Indonesia), मलेशिया (Malaysia), थाईलैंड (Thailand), म्यांमार (Myanmar), लाओस (Laos) तथा कंबोडिया (Cambodia) जैसे अन्य कई प्रायद्वीपों में फैले हुए हैं। दुनिया के 25 जैव विविधता हॉटस्पॉट में से चार हॉटस्पॉट को समेटे हुए, इस क्षेत्र में भिन्न भिन्न प्रकार की प्रजातियों का खजाना है, जिसमें मुख्य रूप से विलुप्त, करिश्माई जानवर जैसे गैंडे शामिल हैं।
2020 में, वैज्ञानिकों ने ग्रेटर मेकांग (Greater Mekong) क्षेत्र में 224 नई प्रजातियों की खोज की, जिसमें पौधों की 155 प्रजातियां शामिल थीं। जिनमें से एक प्रजाति डिप्टरोकार्प्स (Dipterocarps) भी थी। डिप्टरोकार्प्स का अर्थ ग्रीक में "दो पंखों वाला फल' होता है। यह एक किस्म के उष्णकटिबंधीय पेड़ हैं जिन्हें लकड़ी, सुगंधित तेल और राल के लिए व्यापक रूप से काटा जाता है। सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण साल पेड़, जिन्हें शोरिया रोबस्टा (Shorearobusta) के नाम से भी जाना जाता है, भारत के मूल निवासी हैं, जो उप-हिमालयी क्षेत्र में पाए जाते हैं। वे भी इसी परिवार से संबंधित हैं। ये पेड़ बहुत ऊंचे होते हैं, सामान्य तौर पर इनकी लंबाई लगभग 90 मीटर होती है। दुनिया का सबसे ऊंचा उष्णकटिबंधीय पेड़ शोरिया फागुएटियाना (ShoreaFaguetiana) भी डिप्टरोकार्प प्रजाति के परिवार का ही एक हिस्सा है।
भारत में गुजरात और राजस्थान सहित अन्य पश्चिमी राज्यों में खानों की खोज करने के दौरान, शोधकर्ताओं के एक अलग समूह को पराग जीवाश्मों का पता चला। शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम द्वारा उन नए खोजे गए सूक्ष्म पराग जीवाश्मों का निरीक्षण करने से पता चला है कि दक्षिणपूर्व एशियाई वर्षावनों में प्राप्त डिप्टरोकार्प्स नामक प्रजाति की उत्पत्ति लगभग 102 मिलियन वर्ष पहले मध्य-क्रेटेशियस काल के दौरान उष्णकटिबंधीय अफ्रीका (Africa) में हुई थी। उस समय, भारत दक्षिण दिशा की ओर अधिक नीचे स्थित था, जहाँ की जलवायु शुष्क थी और डिप्टरोकार्प्स के लिए प्रतिकूल थी, जिस कारण वहां डिप्टरोकार्प्स की उत्पत्ति नहीं हुई। लेकिन इसके 30 मिलियन वर्ष बाद, भारतीय उपमहाद्वीप उत्तर दिशा की ओर बढ़ गया था, जहां जलवायु गर्म और आर्द्र थी जो डिप्टरोकार्प्स के लिए अनुकूल जलवायु का निर्माण करती थी। संभवतः अफ्रीका और भारत को जोड़ने वाले एक प्राचीन द्वीप आर्क के माध्यम से यह पेड़ भारतीय उपमहाद्वीप में फैल गए, जिसे कोहिस्तान लद्दाख द्वीप आर्क (Kohistan Ladakh Island Arc) के रूप में जाना जाता है। भारत ने अपनी उत्तर दिशा की ओर यात्रा जारी रखी और अंततः एशियाई भूभाग से टकरा गया। इस घटना के माध्यम से दक्षिण पूर्व एशिया में इन विशाल पेड़ों के फैलाव के लिए एक प्रवेश द्वार खुल गया था। भारत में फैलने के बाद ये प्रजातियां दो विनाशकारी घटनाओं से बचने में सफल रही और फिर इन्होंने पृथ्वी पर जीवन को बहुत प्रभावित किया।
कुछ सदियों से लोगों का मानना था कि डिप्टरोकार्प्स प्रजाति की उत्पत्ति दक्षिण पूर्व एशिया में हुई और फिर वे दक्षिण पूर्व एशिया से अफ्रीका तक फैल गए लेकिन द नेचर कंजरवेंसी इन इंडिया (The Nature Conservancy in India) के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक और अध्ययन के सह-लेखक कहते हैं कि डिप्टरोकार्प्स की उत्पत्ति अफ्रीका में हुई और फिर भारत में फैली तथा उसके पश्चात भारत से ही बाहर के देशों में फैली। डिप्टरोकार्पेस परिवार की कई प्रजातियां काफी लंबी हो सकती हैं।
दुनिया का सबसे ऊंचा उष्णकटिबंधीय पेड़, येलो मेरांटी (Yellow Meranti)है। इसका वास्तविक नाम शोरिया फागुएटियाना (Shorea Faguetiana) है। अब यह प्रजाति विलुप्त होने लगी है। इसे पहली बार 2014 में एक हवाई सर्वेक्षण के दौरान खोजा गया था। यह वृक्ष मलेशियाई बोर्नियो सबा (Malaysian Borneo Sabah) में वर्षावन के एक संरक्षित पथ में स्थित है। 2019 में, पर्वतारोहियों द्वारा इस पेड़ को लगभग 100 मीटर लंबा नापा गया था। वैज्ञानिकों का मानना ​​​​है कि भविष्य के हवाई सर्वेक्षण इस क्षेत्र में इस प्रजाति के और भी ऊंचे पेड़ों की खोज कर सकते हैं। उल्लेखनीय रूप से, भारत में डिप्टरोकार्प्स लगभग 66 मिलियन वर्ष पहले दो प्रलयकारी घटनाओं से बचे थे। पहली, मेक्सिको की खाड़ी (Gulf of mexico) में क्रेटेशियस-पैलियोजीन (Cretaceous- Paleogene) क्षुद्रग्रह का प्रभाव और दूसरी, पश्चिम-मध्य भारत में डेक्कन ट्रैप जो कि भूमि पर दूसरा सबसे बड़ा ज्वालामुखी विस्फोट था। यह विस्फोट संपूर्ण फ्रांस (France) के आकार के क्षेत्र के बराबर माना जाता है। माना जाता है कि इन घटनाओं ने बड़े पैमाने पर कई प्रकार की प्रजातियों के विलुप्त होने की शुरुआत की, जिसमें डायनासोर सहित पृथ्वी पर 75 प्रतिशत जीवन का सफाया हो गया। इन घटनाओं के बाद, भारतीय प्लेट पर डिप्टरोकार्प्स अनगिनत हो गए। उष्णकटिबंधीय वर्षावन एक बार पश्चिमी भारत में काफी फले-फूले, लेकिन उस क्षेत्र का अधिकांश भाग अब मरुस्थल है। भारत के एशिया से टकराने के बाद जलवायु में परिवर्तन होने लगा। नागराजू बताते हैं कि, "हिमालय के उदय ने भारत की जलवायु को काफी हद तक बदल दिया था।
आर्द्र, गीली जलवायु कई जगहों पर शुष्क जलवायु में परिवर्तित हो गई, और यही एक मुख्य कारण है कि वैज्ञानिकों ने दावा किया कि शायद भारत में बहुत सारे डिप्टरोकार्प विलुप्त हो गए।" अब, भारत में डिप्टरोकार्प्स दक्षिण में, कर्नाटक से दक्षिण भारत के सिरे तक और उत्तर-पूर्व में और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में पाए जाते हैं। आप उन्हें ज्यादातर पश्चिमी घाट में पा सकते हैं, जहां इसी तरह की लगभग 15 से 16 प्रजातियां हैं। उत्तर पूर्व में, आपको लगभग 5 से 6 प्रजातियाँ मिल सकती हैं। डिप्टरोकार्प्स द्वारा एक लंबी अंतरमहाद्वीपीय यात्रा करने के पश्चात भारत तथा अन्य एशियाई देशों में विस्तृत होना तथा इसके साथ-साथ ज्वालामुखी विस्फोटों, टेक्टोनिक प्लेटों की गति, डायनासोरों को मारने वाले घातक उल्कापिंड की टक्कर और पिघले हुए लावा से डेक्कन ट्रैप के निर्माण से बचना कोई साधारण विषय नहीं हो सकता। इस सभी चुनौतियों से ये कठोर पौधे बचे रहे।
लेकिन अब इन वृक्ष प्रजातियों का भविष्य मनुष्यों द्वारा खतरे में है। केवल कुछ लकड़ी के लिए उन प्रजातियों का वृहद पैमाने पर शोषण किया जा रहा है। एक प्रसारित रिपोर्ट के आंकड़ों के अनुसार 1990 और 2010 के बीच, मनुष्यों ने केवल कुछ लकड़ियों के लिए दक्षिण पूर्व एशिया में 32 मिलियन हेक्टेयर वर्षावनों को नष्ट कर दिया। वृक्षों के शोषण के इस दर पर, वैज्ञानिकों का कहना है कि इस सदी के अंत तक इस क्षेत्र के लगभग आधे जानवरों और पौधों के विलुप्त होने की संभावना है। जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग ने नाजुक वर्षावन के पारिस्थितिकी तंत्र को और अधिक खतरे में डाल दिया है।

संदर्भ:
https://bit.ly/3MFXlYi
https://bit.ly/3wyhERX

चित्र संदर्भ
1 डिप्टरोकार्प्स जंगल को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. उलु मुदा वन के पेड़ को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. डिप्टरोकार्प्स का अर्थ ग्रीक में "दो पंखों वाला फल' होता है। जिसको दर्शाता एक चित्रण (istock)
4. विश्व के सबसे ऊँचे उष्णकटिबंधीय वृक्ष को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5.डिप्टरोकार्पस ओबटुसिफोलियस को दर्शाता एक चित्रण (flickr)



RECENT POST

  • मेहरगढ़: दक्षिण एशियाई सभ्यता और कृषि नवाचार का उद्गम स्थल
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:26 AM


  • बरोट घाटी: प्रकृति का एक ऐसा उपहार, जो आज भी अनछुआ है
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:27 AM


  • आइए जानें, रोडिन द्वारा बनाई गई संगमरमर की मूर्ति में छिपी ऑर्फ़ियस की दुखभरी प्रेम कहानी
    म्रिदभाण्ड से काँच व आभूषण

     19-11-2024 09:20 AM


  • ऐतिहासिक तौर पर, व्यापार का केंद्र रहा है, बलिया ज़िला
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:28 AM


  • इस अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस पर चलें, ऑक्सफ़र्ड और स्टैनफ़र्ड विश्वविद्यालयों के दौरे पर
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:27 AM


  • आइए जानें, विभिन्न पालतू और जंगली जानवर, कैसे शोक मनाते हैं
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:15 AM


  • जन्मसाखियाँ: गुरुनानक की जीवनी, शिक्षाओं और मूल्यवान संदेशों का निचोड़
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:22 AM


  • जानें क्यों, सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों में संतुलन है महत्वपूर्ण
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:17 AM


  • आइए जानें, जूट के कचरे के उपयोग और फ़ायदों के बारे में
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:20 AM


  • कोर अभिवृद्धि सिद्धांत के अनुसार, मंगल ग्रह का निर्माण रहा है, काफ़ी विशिष्ट
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:27 AM






  • © - , graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id