उपवास का इस्लामी पवित्र महीना और नए महीने शव्वाल (Shawwal) के पहले दिन के स्वागत
तथा रमजान (Ramadan) के अंत को चिह्नित करने वाला एक उत्सव है "ईद-उल-फितर" (Eid-al-
Fitr) जिसे "छोटी ईद" के रूप में भी जाना जाता है। हर साल चांद के दिखने से तय होती है यह
तारीख और ग्रेगोरियन कैलेंडर (Gregorian calendar) पर हर साल बदलती रहती है। ईद की
शुरुआत सांप्रदायिक प्रार्थना से होती है, जिसके बाद प्रवचन या खुतबा (khutba) होता है और अगले
दिन उत्सव मनाया जाता है, भोजन और उपहारों का आदान-प्रदान किया जाता है तथा दान या
ज़कात (zakat) इत्यादि किया जाता है।
विशेष रूप से 'ज़कात अल-फितर' (Zakat al-Fitr), यह
ईद-उल-फितर की ज़कात है जो प्रत्येक आर्थिक रूप से सक्षम मुस्लिम द्वारा गरीबों को दी जाती है,
यह सुनिश्चित करने के लिए कि जो लोग आर्थिक रूप से कम भाग्यशाली हैं वे भी इस आनंदमय
उत्सव में भाग ले सकें। इस्लामी परंपरा में ईद की प्रार्थना को ईद की नमाज़ या सलात अल-ईदी(Salat al-Eid) कहा जाता है। अरबी (Arabic) में "ईद" शब्द का शाब्दिक अर्थ "त्योहार" या
"दावत" होता है। इस समय मुसलमान परिवार और बड़े मुस्लिम समुदाय साथ मिलकर जश्न मनाने
के लिए एकत्रित होते हैं। आम तौर पर इस्लामी चंद्र कैलेंडर (lunar calendar) के अनुसार दो
केंद्रीय ईद होती हैं, इसीलिए इसका अतिरिक्त नाम सलात अल-ईदी है जिसका अर्थ अरबी में "दो ईद
की प्रार्थना" होता है। ईद अल-अधा (Eid al-Adha), जिसे "बड़ी ईद" या "बलिदान की ईद" के रूप
में भी जाना जाता है, धू अल-हिज्जाह (Dhu al-Hijjah) के 10 वें दिन मनाई जाती है। धू अल-
हिज्जाह, इस्लामिक चंद्र कैलेंडर का अंतिम महीना है, जिसमें मक्का (Mecca) की हज यात्रा (Hajj
pilgrimage) का इस्लामी स्तंभ किया जाता है। ईद का यह दिन, इस्लाम में सबसे पवित्र दिन
"अराफा का दिन" माना जाता है और अल्लाह द्वारा परीक्षण किए जाने पर पैगंबर इब्राहिम
(Prophet Ibrahim's) की आज्ञाकारिता और विश्वास के स्मरणोत्सव के रूप में कार्य करता है। इस
दिन सक्षम मुसलमान एक जानवर की बलि चढ़ाते हैं, जिसका प्रावधान दोस्तों, परिवार और गरीबों
के बीच समान रूप से दान के रूप में वितरित किया जाता है। जो लोग कुर्बानी की पेशकश करने में
असमर्थ होते हैं, वे इसके स्थान पर ज़कात का दान देते हैं।
इस्लामी प्रार्थना या नमाज़ के विशिष्ट अनुष्ठानों ने कई प्राच्यवादी चित्रकारों (Orientalist
painters) की कल्पना को मोहित किया है। इस्लामी कला आमतौर पर गैर-आलंकारिक रूप में होती
है, लेकिन प्राच्य चित्रों ने अनजाने में एक ऐसा व्यापक दृश्य प्रदान किया है, जो यह दर्शाता है कि
18 वीं और 19 वीं शताब्दी में इस्लामी दुनिया कैसी दिखती थी। हालांकि, कुछ लोगों ने इसकी
आलोचना भी की है, उनका मानना है कि प्राच्यवादी कार्यों को फ्रांसीसी साम्राज्यवाद (French
Imperialism) के प्रचार के रूप में इस्तेमाल किया गया था। हाल के दिनों में मध्य पूर्व के
संग्रहकर्ता अपनी विरासत के अर्ध-ऐतिहासिक दस्तावेजों के रूप में, प्राच्यवादी कार्यों की मांग को पूरा
करने में महत्वपूर्ण रहे हैं। हालांकि पेंटिंग्स अतीत का एक रूमानीकरण संस्करण होने की संभावना है,
लेकिन प्राच्यवाद को कट्टरता के रूप में निंदा करना अन्याय होगा। जीन-लियोन गेरोम (Jean-
Leon Gerome) एक फ्रांसीसी (French) चित्रकार थे, उनके चित्र उनकी मिस्र (Egypt) और
मध्य पूर्व की यात्राओं से प्रेरित थे, जिसका कम से कम दो-तिहाई हिस्सा प्राच्यवादी विषयों को
समर्पित है।
उन्होंने अपने जीवन में छह बार मिस्र का दौरा किया, उनका कुशल ब्रशवर्क, पूजा
अनुष्ठान की गंभीरता और अनुयायियों की भक्ति को विस्तार से दर्शाता है। अपने जीवन काल के
दौरान गेरोम ने काफी वित्तीय सफलता का आनंद लिया, जिसके कारण उन्हें अपने साथी कलाकारों से
काफी निंदा भी मिली। वसीली वीरशैचिन (Vasily Vereshchagin) एक रूसी (Russian)
चित्रकार, सैनिक और यात्री थे, वीरशैचिन को पेरिस (Paris) में गेरोम द्वारा संक्षेप में पढ़ाया गया
था, इसलिए उन्हें कभी-कभी रूसी गेरोम के रूप में भी जाना जाता है। वीरशैचिन अपने गुरु के
तरीकों से असहमत थे, लेकिन गेरोम का प्रभाव उनके शिष्य की कलाकृतियों में स्पष्ट नजर आता
है। वीरशैचिन ने बड़े पैमाने पर यात्रा की तथा तिब्बत और भारत के लिए भी अपना रास्ता बनाया।
उन्हें उत्तरी भारत के प्राकृतिक परिदृश्य और मुगल स्मारकों से प्रेरणा मिली। दिल्ली की पर्ल मस्जिद
(Pearl Mosque) उनकी सबसे प्रसिद्ध पेंटिंग में से एक है। उनकी एक अन्य पेंटिंग आगरा की
पर्ल मस्जिद में दी गई नमाज़ का प्रतिपादन भी करता है।
एडविन लॉर्ड वीक्स (Edwin Lord Weeks) एक प्रसिद्ध अमेरिकी (American) प्राच्यवादी और
खोजकर्ता थे, जिन्हें पेरिस में जीन-लियोन गेरोम और लियोन बोनट (Leon Bonnat) के संरक्षण
से भी काफी लाभ हुआ था। अन्य चित्रकारों की तरह लॉर्ड वीक्स ने भी बड़े पैमाने पर यात्रा की और
अपनी पत्रिकाओं के माध्यम से अपनी यात्रा को सूचीबद्ध किया। कला में ईद-उल-फितर के उदाहरणों
में से एक उदाहरण स्पेन (Spain) में कॉर्डोबा (Cordoba) की 8 वीं शताब्दी की मस्जिद में
स्थापित है, जिसे अब मेज़क्विटा-कैथेड्रल (Mezquita-Catedral) या मस्जिद-कैथेड्रल (Mosque-
Cathedral) के रूप में जाना जाता है। यह सदियों से पवित्र माने जाने वाले मैदानों पर बनी एक
आश्चर्यजनक संरचना है और यह स्मारक इस्लाम और ईसाई (Christianity) दोनों धर्मों के लिए
पूजा का घर है। चार्ल्स रॉबर्टसन (Charles Robertson) एक कुशल कलाकार माने जाते हैं,
जिनके निजी जीवन के विषय में किसी को भी ज्यादा जानकारी प्राप्त नहीं है, इनका निजी जीवन
काफी हद तक एक रहस्य ही बना हुआ है।
हालाँकि हमें उनके बारे में यह उल्लेख मिलता है कि
उन्होंने 1872 में तुर्की (Turkey), 1876 में मिस्र (Egypt) और मोरक्को (Morocco), 1889 में
कॉन्स्टेंटिनोपल (Constantinople), जरुशलम (Jerusalem), दमिश्क (Damascus) और काइरो
(Cairo) की यात्रा की। उनके लिए यह यात्रा निस्संदेह 19 वीं शताब्दी की एक आश्चर्यजनक
उपलब्धि थी। कला के विषय में देखा जाए तो ईद-उल-फितर के इस काम में काइरो की प्रसिद्ध
सुल्तान हसन मस्जिद (Sultan Hasan Mosque) सर्वोपरि है, जो अपने वृहत आकार और नवीन
वास्तुशिल्प अवधारणाओं के लिए काफी प्रसिद्ध है। इस मस्जिद का नाम इसके संरक्षक, सुल्तान ए-
नासिर हसन (Sultan an-Nasir Hasan) के नाम पर रखा गया था, जो 1347 और 1351 के
बीच मिस्र के शासक थे। इस मस्जिद का निर्माण 1363 में पूर्ण हुआ और यह अभी तक सबसे
प्रेरणादायक बनी हुई है। हालांकि इसके बाद के वर्षों में इसमें कई परिवर्तन और सुधार किए गए।
लुडविग ड्यूट्स (Ludwig Deutsch) लगभग दो दशकों तक एक उल्लेखनीय ऑस्ट्रियाई
(Austrian) इतिहासकार थे।
उनकी कला की शिक्षा "विएना एकेडमी ऑफ फाइन आर्ट्स" (Vienna
Academy of Fine Arts) में शुरू हुई थी, पेरिस (Paris) में उनके स्थानांतरण के बाद वह
गंभीर रूप से इतिहास की खोज तथा अन्य इतिहास संबंधित कार्यों से जुड़ गए थे। ड्यूट्स का निजी
जीवन भी चार्ल्स रॉबर्टसन की तरह कुछ हद तक एक रहस्य ही बना हुआ है क्योंकि उनकी
जीवनयात्रा को आगे बढ़ाने वाली कोई व्यक्तिगत डायरी, पारिवारिक रिकॉर्ड या जीवनी लेखन नहीं है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3Fbuus3
https://bit.ly/3y3NKpS
https://bit.ly/39vCZCz
चित्र संदर्भ
1 जामा मस्जिद में ईद की नमाज़ को दर्शाता एक चित्रण (Pixabay)
2. दिल्ली की जामा मस्जिद, भारत में ईद अल-फितर सामूहिक प्रार्थना को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. कुर्बानी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. जीन-लियोन गेरोम (Jean- Leon Gerome) एक फ्रांसीसी (French) चित्रकार को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. सुल्तान हसन मस्जिद (Sultan Hasan Mosque) को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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