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समुद्र और महासागरों में माल परिवहन के लिए आजकल जिन जहाजों का उपयोग किया जाता है, वे
बड़े मजबूत और स्व-चालित जहाज हैं। लेकिन प्राचीन समुद्री दुनिया इससे अलग थी, सदियों पहले
ऐसा नहीं था। प्राचीन काल में लोग छोटे जल निकायों को पार करने के लिए राफ्ट (rafts), बांस के
लट्ठे, नरकट के गट्ठरों, हवा से भरे जानवरों की खाल और डामर से ढकी टोकरियों का इस्तेमाल
करते थे, जबकि वर्तमान समय के जहाजों को बनने के लिए भी अनगिनत शताब्दियों के विकास से
गुजरना पड़ा है। प्राचीन समय की पहली नाव लाठी का एक साधारण फ्रेम था, जिसे सटीक होने के
लिए एक साथ बांधकर विशेष रूप से सिलने वाली खाल के साथ कवर किया गया था। ये नावें भारी
और बड़े सामानों को आसानी से ले जा सकती थी। उत्तर अमेरिकी (North American) मैदानों की
बुल बोट्स (bull boats), इनुइट्स (Inuit’s) की कश्ती और ब्रिटिश (British) द्वीपवासियों के
कोरैक (coracks) प्राचीन नौकाओं के कुछ उदाहरण हैं। इनके अलावा एक अन्य प्राचीन नाव
डगआउट (dugout) थी, जो एक लकड़ी का कुन्दा था जिसे खोखला किया जाता था और सिरों को
नुकीला बनाया जाता था। इनमें से कुछ साठ फीट तक लंबे हुआ करते थे।
प्राचीन समुद्री इतिहास मानवता की ताकत और अस्तित्व की प्रवृत्ति पर आधारित था। उस समय
लोग अपनी छोटी नावों में पैडल मारने के लिए साधारण चप्पू के स्थान पर अपने हाथों का इस्तेमाल
करते थे। धीरे-धीरे लोगों ने रचनात्मक प्रवृत्ति और कौशल का उपयोग करके डंडो को चपटा और एक
छोर पर चौड़ा करके उन्हें नया स्वरूप देना सीखा, इस प्रकार पैडल को गहरे पानी में इस्तेमाल करने
के लिए डिज़ाइन किया गया था। बाद में नावों के किनारों पर चप्पू बनने के लिए इसे फिर से नया
स्वरूप दिया गया। जैसे-जैसे विदेशी व्यापार अधिक महत्वपूर्ण होने लगा, जहाजों के विकास में भी
तेजी आने लगी।
समुद्री इतिहास हजारों साल पुराना है, प्राचीन समुद्री इतिहास में सभ्यताओं के बीच समुद्री व्यापार के
प्रमाण, कम से कम दो सहस्राब्दियों से भी पहले के हैं। डगआउट डोंगी को सबसे पहली प्रागैतिहासिक
नाव माना जाता है, जिसे विभिन्न पाषाण युग की आबादियों द्वारा स्वतंत्र रूप से विकसित किया
गया था। समुद्र में जाने वाली पहली नावों का आविष्कार ऑस्ट्रोनेशियन (Austronesian) लोगों
द्वारा किया गया था, जिसमें मल्टीहल (multihulls), आउटरिगर (outriggers), केकड़ा पंजा पाल
(crab claw sails) और तंजा पाल (tanja sails) जैसी नई तकनीकों का उपयोग किया गया था।
इसने ऑस्ट्रोनेशियनों के प्रसार को भारतीय और प्रशांत महासागर (Pacific Oceans) के द्वीपों में
सक्षम बनाया, जिसे "ऑस्ट्रोनेशियन विस्तार" के रूप में जाना जाता है। लगभग 1000 से 600 ईसा
पूर्व तक उन्होंने दक्षिण एशिया (South Asia) और अरब सागर (Arabian Sea) में समुद्री
व्यापार मार्गों की नींव रखी, जो बाद में "समुद्री रेशम मार्ग" (Maritime Silk Road) बन गया।
लाल सागर (Red Sea) के माध्यम से मिस्रवासियों (Egyptians) के पास व्यापार मार्ग थे, जिससे
वे "पंट की भूमि" ("Land of Punt") और अरब (Arabia)से मसालों का आयात करते थे। बाद में
समुद्री व्यापार मार्गों में मसालों के स्रोत की खोज ने अन्वेषण के युग को जन्म दिया।
भारतीय समुद्री इतिहास के संकेत तीसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व के हैं, जब सिंधु घाटी के निवासियों ने
मेसोपोटामिया (Mesopotamian) के साथ समुद्री व्यापार संपर्क बनाने शुरू किये थे। 3000 ईसा
पूर्व तक सिंधु नदी के आसपास के क्षेत्रों में, समुद्री यात्राओं की आवृत्ति और लंबाई दोनों में स्पष्ट
वृद्धि दिखाई देने लगी थी। 2900 ईसा पूर्व तक इस क्षेत्र में लंबी दूरी की यात्राओं के लिए युक्ततम
स्थितियां मौजूद थीं। मेसोपोटामिया के अभिलेखों से संकेत मिलता है, कि सिंधु घाटी के भारतीय
व्यापारी, तांबा, दृढ़ लकड़ी, हाथीदांत, मोती,कारेलियन (carnelian) और सोने के साथ, 2300 ई.पू
अक्कड़ के सरगोन (Sargon of Akkad) के शासनकाल के दौरान मेसोपोटामिया में सक्रिय थे।
सिंधु घाटी की पूर्व-आधुनिक समुद्री यात्रा पर गोश एंड स्टर्न्स (Gosch & Stearns) लिखते हैं कि,
इस बात के प्रमाण मौजूद हैं कि हड़प्पावासी जहाजों पर सुमेर (Sumer) के लिए काष्ठ, विशेष
लकड़ी और लैपिस लाजुली (lapis lazuli) जैसी विलासिता की वस्तुओं की थोक-शिपिंग कर रहे थे।
लैपिस लाजुली का व्यापार उत्तरी अफगानिस्तान (Afghanistan) से पूर्वी ईरान (Iran) और सुमेर
तक किया जाता था, लेकिन हड़प्पा काल के दौरान बदक्षन खानों (Badakshan mines) के पास
मध्य एशिया (Central Asia) में शॉर्टुगई (Shortugai) में एक सिंधु कालोनी स्थापित की गई
और लैपिस पत्थरों को गुजरात में लोथल (Lothal) में लाया गया और ओमान (Oman), बहरीन
(Bahrain) और मेसोपोटामिया भेज दिया गया था। वैदिक अभिलेखों के अनुसार, भारतीय व्यापारियों
और सौदागरों ने सुदूर पूर्व और अरब (Arabia) के साथ व्यापार किया था। तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व
मौर्य काल के दौरान, जहाजों और व्यापार की निगरानी के लिए एक "नौसेना विभाग" भी स्थापित
किया गया था। अगस्तस (Augustus) के शासनकाल के दौरान पहली शताब्दी ईसा पूर्व के अंत में
भारतीय उत्पाद रोमनों (Romans) तक पहुंचे, रोमन इतिहासकार स्ट्रैबो (Strabo) ने मिस्र
(Egypt) के रोमन कब्जे के बाद भारत के साथ रोमन व्यापार में वृद्धि का भी उल्लेख किया है।
जैसे-जैसे भारत और ग्रीको-रोमन दुनिया के बीच व्यापार में वृद्धि होनी शुरू हुई, मसाले ने रेशम
और अन्य वस्तुओं को किनारे कर दिया और भारत से पश्चिमी दुनिया में मुख्य आयात बन गए।
संदर्भ:
https://bit.ly/3NNlRYD
https://bit.ly/3NOiHDP
https://bit.ly/3x1UGDx
चित्र संदर्भ
1. दक्षिण चीन सागर की समुद्री डकैती को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. हाइफ़ा-समुद्री-संग्रहालय-रोमन-व्यापारी-जहाज- को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. कुछ पुराने जहाजों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. 8 वीं शताब्दी के बोरोबुदुर जहाजों में से एक, वे बड़े देशी आउटरिगर व्यापारिक जहाजों के चित्रण थे जिनको दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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