झींगा मछलियों की वैश्विक मांग और भारत में झींगा मछली की खेती का महत्व

समुद्री संसाधन
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झींगा मछलियों की वैश्विक मांग और भारत में झींगा मछली की खेती का महत्व

झींगा मछली (Lobster) जैसे उच्च मूल्य वाले समुद्री भोजन की लगातार बढ़ती मांग ने मत्स्य पालन उत्पादन को चरम सीमा पर पहुंचा दिया है। झींगा मछली अत्यधिक कीमत वाले समुद्री भोजन हैं‚ जिनकी अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बड़ी मांग है। यह एक स्वादिष्ट भोजन है जिसका आनंद दुनिया भर में लिया जाता है‚ विशेष रूप से जीवित झींगा मछलियों को सबसे अधिक पसंद किया जाता है। संपन्न देशों के ग्राहक ताजे समुद्री भोजन के लिए अधिक भुगतान करने को भी तैयार होते हैं। झींगा मछलियों को जीवित (live)‚ जमी हुई पूंछ (frozen tails)‚ पूरा जमा हुआ (whole frozen)‚ पूरा ठंडा (whole chilled)‚ पूरा पका हुआ (whole cooked)‚ जमा हुआ (frozen) और लॉबस्टर मांस (lobster meat) जैसे विभिन्न रूपों में में निर्यात किया जाता है।
झींगा मछली पालन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका उपयोग 20 वीं शताब्दी की शुरुआत से ही क्रस्टेशियंस (crustaceans) से मांस की उच्च मांग को पूरा करने के लिए किया जाता रहा है। अत्यधिक कीमत वाले समुद्री क्रस्टेशियन होने केकारण झींगा मछली की खेती एक आकर्षक और लाभदायक विकल्प है। इनके रहने तथा बढ़ने में मदद करने के लिए स्वस्थ स्थान‚ स्वच्छ जल और मछली के चारे की आवश्यकता होती है। इनकी बढ़ती मांग के कारण‚ सभी आकार के झींगो का विपणन किया जाता है। चीन (China) तथा यूरोप (Europe) में इसकी अधिक मांग है। इंट्राफिश (IntraFish) के अनुसार‚ 2017 में मेन झींगा मछली (Maine lobster) सीजन के लिए अच्छी संभावनाएं थीं। 2015 में 55‚500 टन झींगा मछली उतरी थीं। तीन साल से घटती हुई लैंडिंग में 2016 में वापस उछाल आया जिसके बाद पर्यवेक्षक एक बहुत अच्छे वर्ष की उम्मीद करने लगे। मेन झींगा लैंडिंग का मूल्य US$533.1 मिलियन हुआ‚ जो 2015 के US$501.3 मिलियन से अधिक था। मूल्य में वृद्धि झींगे की बढ़ती कीमतों को भी दर्शाती है। झींगे की पहली कीमत 2012 में US$ 2.69 प्रति एलबी से बढ़कर 2013 में US$ 2.90 हो गई थी‚ फिर 2014 में US$ 3.70 प्रति एलबी और 2015 में US$ 4.09 प्रति एलबी पर पहुंच गई थी‚ लेकिन 2016 में थोड़ा सा गिर कर US$ 4.07 प्रति एलबी पर पहुंच गई थी। यह विकास घरेलू तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ती मांग को दर्शाता है। झींगा मछलियों की कई प्रजातियां उपलब्ध हैं। अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए तीन प्रकार की झींगा मछलियों की खेती की जा सकती है: (1) टाइगर लॉबस्टर (पैनुलीरस ऑर्नाटस) (Tiger lobster (Panulirus ornatus)) - ये अपने धब्बेदार पैरों के कारण अलग दिखाई देती है‚ (2) बैम्बू लॉबस्टर (पैनुलीरियस वर्सिकलर) (Bamboo lobster (Panulirius Versicolor)) - इनके पैरों पर धारियाँ होती हैं जो एक बाँस के तने जैसी दिखाई देती है‚ (3) आदिक-आदिक झींगा मछली (पैनुलीरस एडुलिस) (Adik-Adik lobster (Panulirus edulis)) - ये अपनी विशिष्ट लाल रंग की पीठ से पहचानी जाती है। खेती की जाने वाली सबसे आम झींगा मछलियों में‚ टाइगर और बैम्बू झींगा मछली शामिल हैं‚ क्योंकि वे तेजी से बढ़ते हैं और विपणन आकार को तेज करते हैं। ये तीनों प्रजातियां एक दूसरे से काफी अलग हैं तथा स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार में इनकी भारी मांग और लागत है। झींगा मछली की खेती करने के लिए अपने स्थान और इच्छित उत्पाद प्रकार के आधार पर इनमें से किसी भी नस्ल का चयन कर सकते हैं। इनके इष्टतम बढ़ते वातावरण को सुनिश्चित करने के लिए अपना तालाब तैयार करना महत्वपूर्ण है। इनके तालाबों को प्रमाणित सफाई एजेंटों और चूने का उपयोग करके अच्छी तरह से साफ और कीटाणुरहित किया जा सकता है‚ ये हानिकारक गैस और वायरस को बढ़ती सुविधा अनुसार हटा देता है। तालाब में गाय का गोबर जैसी प्राकृतिक खाद डालने तथा 5 से 7 दिनों तक रहने देने से जलीय जीवों की वृद्धि सुनिश्चित होती है और झींगा मछलियों की वृद्धि के लिए अच्छा वातावरण मिलता है। उचित पर्यावरण स्थिति के साथ भूमि आधारित होल्डिंग सिस्टम (land-based holding systems) में झींगा पालन सफलतापूर्वक किया जा सकता है।
विकट जल गुणवत्ता मापदंडों में विघटित ऑक्सीजन (oxygen)‚ अमोनिया (ammonia)‚ नाइट्राइट (nitrite) और कार्बन डाइऑक्साइड (carbon dioxide) की सांद्रता होती है। इस सिस्टम के अन्दर नाइट्रेट‚ पीएच स्तर‚ लवणता और क्षारीयता स्तर की एकाग्रता भी आवश्यक है। जलीय कृषि के लिए विस्तार को बढ़ावा देने की दुविधा को हल करने के साथ- साथ‚ पर्यावरण की दृष्टि से सुदृढ़ प्रौद्योगिकियों और कृषि पद्धतियों के विकास की मांग करना भी आवश्यक है। जब तक हैचरी प्रौद्योगिकी (hatchery technology) का व्यावसायीकरण नहीं होता‚ तब तक अल्पकालिक मेद (short- term fattening) के माध्यम से झींगा मछलियों का मूल्य संवर्धन संभव है। मूल्य संवर्धन के इरादे से कम मूल्य की झींगा मछलियों को पकड़ना और व्यावसायिक विकास के लिए जंगली पुएरुली (pueruli) की कटाई करना तकनीकी और आर्थिक रूप से संभव है। काँटेदार झींगा मछलियों (spiny lobsters) तथा उष्णकटिबंधीय प्रजातियों में अधिक अनुकूल विशेषताएं होती हैं‚ जो खेती की परिस्थितियों के अनुकूल होती हैं। नियंत्रित परिस्थितियों में उच्च माल-संग्रह के प्रति सहिष्णुता‚ नरभक्षण के बिना सामुदायिक जीवन और मजबूत बाजार मांग कुछ ऐसी विशेषताएं हैं‚ जो झींगा मछली को व्यापक रूप से स्वीकृत जलीय कृषि प्रजाति बनाती हैं। एक सतत जलीय कृषि अभ्यास के लिए‚ बीजों का हैचरी उत्पादन महत्वपूर्ण है। भारत में उपलब्ध बीजों में: पैनुलीरस होमरुशोमर्स (Panulirus homarushomarus)‚ पी. ऑर्नाटस (P. ornatus)‚ पी. पॉलीफैगस (P. polyphagus) और थेनस यूनिमैकुलैटस (thethenus unimacultus) आशाजनक प्रजातियां हैं। इन प्रजातियों को इनके रंग और रूपात्मक लक्षणों द्वारा पहचाना जा सकता है। यहां टी. ओरिएंटलिस (T. orientalis) का हैचरी उत्पादन स्थापित है‚ हालांकि इसकी खेती जंगली या पोस्ट लार्वा पर निर्भर करती है। झींगे के लार्वा का उत्पादन और उन्हें एक महीने तक तैयार करने का काम मत्स्य पालन या हैचरी में किया जाता है। 1 वर्ग मीटर के पेन में 150 से 200 ग्राम वजन की 10 झींगा मछलियों को रखा जा सकता है। सामान्य तौर पर प्रति एकड़ लगभग 10‚000 लार्वा के टुकड़े रखे जा सकते हैं।

संदर्भ:
https://bit.ly/3NDfION
https://bit.ly/3LBWqXY
https://bit.ly/3DvzcQy

चित्र संदर्भ
1. भोजन के तौर पर झींगा मछली को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. एक यूरोपीय झींगा मछली को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. बिक्री हेतु रखे गए रॉक लॉबस्टर को दर्शाता एक चित्रण (Pxfuel)
4. झींगा मछली जाल मछली पकड़ने की नाव को दर्शाता एक चित्रण (Pixabay)
5. झींगा मछली जालों दर्शाता एक चित्रण (Pixabay)