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"रामपुर!”, महज चार शब्दों के इस नाम में ऐसी अलौकिकता छिपी हुई है, कि इससे न केवल हमारे शहर
"रामपुर" के शीर्षक को सुशोभित किया गया, बल्कि "रामपुर" शब्द ने देश से बाहर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भीअपनी एक विशिष्ट पहचान हासिल की, वह भी संकट के ऐसे दौर में जब भारतीय, अंग्रेजी शासन और
गिरमिटिया मजदूरी का दोहरा दंश झेल रहे थे।
दरअसल ब्रिटिश शासन काल में गिरमिटिया मजदूरी, अंग्रेजी शासकों द्वारा चलाई गई एक, ऐसी व्यवस्था
को कहा जाता था, जिसके अंतर्गत भारत से मजदूरों को अनुबंधों (contracts / agreements) के तहत
विदेशों में काम करने के लिए भेजा जाता था।
1834 में, ब्रिटिश दासता उन्मूलन अधिनियम (British slavery abolition act) लागू हुआ, जिसने पूरे
साम्राज्य में दासता को समाप्त कर दिया। लेकिन शीघ्र ही इसके समरूप, ब्रिटिश साम्राज्य में गिरमिटिया
श्रम प्रणाली स्थापित कर दी गई। वर्ष 1834 से 1917 तक चली, इस अनुबंध प्रणाली के तहत, अंग्रेजों ने
भारतीय श्रमिकों को पांच साल के लिए नियुक्त किया, जिन्हें बागानों का काम सौंपा गया। जिसमें मुख्य
रूप से बागान श्रमिकों के रूप में लगभग 1.2 मिलियन भारतीय सेवा कर रहे थे।
इसी क्रम में एक ब्रिटिश उपनिवेश फिजी (British colony Fiji) के लिए, देश के गन्ना बागानों में काम
करने के लिए 60,965 भारतीय गिरमिटिया मजदूरों को भर्ती किया गया था। श्रमिक आम तौर पर निरक्षर
थे, इस प्रणाली को 'गिरमिट' ('समझौते' (agreement) शब्द से लिया गया) के रूप में जाना जाने लगा, और
बाद में मजदूरों को 'गिरमिटिया' कहा जाने लगा। उन श्रमिकों को पांच साल की अवधि के लिए काम पर
रखा गया था। श्रमिकों की भर्ती में संयुक्त प्रांत (United Provinces) और बिहार के गोंडा, बस्ती, फैजाबाद,
सुल्तानपुर, आजमगढ़, गोरखपुर, इलाहाबाद, जौनपुर, शाहाबाद और रायबरेली जिलों को चुना गया। इन
जिलों को अक्सर सूखा, बाढ़ और अकाल के रूप में प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ता था।
वास्तव में इन अनुबंधों को अंग्रेज़ों द्वारा, श्रमिकों पर किया गया एक धोखा माना जाता है। उन श्रमिकों को
बताया गया की फिजी में उन्हें भारत से अधिक धन दिया जायेगा, यहां तक की कुछ मामलों में उन्हें बताया
गया कि फिजी भारत का ही हिस्सा है, और वे पांच साल में अपने पैसे लेकर भारत वापस आ सकते हैं।
फ़िजी को आधिकारिक रूप से फ़िजी द्वीप समूह गणराज्य (फ़िजीयाई: Matanitu Tu-Vaka-i-koya ko
Viti) के नाम से जाना जाता है, यह दक्षिण प्रशान्त महासागर के मेलानेशिया में एक द्वीप देश है। यह न्यू
ज़ीलैण्ड के नॉर्थ आईलैंड (New Zealand's North Island) से करीब 2000 किमी उत्तर-पूर्व में स्थित है।
इसके समीपवर्ती पड़ोसी राष्ट्रों मे पश्चिम की ओर वनुआतु, पूर्व में टोंगा और उत्तर मे तुवालु (Vanuatu to
the west, Tonga to the east and Tuvalu to the north) हैं। 17वीं और 18वीं शताब्दी के दौरान डच
एवं अंग्रेजी खोजकर्ताओं ने फ़िजी की खोज की थी। 1970 तक फ़िजी एक अंग्रेजी उपनिवेश था। प्रचुर मात्रा
में वन, खनिज एवं जलीय स्रोतों के कारण फ़िजी प्रशान्त महासागर के द्वीपों मे सबसे उन्नत राष्ट्र है।
वर्तमान में पर्यटन एवं चीनी का निर्यात इसके विदेशी मुद्रा के सबसे बड़े स्रोत माने जाते हैं।
औपनिवेशिक काल के दौरान जब गिरमिटिया मजदूर फिजी पहुचे उन सभी को जल्द ही एहसास हो गया
कि, उनकी स्वतंत्रता खो गई है। विरोध करने वालों को बिना भोजन के आइसोलेशन (isolation) में रखा
जाता था, या अधीनता के लिए धमकाया जाता था। फ़िजी में परिवहन के लिए पंजीकृत 60,965 रंगरूटों में
से सैकड़ों की समुद्र में मृत्यु हो गई। रात के घंटों में, उनके शरीर को बिना किसी संस्कार या अनुष्ठान के
निपटा दिया जाता था। इस दौरान सैकड़ों लोगों ने आत्महत्या भी कर दी। गिरमिटिया मजदूरों का
इस्तेमाल करने वाले देशों में फिजी में शिशुहत्या की उच्चतम दर दर्ज की गई।
हालांकि यह क्रूर अनुबंध प्रणाली 1834 से शुरू हुई थी, और वर्ष 1917 में समाप्त कर दी गई, लेकिन आज
भी फिजी में 38% आबादी उत्तर प्रदेश और बिहार से ले जाए गए भारतीय मूल के गिरमिटिया वंशजों की है।
आज फिजी हिन्दी, फिजी में बोली जाने वाली प्रमुख भाषा है। इसे फ़िजियन हिन्दी या फ़िजियन
हिन्दुस्तानी भी कहते हैं। यह फिजी की आधिकारिक भाषाओं में से एक है। यह अधिकांशतः भारतीय मूल
के फिजी लोगों द्वारा बोली जाती है, जो देवनागरी लिपि और रोमन लिपि दोनों में लिखी जाती है।
वर्ष 1942 में द्वीपों के राष्ट्र फिजी में रामपुर शिक्षा संगठन के तहत रामपुर स्कूल और रामपुर कॉलेज, की
स्थापना की गई। आज 2500+ छात्रों के साथ यह, फिजी के सबसे बड़े और लोकप्रिय स्कूल और कॉलेज में
से एक है। फिजी में इस स्कूल को रामपुर नाम मिलने के पीछे का ऐतिहासिक कारण यह है की, फिजी में
इस विशेष स्थान (नकौलेवु या नवुआ) पर गिरमिटिया मजदूरों के लिए रामलीला का आयोजन किया जाता
था। रामपुर शिक्षा संगठन (Rampur Education Society History) को मूल रूप से 1942 में नवुआ
इंडियन स्कूल (Nakouleevu Indian School) के रूप में नामित किया गया था। इस स्कूल गठन के लिए
पंडित विष्णु देव ने सलाहकार, और श्री विष्णु नाथ और श्री शंकर नायर सिंह ने प्रस्तावक के रूप में फिजी
के लोगों की मदद की।
उन्होंने नवुआ के किसानों के साथ अपना एक स्कूल बनाने के लिए एक बैठक बुलाई। 5 नवंबर 1975 को
आयोजित एजीएम में, नकौलेवु के लोगों ने रामपुर प्राइमरी और रामपुर कॉलेज के सहयोग से नकौलेवु
इंडियन स्कूल से रामपुर एजुकेशन सोसाइटी का नाम बदलने का प्रस्ताव रखा। फिर 1978 में यहाँ हाई
स्कूल खोला गया, जिसके प्रथम प्राचार्य श्री आदि नारायण थे।
वर्ष 2018 में बॉलीवुड स्टार और “टूरिज्म फिजी” की ब्रांड एंबेसडर इलियाना डिक्रूज (Ileana D'Cruz) ने
बुधवार, 6 जून 2018 को नवुआ के रामपुर प्राइमरी स्कूल का दौरा भी किया था। डिक्रूज फिजी की युवा पीढ़ी
के लिए एक बड़ी प्रेरणा स्रोत के रूप में वहां पहुंची, और उन्होंने छात्रों से अपने सपने की दिशा में कड़ी
मेहनत करने और उन्हें पूरा करने का संदेश दिया।
संदर्भ
https://bit.ly/3JYXvbU
https://bit.ly/3wOwPXP
https://en.wikipedia.org/wiki/Fiji
https://www.himalmag.com/girmit-fiji/
चित्र संदर्भ
1. फिजी में रामपुर प्राइमरी स्कूल में समारोह को दर्शाता एक चित्रण (Twitter:
Faiyaz Koya on Twitter)
2. मॉरीशस पहुंचने वाले पहले गिरमिटिया भारतीय मजदूरों की दृश्य कला को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. फिजी में राष्ट्रिय उद्यान को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. रामपुर शिक्षा संगठन (Rampur Education Society) को दर्शाता एक चित्रण (facebook.com/rampureducationsociety)
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