रामपुर की रज़ा पुस्तकालय बहुत सारे प्राचीन और बेहद खुबसूरत पुस्तकों और पाण्डुलिपियों का घर है। रामपुर के नवाबों ने उनके कार्यकाल में पुरे दुनियाभर से काफी सारी पुरावस्तु, किताब एवं पांडुलिपियाँ संगृहीत की। इस संपूर्ण पुस्तकालय में जो इस्लामिक पाण्डुलिपियों का संग्रह है वह दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावशाली संग्रह माना जाता है। इस संग्रह को पूर्ण बनाने के लिए नवाबों ने अलग-अलग कार्यकर्ताओं और पंडितो को काम पर लगाया और बहुत बार वे खुद भी विश्व के अलग-अलग जगहों से पुराने हस्तलिखित ढूंढ के लाते और इस संग्रह में इजाफा करते। इस पुस्तकालय में सबसे ज्यादा योगदान निम्नलिखित नवाबों रहा: 1. नवाब कल्ब-ए-अली खान जिन्होंने मक्का से लौटते वक़्त 7-8वीं शती ईश्वी की पवित्र कुरान की पाण्डुलिपि लाये। 2. नवाब हामिद अली खान जिन्होंने रामपुर लाइब्रेरी को इंडो-इस्लामिक ज्ञान का केंद्र बनाया और अरबी पंडित हाफिज़ अली अहमद शौक़ की सारी पाण्डुलिपियों का सूचीपत्र बनाने के लिए नियुक्ति किया। 3. नवाब रज़ा अली खान ने लाइब्रेरी को आधुनिक बनाने के लिए इम्पीरियल लाइब्रेरी, कोलकाता से कैम्पबेल नाम के एक जानकार और अरबी पंडित इम्तियाज़ अली अर्शी की नियुक्ति की थी। उन्ही के नाम से आज रामपुर रज़ा लाइब्रेरी जानी जाती है और वे भारत की आज़ादी के बाद लाइब्रेरी के वाईस चेयरमैन भी थे। जैसा की हमने ऊपर बताया कि रज़ा लाइब्रेरी में इस्लामिक पाण्डुलिपियों का उम्दा संग्रह है लेकिन इसमें भी सबसे खुबसूरत है यहाँ के कुरान का संग्रह। यहाँ पर जो कुरान शरीफ हैं वे सभी हस्तलिखित हैं जो कपड़ा, चर्मपत्र, काग़ज़ आदि पर लिखी गयीं हैं। इनमे से कईयों को काफी खूबसूरती से सजाया गया है। सुलेखन कला जैसे कुफ़िक, नक्श और नस्तालिक़, सोने और लापीस लाजुली (लाजावर्द) से बने शब्द, या शब्दों तथा पंक्तियों के बीच भरकर और उनके बुरादे को पन्नों पर छिड़कर, कश्मीरी लाकुएर (लाख) जिल्दसाजीका इस्तेमाल कर इन पाण्डुलिपियों को सहेजा गया है। क्यूंकि इस्लाम के हिसाब से इंसान एवं पशुओं को चित्रित करना माना है, इस्लामी कारीगरों ने फूल-पत्तों-लताओं का बहुत सुन्दर इस्तेमाल, ज्यामितिक रचना और रेखाओं का तथा सुलेखन कला का विविधता से भरा इस्तेमाल कर इस्लामी कला के नए आयाम बनायें और इनका बहुत अच्छा प्रयोग किया। इन सभी में निचे दी गयी कुरान की पांडुलिपियाँ है जिनकी रज़ा लाइब्रेरी में प्रदर्शनी भी लगती है और रमज़ान में हामिद अली द्वारा लायी गयी कुरान को सबके लिए प्रदर्शित किया जाता है। 1. कुफ़िक में चर्मपत्र पर लिखी गयी कुरान जिसका श्रेय हज़रत अली (661 ईश्वी) को दिया जाता है। 2. कुफ़िक में चर्मपत्र पर लिखी गयी कुरान जिसका श्रेय इमाम मूसा रज़ा (9 c. ईश्वी) को दिया जाता है। 3. बगदाद राजसभा के प्रसिद्ध सुलेखक याकूत अल मुस्तासेमी ( 13 c.ईश्वी) ने बनाई सोने और लाजावर्द से सजी और कुफ़िक में लिखी हुई क़ुरान। 4. नवाब हामिद अली खान के कार्यकाल में लिखी हुई शाह वलीउल्ला देहलवी के पर्शियन विवरण और मौलाना मुहम्मद अब्दुल हक की उर्दू विवरण डी हुई कुरान। 5. अब्दुल्बकी हद्ददल-हर्वी ने नकल की हुई हर पंक्ति के बीच सोने से भरी हुई कुरान। 6. सोने के बुरादे से बने काग़ज़ पर कश्मीरी लाख का जिल्द का इस्तेमाल कर दिल्ली के मुह्हमद इस्मातुल्लाह खान, 1772 A.D. ने नकल की हुई कुरान। 7. 18 वी शताब्दी में बनाई गयी फूलों के सोने की जिदवल से सजी नक्श सुलेखन का इस्तेमाल कर कुरान की प्रति। 1. http://razalibrary.gov.in/# 2. http://razalibrary.gov.in/manuscripts.html 3. http://razalibrary.gov.in/SpecimensofCalligraphy.html 4.http://www.bbc.co.uk/religion/religions/islam/art/art_1.shtml 5. इस्लाम एंड रिलीजियस आर्ट https://www.metmuseum.org/learn/educators/curriculum-resources/~/media/Files/Learn/For%20Educators/Publications%20for%20Educators/Islamic%20Teacher%20Resource/Unit1.pdf 6. कैटेलॉग ऑफ़ द अरबिक मैनुस्क्रिप्ट्स इन रज़ा लाइब्रेरी, वॉल्यूम 1: इम्तियाज़ अली अर्शी http://rrldatabase.in/catalogue/pdf%20vol1.pdf 7. रज़ा लाइब्ररी, रामपुर, राज भवन, लखनऊ, उत्तर प्रदेश और भगवन शंकर (आई.ए.एस.), डाइरेक्टर, नॉर्थ सेंट्रल ज़ोन कल्चरल सेंटर, इलाहाबाद
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