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वर्तमान समय में ई-रिक्शा के देश के बाजार में ऑटोमोबाइल (Automobile)खंड में प्रवेश करने के साथ
यह कम दूरी के लिए उपयोग होने वाले वाहन के रूप में भी विकसित हुआ है। आज, ई-रिक्शा भारत
में लोगों को आजीविका प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।उनकी कम लागत और उच्च
दक्षता की वजह से उन्हें भारतीय सड़कों पर बड़े पैमाने पर स्वीकृत किया गया है।भारत में बैटरी से
चलने वाले, तीन पहियों वाले लगभग 15 लाख ई-रिक्शा हैं,जो 2011 के बाद से चीन (China) में बेची
गई इलेक्ट्रिक (Electric) यात्री कारों की कुल संख्या से काफी अधिक है।भारत में प्रत्येक महीने लगभग
11,000 नए ई-रिक्शा की अतिरिक्त बिक्री के साथ वृद्धि को देखा जा सकता है। ये आंकड़े अधिक
हो सकते हैं क्योंकि इसका एक बड़ा हिस्सा अभी भी अपंजीकृत है। बाजार में 2024 तक 9.25 लाख
ई-रिक्शा की बिक्री होने की उम्मीदकी जा रही है।इस वृद्धि के पीछे मुख्य विकास संचालक सहायक
सरकारी नीति परिदृश्य के साथ-साथ सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय लाभ हैं:
1. सामाजिक-आर्थिक लाभ: ई-रिक्शा की अग्रिम लागत इसके समकक्ष आईसीई (ICE) आधारित ऑटो-
रिक्शा की तुलना में काफी कम है। ई-रिक्शा की शुरुआती कीमत 0.6-1.1 लाख रुपये है, जबकि
आईसीई आधारित ऑटो-रिक्शा की कीमत 1.5-3 लाख रुपये है।
इसी तरह, एक ई-रिक्शा को चलाने
की लागत केवल 0.4 रुपये प्रति किलोमीटर है, जबकि आईसीई-आधारित रिक्शा के लिए 2.1-2.3
रुपये प्रति किमी है। ई-रिक्शा के रखरखाव में आईसीई-आधारित रिक्शा से काफी कम खर्चा आता है।
ई-रिक्शा उन साइकिल-रिक्शा चालकों को रोजगार के बेहतर अवसर प्रदान करते हैं जिनका व्यवसाय
तेजी से लुप्त हो रहा है।
2. पर्यावरणीय लाभ:ई-रिक्शा वायु और ध्वनि प्रदूषण को कम करने में मदद करते हैं। यदि संपीड़ित
प्राकृतिक गैस ऑटो को ई-रिक्शा से बदल दिया जाए तो एक दिन में कम से कम 1,036.6 टन
CO2 उत्सर्जन (सालाना 378,357 टन CO2) को कम किया जा सकता है।
3. सहायक नीति / मिशन / योजना: राष्ट्रीय विद्युत गतिशीलता मिशन, 2013 के माध्यम से निरंतर
समर्थन प्राप्त हुआ है; राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन 2013, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना, 2015; स्मार्ट
सिटी मिशन, 2015; इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण का तेज़ अनुकूलन(FAME I और II), ऋण, नियामक
ढांचे और प्रत्यक्ष सब्सिडी के रूप में राज्य की इलेक्ट्रिक वाहन नीति।
लेकिन जब दुनिया के सबसे बड़े ऑटो बाजार ने बैटरी से चलने वाली कारों की खरीद को प्रोत्साहित
करने के लिए महत्वपूर्ण सब्सिडी (Subsidy) को पेश किया, तब भारत के ई-आंदोलन को शायद ही
राज्य से कोई मदद प्राप्त हुई।बैटरी से चलने वाले ये ऑटो राजधानी में हजारों लोगों को आजीविका
प्रदान करते हैं, कई लोगों को थोड़ी दूरी की संयोजकता प्रदान करते हैं, सामान वितरित करते हैं और
वायु प्रदूषण को कम करते हैं। और फिर भी, वे दिल्ली में, या भारत में कहीं और सर्वव्यापी होने से
बहुत दूर हैं।देश में विद्युत संक्रमण में एक प्रमुख बाधा उधारकर्ताओं के लिए उच्च अग्रिम लागत
है।एक और बाधा बैटरी जैसे घटकों के दीर्घायु और भविष्य के उपयोग के बारे में अनिश्चिततापाई गई
है।इसके अलावा, देश का अधिकांश बाजार अनौपचारिक है, जो ऋण तक पहुंच को और अधिक जटिल
बनाता है। यदि भारत जलवायु के अनुकूल, टिकाऊ परिवहन पारिस्थितिकी तंत्र बनाना चाहता है, तो
इन मुद्दों को संबोधित करने की आवश्यकता होगी।
साथ ही 2014 में ई-रिक्शा संघ के सदस्यों ने आरोप लगाया था कि सैकड़ों ई-रिक्शा रखने वाले कई
लोगों ने उन्हें व्यावसायिक लाभ के लिए किराए पर देना शुरू कर दिया। जिसे देखते हुए उन्होंने
सरकार से एक व्यक्ति के पास होने वाले वाहनों की संख्या पर एक सीमा लगाने या कम से कम
उस दर को विनियमित करने का अनुरोध किए जिस पर वाहन को किराये पर दिया जाना चाहिए।
कई साइकिल रिक्शा चालकों ने ई-रिक्शा की ओर रुख किया है। तथा एक बैटरी रिक्शा की कीमत
लगभग 70,000 रुपये है, जबकि एक साइकिल रिक्शा की कीमत लगभग 10,000 रुपये है। इसलिए
एक गरीब रिक्शा चालक इसे वहन नहीं कर सकता। जिस वजह से कई लोग इस बात का फायदा
उठा रहे हैं। चूंकि कोई निश्चित दर नहीं है, मालिक मनमाने ढंग से 300 रुपये से लेकर 800 रुपये
प्रति दिन तक का शुल्क लेते हैं।ई-रिक्शा चालक ने दिल्ली सरकार से यह भी मांग की थी कि या तो
ड्राइवरों को बीमा आवरण प्रदान किया जाएं या किराए पर लेने वाले इन वाहनों के मालिकों को एक
प्रदान करने के लिए निर्देशित किया जाएं।
ऑटो-रिक्शा मालिकों और निजी वित्तदाता द्वारा शहर में ऑटो-रिक्शा उत्पादक संघ के गठन की
शिकायतों के बाद, शीला दीक्षित सरकार ने "एक-व्यक्ति, एक-परमिट" नीति को पेश किया था।और
साथ ही परिवहन विभाग ने सभी ई-रिक्शा चालकों को नोटिस जारी कर कहा कि वे अपने वाहन के
प्रकार को किसी मान्यता प्राप्त सरकारी संस्थान से स्वीकृत कराकर मोटर वाहन अधिनियम के तहत
उसका पंजीकरण कराएं।पर्यावरण निकाय टेरी (TERI) के एक अध्ययन के बाद अधिनियम के तहत
बैटरी रिक्शा को पंजीकृत करने का निर्णय लिया गया। अधिकारियों ने कहा कि अध्ययन में पाया
गया कि दिल्ली में चलने वाले इन वाहनों में से अधिकांश 250 वाट से अधिक बैटरी वाले इंजन का
उपयोग करते हैं और गैर-मोटर चालित वाहनों के लिए 25 किमी प्रति घंटे की गति सीमा से अधिक
है।विभाग ने सभी ई-रिक्शा ऑपरेटरों को हल्के वाणिज्यिक वाहन चलाने के लिए परमिट, ड्राइविंग
लाइसेंस और पीएसवी बैज प्राप्त करने का भी निर्देश दिया था।दिल्ली सरकार द्वारा निर्दिष्ट ई-रिक्शा
वाहन प्रकार के लिए अनुमोदन अहमदनगर में वाहन अनुसंधान और विकास प्रतिष्ठान; पुणे में
ऑटोमोटिव रिसर्च एसोसिएशन ऑफ इंडिया; देहरादून में भारतीय पेट्रोलियम संस्थान; और मानेसर में
ऑटोमोटिव टेक्नोलॉजी के लिए अंतर्राष्ट्रीय केंद्र से प्राप्त किया जा सकता है।
इलेक्ट्रिक वाहनों के संभावित विकास में एक बाधा देश भर में चार्जिंग (Charging) और बैटरीअदला-बदली वाले स्टेशनों की कमी है। पिछले साल के अंत में भारत में लगभग 425 सार्वजनिक रूप
से उपलब्ध चार्जिंग स्थल थे। बीएनईएफ (BNEF) के अनुसार, 2022 तक, सरकारी और निजी
प्रयासों से अनुमानित 2,800 चार्जिंग स्थल तक बढ़ने की उम्मीद है।एक अन्य बाधा पारंपरिक रिक्शा
चालकों, जो आमतौर पर कम आय अर्जित करते हैं, के लिए बैंक वित्तपोषण की कमी है। गुड़गांव
स्थित कंपनी, जो ज्यादातर दिल्ली और उत्तर प्रदेश में ई-रिक्शा बेचती है का कहना है कि यदि इन
मुद्दों का समाधान किया जाता है, तो वे एक महीने में तीन गुना से अधिक 1,000 वाहनों का
उत्पादन कर सकते हैं। ई-रिक्शा के लिए संभावित बाजार सालाना 20 मिलियन वाहनों की बिक्री हो
सकता है।
संदर्भ :-
https://bit.ly/34AJSAb
https://bit.ly/3smC5hg
https://bit.ly/3orjHTu
https://bit.ly/3gmzgrf
https://bit.ly/3rtWH8o
चित्र संदर्भ
1. ई-रिक्शा में भारतीय प्रधानमंत्री जी को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. कतार में लगे ई-रिक्शा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. वित्त वर्ष 2018 तक भारत में ई-रिक्शा उत्पादन के हिस्से को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. ई-रिक्शा चालक को दर्शाता एक चित्रण (pixahive)