हालांकि मौसम सर्दियों का है! लेकिन चुनाव नज़दीक हैं, इस कारण देशभर के राजनितिक गलियारों में
चुनावी गर्मी अपने चरम पर है। क्षेत्रीय नेताओं से लेकर केंद्र सरकार में पदाधीन कद्दावर राष्ट्रीय नेताओं
तक, सभी चुनाव के प्रचार-प्रसार में अपनी पूरी क्षमता से लगे हुए हैं। यद्यपि पिछले दो दशकों में चुनाव
प्रचार के लिए सोशल मीडिया जैसे नवाचार उभरकर आये हैं, किन्तु समाचार चैनलों पर पधारकर जनता के
मूड को समझना और बदलना, आज भी बड़े से बड़े नेताओं की पहली पसद है। आप चुनावी तारीखों की
घोषणा होने से लेकर चुनाव के नतीजे आने के बीच के समय में अपनी टीवी पर कोई भी समाचार चैनल
चलाएंगे, तो निश्चित तौर पर आपको केवल और केवल नेताओं की तीखी बहस अथवा चुनावों में कौन
जीतेगा इसके पूर्वानुमानो के ग्राफ से अपनी टीवी स्क्रीन भरी नज़र आएगी। आपको यह जानकर आश्चर्य
हो सकता है की, यह अनुमानित पूर्वानुमान जिन्हें जनमत सर्वेक्षण या ओपीनियन पोल (Opinion Poll)
भी कहा जाता है, कई बार वास्तविक चुनावी परिणामों को भी प्रभवित कर सकते हैं!
जनमत सर्वेक्षण या ओपीनियन पोल (opinion poll) क्या होता है?
जनमत सर्वेक्षण एक प्रकार चुनावी सर्वे (Survey) या पूछताछ होता है, जिन्हें किसी विशेष विषय (इस
संदर्भ में चुनावी परिणामों) के बारे में जनता के विचारों को मापने के लिए डिज़ाइन किया जाता है। इस
दौरान प्रशिक्षित साक्षात्कारकर्ता (trained interviewers) जनता के बीच में से यादृच्छिक (random) रूप
से चुने गए लोगों से चुनाव नतीजों और उनके पसंदीदा नेताओं जैसे प्रश्न पूछते हैं।
यहां तक की यह प्रश्न
भी आमतौर पर पूछा जाता है की, आप कौन से पार्टी को वोट देंगे? इस जनमत सर्वेक्षण से जो भी पार्टी
सर्वाधिक वोट जमा करती है, आमतौर पर उनके जीतने की संभावना को प्रबल रूप से दर्शाया जाता है।
जनमत सर्वेक्षण कराने के सबसे आम तरीकों में से दो, टेलीफोन और आमने-सामने साक्षात्कार हैं। अन्य
विधियों में मेल, ऑनलाइन और स्व-प्रशासित सर्वेक्षण शामिल हैं। जनमत सर्वेक्षण नेताओं को जनता की
दुविधाओं और मूड (मनोदशा) को समझने का अवसर देता है, और जनता को भी अपनी बात सीधे तौर
अपने क्षेत्रीय या राष्ट्रीय स्तर तक के नेताओं तक पहुंचाने में सहायता करता है।
हालांकि कई देशों में समय -समय पर कुछ राजनीतिक पार्टियां चुनाव आयोग से कुछ न्यूज चैनलों पर
ओपिनियन पोल को तत्काल प्रभाव से प्रसारित करने से रोकने का आग्रह भी करती रहती हैं। दरसल इसके
पीछे का कारण देते हुए उन पार्टियों की राय होती है की, चुनावों का प्रसारण आदर्श आचार संहिता का
उल्लंघन है तथा वे किसी एक नेता या पार्टी के पक्ष में रहकर मतदाताओं को गुमराह कर सकते हैं। और
चुनाव को प्रभावित कर सकते हैं। कई नेता मानते हैं की
स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए कुछ समाचार
चैनलों पर प्रसारित होने वाले जनमत सर्वेक्षणों को तत्काल प्रभाव से रोका जाना चाहिए।
हमारे उत्तर प्रदेश राज्य को राष्ट्रीय स्तर के चुनावों में बेहद अहम कड़ी माना जाता है। अर्थात जिसने यहां
विजय हासिल कर ली, उसकी केंद्र में कार्यरत होने की संभावना अधिक बढ़ जाती है। साथ ही उत्तर प्रदेश
देश के सात चुनिंदा राज्यों में से एक है, जहां द्विसदनीय विधायिका प्रणाली (legislative system) का
अनुसरण किया जाता है।
दरअसल द्विसदनीय विधायिका प्रणाली संसद के दो सदन होने की प्रथा है। जिसमें राज्य स्तर पर,
लोकसभा के समकक्ष विधानसभा होती है, और राज्य सभा की विधान परिषद (Legislative Council)
होती है। अनुच्छेद 169 के तहत,यदि किसी राज्य की विधान सभा विशेष बहुमत से इस आशय का प्रस्ताव
पारित करती है, तो संसद कानून द्वारा किसी राज्य में द्विसदनीय विधायिका प्रणाली को बनाया या
समाप्त किया जा सकता है। वर्तमान में, सात भारतीय राज्यों में द्विसदनीय विधानमंडल हैं। कुछ लोगों
का तर्क है कि राज्यसभा के विपरीत, विधान परिषद उद्देश्य की पूर्ति नहीं करती है, और राज्यों के वित्त पर
दबाव डालती है।
भारत के लिए द्विसदनीय विधायिका को अपनाना कुछ खास कारणों से निर्देशित होता है। सबसे पहले,
एक संघीय नीति में राज्यों के अधिकारों का प्रतिनिधित्व करने और उनकी रक्षा करने के लिए एक कक्ष
होना था। इसलिए, राज्यसभा को राष्ट्रपति चुनने के लिए इलेक्टोरल कॉलेज (Electoral College) में
लोकसभा के समान भूमिका और दर्जा प्राप्त है। राज्य विधानसभाओं के सदस्य आनुपातिक प्रतिनिधित्व
प्रणाली पर अपने राज्यों के लिए राज्यसभा के प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं। संसद के दोनों सदनों के
बीच गतिरोध की स्थिति में, उदाहरण के लिए, यदि किसी विधेयक पर पुनर्विचार पारस्परिक रूप से
संतोषजनक संकल्प को प्राप्त करने में विफल रहता है, तो राष्ट्रपति दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुला
सकता है।
द्विसदनीय विधायिका की स्थापना का दूसरा उद्देश्य लोकसभा द्वारा एक विधेयक के पारित
होने के बाद भी दूसरे विचारों और एक समझदार वकील के लिए एक संस्थागत अवसर प्रदान करना था।
भारतीय शासन प्रणाली में राज्य सभा का तीसरा कार्य लोकसभा के सत्र में न होने पर भी संसद में एक
विधेयक पेश करने में सक्षम होना है। जिससे लोकसभा की बैठक के समय तक अधिकांश संसदीय बहस
और विधेयक पर काम पूरा किया जा सकता है।
संदर्भ
https://bit.ly/3IBEKKw
https://bit.ly/3H9qto4
https://bit.ly/33VOEIf
https://bit.ly/3IEhYSv
https://bit.ly/3rXjIPN
https://bit.ly/34bWhKu
https://bit.ly/3KL6NsV
चित्र संदर्भ
1. द्विसदनीय विधायिका प्रणाली के साथ भारतीय राज्यों को संदर्भित करता एक चित्रण (elections)
2. पुराने चुनावों से लिए गए एक ओपेनियन पोल को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
3. संसद भवन की 1926 की तस्वीर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. विधानसभा लखनऊ को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)