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भारत में किसी भी धार्मिक आयोजन, वैवाहिक समारोह अथवा कोई भी अन्य शुभ अवसर क्यों न
हो, हलवा और पूरी, हर अवसर के प्रमुख व्यंजन होते हैं। लोकपर्वों पर आप, एक पल के लिए मिठाई
देना भूल सकते हैं, लेकिन मीठे हलवे के बिना छप्पन भोग भी अधूरे ही माने जाते हैं। यहां हलवा न
केवल नश्वर मनुष्यों का प्रिय व्यंजन है, बल्कि देवताओं को भी हलवे का स्वाद अत्यंत भाता है।
नवरात्रों के पावन अवसर पर हिंदू देवियों का रूप माने जाने वाली, नौ कन्याओं को भी हलवा-पूरी
खिलाना शुभ माना जाता है। सिख गुरुद्वारे में मीठे हलवे को 'कड़ा प्रसाद' के रूप में परोसा जाता
है।
भारत में हलवे की लोकप्रियता का अंदाज़ा केवल इसी बात से लगाया जा सकता है की, भारतीय
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस वर्ष 20 जनवरी को केंद्रीय बजट की छपाई प्रक्रिया की शुरुआत
के अवसर पर नॉर्थ ब्लॉक (North Block) में विशेष तौर पर हलवा समारोह की अध्यक्षता की। यह
समारोह इस बात का प्रतीक है कि, हजारों व्यंजनों के बावजूद, हलवा हमारी संस्कृति में कितनी
गहराई से अपनी मिठास घोले है!
हलवा भारत में एक सर्वव्यापी मिष्ठान है, यह पूरे देश में स्थानीय विविधताओं के साथ निर्मित
किया जाता है उदाहरण के तौर पर सिंधी हलवा, मोहनभोग, तिरुनेलवेली हलवा, यहां तक कि
गोश्त (मांस) का हलवा भी यहां बनाया जाता है।
हलवा शब्द का प्रयोग मुख्य रूप से दो प्रकार की मिठाई के वर्णन के लिए किया जाता है
1. आटा-आधारित: इस प्रकार का हलवा अन्न के आटे, आमतौर सूजी से बनाया जाता है। जिसकी
प्राथमिक सामग्री, तेल, आटा और चीनी होती हैं। इसको आटे को भून कर बनाया जाता है, जैसे सूजी
को तेल में भून कर कसार बना कर और फिर चीनी की चाशनी के साथ पका कर. यह ईरान, तुर्की,
सोमालिया, भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में लोकप्रिय है।
2. मेवा-मक्खन-आधारित: इस प्रकार का हलवा भुरभुरा होता है, और आमतौर पर ताहिनी (तिल
का पेस्ट) या अन्य मेवा, मक्खन और चीनी से निर्मित होता हैं।
भारत में हलवे के अनेक प्रकार, क्षेत्र और उसमें प्रयुक्त सामग्री के आधार पर पहचाने जाते हैं। यहाँ
के सर्वाधिक प्रसिद्ध हलवों में सूजी हलवा, आटे का हलवा (गेहूं हलवा), मूंग दाल का हलवा (मूंग
हलवा), गाजर का हलवा (गाजर हलवा), दूधी हलवा, चना दाल हलवा (छोला हलवा) और
सत्यनारायण हलवा, काजू का हलवा (काजू हलवा) शामिल है। भारत के तमिलनाडु राज्य में एक
शहर तिरुनेलवेली को हलवा सिटी के नाम से भी जाना जाता है। केरल प्रांत में, हलवा को 'अलुवा' के
नाम से जाना जाता है। केरल में कोझीकोड शहर अद्वितीय आकर्षक हलवे के लिए बहुत प्रसिद्ध
है, जिसे कोझीकोडन हलवा कहा जाता है।
इतिहासकारों के अनुसार, शब्द 'हलवा' अरबी शब्द 'हल्व' से आया है, जिसका अर्थ मीठा होता है,
और माना जाता है कि इसने 1840 से 1850 के बीच अंग्रेजी भाषा में प्रवेश किया था। 20 वीं
शताब्दी के लेखक और इतिहासकार अब्दुल हलीम शरार 'गुजिष्ट लखनऊ' के अनुसार हलवा
अरबी भूमि में उत्पन्न हुआ और फारस के रास्ते भारत आया। शुरुआत में यह मूल मध्य पूर्वी
मिठाई खजूर के पेस्ट और दूध से बनाई गई थी। कोलीन टेलर सेन (Colleen Taylor Sen) की
पुस्तक 'फीस्ट्स एंड फास्ट्स (Feasts and Fasts)' के अनुसार भारत में हलवे का आगमन 13वीं
सदी के प्रारंभ से 16वीं सदी के मध्य तक दिल्ली सल्तनत के दौरान हुआ था। कुछ अन्य
किंवदंतियों के अनुसार, हलवा पकाने की विधि की जड़ें तुर्क साम्राज्य से जुडी हुई हैं। माना जाता है
तुर्क साम्राज्य के दसवें और सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले सुल्तान सुलेमान को मिठाइयों
का इतना शौक था कि उनके पास केवल मीठे व्यंजनों के लिए एक अलग रसोई थी, हलवा भी उनमें
से एक था।
खाद्य इतिहासकारों का मानना है की हलवे का पहला ज्ञात नुस्खा मुहम्मद इब्न अल-आसन इब्न
अल-करीम द्वारा लिखित 13 वीं शताब्दी के अरबी पाठ, 'किताब अल-तबीख' (व्यंजनों की पुस्तक)
में दिखाई दिया। इसमें हलवे की आठ अलग-अलग किस्मों और उनके व्यंजनों का उल्लेख है।
भले ही हलवे की उत्पत्ति अरब में हुई किंतु आज यह भारत की संस्कृति में शामिल हो गया है ,
भारतीय उपमहाद्वीप में इसके प्रभाव का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं की, यहां मिठाई
वाले को भी हलवाई कहा जाता है। इस मीठे व्यंजन ने भारत आकर सभी मिठाइयों का दिल जीत
लिया।
आज पूरे देश में हलवे की कई किस्में उपलब्ध हैं। पूरे देश में व्यापक तौर पर गाजर का हलवा
लोकप्रिय है। गाजर का हलवा अफगानिस्तान के लिए स्वदेशी था, और डच के माध्यम से भारत में
अपना रास्ता खोज लिया। पुणे में 'हरि मिर्च का हलवा', पश्चिम बंगा में 'चोलर दाल हलवा', उत्तर
प्रदेश और बिहार में 'अंदा हलवा', कर्नाटक में 'काशी हलवा' और केरल में 'करुठा हलवा बेहद
प्रसिद्ध हैं।
हमारे रामपुर शहर के रामपुरी चाकू के अलावा रामपुरी नीम का हलवा भी बेहद लोकप्रिय है।
हालंकि यह थोड़ा कड़वा लग सकता है, लेकिन नीम के हलवे में कई सारे औषधीय गुण मौजूद होते
हैं, जिनमें नेत्र विकारों, खूनी नाक और कुष्ठ रोग के खिलाफ प्रभावशीलता, आंतों के कीड़े का
इलाज, भूख न लगना, पेट खराब होना, त्वचा के अल्सर, हृदय रोग, बुखार, मधुमेह, मसूड़े की सूजन
और यकृत की समस्याएं हल करने की क्षमता होती हैं।
माना जाता है की मध्यकालीन युग में रामपुर के एक प्रसिद्ध हकीम थे (प्राचीन गुरु जिन्हें बीमारी
को ठीक करने के लिए जड़ी-बूटियों का ज्ञान था), जिन्होंने नवाबों को नीम देने की सलाह दी थी।
चूँकि पहले नवाब मीठे के शौकीन होते थे, और कोई कड़वा पदार्थ खाने का विचार भी नहीं करते थे।
तो उस हकीम ने आहार में नीम को शामिल करने के लिए व्यंजनों का आविष्कार किया। इस तरह
नीम का हलवा बनाया गया ,और इसे हकीकत में बदला गया।
इसे पकाने के लिए नीम के पत्तों को कम से कम 3 बार पानी में धोना और कड़वाहट से छुटकारा
पाने के लिए बराबर समय तक उबालना पड़ता है। फिर नीम के पत्तों को एक विशेष मूसल से पत्थर
पर पीसकर नीम का पेस्ट बना लें। इसके बाद नीम के पेस्ट को देसी घी में तब तक फ्राई किया
जाता है, जब तक कि उसका कच्चापन खत्म न हो जाए। फिर दूध डालकर दूध के गाढ़ा होने तक
पकाएं। दूध कम करने के दौरान हलवे को सुगंधित बनाने के लिए इलायची और अन्य साबुत
मसाले मिलाए जाते हैं और पकाया जाता है। एक बार हो जाने पर चीनी डाल दी जाती है और फिर
पूरी तरह पकने तक और पकाया जाता है। अंत में हलवे में कुछ कटे हुए मेवे मिलाए जाते हैं और
इसे पारंपरिक मिट्टी के बर्तनों में परोसा जाता है। इसका स्वाद विशिष्ट होता है! नीम के हलवे के
अलावा रामपुर में अदरक, लहसुन, मिर्ची, करेले और यहां तक की मछली का हलवा भी प्रसिद्द है।
संदर्भ
https://bit.ly/30DDwOL
https://bit.ly/3DrOwNf
https://bit.ly/3wRAxxX
https://bit.ly/3kKQhh9
https://en.wikipedia.org/wiki/Halva
चित्र संदर्भ
1. लौकी के हलवे को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
2. भोजन करती बालिकाओं को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
3. तुर्की अन हेल्वासी (Turki un Helvasi,), आटा आधारित हलवे को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. सूरजमुखी का हलवे को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. नीम के हलवे को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
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