 
                                            समय - सीमा 266
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                                            उत्तर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक छोटा शहर होने के बावजूद, रामपुर साधारण शहर नहीं है। दशकों से, यह यहां
उत्पादित होने वाले चाकुओं के लिए प्रसिद्ध रहा है। रामपुरी के रूप में पहचाने जाने वाले इन चाकुओं का
उपयोग एक बार गिरोह द्वारा बॉम्बे पर नियंत्रण पाने के लिए किया जाता था। वहीं फोल्डेबल (Foldable) चाकू
को बॉलीवुड (Bollywood) ने काफी आकर्षक बनाया है।रामपुर केवल चाकुओं के अलावा संगीत में भी काफी
प्रसिद्धि हासिल किए हुए है। हालाँकि, बहुत से लोग नहीं जानते हैं कि बेला या वायलिन (Violin) के अलावा
रामपुर में एक अन्य संगीत पक्ष भी है। दुनिया के मुट्ठी भर ऊद (Oud) निर्माताओं में से एक रामपुर शहर भी
मौजूद हैं।
ऊद एक वाद्य यंत्र है जिसे कभी फिरौन (Pharaoh) के दरबार में बजाया जाता था।ऊद एक नाशपाती के आकार
वाला तंतुवाद्य (तारों वाले संगीत वाद्य) यंत्र है।ऊद आधुनिक वीणा के समान है, और पश्चिमी वीणा के समान
भी है। इसी तरह के उपकरणों का उपयोग मध्य पूर्व, उत्तरी अफ्रीका (Africa - विशेषकर माघरेब (Maghreb), मिस्र
(Egypt) और सोमालिया (Somalia)) और मध्य एशिया में हजारों वर्षों से किया जाता रहा है, जिसमें
मेसोपोटामिया (Mesopotamia), मिस्र (Egypt), काकेशस (Caucasus), लेवेंट (Levant) और ग्रीस (Greece),
अल्बानिया (Albania) और बुल्गारिया (Bulgaria) जैसे बाल्कनिक (Balkanic) देश शामिल हैं तथा यहां वीणा के
प्रागैतिहासिक पूर्ववृत्त भी हो सकते हैं।  माना जाता है कि सबसे पुराना ऊद संगीत वाद्ययंत्र संग्रहालय,ब्रास्लस (Brussels) में है।ऊद और
उसके निर्माण का पहला ज्ञात पूर्ण विवरण 9वीं शताब्दी के अरबों के दार्शनिक याक़ुब इब्न इशाक अल-किंडी
(Ya'qub ibn Ishaq al-Kindi) द्वारा रिसाला फाई-एल-लुहुनवा-एन-नघम (Risala fi-l-Luhunwa-n-Nagham) के
पत्र में पाया जाता है।पूर्व-इस्लामिक अरब और मेसोपोटामिया में, ऊद में केवल तीन तार थे, जिसमें एक छोटा
संगीत डिब्बे और बिना किसी समंजन खूंटे के एक लंबी गर्दन थी।लेकिन इस्लामी युग के दौरान संगीत डिब्बे
को बड़ा कर दिया गया और एक चौथा तार जोड़ा गया, और ट्यूनिंग खूंटे (बंजुक) या पेगबॉक्स (Pegbox) के
लिए आधार जोड़ा गया।ऐतिहासिक स्रोतों से संकेत मिलता है कि ज़िरयाब (789-857) ने अपने ऊद में पाँचवाँ
तार जोड़ा। वह अंडालूसिया (Andalusia) में संगीत के एक विद्यालय की स्थापना के लिए जाने जाते थे।पांचवीं
तार का एक और उल्लेख अल-हसन इब्न अल-हेथम द्वारा हवीअल-फुनुनवासलवातअल-महज़ुन में किया गया
था।
वहीं एक ऊद की कीमत करीब 20,000 रुपये होती है और जब मांग अधिक होती है, तो रामपुर के निर्माताओं
द्वारा उन्हें थोक में निर्यातकों को बेच दिया जाता है। कभी-कभी संगीत के पारखी भी रामपुर में वाद्य यंत्र
खरीदने आते हैं। ऊद प्राचीन मिस्र से हो सकते हैं, लेकिन, समय के साथ चलते हुए, निर्माताओं द्वारा अब उन्हें
ऑनलाइन भी बेचना शुरू कर दिया है।
वहीं हाल ही में लॉकडाउन (Lockdown) के कारण रामपुर वायलिन और ऊद वादकों को मुश्किलों का
सामना करना पड़ा। वायलिन निर्माता अपने वायलिन की कम मांग से परेशान हैं और लॉकडाउन के
कारण उनका कारोबार बुरी तरह प्रभावित हुआ है। महामारी के प्रभाव को कम करने के लिए अब
वाद्य यंत्र निर्माता अपने वाद्य यंत्रों को कम दाम में बेच रहे हैं।साथ ही ‘रामपुर में निर्मित’ वायलिन
को कभी दुनिया का सर्वश्रेष्ठ माना जाता था। लेकिन अफसोस की बात है कि यह उद्योग अपनी
आखिरी सांस ले रहा है।विश्व प्रसिद्ध चार तार वाला रामपुर वायलिन पहले रामपुर में ही बनता था,
लेकिन पिछले दो तीन वर्षों में चीनी (Chinese) वादकों ने संगीत वाद्ययंत्रों के बाजार पर कब्जा कर
लिया है।रामपुर वायलिन इतने प्रसिद्ध थे कि बर्कले संगीत अकादमी (Berkley Music Academy)
के संगीतकारों द्वारा भी इन्हें बजाया गया।
माना जाता है कि सबसे पुराना ऊद संगीत वाद्ययंत्र संग्रहालय,ब्रास्लस (Brussels) में है।ऊद और
उसके निर्माण का पहला ज्ञात पूर्ण विवरण 9वीं शताब्दी के अरबों के दार्शनिक याक़ुब इब्न इशाक अल-किंडी
(Ya'qub ibn Ishaq al-Kindi) द्वारा रिसाला फाई-एल-लुहुनवा-एन-नघम (Risala fi-l-Luhunwa-n-Nagham) के
पत्र में पाया जाता है।पूर्व-इस्लामिक अरब और मेसोपोटामिया में, ऊद में केवल तीन तार थे, जिसमें एक छोटा
संगीत डिब्बे और बिना किसी समंजन खूंटे के एक लंबी गर्दन थी।लेकिन इस्लामी युग के दौरान संगीत डिब्बे
को बड़ा कर दिया गया और एक चौथा तार जोड़ा गया, और ट्यूनिंग खूंटे (बंजुक) या पेगबॉक्स (Pegbox) के
लिए आधार जोड़ा गया।ऐतिहासिक स्रोतों से संकेत मिलता है कि ज़िरयाब (789-857) ने अपने ऊद में पाँचवाँ
तार जोड़ा। वह अंडालूसिया (Andalusia) में संगीत के एक विद्यालय की स्थापना के लिए जाने जाते थे।पांचवीं
तार का एक और उल्लेख अल-हसन इब्न अल-हेथम द्वारा हवीअल-फुनुनवासलवातअल-महज़ुन में किया गया
था।
वहीं एक ऊद की कीमत करीब 20,000 रुपये होती है और जब मांग अधिक होती है, तो रामपुर के निर्माताओं
द्वारा उन्हें थोक में निर्यातकों को बेच दिया जाता है। कभी-कभी संगीत के पारखी भी रामपुर में वाद्य यंत्र
खरीदने आते हैं। ऊद प्राचीन मिस्र से हो सकते हैं, लेकिन, समय के साथ चलते हुए, निर्माताओं द्वारा अब उन्हें
ऑनलाइन भी बेचना शुरू कर दिया है।
वहीं हाल ही में लॉकडाउन (Lockdown) के कारण रामपुर वायलिन और ऊद वादकों को मुश्किलों का
सामना करना पड़ा। वायलिन निर्माता अपने वायलिन की कम मांग से परेशान हैं और लॉकडाउन के
कारण उनका कारोबार बुरी तरह प्रभावित हुआ है। महामारी के प्रभाव को कम करने के लिए अब
वाद्य यंत्र निर्माता अपने वाद्य यंत्रों को कम दाम में बेच रहे हैं।साथ ही ‘रामपुर में निर्मित’ वायलिन
को कभी दुनिया का सर्वश्रेष्ठ माना जाता था। लेकिन अफसोस की बात है कि यह उद्योग अपनी
आखिरी सांस ले रहा है।विश्व प्रसिद्ध चार तार वाला रामपुर वायलिन पहले रामपुर में ही बनता था,
लेकिन पिछले दो तीन वर्षों में चीनी (Chinese) वादकों ने संगीत वाद्ययंत्रों के बाजार पर कब्जा कर
लिया है।रामपुर वायलिन इतने प्रसिद्ध थे कि बर्कले संगीत अकादमी (Berkley Music Academy)
के संगीतकारों द्वारा भी इन्हें बजाया गया।
वायलिन का निर्माण पूरी तरह से गणित का खेल है, क्योंकि इसकी माप निर्माण में बहुत महत्वपूर्ण
भूमिका निभाती है। यहां बनने वाले वायलिन के प्रत्येक भाग को बहुत सावधानी से मापा जाता है।
सुंदर ध्वनि उत्पन्न करने वाले चार तारों के आधार को ब्राजील से निर्यात की गयी मेपल (Maple)
की लकड़ी से बनाया जाता है, इसके शीर्ष क्षेत्र पर हिमाचल प्रदेश की स्प्रूस (Spruce) तथा अन्य
भागों में आबनूस की लकड़ी का उपयोग किया जाता है। इसके हर एक हिस्से को सुखदायक ध्वनि
उत्पन्न करने के लिए सटीक रूप से मापा और डिज़ाइन (Design) किया जाता है। किसी भी चीज में
कुछ एक सेंटीमीटर की छोटी सी गलती पूरे वायलिन को खराब कर सकती है तथा बहुत सारा पैसा
खर्च कर सकती है। इनकी कीमत 1,500 रुपये से शुरू होकर 15,000 रुपये से भी अधिक जा सकती
है।  आयातित उत्पादों की कम लागत के कारण अब सस्ते उत्पादों की मांग अधिक हो गयी है। मुंबई,
कोलकाता और अन्य स्थानों पर खरीदार 1,200 रुपये में कम लागत वाली वायलिन वितरित करने
की मांग करते हैं और रामपुर में निर्मित टैग (Tag) दिखाकर 3,000 रुपये तक के दाम में बेचते हैं।
हाथ से बने भारतीय वायलिन, अच्छी गुणवत्ता के साथ अत्यधिक टिकाऊ और अच्छे फिनिश
(Finish) वाले होते हैं। इसके विपरीत चीनी वायलिन मशीन से बने होते हैं और उनमें स्थायित्व की
कमी होती है। थोड़ी सी नमी वायलिन को खराब कर सकती है और इस मामले में रामपुर के
वायलिन चीनी वायलिन से आगे हैं।
आयातित उत्पादों की कम लागत के कारण अब सस्ते उत्पादों की मांग अधिक हो गयी है। मुंबई,
कोलकाता और अन्य स्थानों पर खरीदार 1,200 रुपये में कम लागत वाली वायलिन वितरित करने
की मांग करते हैं और रामपुर में निर्मित टैग (Tag) दिखाकर 3,000 रुपये तक के दाम में बेचते हैं।
हाथ से बने भारतीय वायलिन, अच्छी गुणवत्ता के साथ अत्यधिक टिकाऊ और अच्छे फिनिश
(Finish) वाले होते हैं। इसके विपरीत चीनी वायलिन मशीन से बने होते हैं और उनमें स्थायित्व की
कमी होती है। थोड़ी सी नमी वायलिन को खराब कर सकती है और इस मामले में रामपुर के
वायलिन चीनी वायलिन से आगे हैं।
यदि देखा जाएं तो एक समय में शहर में वायलिन बनाने वाले एक हजार से अधिक लोग थे। लेकिन
अब मुश्किल से 200 वायलिन निर्माता (श्रम सहित) बचे हैं। अब यहां केवल पाँच बड़े वायलिन बनाने
वाले उद्योग हैं जिनमें 40 से अधिक लोग काम कर रहे हैं।
संदर्भ :-
https://bit.ly/2ZvDqYE
https://bit.ly/3BmODYz
https://bit.ly/3GxAxro
https://bit.ly/3mmE6sa
https://bit.ly/3bTKGi0
चित्र संदर्भ
1. रामपुर के वायलिन कारीगरों का एक चित्रण (Mpositive)
2. ऊद (Oud) वाद्य यन्त्र का एक चित्रण (flickr)
3. रामपुर के वायलिन विक्रेताओं का एक चित्रण (twitter)
 
                                         
                                         
                                         
                                         
                                        