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भारत के उत्तरी भाग में बसे एक सुंदर पहाड़ी राज्य, कश्मीर को हिंदुस्तान का मुकुट भी कहा जाता
है। यह नैसर्गिक प्राकृतिक खूबसूरती और अद्वितीय लोक संस्कृति का धनी राज्य है। धरती के इस
छोटे से टुकड़े को देखकर आभास होता है, मानों कुदरत ने अपना सारा खजाना कश्मीर में खाली कर
दिया हो। और कुदरत के इस खजाने में "केसर" नामक सुन्दर पुष्प भी शामिल है, जो अपनी
मनमोहक खुशबु और औषधीय गुणों के कारण अंतराष्ट्रीय बाजार में बिकने वाले किसी वास्तविक
खजाने से भी अधिक कीमती है।
केसर (Saffron), क्रोकस सैटिवस नामक फूल से प्राप्त बेहद सुगंधित मसाला होता है, जिसे
आमतौर पर "केसर क्रोकस" (saffron crocus) के रूप में भी जाना जाता है। केसर के पुष्प की
वर्तिकाग्र (stigma) को केसर, कुंकुम, जाफरान अथवा सैफ्रन (saffron) कहते हैं।
केसर वास्तव में
क्रोकस सैटिवस फूल के मध्य से निकलने वाली एक लाल रंग के धागे नुमा आकृति होती है। ऐसा
माना जाता है कि केसर की उत्पत्ति ईरान में हुई थी। यद्यपि इसकी खेती स्पेन, इटली, ग्रीस,
तुर्किस्तान, ईरान तथा चीन में भी होती है, लेकिन भारत के कश्मीर में उगने वाला केसर दुनिया में
सबसे अधिक महंगा होता है। एक पाउण्ड (लगभग 454 ग्राम) केसर के लिए ज़ाफ़रान के 75,000
फूलों की जरूरत होती है। वजन के हिसाब से केसर लंबे समय से दुनिया का सबसे महंगा मसाला
रहा है। इसका प्रयोग भोजन में मसाला और रंग एजेंट सहित कई औषधीय उपचारों हेतु किया
जाता है। केसर में कैरोटेनॉयड वर्णक, क्रोसिन भी होता है, जो व्यंजन और वस्त्रों को एक समृद्ध
सुनहरा-पीला रंग प्रदान करता है।
इसका सर्वप्रथम उल्लेख 7वीं शताब्दी ईसा पूर्व के असीरियन वनस्पति ग्रंथ में प्रमाणित है, और
हजारों वर्षों से इसका व्यापार और उपयोग किया जाता रहा है। आज 21वीं सदी में, ईरान दुनिया के
कुल का 90% सबसे अच्छी गुणवत्ता के साथ केसर का उत्पादन करता है। जिसकी कीमत 5,000
अमेरिकी डॉलर प्रति किलोग्राम है, जो इसे दुनिया का सबसे महंगा मसाला बनाती है। केसर का क्षुप
15-25 सेंटीमीटर ऊँचा, और पत्तियाँ मूलोभ्दव (radical), सँकरी, लंबी और नालीदार होती हैं। इनके
बीच से पुष्पदंड (scapre) निकलता है, जिसपर नीललोहित वर्ण के एकाकी अथवा एकाधिक पुष्प
होते हैं। केसर की गंध तीक्ष्ण, परंतु लाक्षणिक और स्वाद किंचित् कटु, परंतु रुचिकर, होता है। घरों
में इसका उपयोग मक्खन आदि खाद्य द्रव्यों में वर्ण एवं स्वाद लाने के लिये किया जाता हैं।
चिकित्सा में यह उष्णवीर्य, उत्तेजक, आर्तवजनक, दीपक, पाचक, वात-कफ-नाशक और
वेदनास्थापक माना गया है। यह पीड़ितार्तव, सर्दी जुकाम तथा शिर:शूलादि में बहुपयोगी साबित
होता है। केसर का रंग, स्वाद और सुगंध मुख्य रूप से क्रमशः क्रोकिन (crocin), पिक्रोक्रोकिन
(picrocrocin) और सफारी के कारण होता है।
क्रोकिन सामग्री और समृद्ध सुगंध के कारण,
कश्मीर केसर दुनिया भर में प्रसिद्ध है। केसर जम्मू और कश्मीर की एक प्रमुख फसल है, जो
कश्मीर और किश्तवाड़ की करेवा मिट्टी में पैदा होती है, जहाँ अच्छी वृद्धि और फूलों के उत्पादन
के लिए आदर्श जलवायु परिस्थितियाँ उपलब्ध हैं। केसर के फूलने पर प्रकाशकाल और तापमान का
गहरा प्रभाव पड़ता है। यह 1500-2000 मीटर की ऊंचाई पर उगता है।
केसर का प्रतिवर्ष कुल वैश्विक उत्पादन लगभग 300 टन होता है। और ईरान, भारत, स्पेन और
ग्रीस प्रमुख भगवा उत्पादक देश हैं। जिनमें ईरान अधिकतम 88% योगदान के बाद दूसरे सबसे
बड़े उत्पादक के रूप में भारत कुल वैश्विक उत्पादन का लगभग 7 प्रतिशत उत्पादन करता है।
जम्मू और कश्मीर भारत का एकमात्र राज्य है, जहाँ केसर का उत्पादन होता है।
जम्मू-कश्मीर में
कुल 3715 हेक्टेयर क्षेत्रफल में केसर की खेती की जाती है, जिसका उत्पादन और उत्पादकता
क्रमशः 16 मीट्रिक टन और 3.0 - 4.0 किलोग्राम / हेक्टेयर है। जम्मू-कश्मीर में केसर की खेती
मुख्य रूप से चार जिलों (पुलवामा, बडगाम, श्रीनगर, किश्तवाड़) में की जाती है, जहाँ 3200 हेक्टेयर
में पंपोर के विरासत स्थल में 86% केसर की खेती होती है। CSIR-IHBT के अनुसार, भारत में
केसर की वार्षिक मांग 100 टन प्रति वर्ष है, लेकिन इसका औसत उत्पादन लगभग 6-7 टन प्रति
वर्ष है। इस मांग को पूरा करने के लिए ईरान और अफगानिस्तान जैसे देशों से केसर का आयात
किया जाता है। हालांकि यह मसाला केवल कश्मीर में ही उगाया जाता है, किंतु भारत के अन्य
पहाड़ी राज्यों जैसे लद्दाख, हिमाचल प्रदेश उत्तराखंड में भी इसे उगाने के लिए उपर्युक्त जलवायु
की खोज की जा रही है। सीएसआईआर-आईएचबीटी के अनुसार, इस सीजन में कश्मीर में लगभग
2,825 हेक्टेयर क्षेत्र में केसर उगाया गया था। लद्दाख में केसर उगाने के लिए CSIR-IHBT और
लद्दाख फार्मर्स एंड प्रोड्यूसर्स को-ऑपरेटिव लिमिटेड (LFPCL) के समझौते के अंतर्गत “लद्दाख
में परीक्षण बहुत सफल रहे हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार एक अन्य पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश के
भरमौर क्षेत्र में, जहां 250 वर्ग मीटर केसर पर परीक्षण किया गया था, लगातार तीन वर्षों के
परिणामों से पता चला है कि,यह केसर की खेती के लिए उपयुक्त जगह है। अगर किसान केसर की
खेती सफल हो गए, तो वे अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। सीएसआईआर-आईएचबीटी के अनुसार,
प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष केसर की खेती की लागत 1.25 लाख रुपये और सकल रिटर्न 6.25 लाख
रुपये था, जो 5 लाख रुपये के शुद्ध रिटर्न में तब्दील हो गया।
संदर्भ
https://bit.ly/2Xc8U5h
https://bit.ly/3j38rd8
https://en.wikipedia.org/wiki/Saffron
चित्र संदर्भ
1. क्रोकस फूल जो लाल केसर कलंक उत्पन्न करते हैं, जिनको दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. ईरान में केसर बाजार, का एक चित्रण (wikimedia)
3. केसर उत्पादन का एक चित्रण (wikimedia)
4. केसर से उच्च गुणवत्ता वाले लाल धागे को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. फूल से केसर अलग करने की प्रक्रिया को दर्शाता एक चित्रण (youtube)