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हलवे का नाम सुनकर ही मुंह में पानी आ जाता है, किंतु जब बात रामपुर के हब्शी हलवे की आती है, तो इसकी लोकप्रियता विदेशों में भी दिखाई देती है। रामपुर का यह हलवा सऊदी अरब (Saudi Arab) तक अपना जलवा बिखेर रहा है।जब भी कोई भारत से सऊदी जाता है, तो इस हलवे को जरूर मंगाता है। विशेष बात यह है, कि यह हलवा मूल रूप से रामपुर का नहीं है। इसे यहां बनाने की शुरूआत तब हुई थी, जब नवाब द्वारा दक्षिण अफ्रीका से शिल्पकारों को रामपुर लाया गया। यहां रहने वाले लोगों ने अफ्रीकी शिल्पकारों से हलवे को बनाने के गुर सीखे, जिसके परिणामस्वरूप रामपुर में मौजूद उन लोगों के वंशज आज भी इस हलवे को बना रहे हैं।
क्यों कि रामपुर के अधिकांश लोग सऊदी में काम करते हैं, इसलिए वे अपने साथ इस हलवे को लेकर अवश्य जाते हैं। इस प्रकार यह हलवा अब भारत सहित विश्व के अन्य स्थानों में भी प्रसिद्धि हासिल कर चुका है।रामपुर का हब्शी हलवा भारत में अफ्रीकी (African) प्रभावों का एक छोटा सा उदाहरण है। इसके अलावा भी ऐसे अन्य उदाहरण हैं, जिनके जरिए भारत में अफ्रीकी प्रभाव देखने को मिलते हैं।
भारत में अफ्रीकी मूल या सिद्दीस (Sidis) की एक बड़ी आबादी रहती है।सिद्दी जिन्हें शीदी, सिदी, सिद्धि या हब्शी के नाम से भी जाना जाता है, भारत और पाकिस्तान में रहने वाला एक जातीय समूह है। इनके पूर्वज व्यापारी, नाविक, गिरमिटिया मजदूर, दास और भाड़े के सैनिक थे। सिद्दी मुख्य रूप से मुस्लिम हैं, हालांकि कुछ हिंदू हैं और अन्य कैथोलिक चर्च (Catholic Church) से संबंधित हैं।
हालाँकि आज एक समुदाय के रूप में सिद्दी आर्थिक और सामाजिक रूप से हाशिए पर हैं, लेकिन एक समय में उन्होंने बंगाल सल्तनत के हब्शी वंश के रूप में बंगाल पर शासन किया था, जबकि प्रसिद्ध सिद्दी मलिक अंबर को अहमदनगर सल्तनत को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने के लिए जाना जाता है।भारत में अफ्रीकियों का आगमन पहली और 20 वीं शताब्दी के बीच अरबों और ओटोमन्स (Ottomans), पुर्तगाली, डच, फ्रेंच और ब्रिटिशों के आगमन के साथ मुख्य रूप से तब हुआ जब उन्हें सेनाओं में काम करने या गुलामों के रूप में अफ्रीका से भारत लाया गया।अनुमानित 40 लाख अफ्रीकियों को उनके घरों से पूर्वी अफ्रीका और हिंद महासागर के पार ले जाया गया था। इसके अलावा कुछ लोग अपनी मर्जी से यात्रियों और व्यापारियों के रूप में भारत आए थे।भारत और पाकिस्तान अफ्रीकी गुलामों के लिए प्रमुख गंतव्य थे, जो युद्धरत महाराजाओं को अपना सहयोग दे रहे थे। इसके अलावा सैनिकों या अंगरक्षकों,घरेलू दासों, कृषि श्रमिकों आदि रूपों में भी अफ्रीका से आए लोगों ने उस समय की धनी या औपनिवेशिक शक्तियों के लिए काम किया।
उन्नीसवीं सदी के मध्य के आसपास गुलामी के उन्मूलन के साथ दासों को उनके मालिकों द्वारा मुक्त कर दिया गया था। हालांकि कुछ पहले से ही अपनी स्वतंत्रता अर्जित कर चुके थे, लेकिन वे अपने वतन वापस लौटने में असमर्थ थे। इसलिए उन्होंने यही रूकने का फैसला किया और अपने स्वयं के समुदायों का गठन किया। इस प्रकार वे दक्षिण एशिया (Asia) की संस्कृतियों का हिस्सा बन गए। चूंकि अफ्रीकी मूल के लोग अपने मेजबान देशों के समाज के साथ आत्मसात हो गए हैं, इसलिए उनके अफ्रीकी वंश के कई पहलू अब गायब हो गए हैं। हालांकि उन्होंने अपनी संस्कृति के कुछ पहलूओं को आज भी संरक्षित किया हुआ है।
यह अनुमान लगाया गया है कि भारत में अफ्रीकी मूल के लगभग 25,000 लोग रहते हैं, जो कई राज्यों में फैले हुए हैं। इन राज्यों में कर्नाटक और गुजरात प्रमुख राज्य हैं। सिदी के रूप में जाना जाने वाला यह समुदाय पूरी तरह से आधुनिक भारत में एकीकृत हो गया है, फिर भी अपनी अफ्रीकी विरासत के छोटे पहलुओं को विशेष रूप से अपनी दिखावट और संगीत में बनाए रखने में कामयाब हुआ है। इस समुदाय के कुछ लोग जहां सेना में अपनी स्थिति के माध्यम से सत्ता के पदों तक पहुंचे तो वहीं कुछ ने महाराजाओं के साथ अपने सम्बन्ध इतने मजबूत किए कि वे भारत के भीतर अपने स्वयं के नियंत्रण वाले राज्यों में राजा बन गए। इनके प्रत्यक्ष वंशज आज भी जीवित हैं।
सिद्दी समुदाय को भारत सरकार द्वारा एक जनजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया है। वे मुख्य रूप से कृषि समुदायों में रहते हैं जहां पुरुष खेती के लिए तथा महिलाएं घर और बच्चों की देखभाल के लिए उत्तरदायी हैं। अपने समुदायों के बाहर पुरुष ड्राइवर, मजदूर और सुरक्षा गार्ड के रूप में कार्य करते हैं। इस समुदाय की महिलाएं और पुरुष विशिष्ट भारतीय परिधान धारण करते हैं। सिद्दी महिलाएं अपने स्थान के प्रमुख परिधान पहनती हैं, फिर चाहे वह सलवार कमीज हो या बिंदी के साथ रंगीन साड़ियां। पुरुष वही पहनते हैं जो आमतौर पर उनके समुदायों में पुरुषों के लिए उपयुक्त होता है।
जीवन के अन्य पहलुओं की तरह, सिद्दी समुदाय ने प्रमुख समाज की सामान्य आहार प्रथाओं को अपनाया है। जैसे वे मुख्य रूप से दाल और अचार के साथ चावल का सेवन करते हैं। एथलेटिक्स (Athletics) सिद्दी समुदाय का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है और युवाओं के उत्थान और गरीबी और भेदभाव से बचने का एक साधन रहा है।
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