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रामपुर शहर अपनी विभिन्न विशेषताओं के लिए जाना जाता है। इन विशेषताओं में यहां के
जायकेदार व्यंजन भी शामिल हैं।इसका सबसे अच्छा उदाहरण यहां का परंपरागत पुलाव है, जिसे
लगभग हर घर में पकाया जाता है। यहां के यखनी पुलाव को हर कोई अत्यधिक पसंद करता है,
तथा मुस्लिम घरों में इसे विशेष तौर पर पकाया जाता है।पुलाव, सुगंधित चावल और मांस से
बनाया जाने वाला व्यंजन है।
यूं तो पुलाव देश के विभिन्न हिस्सों में भी पकाया जाता है, किंतु रामपुर का यह पुलाव अन्य
स्थानों पर बनने वाले पुलाव से बिल्कुल अलग है। चाहे दावत हो,प्रार्थना सभा हो या अंतिम
संस्कार,पुलाव के बिना किसी भी कार्य को पूरा नहीं माना जाता। रामपुर के इस पुलाव की विशेष
बात यह है, कि यहां पुलाव परोसने का समय बहुत महत्वपूर्ण होता है। यदि किसी को इस
पुलाव का आनंद प्राप्त करना है, तो उसे इसका तब तक इंतजार करना पड़ेगा, जब तक यह दम
अर्थात एक सीलबंद बर्तन या कुकर में धीमी आंच पर पूरा पक न जाए। दम का शाब्दिक
अनुवाद जीवन है। माना जाता है कि जब दम की भाप निकल जाती है तो पुलाव बेजान हो
जाता है। ऐसी मान्यता थी कि जब पूर्वजों की आत्माएं धरती पर आती हैं, तब उन्हें भाप से
पकाया गया पुलाव अर्पित किया जाता है।
खुद खाने से पूर्व पुलाव का एक हिस्सा पड़ोसी मस्जिद के मौलवी को तथा आस-पास रहने वाले
भिखारियों के लिए भी रखा जाता है।अंतिम संस्कार जैसे अनुष्ठानों में यखनी पुलाव को परोसने
का समय और भी विशिष्ट माना जाता है।ऐसा इसलिए है, क्यों कि अंतिम संस्कार के बाद
महिलाएं मातम मनाने वालों को सांत्वना देने के लिए गरमा-गरम यखनी पुलाव परोसती हैं।
पुलाव को अक्सर बिरयानी के समान ही समझा जाता है, किंतु यह बिरयानी से बहुत अलग
है।रामपुर वासियों के लिए बिरयानी एक निर्जीव भोजन के समान है।बिरियानी में चावल को
अलग से मसालेदार पानी में पकाया जाता है और फिर उसमें मीट को डालकर धीमी आंच में
पकाया जाता है। जबकि यखनी पुलाव में ऐसा नहीं होता। यखनी पुलाव का आधार उबला हुआ
मांस होता है।यखनी पुलाव बनाने के लिए सबसे पहले उसमें मीट को मसाले के साथ अच्छी
तरह पकाया जाता है तथा बाद में उसमें चावल डाला जाता है।
यखनी पुलाव को बनाने की विधि पुलाव के फारसी संस्करण से मिलती-जुलती है।खाद्य
इतिहासकार लिज़ी कोलिंगम (Lizzie Collingham) ने 'करी: ए टेल ऑफ़ कुक्स एंड कॉन्करर्स'
(Curry: A Tale of Cooks and Conquerors)में लिखा है,कि जब फारसी पिलाफ़
(Pilaf),हुमायूँ और अकबर के समय में मुगल के मसालेदार व्यंजनों से मिला तब बिरियानी का
उद्भव हुआ।
रामपुर के भव्य रज़ा पुस्तकालय में रामपुरी व्यंजनों पर 150 साल पुरानी फ़ारसी पांडुलिपि
मौजूद है। इन पांडुलिपियों में पुलाव, कबाब और कोरमा जैसे व्यंजनों की रेसिपी (Recipe) का
जिक्र मिलता है।पांडुलिपियां,1870 के दशक में नवाब कल्बे अली खान (1865-87) के
शासनकाल की हैं,तथा फ़ारसी में हाथ से लिखी गयी हैं।रामपुर के 'खासबाग पैलेस' में चावल
बनाने के लिए एक अलग रसोई बनाई गयी थी तथा खानसामा रसोइया सबसे उत्तम और नए
चावलों के व्यंजन बनाने के लिए जाने जाते थे।नवाब होशयार जंग बिलग्रामी, जो 1918 से
1928तक नवाब हामिद अली खान के दरबार से जुड़े रहे,अपने लेख मशाहिदत में लिखते हैं,कि
रसोई में 150रसोइए थे।प्रत्येक रसोइया एक विशेष प्रकार का व्यंजन बनाने में विशेषज्ञता रखता
था।
रामपुर के व्यंजनों में विविधताएं दिखने का एक प्रमुख कारण यह है कि1857 की क्रान्ति के
बाद लखनऊ और दिल्ली के कई रसोइयों ने अपने रोजगार खो दिए थे। रोजगार की तलाश में
वे जब रामपुर आए तब उन्होंने यहां विभिन्न नए व्यंजनों के साथ प्रयोग करना शुरू किया। यूं
तो वर्तमान समय में रामपुर में आमतौर पर यखनी पुलाव को अत्यधिक महत्व दिया जाता है,
किंतु रज़ा पुस्तकालय में मौजूद पांडुलिपियों के अनुसार रामपुर में करीब 50 प्रकार या शैलियों
का पुलाव बनाया जाता था। इन शैलियों में शाहजहानी पुलाव, मीठा पुलाव, अन्नानास
पुलाव,इमली पुलाव, पुलाव शीर शक्कर,मुतंजना पुलाव आदि शामिल थे।इनमें से अधिकांश
किस्में अनसुनी हैं,और कुछ खाद्य स्मृति का एक हिस्सा बन गयी हैं।माना जाता है कि
शाहजहानी पुलाव को संभवतः दिल्ली से रामपुर में लाया गया था।पुराने समय से लेकर अब तक
पुलाव बनाने की देग तथा पुलाव बनाने के तरीकों में अनेकों परिवर्तन आ चुके हैं, किंतु इनका
महत्व आज भी समान है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3iOQ5g0
चित्र संदर्भ
1. पात्र में रखे साधारण पुलाव का एक चित्रण (youtube)
2. रामपुर के प्रसिद्द यखनी पुलाव का एक चित्रण (youtube)
3. सामूहिक रूप से भोजन करते बच्चों का एक चित्रण (youtube)