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कोई परिवार कितना ही बड़ा क्यों न हो, उस परिवार के हर सदस्य को एक दूसरे की रुचियों और
ज़रूरतों के बारे में जानकारी रहती है। यहां तक की परिवार के सभी लोग यह भी जानते हैं की, उनके
घर में कितने पालतू जानवर हैं? अथवा उनके बगीचे में कितने किस्म के फूल हैं. और कौन सा फूल
किस मौसम में खिलता है? इस संदर्भ में संस्कृत का एक लोकप्रिय वाक्य है, "वसुधैव कुटुंबकम"
अर्थात "पूरा विश्व एक परिवार है" यदि हम संस्कृत के इस श्लोक को आधार माने, तो हमें इस बारे
में पूरी जानकारी होनी चाहिए, की हमारे वैश्विक परिवार में कितने लोग रहते हैं?, विश्व में जानवरों
की संख्या कितनी है, तथा जंगल रुपी हमारे बगीचे में कितने पेड़ मौजूद हैं?
हालाँकि जनगणना के माध्यम से हम यह बता सकते हैं की, दुनिया में लगभग कितने लोग हैं?
साथ ही हम जानवरों की मौजूद जनसँख्या का भी आंकलन कर सकते हैं। किंतु दुर्भाग्य से हमने
आज तक पेड़ों के साथ भेदभाव किया है। क्यों की हम वास्तव में नहीं जानते की, दुनिया में लगभग
कितने वृक्ष मौजूद है और किस वृक्ष को संरक्षण और विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है? लेकिन
अब यह सकारत्मक रूप से बदलने वाला है!
भारत में जैव विविधता को समझने तथा हरित क्षेत्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पर्यावरण
मंत्रालय द्वारा भारत की पहली वृक्ष जनगणना आयोजित करने का प्रस्ताव दिया गया है। पेड़ों की
गणना करने के पीछे का उद्देश्य, पेड़ों के संरक्षण की आवश्यकता के बारे में सामुदायिक
जागरूकता को प्रोत्साहित करना, छंटाई और कटाई को विनियमित करना और लोगों की भागीदारी
के साथ हरित आवरण को बढ़ाना है। इस कार्यक्रम की सभी योजनायें अंतिम चरणों में हैं।
देश के इतिहास में पहली बार राष्ट्रीय वृक्ष गणना होगी। हालांकि पहले भी स्थानीय स्तर पर छोटे
पैमाने पर पेड़ों की संख्या गिनने का प्रयास किया जाता रहा है। 2014 में, दिल्ली के कुछ मोहल्लों
में भी वृक्षों की गणना की गई थी। पर्यावरण मंत्रालय के अनुसार पहली जनगणना सफलता पूर्वक
होने के पश्चात् यह हर पांच वर्षों में नियमित रूप से दोहराई भी जा सकती है। इसके माध्यम से
स्वच्छ हवा की आवश्यकता, भूजल रिचार्जिंग, जैव विविधता के रखरखाव के बारे में जागरूकता
फैलाने तथा ध्वनि प्रदूषण आदि को कम करने में मदद मिलेगी।
आज देश में पर्यावरण संरक्षण को एक जन आंदोलन बनाने की आवश्यकता है, क्योंकि सरकारें
इतने बड़े लक्ष्य को अकेले प्राप्त नहीं कर सकती हैं। मंत्रालय का कहना है की, हम वन विभागों की
देखरेख में वृक्षों की गणना करने के लिए सरकारी विभागों, नागरिक समाज, स्थानीय नागरिकों,
स्कूलों, गैर सरकारी संगठनों और स्थायी संस्थानों की भागीदारी को प्रोत्साहित करेंगे। साथ बच्चों
की भागीदारी को भी प्रोत्साहित किया जायेगा, ताकि उनमें पर्यावरण संरक्षण की भावना पैदा की
जा सके। आज 1951 की तुलना में शहरी आबादी 17% से बढ़कर 2011 में 31% हो गई और 2050
तक 55% तक पहुंचने की उम्मीद है। अतः शहरी हरियाली के अनुरूप वृक्ष संरक्षण और प्रबंधन
पर्यावरण मंत्रालय के लिए एक मुख्य बिंदु के रूप में उभरा है।
भारत की राष्ट्रीय वन नीति के अंतर्गत पूरे देश के भौगोलिक क्षेत्र के 33% के औसत वन और वृक्ष
कवर की परिकल्पना की गई है। पेड़ों की गढ़ना करने के कई भूतपूर्व लाभ देखे गए हैं। वर्ल्ड
रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट World Resources Institute (WRI) India द्वारा ग्रीन कवर मैप
अध्ययन किया गया, जिसके अनुसार देश में 10 प्रतिशत अथवा उससे अधिक कंक्रीटीकरण
(concretisation) वाले मुंबई के क्षेत्र जैसे डोंगारी, भुलेश्वर और कुर्ला जैसे क्षेत्र शहर के अन्य
हिस्सों की तुलना में अधिक गर्म हैं। दूसरी और मुलुंड और बोरीवली जैसे क्षेत्रों में जहाँ 70 प्रतिशत
तक हरित आवरण क्षेत्र है, वहां औसतन कम तापमान दर्ज किया गया। 2015 से 2020 तक के डेटा
अध्ययन से पता चलता है कि, मुलुंड क्षेत्र में तापमान 28 डिग्री सेल्सियस और डोंगारी जैसे क्षेत्रों में
34 डिग्री सेल्सियस जितना कम था। बीएमसी वृक्ष जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, मुंबई में
29.75 लाख पेड़ हैं। वैज्ञानिकों ने सघन कंक्रीटीकरण को एक खतरा बताते हुए, माना है की जैव
विविधता के संरक्षण, बाढ़ को कम करने, और गर्मी से बचाव सुनिश्चित करने में शहरी हरियाली
बेहद लाभदायक साबित हो सकती है। विशेषज्ञों के अनुसार अधिकारियों को उन देशी प्रजातियों के
पेड़ लगाने पर अधिक ध्यान देना चाहिए, जो मिट्टी की प्रकृति के अनुकूल हों। वृक्षारोपण का
मतलब क्षेत्र की आवश्यकताओं को समझे बिना कोई पेड़ लगाना नहीं है।
विकास और पर्यावरण को संतुलित रखने के संदर्भ में हम यह अक्सर सुनते हैं की, वृक्ष प्रत्यारोपण
एक बेहतर विकल्प साबित हो सकता है। लेकिन वास्तविक सच्चाई कुछ और ही है, इसे हम
वास्तविक उदाहरण से समझते हैं।
मुंबई मेट्रो 3 परियोजना के लिए मार्ग बनाने के लिए शहरी जंगल के, 2017 में 2,141 पेड़ काटे
अथवा प्रत्यारोपित किये गए थे। वर्ष 2019 में जब बॉम्बे हाईकोर्ट ने प्रत्यारोपित पेड़ों का निरीक्षण
करने के लिए एक तथ्य-खोज दल नियुक्त किया, तो कथित तौर पर पाया कि उनमें से 60% से
अधिक की मृत्यु अर्थात वे नष्ट हो चुके थे। प्रत्यापित वृक्षों की मृत्यु होने के पीछे प्रमुख कारण वृक्षों
की देखभाल कमी और वैज्ञानिक प्रत्यारोपण विधियों को माना जा रहा है। 2019 की इंडिया स्टेट
ऑफ फॉरेस्ट (India State of Forests) रिपोर्ट से पता चला है, कि भारत का कुल वृक्ष आवरण
95,027 वर्ग किमी है, जो इसके भौगोलिक क्षेत्र का सिर्फ 2.89% है।
संदर्भ
https://bit.ly/3ak6S67
https://bit.ly/3ak1mA7
https://bit.ly/3Ar7KjZ
https://bit.ly/2Yvtoqp
https://bit.ly/3loNtqI
चित्र संदर्भ
1. सड़क कनारे पर शानदार वृक्षों की श्रंखला का एक चित्रण (Westend61)
2. चिन्हित किये गए वृक्ष को दर्शाता एक चित्रण (Loksatta)
3. 2015 तक भारतीय वन कवर मानचित्र का एक चित्रण (wikimedia)
4. कटे हुए वन क्षेत्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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