रामपुर 18वीं शताब्दी में स्थापित हुआ था पर उसके पहले वहाँ क्या था? वहाँ के भुःखण्ड की स्थापना कैसे हुई थी? रामपुर को तराई क्षेत्र क्युँ कहा जाता है? यह तमाम सवाल सभी के मन में गूँजतें हैं। अब यदि कोई कहे की रामपुर से कुछ ही दूरी पर एक समुद्र हुआ करता था तो आज के जमाने में भरोसा करना सम्भव नही है। एक समय पृथ्वी पुरी तरह से आग का गोला थी, फिर रासायनिक गतिविधियों के चलते इसके वायुमंडल मे कई गैसों का गुबार बन गया जिनमे थे हाईड्रोजन व हीलियम। समस्त गैसों के मध्य हुए प्रतिक्रियाओं के चलते एक अत्यन्त लम्बे समयकाल तक पृथ्वी पर बारिश होना शुरू हो गयी और यही कारण था पृथ्वी पर जीवन काल के शुरू होने का और समुद्रों, नदियों, प्रस्तरों आदि के निर्माण का।
तृतियक काल से पहले पृथ्वी के तमाम भूःखण्ड एक थे पर तृतियक काल के आने के बाद गोंडवाना भूमी का विखंडन शुरू हुआ था। संभवतः प्रसिद्ध विशाल ज्वालामुखी जो गोंडवाना भूमि के विखंडन के लिये जाना जाता है इसी काल मे विस्फोटित हुआ था, यह ज्वालामुखी अत्यन्त बड़ा था जिसने पृथ्वी के नीचे की सतहों को अस्त व्यस्त कर दिया। इस परिवर्तन के चलते नये भुःखण्डों का विकास हुआ तथा इसी के साथ-साथ बंगाल की खाड़ी, अरब सागर, दक्षिण अटलांटिक सागर इत्यादि का जन्म हुआ। इस काल मे सबसे दक्षिण पूर्वी भारत सबसे ज्यादा प्रभावित रहा था जिसका मुख्य कारण टेथिस का क्षेत्र था जो की कई ज्वालामुखियों और भुकम्पों के प्रभाव मे था। वेस्ट इंडीज़ व कैरेबियन क्षेत्र भी ज्वालामुखी आदि से प्रभावित था।
उपरोक्त उतार-चढाओं के चलते ही ऊँचे हिमालयी पहाडियों का निर्माण हुआ। युरोप की ऐल्प्स की पहाड़ियाँ इसी काल मे प्रकाश मे आयी तथा इनका और हिमालय का विकास तृतियक काल मे तीव्र गति से हुआ। हिमालय व शिवालिक प्राचीन काल के टेथिस नामक सागर पर विकसित हुये हैं जिस कारण से यहाँ पर समुद्र में पायी जाने वाली सीपियाँ व जीवाश्म मिलते हैं।
रामपुर में वर्तमान काल में किसी भी प्रकार की कोई भी जीवाश्म की प्राप्ति नही हो पायी है परन्तु यहाँ से नजदीकी जिले जैसे पीलीभीत, सहारनपुर आदि स्थानों से जीवाश्मों की प्राप्ति बड़े पैमाने पर हुई है। रामपुर के जमीन को उर्वर होने के कुछ महत्वपूर्ण कारणों में से यह भी है कि जब तृतियक काल में हिमालय व शिवालिक का निर्माण हो रहा था तब वहाँ से बड़ी मात्रा में खनिज से परिपूर्ण मिट्टी तराई क्षेत्र में आयी। शिवालिक व हिमालय का निर्माण होने के कारण हीं वहाँ से कई नदियों के स्रोत फूटें जो इस पूरी भूमि कों सिंचित कर रहैं हैं तथा प्रतिवर्ष अपने साथ बड़े पैमाने पर उर्वर मिट्टी हिमालय क्षेत्र से ला रहें हैं।
पृथ्वी के जीवनकाल को मुख्यरूप से 4 भागों मे विभाजित किया जा सकता हैः
1- प्रि-कैम्ब्रियन युग
2- पुराजीवी युग
3- मध्यजीवी युग,
4- सेनोज़ोइक युग।
यहाँ के भूमि के उर्वरकता के कारण यह क्षेत्र एक बड़े वृहद जंगल के रूप में था जिसमें तमाम प्रकार के जीव निवास करते थे। 6ठीं शताब्दी ई.पू. से यह क्षेत्र पंचाल राज्य का अंग बन गया तथा करीब 5वीं छठी शताब्दी तक यह भूःखण्ड मौर्यों से लेकर कुषाणों और गुप्तों के संरक्षण में रहा। इसी दौरान यह बौद्ध व जैन धर्म के एक बड़े केंद्र के रूप में उदित हुआ। अहिक्षेत्र व अन्य कई पुरास्थल इसकी पुष्टि करते हैं। 1947 तक अहिक्षेत्र रामपुर के ही अंतर्गत था।
कालांतर में यह क्षेत्र प्रतिहारों व अन्य छोटे राज्यों के अन्तर्गत रहा। जैसा की यह क्षेत्र अत्यन्त गहन जंगल था तो यहाँ पर किसी प्रकार के इमारत के साक्ष्य नही मिलते। सल्तनतों के आने के बाद यह क्षेत्र दिल्ली सल्तनत व सम्भवतः जौनपुर सल्तनत के अधीन कार्य किया था। मुग़लों के आगमन के बाद यह क्षेत्र शिकार के लिये प्रयोग किया जाने लगा, अंग्रेजों नें भी यहाँ पर बड़े पैमाने पर शिकार किया जिसका परिणाम यह हुआ कि यहाँ पर कई जानवर अंत के कगार पर पहुँच गये। 18वीं शताब्दी में यहाँ पर रोहेल्लाओं ने कदम रखा व वर्तमान के रामपुर की स्थापना की। रामपुर व रोहीलखंड मुख्यतः मैदानी भाग है तथा यहाँ पर मरुस्थल नही पाया जाता है।
1. जियोलॉजी एण्ड मिनरल रिसोर्सेस ऑफ़ इंडिया, जियोलॉजी सर्वे ऑफ़ इंडिया।
2. क्रियेटिव क्राफ्ट्स फ्रॉम रॉक्स एण्ड जेमस्टोन्स, इसाबेल मूरे, लंदन।
3. इवोल्यूशन ऑफ़ लाईफ, एम. एस. रन्धावा, जगजीत सिंह, ए.के. डे, विश्नू मित्तरे।
4. द इवोल्युशन ऑफ़ मॉमल्स, एल. बी. हॉल्सटीड।
5. रोहेला इतिहास, डब्लू. एच. सिद्दीकी।
6. प्राचीन एवं पूर्व मध्य भारत का इतिहास, पाषाणकाल से 12वीं शताब्दी ईसवी तक, उपिन्दर सिंह।
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