प्राचीन समय में भारतीय सेना में महत्वपूर्ण थी हाथियों की भूमिका

रामपुर

 14-08-2021 10:23 AM
हथियार व खिलौने

हाथी को मुख्य रूप से अपने विशालकाय शरीर और अदम्य शक्ति के कारण जाना जाता है और इसलिए प्राचीन समय में भारतीय सेना में हाथियों का अत्यधिक उपयोग किया जाता था। चाहे कोई भी समय रहा हो तथा कोई भी क्षेत्र या राजवंश हो, हाथियों के महत्व को कभी नकारा नहीं गया। साथ ही मध्ययुगीन समय में भी इनका उपयोग अच्छी तरह से जारी रहा।चूंकि हाथी विभिन्न प्रकार के सैन्य कार्यों को पूरा करने में सक्षम थे,इसलिए सैन्य कार्यों के लिए इनका अत्यधिक उपयोग किया गया। हालांकि हाथी का उपयोग जहां फायदेमंद था वहीं नुकसानदायक भी।कई कमियों के बावजूद भी प्राचीन भारतीयों ने हाथियों की प्रभावशीलता पर तब भी विश्वास किया,जब जमीनी परिणाम विपरीत दिखाई दिए।
युद्ध में हाथियों का उपयोग करने का एक मुख्य कारणसैन्य कौशल की अवधारणाथी, जो मुख्य रूप से विशाल जानवरों को रखने और नियोजित करने से जुड़ी हुई थी।हाथियों को युद्ध में शामिल करने का एक प्रमुख फायदा यह था कि हाथी एक बार में ही अनेकों शत्रुओं, उनके वाहनों और पशुओं को अपने पैरों से रौंध सकता था।हाथी युद्ध में शामिल हुए अन्य जंतुओं को डराने में भी सक्षम थे। हाथियों का इस्तेमाल शत्रु पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव उत्पन्न करने के लिए भी किया जाता था।उदाहरण के लिए किसी शासक के पास जितने हाथी होते,अन्य क्षेत्रों में उसकी प्रतिष्ठा उतनी ही अधिक होती।अधिक हाथियों को कैद करने से उस शासक का दुश्मन उससे डर जाता तथा उसे चुनौती देना छोड़ देता था। युद्ध के लिए हाथियों को नशे का सेवन भी कराया गया, क्यों कि नशे में हाथी बहुत क्रूर व्यवहार प्रदर्शित करता है, जो दुश्मनों को मार गिराने के लिए पर्याप्त है।इस प्रकार हाथी बहुत बेरहमी से दुश्मन की सेनाओं का सफाया कर सकता है।
हालांकि इसका विपरीत प्रभाव भी देखने को मिला अर्थात जब हाथी घायल हुआ या उसे क्रोध आया तब उसने अपनी सेना का सफाया करना शुरू कर दिया और मैदान छोड़कर भाग गया।ऐसा इसलिए था, क्यों कि हाथी को उसके चिड़चिड़े व्यवहार के लिए प्रशिक्षित नहीं किया जा सकता था।प्राचीन भारत में, शुरू में सेना चतुरंग थी, अर्थात उसमें पैदल सेना, घुड़सवार सेना, हाथी सेना और रथ पर सवार सेना शामिल थी। जहां रथ अंततः अनुपयोगी हो गए, वहीं अन्य तीन सेनाओं का महत्व बना रहा, जिनमें हाथियों का प्रमुख स्थान था।
भारत में लगभग हर शासक के पास हाथी थे और उनका इस्तेमाल वे अपनी महत्वाकांक्षाओं को आगे बढ़ाने के लिए करते थे। इन शासकों में मगध पर शासन करने वाले विभिन्न राजवंशों के राजा,मौर्यों का राजवंश, गुप्ता,पल्लव,चोल,राष्ट्रकूटराजवंश आदि शामिल थे।महाभारत के युद्ध में भी हाथियों का उपयोग होने का उल्लेख मिलता है।राजा बिंबिसार जिसने मगध साम्राज्य का विस्तार शुरू किया, वह अपने युद्ध हाथियों पर बहुत अधिक निर्भर था।मगध के नंदों के पास जहां लगभग 3,000 हाथी थे,वहीं चंद्रगुप्त मौर्य की सेना का लगभग 9,000 हाथियों पर नियंत्रण था।पलास की सेना जिसे विशाल हाथी सैन्य-दल के लिए जाना जाता था, के पास 5,000 से लेकर 50,000 हाथी मौजूद थे। रोमन (Roman) साम्राज्य में पहले तक केवल पैदल सेना और उसके अनुशासन पर ध्यान दिया जाता था। किन्तु बाद में उन्होंने युद्ध में हाथियों का भी इस्तेमाल करना शुरु कर दिया। पूनिक (Punic) युद्धों के बाद कभी-कभी उनका उपयोग किया गया, विशेष रूप से ग्रीस (Greece) की विजय के दौरान। क्लॉडियस (Claudius) के समय तक वे उपयोग से बाहर हो गए, जिसके बाद उनका उपयोग आम तौर पर दुश्मनों को हतोत्साहित करने के उद्देश्य से किया जाने लगा। रोम के लोग कभी-कभी परिवहन के लिए भी हाथियों का इस्तेमाल करते थे।
हाथियों को युद्ध में उपयोग करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण था उनका रखरखाव और नियंत्रण, जिसके लिए महावत नियुक्त किए जाते थे। हाथियों को कैद में रखने के लिए धातु से बनी जंजीरों और एक विशेष हुक, जिसे अंकुश कहा जाता था, का उपयोग किया जाता था। महावत द्वारा पहले हाथी को पकड़ा जाता, तथा फिर उसे पैर उठाना सिखाया जाता। इसके बाद हाथियों को दौड़ना और कुशलता पूर्वक बाधाओं को पार करना सिखाया जाता था।
हाथी की पहली प्रजाति जिसे पालतू बनाया गया वह एशियाई (Asian) हाथी की थी, जिसे कृषि में उपयोग किया गया था।हाथी को पालतू बनाने का सबसे पुराना प्रमाण लगभग 2000 ईसा पूर्व सिंधु घाटी सभ्यता से मिलता है।शांग चीन (Shang China) में पीली नदी घाटी में जंगली हाथियों की मौजूदगी के पुरातात्विक साक्ष्य यह इंगित करते हैं, कि उन्होंने युद्ध में हाथियों का भी इस्तेमाल किया।जंगल से हाथियों को पकड़ना एक कठिन काम था, लेकिन कैद में प्रजनन की कठिनाइयों और एक हाथी को युद्ध में शामिल होने के लिए पर्याप्त परिपक्वता तक पहुंचने के लिए आवश्यक लंबे समय को देखते हुए यह एक आवश्यक कार्य था।
युद्ध सेवा के लिए सबसे उपयुक्त उम्र में होने के नाते साठ वर्षीय युद्ध हाथियों को हमेशा बेशकीमती माना जाता था, और इसलिए इन्हें उपहार के रूप में भी भेंट किया जाता था।कौटिल्य के अर्थशास्त्र सहित ऐसे अनेकों कार्य हैं, जो हाथियों के प्रजनन, प्रशिक्षण और युद्ध में उनके आचरण पर विभिन्न जानकारियां देते हैं।युद्ध में हाथियों के उपयोग ने कई देशों में अपनी एक गहरी सांस्कृतिक विरासत छोड़ी है।उदाहरण के लिए युद्ध के हाथियों को कई पारंपरिक युद्ध खेलों में शामिल किया जाता है।कई खेलों में वस्तुओं को हाथी के विभिन्न नामों से भी सम्बोधित किया जाता है। जैसे प्राचीन भारतीय बोर्ड गेम चतुरंगा में बाइशॉप (Bishop) को गजा कहा जाता था।चीनी शतरंज में इसे हाथी के रूप में ही जाना जाता है।इसी प्रकार से भारत की वास्तुकला में भी वर्षों से युद्ध के हाथियों का स्पष्ट प्रभाव देखा गया है। 19 वीं शताब्दी के ऐसे कई प्रसिद्ध चित्र हैं जिनमें युद्ध के हाथी दिखायी देते हैं। इसके अलावा सांची के स्तूप और अजंता की गुफाओं के भित्तिचित्रों में भी युद्ध के हाथी दिखायी देते हैं। यूं तो अब प्रायः युद्ध के हाथियों का उपयोग नहीं देखने को मिलता है, किन्तु एक जगह ऐसी है जहां हाथियों को सैन्य बल के रूप में उपयोग करने की प्रथा आज भी जारी है।यह स्थान म्यांमार में उत्तरी कचिन राज्य है,जिसके लिए वहां की सरकार कोई महत्व नहीं रखती है। उन्होंने अपनी भूमि का म्यांमार की सेना से बचाव किया है ताकि म्यांमार की सेना उनकी भूमि पर अपना वर्चस्व स्थापित न करे तथा इसके लिए वे अपने युद्ध के हाथियों की मदद ले रहे हैं।

संदर्भ:
https://bit.ly/2VLSeAE
https://bit.ly/3iKNHaF
https://bit.ly/3lWiseH
https://bit.ly/3yTFR49

चित्र संदर्भ

1. हाथियों के साथ ब्रितानी कमांडर और सहयोगी भारतीय दल का एक चित्रण (wikimedia)
2. गौगामेला की लड़ाई के दौरान हाथियों का युद्ध का एक चित्रण (wikimedia)
3. वयस्क नर हाथी अपना अधिकांश समय अकेले या एकल-लिंग समूहों में बिताते हैं जिसको दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)



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