भारत ही नहीं अपितु विश्व के अन्य कई देशों में भी उर्दू भाषा बोली और पढ़ी जाती है। यदि देखा जाये तो उर्दू लिपि का मूल अरबी लिपि है। जिसका प्रयोग आज संसार के कई देशों में होता है। उत्तर प्रदेश के रामपुर और उर्दू का रिश्ता काफी पुराना है। रामपुर की स्थापना नवाब फैज़ुल्लाह खान ने 1774 में की थी। कला प्रेमी नवाब फैज़ुल्लाह खान ने अपने प्राचीन पांडुलिपियों के संग्रह की मदद से रामपुर में वर्ष 1774 में ही रज़ा पुस्तकालय की भी स्थापना की। रज़ा पुस्तकालय आज भी एशिया के सबसे बड़े पुस्तकालयों में से एक है।
उर्दू लिपि की दो विशेषताएं हैं- एक यह कि अन्य सेमिटिक लिपियों की तरह यह लिपि दाएं से बाएं लिखी जाती है और दूसरी यह कि इसके अक्षरों को उन अक्षरों के उच्चारण से अलग नाम दिया गया है। जैसे- अ-आ के उच्चारण के लिए अलिफ, ब के लिए बे, ज के लिए जुआद, द के लिए दाल, स के लिए सुआद और श के लिए शीन का प्रयोग किया जाता है। सेमिटिक लिपियों में 22 अक्षर थे, अरबी में 28 हो गए और जब अरबी लिपि फ़ारसी के लिए अपना ली गई तो इसमें चार चिन्ह- प, च, ज्ह, और ग भी जोड़ दिए गए। जब भारत में यह उर्दू के रूप में प्रचलित हुई तो इसमें ट, ड, और ड़ अक्षर भी जोड़ दिए गए जिससे उर्दू लिपि अब 35 अक्षर की हो गई। कुछ विद्वान इसमें 37 अक्षर मानते हैं।
उर्दू एक व्यंजन प्रधान लिपि है और स्वर बनाने के लिए जेर, जबर, पेश आदि अक्षरों का आश्रय लेना पड़ता है। उर्दू लिपि की एक और खासियत उसकी स्वरमाला में है। उर्दू में कुछ स्वरों के लिए अक्षर हैं, जैसे-अलिफऐनये आदि। कुछ स्वरों के लिए ऊपर नीचे लगाए जाने के चिन्ह (जेर जबर पेश) हैं पर उन चिन्हों का प्रयोग ऐच्छिक रहता है। इसलिए शब्द में जितने अधिक अक्षर होंगे उतने ही शब्दों की संभावना बढ़ेगी। जैसे उर्दू लिपि में क+स+न लिखे जाने पर उसे कसन भी जा सकता है और कुसन, किसन, किसिन आदि भी पढ़ा जा सकता है। उसी प्रकार व के लिए प्रयुक्त होने वाला उर्दू अक्षर (काव) ऊ, ओ और औ के के लिए भी प्रयुक्त होता है। तथा रामपुर में आज भी कुछ जगहों पर उर्दू सुनने को मिल जाती है और सिखाई भी जाती है। इसकी वजह यह है कि नवाब फैज़ुल्लाह खान के उत्तरगामी नवाबों ने भी उर्दू को जिंदा रखने में अपना पूरा योगदान बनाये रखा और इसीलिए उर्दू और रामपुर का नाता ज़िन्दा रह पाया।
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